अल्लाह सुबहाना व तआला पवित्र क़ुरआन के 7 वें अध्याय की 175 व 176 वीं आयतों में फ़रमाता है, अनुवाद, ‘‘और उनसे उस व्यक्ति का हाल बयान करो जिसे हमने अपनी आयतों का इल्म प्रदान किया था किन्तु वह उनकी पाबन्दी से निकल भागा। आख़िरकार शैतान उसके पीछे लग गया यहां तक कि वह गुमराह लोगों में शामिल हो गया। यदि हम चाहते तो इन आयतों के द्वारा उसे उच्चता प्रदान करते किन्तु वह तो ज़मीन ही की ओर झुक कर रह गया और अपनी इच्छा के पीछे चला। अतः उसकी मिसाल कुत्ते जैसी है कि यदि तुम उस पर हमला करो तब भी वह ज़बान लटकाए हांपता रहे या तुम उसे छोड़ दो तब भी वह ज़बान लटकाए ही रहे। यही मिसाल उन लोगों की है, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया हैं तो तुम वृत्तान्त उनको सुनाते रहो, शायद कि वह सोच विचार कर सकें।‘‘
जिस व्यक्ति की यहां मिसाल दी गई है उसको अल्लाह की आयतों का ज्ञान था अर्थात् सत्य को पहचानता था और यदि वह उसी के अनुसार अपने जीवन को ढाल लेता तो अल्लाह उसको इन्सानियत का ऊंचा स्थान प्रदान करता लेकिन ऐसा न करके वह दुनिया के लाभ, लज़्ज़तों तथा ऐशो आराम में पड़ गया। बुराई को अपनाकर उसने उन सब बातों से किनारा कर लिया जो इल्म हासिल होने की वजह से उस पर लाज़िम थीं। शैतान, जो कि ऐसे लोगों की घात में रहता है, उसके पीछे लग गया और उसे निम्न से निम्नतर की ओर ले जाते हुए गुमराहों में शामिल कर दिया।
इसके बाद अल्लाह तआला उस व्यक्ति की स्थिति की कुत्ते से उपमा देता है जिसकी हमेशा लटकती हुई ज़बान और उससे टपकती हुई राल एक न बुझने वाली प्यास को ज़ाहिर करती है। कुत्ते की ख़ास तौर से यह आदत होती है कि वह मुंह लटकाए हुए हर वस्तु को इस आशा में सूंघता हुआ चलता है कि शायद कुछ खाने की चीज़ हाथ लग जाए। उसको डांटो तब भी भौंकता है और यदि उसके हाल पर छोड़ दो तब भी भौंकता है और इसी आशा में ज़बान लटकाए हुए देखता रहता है कि शायद कुछ खाने को मिल जाए चाहे भूखा हो या न हो। उसको यदि कोई चीज़ फैंक कर मारी जाती है तो उसको भी इस आशा मे लपकता है कि शायद हड्डी या कोई दूसरी खाने की वस्तु हो। कहीं पर बहुत सा खाने को हो तो दूसरे कुत्तों के साथ बांट कर खाने के बजाए अकेला हड़पना चाहता है। इसके अतिरिक्त दूसरी चीज़ जिसको पाने के लिए भटकता रहता है वह है सैक्स। ऐसा लगता है कि जैसे खाना तथा यौनेच्छा पूर्ति ही उसके जीवन का लक्ष्य हो। अपने व दूसरे साथी के सिर्फ़ जननांग से ही सबसे ज़्यादा दिलचस्पी रखता है मुलाक़ात होने पर केवल उसी स्थान को सूंघता व चाटता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कुत्ता भूख और सैक्स का पर्याय हो।
कहने का तात्पर्य यह है कि दुनिया परस्त व्यक्ति जब इल्म और ईमान की बन्दिशों से आज़ाद होकर भागता है और नफ़्स (इच्छाओं) का ग़ुलाम बन जाता है तो उसकी हालत कुत्ते की हालत जैसी हो जाती है। हमको चाहिए कि अपने ऊपर नज़र डाल कर अपनी स्थिति का अवलोकन करते रहा करें और यदि स्वंय को ऐसी राह पर पाएं जो कुत्ते वाली स्थिति की ओर ले जाने वाली हो तो राह बदल कर जीवन को बर्बाद होने से बचा लें।
7 comments:
जजाकल्लाह
ऐ अल्लाह जब तू हमें हिदायत दे दे तो हमारे दिलो को न फेरना और हमें हक पर जमाये रखना !
कहने का तात्पर्य यह है कि दुनिया परस्त व्यक्ति जब इल्म और ईमान की बन्दिशों से आज़ाद होकर भागता है और नफ़्स (इच्छाओं) का ग़ुलाम बन जाता है तो उसकी हालत कुत्ते की हालत जैसी हो जाती है।
बल्कि कुत्ते से भी बदतर हो जाता है ऐसा इंसान!........बहुत खूब!
कहने का तात्पर्य यह है कि दुनिया परस्त व्यक्ति जब इल्म और ईमान की बन्दिशों से आज़ाद होकर भागता है और नफ़्स (इच्छाओं) का ग़ुलाम बन जाता है तो उसकी हालत कुत्ते की हालत जैसी हो जाती है।
बल्कि कुत्ते से भी बदतर हो जाता है ऐसा इंसान!........बहुत खूब!
is tarah se khud ko pehchan kar dekhein.
nice post
very nice post.
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।
अच्छी पोस्ट है .... धन्यवाद
कृपया एक बार पढ़कर टिपण्णी अवश्य दे
(आकाश से उत्पन्न किया जा सकता है गेहू ?!!)
http://oshotheone.blogspot.com/
asm wr wb,,vry gud job u r doin,,i really appreciate ur work,,keep it up....spread islam n help d humanity...
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