Saturday, January 12, 2013

संगठित साज़िश का जवाब संगठन के बिना संभव नहीं Sharif Khan

भारत में अंग्रेजों ने चूंकि मुसलामानों से हुकूमत छीनी थी इसलिए उनको मुसलमानों से ही इस बात का ख़तरा था कि उनसे हुकूमत को दोबारा हासिल करने के लिए मुसलमान ही कोशिश कर सकते हैं लिहाज़ा उन्होंने मुसलमानों को ज़ुल्म के ज़रिये दबाने और कुचलने की परम्परा प्रारम्भ की जो राजनैतिक दृष्टिकोण से अनुचित नहीं थी। अंग्रेजों के चंगुल से मुल्क को आज़ाद कराने में हिन्दुओं और मुसलमानों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और मुल्क आज़ाद हो गया परन्तु मुसलमानों के ख़िलाफ़ चलने वाला अभियान बजाय बन्द होने के और ज्यादा उग्र हो गया जिसका कोई औचित्य नहीं है। अंग्रेज़ी शासन में तो केवल हुकूमत ही मुसलमानों के खिलाफ़ कार्यरत थी परन्तु आज़ाद हिंदुस्तान में सरकार के साथ सरकार-समर्थित हिन्दूवादी संगठन भी योजनाबद्ध तरीक़े से मुसलमानों को दबाने और कुचलने के अभियान में शरीक हैं जिससे देश बारूद के ढेर पर बैठा हुआ प्रतीत हो रहा है।* देश के बटवारे के समय लाखों मुसलमानों की सांप्रदायिक तत्वों द्वारा शहादत
* 1987 में मेरठ में साम्प्रदायिक तत्वों के साथ मिलकर पुलिस और पी ए सी के द्वारा सेकड़ों मुसलमानों का क़त्ल और मुजरिमों को आजतक सज़ा न दिया जाना
* बाबरी मस्जिद को गिराने में पूरे देश के सरकारी और ग़ैरसरकारी सफेदपोश बदमाशों का एकजुट होकर देश को दुनिया के सामने कलंकित करना
* गुजरात में सरकार द्वारा प्रायोजित अभियान के द्वारा हज़ारों मुसलमानों के क़त्लेआम के साथ शरीफ़ज़ादियों की इज्ज़त से खिलवाड़
* कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक होने के कारण सांप्रदायिक तत्वों के कामयाब होने की उम्मीद न होने पर सरकार द्वारा फ़ौज के द्वारा मुसलमानों पर उपरोक्त क़िस्म का ज़ुल्म कराया जाना
आदि कुछ ऐसे उदहारण हैं जिनकी सत्यता से इन्कार नहीं किया जा सकता।
इसकी प्रतिक्रिया में यदि बचाव करने के बजाय ईंट का जवाब पत्थर से देने की परिपाटी शुरू हो गई तो बारूद के ढेर पर बैठा हुआ हिंदुस्तान तबाह हो जाएगा। इसलिए ज़रूरी है कि मज़लूम मुसलमानों के साथ देश का दर्द रखने वाले शरीफ़ हिदू (जो बहुसंख्या में हैं) भी मिलकर संगठित तौर पर मुसलमानों के खिलाफ़ चलाई जा रही इस साज़िश का उसी तरह से एकजुट होकर मुक़ाबला करें जिस तरह से देश को आज़ाद करने में एकजुट होने का सबूत दिया था।