Friday, August 3, 2012

बहादुरी पुरुषत्व का गहना Sharif Khan

सभ्य समाज में प्राचीन काल से ही बहादुरों का सम्मान होता रहा है। बहादुर व्यक्ति कमज़ोर, सोए हुए और निहत्थे पर वार करने से बचता है और ऐसी हरकत करने वाले को बुज़दिल और नीच कहा जाता है। पुलिस हिरासत में मौत, जेल में क़ैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार आदि हरकतें इसी श्रेणी में आती हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विचार करें तो अमेरिका द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में मासूम नागरिकों का क़त्ल उसकी बुज़दिली और नीचता को साबित करने के लिए काफ़ी है। ड्रोन हमले इन्सानियत को शर्मसार करने वाला जीता जागता उदाहरण है। इन हमलों में अभी तक एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मारा गया है जिससे अमेरिका को किसी क़िस्म का नुक़सान पहुंचने का अन्देशा हो। बहुत सी बातें तो चीन व रूस आदि देशों की भी अमेरिकी सरकार को बुरी लगने वाली होंगी तो फिर वहां ड्रोन हमलों से सबक़ सिखाने की हिम्मत क्यों नहीं जुटाता पाता है। सभ्य समाज की परम्परा यह है कि किसी की मौत यदि हो जाती है तो दोस्त और दुश्मन सब उसके ग़म में शरीक हो जाते हैं परन्तु महान संस्कृति और सभ्यता की दौलत से मालामाल भारत अपने पड़ौसी देश के मासूम नागरिकों के बुज़दिलाना तरीक़े से किये जा रहे क़त्ल के ख़िलाफ़ नैतिकता के आधार पर भी दो शब्द कहने को तैयार नहीं है। क्या इसलिए कि मारे जाने वाले लोग मुसलमान हैं और उनके पक्ष में कुछ कहना देश के संघी हिन्दुत्व वादियों को नाराज़ कर देगा या फिर इसलिए कि दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी देश अमेरिका नाराज़ हो जाएगा। ध्यान रहे कि ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द करना भी बहादुरी है और यही पुरुषत्व का गहना है।