बहुत पुरानी बात है, भारतीय मूल के इंगलैण्ड के नागरिक एक अविवाहित सज्जन ने अपने विभाग में स्वयं को विवाहित दर्शाया हुआ था और भारत में रहने वाली अपनी एक सम्बन्धी महिला को अपनी पत्नी बताकर सरकार द्वारा मिलने वाले पारिवारिक भत्ते को वसूल करके भारत में अपने घर भेज दिया करते थे। मैंने उनसे पूछा कि यदि आपकी शिकायत हो जाए तो आपकी क्या स्थिति होगी। तब उन्होंने जवाब दिया कि जिस देश की मुझे नागरिका मिली हुई है उस देश का नागरिक सरकार की नज़र में एक सम्मानित व्यक्ति होता है तथा अपने देश के नागरिक के सम्मान की सुरक्षा को सरकार सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। लिहाज़ा मेरे खि़लाफ़ इस प्रकार की शिकायत होने पर मेरे सम्मान की रक्षा करते हुए शिकायतकर्ता ही को झूठा मानकर शिकायत रद्द कर दी जाएगी।
हमारे देश का उदाहरण देखिए। मेरे पड़ौस में रहने वाले एक सज्जन किसी फ़र्म में नौकरी करते हैं। एक बार वह फ़र्म के कुछ रुपये बैंक में जमा करने जा रहे थे कि उनके थैले में से किसी ने रुपये निकाल लिये। इस बात की रिपोर्ट करने जब वह कोतवाली पहुंचे तो उनकी रिपोर्ट लिखकर कोई कार्रवाई करने के बजाय उनको कोतवाली में ही बैठा लिया गया और उनसे कहा गया कि रुपये चोरी नहीं हुए हैं बल्कि तुम्हारे पास हैं और तुम झूठ बोलकर फ़र्म के रुपये हज़म करना चाहते हो। इस प्रकार से कुछ ऐसी विकट स्थिति पैदा हो गई कि उनके सामने स्वंय को वर्दी वाले ग़ुण्डों से आज़ाद कराना एकमात्र लक्ष्य बन गया। इसके बाद फ़रियाद करने की जो गुस्ताख़ी उनसे हो गई थी, उसकी सजा के तौर पर कुछ रक़म अदा करने की शक्ल में एक और चोट खाकर, ‘‘पिटे और पिटाई दी‘‘ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए लौट आए।
यह तो एक छोटी सी मिसाल है वरना आप स्वंय इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि किसी भी सरकारी विभाग में प्रस्तुत की गई हर बात को शक की निगाह से देखा जाता है। क्या यह देश के सभ्य नागरिकों को अपमानित करने जैसा नहीं है?
विकसित देशों में मन्त्री-पुत्रों और दूसरी महान हस्तियों को यातायात के नियमों के उल्लंघन की सज़ा दिये जाने की घटनाओं की ख़बरें अक्सर समाचार पत्रों के मिलती रहती है जबकि हमारे देश में ऐसे अपराधियों को सज़ा न दिया जाना देश की परम्परा बन गया है क्योंकि कहीं तो नेताओं व दूसरे उच्चाधिकारियों का ख़ौफ़ कर्तव्य पालन नहीं होने देता है और कहीं आस्था आड़े आ जाती है।
नए रईस ज़ादों के शराब पीकर गाड़ी चलाने व दूसरी बदमाशियों में उनकी संलग्नता जग ज़ाहिर है। आस्थावश अपने कर्तव्यों से विमुखता का एक उदाहरण प्रस्तुत है। रामायण सीरियल में सीताजी की भूमिका अदा करने वाली दीपिका नामक अभिनेत्री चेन्नई में यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हुए गाड़ी चलाते हुए यातायात पुलिस द्वारा रोकी गई परन्तु दीपिका के रूप में पहचानी जाने पर उस सिपाही ने सीताजी के रूप की आस्थावश माता जी नमस्ते कहते हुए पैर छुए और क्षमा मांगते हुए जाने का इशारा किया।
विकसित देशों में चरित्रहीनता भले ही चरम स्थिति पर पहुंच रही हो परन्तु वहां की सरकार अपने देश के नागरिकों के सम्मान व दूसरे मूल अधिकारों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। हमारे देश में सामाजिक व्यवस्था को बरबाद करके चरित्रहीन समाज का निर्माण तरक्क़ी की कुंजी समझ लिया गया है परन्तु अपमानित जीवन जी रहे देश के नागरिकों के सम्मान की सुरक्षा को नज़रअन्दाज़ कर दिया गया है।
11 comments:
काश अजन्मे अविनाशी तक पहुँचने का साधन बन जाये जन्माष्टमी
http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
shrif bhaayi aapne bhut thik likhaa he hmare desh men bhut khaamiyaan he lkin sb bdhi khaami hmaare naagrikon men he jo apne adhikaaron ki to baat krte hen lekin frz jhaan nibhaane ki baat aati he vhaan pith dikha jate hen hmen desh ke qaanun ki paalna men apna frz bhi nibhana hoga desh or smaaj men bhut kuch bdlaav aa jaayega. akhtar khan akela kota rajsthan
आपने अच्छी बातें लिखी है, आप इतने इल्म वाले लगते हैं, लेकिन क्या आपको भंदाफोदु नाम के ब्लॉग में लिखी जा रही लोगो को बेवक़ूफ़ बनाने वाली बैटन के बारे में जानकारी नहीं है? आप लोगो को उसका डट कर जवाब देना चाहिए.
आपने अच्छी बातें लिखी है, आप इतने इल्म वाले लगते हैं, लेकिन क्या आपको भंदाफोदु नाम के ब्लॉग में लिखी जा रही लोगो को बेवक़ूफ़ बनाने वाली बैटन के बारे में जानकारी नहीं है? आप लोगो को उसका डट कर जवाब देना चाहिए.
शहरयार sahib!
एक मुहावरा है ''अंधे के आगे रोवे अपने भी नैना खोवे''
यह भंडाफोरु जैसे लोगों की खसलत तो भारतीय राजनीति में विपक्ष की भूमिका जैसी है. क्योंकि उसको तो उल्टा बोलना. चाहे कितना ही स्तर से गिरी हुई बात क्यों न कहनी पड़े. फिर भी आपके मशवरे पर अमल करने की कोशिश करूंगा. शुक्रिया.
Akhtar Khan Akela ji!
जो लोग सम्मान और अपमान में फर्क करने की सलाहियत खो चुके हों वह क्या कर्तव्यों को पहचानेंगे. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि कर्तव्यों को न समझने वालों के अधिकारों का हनन किया जाये. जिन लोगों को ''तू'' का संबोधन सुनना भी गाली जैसा लगता हो वह कितने मानसिक रूप से पीड़ित अनुभव करते हैं उनके बारे में भी विचार करना चाहिए.
आप्से सहमत हूँ।एक बात कहूँगी कि उनकी अश्लीलता उनका कल्चर है
फिर भी हमारे देश मे टी वी पर परोसी जा रही अश्लीलता से कम ही है। वहाँ अश्लीलता उस सीमा तक ही सार्वजनिक है जहाँ तक उनका समाज स्वीकार करता है। धन्यवाद इस आलेख के लिये।
mujhe to dar hai ki kahin adhikaroon ke hanan ke liye agle satr me hamare saansad es pehlu ko demand banakar pesh na kar den , kyunki unke masik bhatte me viradhi ke baad aaj kal kaafi hausla buland hai.
waise sara kasoor sarkar aur sarkari karamchariyoon ka hi nahi hai, aap jin nagrikoon ke adhikar aur samman ki suraraksha ko lekar chintit hain , kafi had tak wo bhi zimmedar hain apni es dasha ke liye.
fir bhi need se jagane ke liye , dhanyewaad, jazakallah.
shrif bhaayi aadaab arz he sbe qdr mubaark ho aatmsmmaan ke naam se aapne desh k qaanun kaa jo sch jnta ke saamne rkhaa he usne desh ki vyvsthaa pr svaal khde kr diye hen dil pr haath rkh kr dekho to is desh ki qaanun vyvsthaa yhi he khuda ise dur krne ki yhaan ke netaaon or jntaa ko tofiq ata kre bs yhi duaa he. achche stik or bhut achche lekhn ke liyeh bhut bhut bdhaayi .akhtar khan akela kota rajsthan
Akhtar Khan Akela ji!
देश के सम्मानित नागरिकों के सम्मान की सुरक्षा न करना तो बुराई है ही लेकिन इस से भी बड़ी बुराई यह है कि हम हर क़दम पर अपमानित होने के बावजूद खुद को अपमानित महसूस न करके इसी को नियति समझ बैठे हैं.
sach farmaya aap ne.
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