हिन्दू समाज में लड़कियों में शिक्षा का प्रतिशत काफी अधिक होने के कारण उनमें जो जागृति आई है उसके नतीजे में वह अपने समाज की कथनी और करनी में अन्तर के उस पाखण्ड से परिचित हो चुकी हैं जिसमें कहा तो जाता है कि "जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है" परन्तु यह बात कथन तक ही सीमित है क्योंकि इन्ही लोगों के कर्मों पर जब इस समाज की बेटियां नज़र डालती हैं तो अपने ही परिवार में स्वयं को एक बोझ की तरह महसूस करने लगती हैं। जब वह इस तथ्य से परिचित होती हैं कि उनका जन्म उनके माँ बाप के लिए एक अभिशाप जैसा है क्योंकि बचपन से ही वह माँ बाप को अपने विवाह की चिन्ता में ग्रस्त देखती हैं और यह भी देखती हैं कि इस समाज में बहुत सी लड़कियों का दहेज़ के बिना विवाह नहीं हो पाता है या फिर कम दहेज़ से विवाह होने के बाद ससुराल में प्रताड़ित किया जाता है और कभी कभी तो केवल कम दहेज़ के कारण बहु को जलाकर मारने के भी समाचार सुनने को मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त जब वह इस भयानक तथ्य से परिचित होती हैं, कि उनकी माँ के दोबारा गर्भ धारण करने के बाद जब डाक्टरी जांच से यह पता चला था कि फिर कन्या का जन्म होने वाला है तो माँ बाप ने उनकी उस बहन को पैदा होने से पहले ही मार डाला था, तो उनको ऐसे समाज से नफरत हो जाना अस्वाभाविक नहीं है।
लड़कियों में आने वाली शिक्षा का एक प्रभाव यह भी पड़ा कि जब उन्होंने देखा कि लड़कियों के विवाह या कन्यादान को लड़कियों का दान माना जाता है, जबकि दान इंसान का न होकर जानवर या किसी वस्तु का होता है, तो उनको समाज में अपनी हैसियत का भी अन्दाज़ा हो गया। धर्म के नाम पर अपनी बेटियों को देवदासियों के रूप में वैश्या बनाया जाना भी धर्म के प्रति उनकी आस्था को डांवाडोल करने के लिए पर्याप्त साबित हुआ।
शिक्षा से हिन्दू समाज की लड़कियों में अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूकता आई है जिसके नतीजे में ऐसे घुटन भरे वातावरण और बेटियों के लिए असुरक्षित समाज को अगर लड़कियाँ तिलाञ्जलि देकर किसी बेहतर वातावरण वाले महिलाओं के लिए सुरक्षित समाज की ओर आकर्षित होती हैं तो यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
युवकों के हालात पर विचार करें तो हिन्दू समाज में युवक दहेज़ के बिना विवाह को अधूरा सा समझते हैं जबकि मुस्लिम समाज के युवकों में इस कुरीति ने अभी अपनी जड़ें नहीं जमाई हैं। इसके अतिरिक्त यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि आधुनिक शिक्षा प्राप्त युवा वर्ग काफी हद तक संस्कारहीन हो रहा है जिसके नतीजे में बेपर्दा और आधुनिक वेशभूषा वाली लड़कियां चूँकि हिन्दू समाज में अधिक हैं और विपरीत लिंग में आकर्षण प्राकृतिक है इसलिए मुस्लिम युवकों का हिन्दू युवतियों के प्रति आकर्षण और हिन्दू युवतियों की अपने समाज के प्रति नफ़रत और बेहतर समाज के प्रति झुकाव दोनों को एक होने के लिए प्रेरित करते प्रतीत होते हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो चूँकि इस्लाम धर्म किसी मुस्लिम के गैरमुस्लिम से विवाह को मान्यता नहीं देता इसलिए अपने सुरक्षित भविष्य के लिए बिना दहेज़ के किसी मुस्लिम युवक से विवाह का निर्णय लेने वाली हिन्दू लड़की आसानी से धर्म परिवर्तन करने को तैयार हो जाती है। यद्यपि केवल अल्लाह को राज़ी करने की नीयत से इस्लाम क़बूल करने ही को पसन्द फ़रमाया गया है लेकिन इस तरह से धर्म परिवर्तन भी अमान्य नहीं है यदि शेष जीवन को इस्लाम के मुताबिक़ ही ढाल लिया जाए।
कुछ हिन्दूवादी संगठन अपनी ख़सलत के मुताबिक़ मुस्लिम दुश्मनी की भावना से प्रेरित होकर इस प्रक्रिया को लव जिहाद का नाम देकर बदनाम करके हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को चोट पहुंचा रहे हैं और ऐसा ज़ाहिर कर रहे हैं जैसे साज़िश के तौर पर मुसलमान अपने नौजवानों द्वारा हिन्दू लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाकर धर्म परिवर्तन कराने का अभियान चला रहे हों। इस प्रकार से वह यह भी भूल जाते हैं कि मुसलमान ऐसा करके अपनी लड़कियों के बदले में हिन्दू लड़कियों का विवाह करना कभी नहीं चाहेंगे।
जिस तरह से लव जिहाद का नाम देकर ऐसे विवाहों और स्वेच्छा से किये गए धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले अराजक तत्व अगर इस प्रकार से मुस्लिम समाज द्वारा अपनाई गई लड़कियों का सर्वे करा कर देख लें तो वह अपनी दूसरी बहनों से ज़्यादा इज्जत और सुकून की ज़िन्दगी गुजारती नज़र आएंगी।
लड़कियों में आने वाली शिक्षा का एक प्रभाव यह भी पड़ा कि जब उन्होंने देखा कि लड़कियों के विवाह या कन्यादान को लड़कियों का दान माना जाता है, जबकि दान इंसान का न होकर जानवर या किसी वस्तु का होता है, तो उनको समाज में अपनी हैसियत का भी अन्दाज़ा हो गया। धर्म के नाम पर अपनी बेटियों को देवदासियों के रूप में वैश्या बनाया जाना भी धर्म के प्रति उनकी आस्था को डांवाडोल करने के लिए पर्याप्त साबित हुआ।
शिक्षा से हिन्दू समाज की लड़कियों में अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूकता आई है जिसके नतीजे में ऐसे घुटन भरे वातावरण और बेटियों के लिए असुरक्षित समाज को अगर लड़कियाँ तिलाञ्जलि देकर किसी बेहतर वातावरण वाले महिलाओं के लिए सुरक्षित समाज की ओर आकर्षित होती हैं तो यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
युवकों के हालात पर विचार करें तो हिन्दू समाज में युवक दहेज़ के बिना विवाह को अधूरा सा समझते हैं जबकि मुस्लिम समाज के युवकों में इस कुरीति ने अभी अपनी जड़ें नहीं जमाई हैं। इसके अतिरिक्त यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि आधुनिक शिक्षा प्राप्त युवा वर्ग काफी हद तक संस्कारहीन हो रहा है जिसके नतीजे में बेपर्दा और आधुनिक वेशभूषा वाली लड़कियां चूँकि हिन्दू समाज में अधिक हैं और विपरीत लिंग में आकर्षण प्राकृतिक है इसलिए मुस्लिम युवकों का हिन्दू युवतियों के प्रति आकर्षण और हिन्दू युवतियों की अपने समाज के प्रति नफ़रत और बेहतर समाज के प्रति झुकाव दोनों को एक होने के लिए प्रेरित करते प्रतीत होते हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो चूँकि इस्लाम धर्म किसी मुस्लिम के गैरमुस्लिम से विवाह को मान्यता नहीं देता इसलिए अपने सुरक्षित भविष्य के लिए बिना दहेज़ के किसी मुस्लिम युवक से विवाह का निर्णय लेने वाली हिन्दू लड़की आसानी से धर्म परिवर्तन करने को तैयार हो जाती है। यद्यपि केवल अल्लाह को राज़ी करने की नीयत से इस्लाम क़बूल करने ही को पसन्द फ़रमाया गया है लेकिन इस तरह से धर्म परिवर्तन भी अमान्य नहीं है यदि शेष जीवन को इस्लाम के मुताबिक़ ही ढाल लिया जाए।
कुछ हिन्दूवादी संगठन अपनी ख़सलत के मुताबिक़ मुस्लिम दुश्मनी की भावना से प्रेरित होकर इस प्रक्रिया को लव जिहाद का नाम देकर बदनाम करके हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को चोट पहुंचा रहे हैं और ऐसा ज़ाहिर कर रहे हैं जैसे साज़िश के तौर पर मुसलमान अपने नौजवानों द्वारा हिन्दू लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाकर धर्म परिवर्तन कराने का अभियान चला रहे हों। इस प्रकार से वह यह भी भूल जाते हैं कि मुसलमान ऐसा करके अपनी लड़कियों के बदले में हिन्दू लड़कियों का विवाह करना कभी नहीं चाहेंगे।
जिस तरह से लव जिहाद का नाम देकर ऐसे विवाहों और स्वेच्छा से किये गए धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले अराजक तत्व अगर इस प्रकार से मुस्लिम समाज द्वारा अपनाई गई लड़कियों का सर्वे करा कर देख लें तो वह अपनी दूसरी बहनों से ज़्यादा इज्जत और सुकून की ज़िन्दगी गुजारती नज़र आएंगी।
2 comments:
हिन्दू लडकियां बहुत समझदार होती हैं. उनमें दूसरे हिन्दुस्तानी समुदायों के मुकाबले शिक्षा का प्रतिशत भी ज़्यादा है. अपने लिए वे जो फैसला करेंगी, अपनी शिक्षा और अपने घर से मिले अच्छे संस्कारों के कारण भी करेंगी और अब तो ज़माना पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें का चल रहा है.
उत्तम लेख.
kahan tak jhut bolo ge muslim hinduo k naam se rahte hain hinduo k mohlle me ...bad me pata chalta hain hain ki yeh ...muslim hain ...kitne case dekhau batao....yeh to mana ki hindu ladkiya sikshit hain .islam samaj he anpadho ka hain ..jiske rasul he angutha chap ho batao us samajh se kya kah sakte hain ...kya ummid ki ja sakti hain batao to sahi kon se muslim desh me santi hain aaj k time me mullo ka taqqiya sab jew kar rahe hain are bhi 30 lakh jew kya kya kar rahe hain jab tum 153 caror ho ...kyo ki sab muslim desh arbi baddhu hain ...jo bhi ..pakistan k vaigyanik ji ki ahmdiya muslim the unhe kafir karar de diya gya unke kabar k aage se muslim ka tamka hata liya gya..
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