6 दिसम्बर 1992 को विशिष्ट आतंकवादियों ने, हिन्दुत्व के नाम पर, धार्मिक जुनून में आकर सरकार की सरपरस्ती में बाबरी मस्जिद को शहीद करके जिस अराजकता का परिचय दिया था और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिस बेबाकी से मस्जिद के ख़िलाफ़ फ़ैसला देकर, इन्साफ़ का जनाज़ा निकाल कर मुसलमानों के दिलों को छलनी किया था, अभी उसकी तकलीफ़ से हिन्दोस्तान का मुसलमान तड़प ही रहा था कि दिल्ली के जंगपुरा इलाक़े में स्थित नूर मस्जिद को डी.डी.ए. की शकल में सरकारी ग़ुण्डों ने अर्धसैनिक बलों की मदद से शहीद कर दिया। पहले सुबह सवेरे पूरे इलाक़े को छावनी के रूप में बदल दिया गया और फिर मस्जिद को इस अन्दाज़ में तेज़ी से शहीद करके हाथों हाथ उसका मलबा साफ़ कर दिया गया मानों वह मस्जिद मस्जिद न होकर कोई बम का गोला हो और यदि कुछ अरसे तक यह क़ायम रह गई तो देश की सुरक्षा ख़तरे में न पड़ जाए।
ग़ौर करने की बात यह है कि आजकल हर शहर और हर इलाक़े में मन्दिरों की बाढ़ सी आई हुई है। उनके बनाने पर हमको कोई ऐतराज़ नहीं है और न ही हमारा मक़सद इस बात की खोज करना है कि यह मन्दिर जायज़ जगह पर बने हैं अथवा नाजायज़ पर परन्तु जब नाजायज़ हरकत शासन और प्रशासन की निगरानी में खुलेआम की जा रही हो और निर्भीकता व निष्पक्षता का दम भरने वाली मीडिया भी उधर से दृष्टि फेर ले तो एक अनजानी सी टीस हर भावुक व्यक्ति के दिल में होना लाज़मी है। उदाहरण के तौर पर पुलिस स्टेशनों में, सार्वजनिक पार्कों में तथा सरकारी विभागों में जो मन्दिर बनाए गए हैं और बनाए जा रहे हैं उनका क्या औचित्य है? इस प्रकार से बनाए गए मन्दिरों के नाजायज होने में जब शक की कोई गुन्जाइश ही नहीं है तो फिर इनको हटाने और भविष्य में ऐसी हरकत की रोकथाम करने की क्यों कोई योजना नहीं बनाई जाती?
'मस्जिद तोड़ो अभियान‘ के समर्थकों को इस बात की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि यदि किसी मस्जिद में अज्ञानता वश चोरी की बिजली इस्तेमाल करने की कोशिश की जाती है तो उस मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से शरीयत के जानकार लोग एतराज़ कर देते हैं और उस ग़लती का सुधार करा दिया जाता है। इसी प्रकार से बिना इजाज़त लिये किसी के पेड़ से काटी गई लकड़ियों से गर्म किया हुआ पानी भी मस्जिद में प्रयोग के लायक़ नहीं होता। मुसलमानों में जो लोग शराब बनाने या बेचने आदि का रोज़गार करते हैं अथवा खुलेआम ऐसा धंधा करते हैं जो इस्लामी शरीअत में हराम है तो उन लोगों के द्वारा दिया गया धन मस्जिद के किसी काम में भी लगाये जाने के लिए स्वीकार नहीं किया जाता। सोचने की बात यह है कि नाजायज़ साधनों के इस्तेमाल तक की भी जहां इजाज़त न हो तो यह कल्पना करना मूर्खता है कि मस्जिद किसी नाजायज भूमि पर बनाई गई होगी।
मन्दिर बनाए जाने के बारे में सनातन धर्म में क्या निर्देश हैं, इस बात की जानकारी चूंकि मुझे नहीं है अतः इस बारे में कुछ भी कहना अनुचित होगा परन्तु धर्म के जानकार लोगों से इस बात का आह्वान करने में कोई हर्ज नहीं है कि वह यह देखें कि अनुचित भूमि पर अथवा अनुचित साधनों को प्रयोग में लाकर बनाए गए मन्दिरों में क्या पूजा आदि कार्य सम्पन्न किये जा सकते हैं और यदि ऐसा नहीं हो सकता तो फिर किस प्रकार की कार्य योजना बनाई जाए यह एक गम्भीर विचारणीय विषय है और इस पर हिन्दू धर्माचार्यों को अवश्य ध्यान देना चाहिए।
7 comments:
यह एक गम्भीर विचारणीय विषय है
आपका चिंतन गंभीर है, लेकिन मंदिर-मस्जिद से ऊपर उठकर यह सोचना चाहिए, कि धर्मस्थल चाहे जो भी हो बिना मालिकाना हक के उसे नहीं बनाया जाना चाहिए और जो बन गए हैं उन्हें तत्काल प्रभाव से हटाना चाहिए. सार्वजानिक जगह आखिर कैसे किसी धर्म विशेष की पूजा / इबादत के लिए दी जा सकती है???
शाहनवाज साहब की बात से पूरी तरह सहमत हूँ ! यह देश मंदिर और मस्जिद दोनों का है !
मंदिर और मस्जिद अगर गैर कानूनी तरीके से पब्लिक प्लेस में बने है हर हालत में उन्हें वहां से हटाना ही चाहिए ! कानून को अपने हाथ में लेना कभी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए !!
Facebook पर आना एक बिलकुल जायज़ काम है , इसमें किसी धर्माचार्य से इजाज़त या सलाह लेने की ज़रूरत ही कहाँ पड़ती है ?
अब रही मंदिर और मस्जिद की बात तो आज कल तो यह मुद्दा कहीं है नहीं. इस पर आपने लिखा ही क्यों ?
'शीला की जवानी ' और 'मुन्नी की बदनामी' आज का गरम मसाला है , उस पे आप लिखते नहीं , फिर आप बड़े ब्लागर कैसे बनेंगे ?
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/islam-ultimate-way.html
jnaab bhut achchi post he desh men vrsh 1992 men koi bhi dhrm sthl jo isse pehle ke bne hen unko todnaa or unkaa privrtn krna apraadh qraar diya gyaa he vese bhi bhut desh ke qaanun aese hen jo aese paaglon ko jo dhrm ke saath ya dhrm ke sthlon ke saath khilvad krte hen unhen jel men rkhne ke liyen kaafi he . akhtar khan akela kota rajsthan
मंदिर और मस्जिद अगर गैर कानूनी तरीके से पब्लिक प्लेस में बने है हर हालत में उन्हें वहां से हटाना ही चाहिए.
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बात तो सही है और यदि ऐसा ही हो रहा है तो फ़िक्र कि कोई बात ही नहीं....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
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