Wednesday, July 20, 2011

भ्रूण हत्या और उसको रोकने का एकमात्र उपाय - Sharif Khan

जिस ज़माने में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स.अ.व. का जन्म हुआ उसको जहालियत का ज़माना कहा जाता है। अरब में उन दिनों सभ्यता को शर्मिन्दा करने वाला वातावरण था। चरित्र का पतन इतना तो न हुआ था कि हमारे देश की तरह से समलैंगिकता को क़ानूनी सुरक्षा दी गई हो अथवा सुरक्षित यौन सम्बन्ध क़ायम करने हेतु सरकार की ओर से कण्डोम बांट कर खुल्लम खुल्ला व्याभिचार के लिए प्रेरित किया जाता रहा हो। परन्तु और बहुत सी बुराइयां विद्यमान थीं। सबसे बड़ी बुराई यह थी कि लड़कियों को ज़िन्दा ही दफ़्न कर देते थे। कमज़ोर दिल के लोग पैदा होते ही दफ़्न कर देते थे या फिर प्रसव के समय गड्ढा खोदकर रखते थे और पुत्री के रूप में पैदा होने होने वाली सन्तान को उसी गड्ढे में दफ़्न कर दिया करते थे परन्तु मज़बूत दिल वाले थोड़ी बड़ी होने पर दफ़्न करते थे और बड़े गर्व से बयान करते थे कि मैंने अपनी बेटी को उस वक्त ज़िन्दा दफ़्न किया था जब वह ख़ूब दौड़ने लगी थी।

जब इस्लाम की रोशनी फैली तो लोग ईमान में दाख़िल होकर पवित्र क़ुरआन में आने वाले हर आदेश का तत्परता से पालन करने लगे। इस प्रकार से पवित्र क़ुरआन में जब यह हुकुम आया कि शराब छोड़ दो तो शराब छोड़ दी। जब सूद निषेध किया गया तो सूद का लेन देन बन्द कर दिया। जब चार से अधिक पत्नियां रखने को मना किया गया तो जिन लोगों की चार से अधिक पत्नियां थीं उन्होंने चार से अधिक वालियों को तलाक़ दे दिया। इसी प्रकार से जब यह आयत आई, अनुवाद,‘‘ज़िन्दा दफ़्न की गई लड़की से पूछा जाएगा, कि उसकी हत्या किस गुनाह के कारण की गई‘‘ तो इस पाप कर्म को छोड़ने के साथ जिन लोगों ने कुफ्ऱ की हालत में यह गुनाह किया था वह अपने अन्जाम की फ़िक्र में परेशान हो गए और जब पैग़म्बर स.अ.व. ने फ़रमाया कि ‘‘जाहलियत में जो कुछ हो गया अल्लाह ने उसे माफ़ कर दिया, अब नए सिरे से अपनी ज़िन्दगी शुरू करो।‘‘ तब जाकर चैन मिला। ऐसे बिगड़े हुए समाज में सुधार आने का केवल एक ही कारण था कि लोगों के दिलों में मरने के बाद दोबारा ज़िन्दा करके अल्लाह के द्वारा लिए जाने वाले हिसाब (जिसको आख़िरत कहते हैं) का डर पैदा हो गया था और उन्होंने अपने जीवन का मक़सद ही यह बना लिया था कि जो काम अल्लाह को पसन्द हो वह करना और जो काम अल्लाह को पसन्द न हो वह न करना। इसके नतीजे में जो क्रान्ति आई सारी दुनिया उसकी गवाह है कि देखते ही देखते दुनिया का हर भाग इस्लाम की रोशनी से जगमगाने लगा।

भारत में लड़कियों पर किये जाने वाले ज़ुल्म की एक क़िस्म है उनको पैदा होने से पहले ही मार देना अथवा भ्रूण हत्या। पैदा होने के बाद उस बच्ची को देखकर ममता उमड़ कर उस बदनसीब को कहीं पालने के लिए मजबूर न कर दे इसलिए उसको पैदा होने से पहले गर्भ में ही मार देने की प्रथा का प्रचलन हो गया है यदि समय रहते इस पर क़ाबू न पाया गया तो सभ्य समाज के लिए यह बहुत ही घातक सिद्ध होगा। सरकार ने अल्ट्रासाउण्ड केन्द्रों पर भ्रूण में लिंग की जांच कराए जाने को क़ानूनी अपराध घोषित करके समझ लिया कि उसकी जिम्मेदारी पूरी हो गई।

अरब के लोगों ने लड़कियों पर किये जाने वाले ज़ुल्म को तो आख़िरत में अल्लाह को दिये जाने वाले अपने कर्मों के हिसाब के डर से छोड़ दिया था परन्तु भारत में जो लोग इस अपराध को कर रहे हैं उनका यदि आख़िरत पर विश्वास होता तो इसको करते ही नहीं या फिर सरकार का डर होता तो इस अपराध को करने से बच सकते थे। इस प्रकार से निर्भयता पूर्वक किये जा रहे इस अपराध को यदि सरकार समाप्त करना चाहती है और भ्रूण हत्या को रोकना चाहती है तो उसके लिए एकमात्र उपाय यह है कि, प्रत्येक गर्भवती स्त्री का रिकार्ड तैयार करके उसके लिए भ्रूण की जांच कराया जाना आवश्यक कर दिया जाए और यदि भ्रूण का फ़ीमेल होना साबित हो जाए तो सरकार को चाहिए कि उको अपने संरक्षण में लेकर उस बच्ची का पैदा होना सुनिश्चित करा दिया जाए। इस व्यवस्था के लागू होने के दिन से ही भ्रूण हत्या समाप्त हो जाएगी।