Thursday, October 21, 2010

a solution of the problem of masjid-mandir मस्जिद और मन्दिर की समस्या का समाधान sharif khan

भारत विभिन्न धर्म और संस्कृतियों के देश के रूप में प्राचीन काल से ही जाना जाता रहा है। यदि अलग अलग धर्म और संस्कृतियों के लोग परस्पर सहयोग व भाईचारे के साथ रहें तो यही देश एक महकता हुआ गुलदस्ता बन सकता है और यदि इसके विपरीत आचरण किया गया तो यही देश जहन्नुम बन जाएगा। परस्पर प्रेम व भाईचारा क़ायम करने के लिए कहीं से कोई विशेष ट्रेनिंग लेने की आवश्यकता नहीं है अपितु केवल इतना ध्यान रखें कि हम जो कुछ भी करें उससे किसी दूसरे को शारीरिक व मानसिक कष्ट न पहुंचे तथा इसके साथ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि यह देश प्रत्येक देशवासी का है और संविधान ने सबको बराबर के अधिकार दिये हैं। अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ी गई आज़ादी की जंग में हिन्दू-मुस्लिम एकता और आपसी भाईचारे ने सामाजिक तौर पर एक महकते हुए गुलदस्ते की मिसाल क़ायम की थी जिसके नतीजे में भारत एक धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र के रूप में संसार के मानचित्र दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र के तौर पर उभरा।

उ० प्र० सरकार में उपमन्त्री रहे स्व० शमीम आलम ने एक बार अपने पिता मौलवी अलीमुद्दीन साहब के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हो रहे आन्दोलन से सम्बन्धित कांग्रेसियों की सभा अक्सर मन्दिर में कर लिया करते थे और यदि उसी दौरान नमाज़ का समय हो जाता तो मौलवी साहब के मस्जिद में जाने से सभा की कार्रवाई काफ़ी देर के लिए रुक जाती थी। इसके समाधान के तौर पर यह तय पाया कि नमाज़ मन्दिर ही में पढ़ ली जाए परन्तु चूंकि मूर्तियों की मौजूदगी में नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती इसलिए मन्दिर के चबूतरे पर मौलवी साहब के नमाज़ पढ़ने का प्रबन्ध किये जाने में किसी को भी ऐतराज़ नहीं होता था। इसके बाद देश के आज़ाद होने पर स्थिति यह हो गई है कि नमाज़ पढ़ने के लिए बनी हुई मस्जिद का वजूद भी आर एस एस द्वारा परिभाषित हिन्दुत्ववादी तत्वों को बरदाश्त नहीं रहा। मुसलमानों को विभिन्न प्रकार से आतंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। कौन नहीं जानता कि इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी की वन्दना करना जाइज़ नहीं है और ऐसा अमल इस्लाम धर्म की मूल भावना के ही विरुद्ध है तो इसका सीधा सा अर्थ यह है कि एक मुसलमान तभी तक मुसलमान है जब तक वह अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत (वन्दना) नहीं करता चाहे मां(जननी) हो, वतन हो, पवित्र किताब हो या फिर कुछ और हो। इसके बावजूद मुसलमानों से वन्देमातरम् कहलवाने पर क्यों ज़ोर दिया जाता है और ग़ुण्डों की भाषा इस्तेमाल करते हुए यह नारा क्यों लगाया जाता है कि, ‘‘भारत में रहना है तो वन्देमातरम् कहना होगा‘‘ जबकि सारा संसार इस बात का गवाह है कि ‘‘वन्दे मातरम्‘‘ न कहने वाले लोगों ने ज़रूरत पड़ने पर इस देश के लिए हज़ारों जानें क़ुर्बान करने में तनिक भी संकोच नहीं किया। देश के प्रधानमन्त्री की कुर्सी हासिल करने का स्वप्न देखने वाले अडवानी साहब तो संसद में भारत को भारत या हिन्दुस्तान न कहकर ‘‘हिन्दुस्थान‘‘ (हिन्दू + स्थान) कहते हैं जिससे उनकी मानसिकता का पता चलता है

शायर द्वारा कहे गए यह शब्द भारत के मुसलमानों के दिल से निकली हुई आवाज़ मालूम पड़ते हैं

एक दो ज़ख्म नहीं सारा बदन है छलनी। दर्द बेचारा परीशां है कहां से उठे।।

देश को इस दूषित वातावरण से मुक्ति देकर एक महकते हुए गुलदस्ते में परिवर्तित करने के लिए हमको इस प्रदूषण की जड़ को तलाश करना पड़ेगा जिससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। 22-23 दिसम्बर 1949 की रात में बाबरी मस्जिद में नमाज़ के बाद किसी समय मूर्ति का रखा जाना प्रारम्भ था इस प्रदूषण का और इसको हवा देने वालों को भी पूरा देश जानता है। यदि इन लोगों को जनता की भावनाओं को भड़काने का मौक़ा न दिया जाए तो तादाद के लिहाज़ से यह बहुत ज़्यादा नहीं हैं। लिहाज़ा करना केवल इतना है कि 22-23 दिसम्बर 1949 से लेकर आज तक के अन्तराल में जो कुछ हुआ उसको एक दुःस्वप्न की तरह से भुलाकर देश के ऐतिहासिक रिकार्ड में से इन 61 वर्षों की कटुतापूर्ण बातों को निकाल दिया जाए और किसी भी दिन सुबह से नमाज़ के लिए मस्जिद को मुक्त कर दिया जाए।

यदि मुसलमानों से कोई भूल हुई है तो बहुसंख्यक समाज पर क्षमा की ज़िम्मेदारी बनती है कयोंकि:

‘‘छमा बड़ेन को चाहिए छोटन को उत्पात‘‘

14 comments:

Fariq Zakir Naik said...

Nice post

Dead body of FIRON - Sign of Allah

http://www.youtube.com/watch?v=0hWGjmbAzPs

Fariq Zakir Naik said...

Good post

Dead body of FIRON - Sign of Allah
http://www.youtube.com/watch?v=0hWGjmbAzPs

Aslam Qasmi said...

good

Aslam Qasmi said...

aap achhi koshish kar rahe hen

Aslam Qasmi said...

Kabhi deoband aayiye to mulaqat ho

Aslam Qasmi said...

assalmu alaikum

बलबीर सिंह (आमिर) said...

हम क्‍या थे क्‍या हो गया
अल्‍लाह मुझे माफ करे
दुआ किजिए

विश्‍व गौरव said...

badhiya

DR. ANWER JAMAL said...

आपकी बात सही है लेकिन जो हुकूमत चाहते हैं वे परवाह नहीं करते किसी आदर्श की , किसी तालीम की .

Ejaz Ul Haq said...

घर को आग लग रही है घर के चराग़ से
अंधा आदमी चराग़ लेकर घर में घूमे तो घर भर में आग ज़रूर लगा देगा। शक्ति का एक पहलू सृजन का होता है और दूसरा विनाश का। अगर शक्ति से काम लेने वाला व्यक्ति कुशल नहीं है तो वह सृजन नहीं कर सकता अलबत्ता अपनी उल्टी-सीधी छेड़छाड़ के कारण विनाश और तबाही ज़रूर ले आता है।
‘राम नाम में अपार शक्ति मौजूद है‘ लेकिन अक्ल के अंधे इससे वैमनस्य और विध्वंस फैला रहे हैं। अक्ल को अंधा बनाता है लालच। लालच में अंधा होने के बाद आदमी अपने भाई को भी नहीं पहचानता। जो लोग आज कुर्सी और शोहरत के लालच में राम-नाम ले रहे हैं, उन्हें जानना चाहिए कि इन चीज़ों को तो खुद श्री राम ने त्याग दिया था। इस त्याग से ही लालच का अंत होता है, अक्ल का अंधापन दूर होता है। तभी आदमी ‘राम नाम की अपार शक्ति‘ का सही इस्तेमाल कर पाता है।

Ayaz ahmad said...

अच्छी पोस्ट

Muhammad Ali said...

A Very nice post aur koshish.
Allah aapko es mehnat ka badal de jo aap apsi bhaichare ke kayam hone ke liye kar rahe hain. logon me apas ka koi bigad na pehle kabhi tha aur na hi aaj hai, bas yun samjh leejiye ki koi waqt ki deri hai jab log sahi maynoo me hamare huqmraan aur politicianc ki fitrat se waqif ho jayenge , tab hoga INDIA IS SHINING ka slogan sahi sabit. ameer log aur politicians logon ko gumrah kar rahe hai Vote Bank ki wajah se aur Ghareeb aur educated gumrah kar rahe hai apni khud ki berozghari ki wajah se. jab tak hum sabhi root causes (Moolbhoot karanoon) tak nahi pahunchte tab tak bhaichara qayam hona "DILLI KE DOOR HONE KE BARABAR HAI"

Hamari tarah aap bhi intizaar karen. allah aapko sabar de. aaameeeen.

निर्मला कपिला said...

शरीफ खान जी आम आदमी तो भाईचारा ही चाहता है मगर नेताओं की क्या कहें। शायद उनका एक मात्र एजेन्डा है मामले को उलझाये रखना ताकि उनकी सियासत की रोटियाँ सिकती रहे। दोनो तरफ से पहल हो तो कुछ नामुमकिन नही। धन्यवाद।

Satish Saxena said...

बहुत खूबसूरत लेख है यह ..काश हम सब इसे समझाने की कोशिश करें ! शुभकामनायें शरीफ खान साहब