कई वर्ष पुरानी बात है कि मेरी एक लेक्चरर मित्र ने मुझसे बी ए की ऐसे विषय की कापियां जांचने का अनुरोध किया जिसका मैंने कभी अध्ययन नहीं किया था अतः मैंने असमर्थता प्रकट कर दी जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि आपको पढ़ना कुछ नहीं है और क्या लिखा गया है उससे भी आपका कोई सरोकार नहीं है बल्कि छात्र द्वारा कितना लिखा गया है उसके अनुसार अंक देने हैं। अब लगभग 30 वर्ष के बाद एक समाचार पढ़ कर उस घटना की याद ताज़ा हो गई।
एक समाचार के अनुसार यू पी बोर्ड के द्वारा सम्पन्न कराई गई परीक्षाओं में परीक्षकों ने साइंस, अंग्रेज़ी तथा सामाजिक विज्ञान की 1 लाख 98 हज़ार कापियों पर बिना जांचे सेकिण्ड डिवीज़न के अंक दे दिये। 70 प्रतिशत और उस से अधिक अंक लाने वाले कुछ मेधावी छात्रों के द्वारा की गई आपत्तियों को ख़ारिज किये जाने पर जब न्यायालय में जाने की धमकी दी गई तब जाकर सुनवाई हुई और जांच में 411 परीक्षकों को दोषी पाया गया जिनके ख़िलाफ़ कार्रवाई किये जाने की प्रक्रिया चल रही है। इन अपराधियों को सज़ा, मिल पाएगी या नहीं अथवा मिलेगी तो कितनी मिलेगी, यह बात इस पर आधारित है कि सज़ा देने वाले अधिकारी भ्रष्ट हैं या नहीं और यदि भ्रष्ट हैं तो किस हद तक हैं।
इस से पहले चै. चरणसिंह विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं के आंकलन सम्बन्धी अनियमितताओं के प्रति सरकार का उदासीनतापूर्ण व्यवहार उसके चरित्र और कर्तव्यबोध की सही तस्वीर पेश कर ही चुका है। जिन अध्यापकों को इम्तेहान की कापियां जांचने का कार्य सौंपा गया था, उनके द्वारा यह कार्य खुद न करके अपने नौकरों और छठी सातवीं क्लास में पढ़ने वाले बच्चों से करवाया गया। इस अपराध का पता चलते ही सरकार को सख्ती के साथ इन अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करनी चाहिए थी परन्तु ऐसा न होकर छात्रों को सरकार से अपने कर्तव्य का पालन करवाने के लिये धरना और प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ा। यह कैसी विडम्बना है कि अपराध कितना संगीन है, यह इस बात से नापा जाता है कि अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करवाये जाने के लिये कितने बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए और कितनी जान माल की क्षति हुई।
यदि कापियां इसी प्रकार से जांची जाती हैं तो परीक्षओं का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। इन हालात में सरकार को चाहिये कि अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाने के लिये प्रशासन पर जोर डाले तथा प्रायश्चित् के तौर पर गत वर्षों में घटित उन मामलों की भी छानबीन कराये जिनमें परीक्षाओं में फेल होने के कारण छात्रों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा था। इस प्रकार से यदि गलत ढंग से कापियां जांची जाने के कारण फेल होने वाले किसी छात्र द्वारा की गई आत्महत्या का कोई मामला सामने आये तो इसके जिम्मेदार अध्यापकों के खिलाफ मुकदमा चलाकर सजा दिलवाई जाये।
13 comments:
बहुत अच्छा लेख लिखा है शरीफ खान साहब !
इन शिक्षकों का अपराध वाकई जघन्य है और इन्हें सजा मिलनी ही चाहिए ! इस देश के युवाओं के प्रति किया कोई भी अपराध बेहद गंभीर माना जाना चाहिए ! शुभकामनायें !
सतीश सक्सेना जी!
सच्चाई और ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षक जब अपना झूठ और बेईमानी वाला चरित्र प्रस्तुत करेंगे तो छात्रों के चरित्र निर्माण का कार्य किसके सुपुर्द किया जायेगा?
इसीलिए इस अपराध को हल्केपन से न लेकर ऐसे अपराधियों के लिए माफ़ी की कोई गुंजाईश नहीं होनी चाहिए और ऐसी सजा मिलनी चाहिए जिस को देख कर भविष्य में कोई शिक्षक ऐसा अपराध करने की कल्पना भी न कर सके.
शरीफ खान जी आप ने एक बहुत अच्छे मुद्दे पर पोस्ट लिखी है. वैसे तो भ्रष्टाचार सभी जगह है पर अपने उत्तर प्रदेश कि बात ही निराली है और उसमे भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश तो सर्वोपरि है. मेरी समझ से एक केंद्रीय एजेंसी को दसवीं और बारहवी कक्षा कि परीक्षाएं करवाने का जिम्मा दे देना चाहिए ताकि पूरे देश में एकसमान स्तर कायम हो सके.
एक बात और कहना चाहता हूँ कि शुरू में मुझे लगा था कि आप भी सिर्फ धार्मिक लेख ही लिखेंगे पर अच्छा लगा कि धर्म से हट कर हमारे भारतीय समाज जिसका हिस्सा हम सभी धर्मों के लोग हैं , पर भी आपकी खूब नजर है.
धन्यवाद.
assalamualikum,ye kaafi achcha lekh hai , bahut hi jald me aapko ek aur fact se avgat karaunga ki es brastachar ki naye kism ko students ne kis tarah se badhawa diya hai. lekin wo saudi ke pashmanzar me hoga.yahan kaafi alag hai. thanx for ur attention.
VICHAAR SHOONYA ji!
धर्म ऐसी चीज़ नहीं है कि उस से बचा जाए। धर्म तो जीवन पद्धति का नाम है जिसके बिना आदर्श समाज का निर्माण सम्भव नहीं है। उदाहरर्णार्थ वैवाहिक व्यवस्था आदर्श समाज की नींव के समान है इसीलिए महिला-पुरुष का बिना विवाह के साथ रहना व्याभिचार कहलाता है, जोकि धर्मविरुद्ध है। माता-पिता के संतान के प्रति और संतान के माता-पिता के प्रति अधिकार और कर्तव्य, पड़ौसी का हक़, विधवाओं तथा अनाथों की समाज पर ज़िम्मेदारी आदि का बोध धर्म के बिना सम्भव नहीं है। धर्म के विषय में बात करते हुए जब हम दूसरे धर्मों की आलोचना करना अपना मक़सद बना लेते हैं तो उसके नतीजे में बजाय भाईचारे के नफ़रत पैदा होने का अन्देशा रहता है लिहाज़ा आलोचना से बचते हुए धर्म के विषय में जानकारी देने में कोई हर्ज नहीं है।
Muhammad Ali ji!
छात्र देश का भविष्य होते हैं और उनके भविष्य से खिलवाड़ करना देश के भविष्य को अन्धकारमय बनाने की कोशिश के सिवा कुछ नहीं है इसलिये परीक्षकों का यह अपराध माफ़ी के क़ाबिल नहीं है। आप लोगों ने इस मुद्दे को जितनी संजीदगी से समझा और अहमियत दी, वह क़ाबिले तारीफ़ है।
यह कैसी विडम्बना है कि अपराध कितना संगीन है, यह इस बात से नापा जाता है कि अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करवाये जाने के लिये कितने बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए और कितनी जान माल की क्षति हुई।
इन अपराधियों को सज़ा, मिल पाएगी या नहीं अथवा मिलेगी तो कितनी मिलेगी, यह बात इस पर आधारित है कि सज़ा देने वाले अधिकारी भ्रष्ट हैं या नहीं और यदि भ्रष्ट हैं तो किस हद तक हैं।
आप कि पोस्ट अच्छी लगी तालीम ज़रूरी है और तहज़ीब उससे भी ज्यादा ज़रूरी। मोहब्बत लाजिम है ईमान फ़र्ज़ है।मैं आपके साथ हूँ क्योंकि मेरा मिशन भी यही है ।
shrif bhaayi bhut bhut bduya or stik bat he hm to kotaa me rhte hen yhaan kochingon ki lut or chatron ke sath hone vale atyaachar ko hm bhut khub smjhte hen aapne bhut bhut ahche andaaz men is drd or hqiqt ko byaan kiya he mubark ho bhayi. akhtar khan akela kota rasjthan
अपसे बिलकुल सहमत हूँ। इस संगीन अपराध के लिये सजा मिलनी चाहिये। मुश्किल ये है कि आज के रहन सहन और खान पीन से बच्चों मे उतनी ताकत और सहनशक्ति भी नही रही इसी लिये वो डर से कई बार मौत को भी गले लगा लेते हैं। उन्हे प्यार से ही सिखाया जा सकता है। अच्छे आलेख के लिये बधाई।
आपने सच कहा और बहुत कम लफ़्ज़ों में कहा , अच्छा लगा , सच अब सबके सामने आना चाहिए .धन्यवाद
इस बेहतरीन लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई. भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनों के साथ-साथ सामाजिक आन्दोलनों को चलाए जाने की ज़रूरत है. क्योंकि भ्रष्टाचार हमारे समाज को अन्दर तक खोखला कर चुका है.
Post a Comment