शरीफ़ खान
Friday, May 28, 2010
उ०प्र० पुलिस और इन्साफ़
क़त्ल क़त्ल ही होता है चाहे अवैध हथियार से हो अथवा लाइसेंसी हथियार से। इसी प्रकार से अपहरण चाहे साधारण अपराधी करे अथवा वर्दीधारी पुलिस करे अपहरण ही माना जाएगा। साधारण अपराधी की पुलिस के साथ उठ-बैठ अपराध में सुविधाजनक साबित होती है। यह बात अलग है कि कभी जनता के दबाव में आकर वह उठ-बैठ बेकार साबित होती है और अपराधी पकड़ लिया जाता है। किसी बेक़सूर की पुलिस हिरासत में मौत, वर्दीधारी पुलिस के द्वारा किये गए अपहरण के बाद क़त्ल के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है परन्तु पहले तो पुलिस को बदनामी से बचाने के लिए आला अधिकारी इस कृत्य पर परदा डालने की कोशिश करते है और फिर दबाव पड़ने पर दो चार को निलम्बित अथवा स्थानान्तरित करके समझते हैं कि न्याय हो गया। इसके नतीजे में पुलिस के प्रति जनता में नफ़रत और बढ़ जाती है। बी.बी. नगर पुलिस द्वारा सलीमुद्दीन नामक युवक का अपहरण करके सात दिन तक अवैध रूप से हिरासत में रखने के बाद गुम कर दिये जाने का मामला प्रकाश में आया है। इस मामले में भी सदैव की तरह पुलिस के द्वारा किये गए अपराध की जघन्यता को नापने का पैमाना यह होगा कि इन्साफ़ मांगने के लिए कितने लोगों को पुलिस की गोली और लाठियां खानी पड़ीं। इस सम्बन्ध में केवल इतना ही कहना पर्याप्त है कि उ०प्र० पुलिस का कोई भी सक्षम अधिकारी पीड़ित सलीमुद्दीन को अपने पुत्र के स्थान पर समझकर वर्दीधारी अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करे ताकि सही इन्साफ़ हो सके।
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1 comment:
Nice post.
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