दशहरे के अवसर पर नागपुर के रेशम बाग़ मैदान में एक रैली को सम्बोधित करते हुए आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आतंकवाद और हिन्दुत्व विपरीत धारा है और कभी भी इन्हें एक दूसरे से नहीं जोड़ा जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि आमतौर पर हिन्दू आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं होते।
उपरोक्त कथन में उनका यह कहना कि, ‘‘आमतौर पर हिन्दू आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं होते‘‘ काफ़ी हद तक सत्य के क़रीब है क्योंकि, जहां पर संगठित रूप से योजना बनाकर आतंक फैलाया जाता हो, वहां यही कहना हक़ीक़त पसंदी है। आमतौर पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना तो तब माना जाता है जब कोई पीड़ित व्यक्ति इन्साफ़ न मिलने की प्रतिक्रिया में कोई वारदात कर बैठता है।
संगठित आतंकवाद का नमूना सारा संसार 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के रूप में देख ही चुका है। इसके साथ ही राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में अपना फ़ैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति एस यू ख़ान का यह कहना कि, ‘‘यदि छः दिसम्बर 1992 की घटना दोहराई जाती है तो देश दोबारा खड़ा नहीं हो पाएगा।‘‘ एक प्रकार से हिन्दू आतंकवाद पर अपनी मोहर लगा देने के समान है।
देश में योजनाबद्ध तरीक़े से पनपाए गए इस आतंकवादी संगठन के हौसले कितने बुलन्द हैं इसका प्रमाण इस संगठन के एक नेता द्वारा समझौते की पेशकश के तौर पर कहे गए इन शब्दों को पेश करना ही काफ़ी है कि यदि मुसलमान बाबरी मस्जिद पर से अपना दावा छोड़ दें तो काशी और बनारस की मस्जिदों पर से हम अपना दावा छोड़ देंगे। क्या यह ब्लैकमेलरों और अपहरणकर्ताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा नहीं है?
अन्त में आप कल्पना करके देखिये कि यदि क़ानून को ताक़ पर रख कर फ़ैसला न किया गया होता और सही इन्साफ़ करते हुए मस्जिद अराजकता के भंवर से निकाल दी गई होती, तो क्या देश इस वक्त छः दिसम्बर 1992 के आतंकवादियों द्वारा न जलाया जा रहा होता। मुस्लिम समाज ने अपने साथ किये गए ज़ुल्म की प्रतिक्रिया में जिस प्रकार से सब्र और धैर्य से काम लेकर सभ्यता, देशहित और अमनपसंदी का सबूत पेश किया है वह क़ाबिले तारीफ़ है।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत के आतंकवाद से सम्बन्धित बयान से ऐसा लगता है कि आदरणीय आतंकवाद को जिस प्रकार से परिभाषित करना चाहते हैं उसको समझने में निम्नलिखित उदाहरण शायद सहायक हो सके।
एक बार चंगेज़ ख़ान घोड़े पर सवार कहीं जा रहा था कि रास्ते में उसको किसी महिला के रोने की आवाज़ सुनाई दी जिसको सुनकर वह रुका और आवाज़ की ओर चला। वहां उसने देखा कि एक औरत का बच्चा एक गड्ढे में गिरा हुआ था जिसको वह बाहर निकालने में असमर्थ होने के कारण रो रही थी। अपने जीवन में शायद पहली बार चंगेज़ ख़ान को दया आई अतः उसने उस बच्चे को गड्ढे में से निकाल कर उसकी मां के सुपुर्द कर दिया यह बात दूसरी है कि गड्ढे में से बच्चे को बाहर निकालने का तरीक़ा कुछ अलग सा था क्योंकि चंगेज़ ख़ान ने अपने भाले की नोक से बच्चे को इस तरह उठाकर उसकी मां के सुपुर्द किया जिस तरह से कांटे से खरबूज़े आदि के टुकड़े उठाकर खाए जाते हैं। अतः चंगेज़ ख़ान से आतंकवाद की परिभाषा यदि पूछी जाती तो वह जैसी होती उसका उदाहरण हमारे देश में देखा जा सकता है।
22 comments:
जनाब शरीफ साहब आदाब आतंकवाद पर आर एस एस विचारधारा और उनके ब्यान पर आपकी टिप्पणी साहसिक और सच्चाई से भरी हुई हे सच तो यही हे के आज़ाद देश का पहला आतंकवादी गाँधी का हत्यारा कोई और नहीं बलके इनकी विचार्चारा से जुदा था जिसे यह पूजना चाहते हें इस हिसाब से तो यह लोग गोडसे गाँधी के हत्यारे को हिन्दू मानने से इंकार करते हें अरे भाई इन्हें मान लेना चाहिए सिरफिरे इधर भी हे तो सिरफिरे उधर भी हे सफाई देने से क्या फर्क पढ़ता हे अब तो सारा देश और विश्व इस आतंकवाद को समझ गया हे और घोषित सरकार का ब्यान भी हे भुत खूब साहसिक लेखन के लियें बधाई. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
मैं पढता ज्यादा हूँ और लिखता हूँ बहुत कम . समय भी कम है हरेक के पास , मेरे पास भी मगर आपकी पोस्ट है शानदार , इसलिए बताना ज़रूरी समझा . शुक्रिया बहुत बहुत .
संगठित आतंकवाद का नमूना सारा संसार 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के रूप में देख ही चुका है। इसके साथ ही राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में अपना फ़ैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति एस यू ख़ान का यह कहना कि, ‘‘यदि छः दिसम्बर 1992 की घटना दोहराई जाती है तो देश दोबारा खड़ा नहीं हो पाएगा।‘‘ एक प्रकार से हिन्दू आतंकवाद पर अपनी मोहर लगा देने के समान है।
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क्या बात है खान बाबा , आज तो जलवा दिखा रहे हैं .
#$#$#$#$%^%@*&^%$means
क्या यह ब्लैकमेलरों और अपहरणकर्ताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा नहीं है?
इतने कमेन्ट से बात पूरी तरह क्लियर हो जानी चाहिए कि लेख जानदार है वरना मैंने आज तक एक से दूसरा भी कमेन्ट न किया है कभी .
बहुत बढिया
Nice post.
'‘सत्यमेव जयते‘ साकार होगा परलोक में
‘जो भी भले काम करके आया उसे उसकी नेकी का बेहतर से बेहतर बदला और अच्छे से अच्छा अज्र (बदला) मिलेगा और उस दिन की दहशत से उनको अमन में रखा जाएगा। और जो कोई भी अपने काले करतूत के साथ आएगा, ऐसों को औंधे मुंह आग में झोंक दिया जाएगा और कहा जाएगा कि तुम्हारे बुरे कामों की क्या ही भारी सज़ा से आज तुमको पाला पड़ गया है।
(कुरआन, 28, 89 व 90)
हृदय चूंकि सत्य की आवाज़ को पहचानता है इसलिए सच्ची बात पसंद आती है. आप ने सच को पहचाना और उसकी तारीफ़ करके जो हिम्मत अफजाई की उसका शुक्रिया.
मैं भी कहता हूँ आतंकवाद और इस्लाम विपरीत धारा है और कभी भी इन्हें एक दूसरे से नहीं जोड़ा जा सकता। आमतौर पर कोई भी मुस्लमान आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं होता ।
अब यह कौन लोग है जो इस्लाम के नाम पे, या हिंदुत्वा के नाम पे आतंक फैला रहे हैं?
यह गन्दी राजनीति से प्ररित इंसानियत और देश के दुश्मन है.
nice post
शरीफ खान जी
- गज़नी, गोरी, तैमुर और बाबर जैसे आतंकवादियों द्वारा बार बार इस देश पर आक्रमण करना और यहाँ कि सम्पदा को लुट कर ले जाना.
- सैकड़ों वर्षों से आज तक मंदिरों को तोड़ना और उनकी जगह मस्जिद बनना.
- अफगानिस्तान में बामियान बुद्ध कि मूर्ति को तोड़ना
- १९४७ के बाद से अब तक भारत के साथ प्रत्यक्ष युद्ध कि स्थिति बनाये रखना.
- कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार.
- बंगलादेश से हिन्दू चकमा आदीवासियों को निकाल दिया जाना.
- अमेरिका के ट्रेड सेन्टर पर हमला
- मुंबई पर आतंकी हमला
ऐसी ही अनेक घटनाएँ जो बहुत पहले से आज तक होती चली आ रही है आम तौर पर होने वाला आतंकवाद है जिसकी तरफ आर एस एस प्रमुख ने इशारा किया है.
जनाब अस्सलामुअलेकुम..............
आप का लेख बहुत ही शानदार है और ये भी सही है कि "मुस्लिम समाज ने अपने साथ किये गए ज़ुल्म की प्रतिक्रिया में जिस प्रकार से सब्र और धैर्य से काम लेकर सभ्यता, देशहित और अमनपसंदी का सबूत पेश किया है वह क़ाबिले तारीफ़ है।" मगर शायद कुछ लोग सब्र और धैर्य को हमारी कमजोरी समझ रहे है मगर वो लोग ये नहीं जानते कि कभी भी मुस्लमान बुरा नहीं होता वोह हमेशा अमन पसंद होता है. खुदा हाफिज़
वाह, क्या उल्टी-दस्त किये टिप्पणीकारों ने यहाँ ! यह भूल जाते हो कि अगर ये भी आपके पाकिस्तानी और बांग्लादेशी विरादारों की नीतियों पर चलते तो आज मुसलमानों की आवडी इस देश में 9 % (१९४७ ) से बढ़कर आज ३० % न होकर २ % पर आ जाती ! लेकिन अह्संफरामोशो को यह कहाँ दिखाई देता है !
शरीफ खान जी- एक मुसलमान बन करके नहीं एक इन्सान बन करके सोचिये- तारकेश्वर गिरी.
आदरणीय शरीफ खान जी चरण स्पर्श।
मान्यवर बुजुर्ग महोदय , मुझसे कंही ज्यादे दुनिया देखि हैं आपने , बहुत करीब से आपने बहुत से दंगो को देखा होगा, हर धर्म के लोग आपके साथ होंगे।
लेकिन श्रीमान जी ये भी सत्य हैं कि आंतकवाद का नाम आते ही इस्लाम सामने आ जाता हैं। लड़ाई झगडे तो हर समाज और हर धर्म में होते हैं, और कभी - कभी भयानक भी हो जाते हैं, लेकिन अगर वोही लड़ाई झगडे अगर इस्लाम से जुड़े हो तो सदैव भयानक ही होगा।
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कभी मौका मिले तो दिल्ली कि कुतुबमीनार देखने जरुर जाइएगा, तब आप को पता चलेगा कि आप के पूर्वजो ने कितनी अच्छी जमीन आप लोगो के लिए तैयार कि हैं। पुरे कुतुबमीनार कि दिवालो और आस पास के भवनों पर आप को आज भी हिन्दू और जैन देवी - देवातावो कि तस्वीर नजर आ जाएगी।
@ पी.सी.गोदियाल जी !
आपने दूसरे ब्लोगर्स के कमेंट्स को उलटी दस्त की उपमा दी है जोकि सरासर अनुचित है और आपके अहंकार का प्रतीक भी । अहंकार से और अशिष्ट व्यवहार से दोनों से ही रोकती है भारतीय संस्कृति जिसका झंडा आप लेकर चलने का दावा करते है, मुझे लगता है कि आपका दावा सच नहीं है ।
@ Godiyal sahab ! उलटी दस्त के बीच आप अपना तशरीफ़ का टोकरा लेकर क्यों चले आये जनाब ?
VICHAAR SHOONYA जी,
पी.सी.गोदियाल जी,
Tarkeshwar जी
अफ़सोस है कि मेरी बात के जवाब में इधर उधर कि बातें कही जाने लगीं.
मैं कुछ मिसालें पेश करता हूँ. अलीगढ़, मेरठ, मुरादाबाद और दूसरे शहरों में दंगों के दौरान मुसलमानों को सिर्फ इसलिए शहीद कर दिया गया की वह मुसलमान थे. क्या यह हिन्दू आतंकवाद न था? सिखों द्वारा अपनी आस्था के केंद्र की आपरेशन ब्लू स्टार के द्वारा की गयी दुर्गति सहन न होने के कारण बदले की करवाई में इंदिरा गाँधी का क़त्ल कर दिया गया तो हजारों सिखों को हिन्दुओं के द्वारा मार दिया गया. क्या यह हिन्दू आतंकवाद न था? गुजरात में हजारों बेगुनाह मुसलमानों को सिर्फ इसलिए शहीद कर दिया गया की वह मुसलमान थे. क्या यह हिन्दू आतंकवाद न था? मस्जिद का गिराया जाना तो हिन्दू आतंकवाद की पराकाष्ठा है ही.
आप जैसे बुद्धिजीवियों से क्यों न हम अपेक्षा करें कि इन्साफ और भाईचारे कि मिसाल कायम करते हुए मस्जिद को मस्जिद ही रहने दें और इस प्रकार से देश के भविष्य को उज्जवल बनाने में योगदान करें.
कितना बढिया लिखा है, चंगेज खान को दया आई और उसने माँ को उसका बेटा गढ्ढे से निकाल कर दे दिया, भाले की नोक पर, सच मुस्लिमों को जब दया भी आती है तब भी डर लगता है। कभी दया के नाम पर यह कश्मीर मे सिखों को इस्लाम ग्रहण करने की सलाह देते हैं (नही तो उनका क्या होगा यह बताना भी नही भूलते दया वश) तो कभी दया वश जजिया माँगते हैं, आखिर धन तो है ही सभी मुशीबतों की जड़। कभी यह लोग दयावश रेल की बोगी मे आग लगा देते हैं ताकी लोग ईश्वर के पास जल्दी से जल्दी पहुंच जाए, पर जब इनको वहां भेजते हैं तो इन्हे कष्ट होता है क्योंकि यह तो दूसरो का भला करने के बाद ही आना चहते हैं न। इनकी भलाई तो इनकी मस्जिदों मे होने वाले इनके भाई बंधुओं के कृत्यों से भी मालूम पडता है, जिसके चलते आज पाकिस्तान मे कोई भी मस्जिद मे नमाज पढना महफूज नही रहा।
ऐसी ही दया यह समाज हिन्दुस्तान पर वर्षो से करता आ रहा है जो हम सब जानते हैं।
@ रविन्द्र नाथ जी !
चंगेज़ खान मुस्लिम नहीं था, कृपया अपनी मालूमात दुरुस्त कर लें.
क्या कृषण जन्म भूमि की वैल्यू कम है राम जन्म भूमि से ?
@ आदरणीय पी.सी.गोदियाल जी !
1 . राष्ट्रवाद पर हम ईमान तो ले आते लेकिन राष्ट्रवादियों जैसे काम हम कर नहीं सकते, राष्ट्रवादी बहुत अरसे से कह रहे हैं कि यदि मुसलमान बाबरी मस्जिद पर से अपना दावा छोड़ दें तो काशी और बनारस की मस्जिदों पर से हम अपना दावा छोड़ देंगे। (?)
बनारस और काशी की मस्जिदों पर से दावा क्यों छोड़ देंगे ?
क्या कृषण जन्म भूमि की वैल्यू कम है राम जन्म भूमि से ?
या फिर शिव जी की वैल्यू कम है राम चन्द्र जी से ?
और किस ने हक़ दिया सत्ता के इन दलालों को अपने देव मंदिरों की सौदेबाज़ी करने का ?
अपने राष्ट्रगौरव के प्रतिक पुरुषों के स्थानों की सौदेबाज़ी करने वाले तथाकथित राष्ट्रवादियों के चिंतन को हम स्वीकार कैसे कर सकते हैं ?
आज यह अपने देवता और अपने समाज को धोखा दे रहे हैं, और कल यह हमें भी देंगे, अगर हम इनके पीछे चले तो.
2 . सह अस्तित्व के लिए मौलाना हुसैन अहमद मदनी का आदर्श काफ़ी है, वे एक मुस्लमान थे लेकिन देश के विभाजन के खिलाफ़ थे. जबकि बहुत काल पहले पांडव देश के विभाजन की मांग कर चुके हैं और वे मुस्लमान नहीं थे . ज़मीन का बटवारा रोक देना राष्ट्रवाद के बस का नहीं है. यह तो तभी रुकेगा जब भाई और भाई के बीच प्यार बढ़ेगा,आप हमारे भाई हैं इस में कुछ शक नहीं है और हम दोनों का मालिक भी एक ही है इसमें भी कुछ शक नहीं है. जिसमे कुछ शक न हो उसमें तो आप यक़ीन कीजिये बस यही है मेरा प्रेम संदेस.
असल में इन लोगो को सच से सरोकार नहीं सिर्फ भावनाओ से सरोकार है, इसी लिए शरीफ साहब का सच इन लोगो को कड़वा लग रहा है, एक कहावत मशहूर है "खिस्सियानी बिल्ली खम्भा नोचे " यहाँ वो बिलकुल सटीक बैठ रही है,असल में पूरे हिंदुस्तान में एक अध् ऐसा बादशाह हो सकता है जिसने लोगो को परेशां किया हो तो इस तरह सरे मुस्लमान बादशाहों पर आप ऊँगली नहीं, उठा सकते,कुछ हिंदू सम्राट भी ऐसे हुवे है जिन्होंने दुसरे मज़ाहिब के लोगो को दुखी किया और दूसरी बात ये के मुसलमान बादशाहों ने कोई मंदर नहीं तोडा बलके जब मुस्लिम बादशाहों ने यहाँ हुकूमत की और बहुत ही अच्छा निजाम कायम किया सभी का सम्मान किया,और हक के फैसले किये तो मुसलमानों से मुतास्सिर हो कर ही जो दीगर मज़ाहिब के लोग थे उन्होंने इस्लाम धरम अपना लिया और जब वो मुस्लमान हो गए तो उन्होंने जहाँ वो लोग पूजा करते थे वह से मूर्तियां हटा दी और वो जगह साफ सुथरी करके अपने लिए मसजिद तय्यार की, इसमें बादशाहों का कोई दखल नहीं था, अगर तलवार के बल पर कोई बादशाह मुस्लमान बनाता तो पूरे हिंदुस्तान में आज कोई हिंदू न होता, और कोई मंदर न होता
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