भौतिकवाद सभ्य समाज के लिए एक ऐसा अभिशाप है जिसने सामाजिक मूल्यों को समाप्त कर दिया है। आज के युग में प्रेम, ममता, आस्था और श्रद्धा का मापदण्ड पैसा समझ लिया गया है।
भावनात्मक दृष्टि से देखें तो अनाथालय और वृद्धाश्रम सभ्य समाज पर कलंक के समान हैं। आज कुत्ते पालने के शौक़ीन लोग एक कुत्ते पर जो धन ख़र्च करते हैं उससे कम से कम 2 अनाथ बच्चों का पालन पोषण बहुत अच्छे ढंगसे हो सकता है। सुबह को कुत्ते वाले लोग जब अपने प्यारे कुत्ते के साथ टहलने निकलते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कुत्ता उनको टहलाने निकला है क्योंकि जब ज़मीन सूंघते हुए कुत्ता रुक जाता है तो वह भी रुक जाते हैं और जब कुत्ता चल देता है तो उनको भी उसके पीछे चलना पड़ता है। यदि कुत्ते के बजाय किसी इन्सान के बच्चे को पालने की भावना पैदा हो जाए तो शायद अनाथालय में नारकीय जीवन जी रहे बदनसीब बच्चे भी मानव होने के सुख से परिचित हो सकें। मेरे साथ जूनियर हाई स्कूल में अनाथालय का एक छात्र पढ़ता था। एक दिन उसने ज़हर खा लिया परन्तु समय पर उपचार मिलने से उसकी जान बच गई। सोचने वाली बात यह है कि उस बच्चे के साथ क्या परिस्थितियां रही होंगी कि उसको यह क़दम उठाने के लिए मजबूर होना पडा़। केवल यह अकेली घटना ही अनाथालयों के अन्दर की स्थिति की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है।
एक व्यक्ति सन्तान प्राप्ति के बाद उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए अपना जीवन समर्पित करके एक अजीब सा सन्तोष और इतमीनान महसूस करता है। वही सन्तान जब उसको वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाती है तब उसको ऐसा महसूस होता है कि जैसे जीवनभर की कमाई डकैत ले गए हों। हालांकि वृद्ध माता-पिता को सन्तान की आंखों में अपने प्रति केवल प्रेम और मौहब्बत से भरी दृष्टि की ही चाह होती है।
माता-पिता और सन्तान के दरम्यान जो प्रेम भावना होती है उसको शब्दों में बयान करना सम्भव नहीं है। यह तो ‘‘गूंगे को ज्यों मीठा फल अन्तर ही अन्तर भावै‘‘ वाला भाव है। काफ़ी समय पहले की एक घटना है कि अदालत में एक बृज पाल नाम के एक जज साहब मुक़दमे की बहस सुन रहे थे कि इसी बीच उनकी माता जी के देहान्त का टेलीग्राम आ गया जिसको पढ़कर वह अपनी भावनाओं को नहीं रोक पाए और रोने लगे तथा मुक़दमे की बहस को रोक दिया गया। अदालत में मौजूद वकीलों ने सान्त्वना दी जिसके जवाब में जज साहब ने केवल इतना कहा कि ‘‘मुझे सबसे बड़ा ग़म इस बात को याद करके हुआ है कि अब मुझे ‘‘बिरजू‘‘ कहने वाला कोई नहीं रहा।
कलयुगी पुत्र की कथा के बिना बात अधूरी न रह जाए अतः उसका बयान करना भी ज़रूरी सा प्रतीत होता है। एक युवक अपने वृद्ध पिता को तरह तरह से प्रताड़ित करता था, बुरा भला कहना तथा बात बात में धुतकारना उसकी दिनचर्या में शामिल था। एक दिन अपने बूढ़े पिता से छुटकारा पाने का इरादा करके उस युवक ने एक चादर में पिता को बांधा और सर पर रख कर जंगल की ओर चल दिया। रास्ते में उसको एक कुआं दिखाई दिया। उस कुएं में अपने पिता को फैंकने के इरादे से उसने सर से गठरी उतारी और चादर की गांठ खोली ताकि चादर वापस ले जाए। उसके पिता ने चारों ओर देखकर सारा माजरा समझते हुए अपने पुत्र से कहा कि ‘‘बेटा! मैं समझ रहा हूं कि तू मुझे कुएं में फैंकने के इरादे से लाया है और मैं कुछ कर भी नहीं सकता। यह जानते हुए भी कि तूने मेरी कभी कोई बात नहीं मानी, मैं केवल यह चाहता हूं कि तू मेरी अंतिम इच्छा समझकर मेरी एक बात मान ले। उसके पुत्र द्वारा पिता की अन्तिम इच्छा पूछे जाने पर पिता ने कहा कि तू मुझे इस कुएं में न डालकर किसी दूसरे कुएं में डाल दे। पुत्र ने जब इसका कारण जानना चाहा तो उसके पिता ने कहा कि इस कुएं में मैंने अपने पिता को डाला था। इस कथा को ध्यान में रखते हुए अपने बुज़ुर्गों से दुवर्यवहार करने वाले इतना ध्यान में रखें कि ऐसी परिस्थिति उनके सामने भी आ सकती है।
कहने तात्पर्य यह है कि अल्लाह ने पूरी सृष्टि में सबसे अच्छा इन्सान को बनाया है। इन्सान और जानवरों में ख़ास फ़र्क़ यह है कि इन्सानों में सोचने समझने की शक्ति होती है, भावनाएं होती हैं तथा एक दूसरे के प्रति ज़िम्मेदारी का भाव होता है जोकि जानवरों में नहीं होता। अतः हमको चाहिए कि अपनी ज़िम्मेदारियों को समझें और मानवता को कलंकित करने वाले कार्यों से दूर रहें।
13 comments:
बेहतरीन पोस्ट! बहुत सुन्दर!
लाजवाब, बहुत खूब , वाकई कुत्ता ही इन्सान को घूमा रहा है
कभी समय मिले तो मेरी किताब पर आने विचार प्रस्तुत किजिए
book: सत्यार्थ प्रकाश : समीक्षा की समीक्षा
स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा प्रतिपादित महत्वपूर्ण विषयों और धारणाओं को सरल भाषा में विज्ञान और विवेक की कसौटी पर कसने का प्रयास
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विषय सूची
1. प्राक्कथन
2. सत्यार्थ प्रकाशः भाषा, तथ्य और विषय वस्तु
3. नियोग और नारी
4. जीव हत्या और मांसाहार
5. अहिंसां परमो धर्मः ?
6. ‘शाकाहार का प्रोपगैंडा
7. मरणोत्तर जीवनः तथ्य और सत्य
8. दाह संस्कारः कितना उचित?
9. स्तनपानः कितना उपयोगी ?
10. खतना और पेशाब
11. कुरआन पर आरोपः कितने स्तरीय ?
12. क़ाफ़िर और नास्तिक
13. क्या पर्दा नारी के हित में नहीं है ?
14. आक्षेप की गंदी मानसिकता से उबरें
15. मानव जीवन की विडंबना
16. हिंदू धर्मग्रंथों में पात्रों की उत्पत्ति ?
17. अंतिम प्रश्न
nilesh mathur ji!
आप मेरे विचारों से सहमत हैं इस बात का आभारी हूँ. समाज में जो बुराइयाँ व्याप्त हैं, उनको पहले हम पहचानें तभी उनको दूर कर पायेंगे वर्ना उनको अच्छाई समझते हुए पनपने में सहयोग करके एक विकृत समाज के निर्माण में हमारी भूमिका को नाकारा नहीं जा सकता.
Satish Chand Gupta ji!
ग़नीमत यह है कि इन्सान के दुम नहीं होती वर्ना इस तरह के लोग कुत्तों के पीछे दुम हिलाते हुए ही घूमते.
nice post
atisunder lekah aur behtareen sandesh. Mubarak baad qubool kerein.
S.M.MAsum ji!
aapne padhne ki zehmat ki aur himmat afzai ki uske liye aapka shukriya.
assalamualekum janab......
aap khariyat se hai?
Agar har indian ki aap jaisi Zahniyat ho jaye to socho ki Hindustaan ki kiya soorat hogi.
khuda hafiz..
A nice article of a nice person.
best wishes.
jnaab smaaj ki is ochi maansikta pr aapki yeh stik tippni he khuda kre ise pdh kr kuch logon ke smjh aa jaaye or is desh smaaj kaa kuch uddhaar ho jaaye. akhtar khan akela kota rajsthaan
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