‘‘शान्ति का सन्देश‘‘ कहने और सुनने में बहुत अच्छा लगता है। शान्ति की अपील हमेशा कमज़ोर लोग किया करते हैं जबकि ताक़तवर लोग हुकुम दिया करते हैं। ताक़त अगर चरित्रवान, दयालु और न्यायप्रिय लोगों के पास होती है तब तो उनके हुकुम के मुताबिक़ शान्ति क़ायम होने की सम्भवना रहती है परन्तु यदि चरित्रहीन, ज़ालिम और अन्यायी लोग ताक़त हासिल करके शान्ति की अपील करते हैं तो अस्थाई तौर पर ख़ामोशी भले ही स्थापित हो जाए परन्तु स्थाई रूप में शान्ति क़ायम हो सके, इस बात ही कल्पना करना स्वंय को धोखा देने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। चूंकि शान्ति स्थापित करने के इस तरीक़े में हठधर्मी, अन्याय और ज़ुल्म का समावेश होता है इसलिए इसकी प्रतिक्रिया के तौर पर किसी दूसरे रूप में जो अशान्ति फैलती है उसके नतीजे में भयानक बरबादी का होना निश्चित होता है जिसका जीता जागता उदाहरण हम मौजूदा दौर के देश और विदेश के हालात से दे सकते हैं।
आज के अशान्ति और आतंक के माहौल का विश्लेषण यदि हम निष्पक्षता से करें तो सरलता से इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि 1945 से आज तक लगातार किसी न किसी देश से युद्ध करने और करोड़ों लोगों का ख़ून बहाने वाले देश अमेरिका का वजूद इसका ज़िम्मेदार है। फ्रेंकलिन डी. रूज़वेल्ट की मौत के बाद 12 अप्रैल 1945 को अमेरिका के 33वें राष्ट्रपति के तौर पर कुर्सी सम्भालने वाला हैरी ट्रूमैन ’’कू क्लक्स क्लेन’’ नाम के आतंकवादी संगठन का सक्रिय कार्यकर्ता रहा था। इस संगठन का मक़सद काले लोगों को आतंकित करके अमेरिका में वोट देने के हक़ से महरूम करना था। एक आतंकवादी को अपने देश का राष्ट्रपति पद सौंपकर अमेरिकी जनता ने भी आतंकवाद से अपने लगाव का परिचय दिया और इतना ही नहीं बल्कि लाखों लोगों की मौत के ज़िम्मेदार उस व्यक्ति को 1948 के चुनाव में दोबारा राष्ट्रपति चुनकर खूनी खेल जारी रखे जाने की भविष्य की पॉलिसी को वहां की जनता ने हरी झण्डी दिखा दी। उसके बाद से आज तक शान्ति क़ायम करने के नाम पर अमेरिका लगातार इन्सानों का ख़ून बहा रहा है। इसकी वजह यह है कि ताक़त चरित्रहीन, ज़ालिम और अन्यायी लोगों के हाथों में आ गई है। कोरिया, वियतनाम, इराक़, अफ़ग़ानिस्तान आदि देशों की बरबादी इस बात को साबित कर रही है कि शैतान के क़दम जहां पड़ जाते हैं बरबादी वहां का मुक़द्दर बन जाती है। अफ़सोस की बात यह है कि ऐसे शैतानों को समर्थक भी मिल जाते हैं।
सभ्य समाज के अजूबों का ज़िक्र करना यहां ज़रूरी है। तलवार हो या बन्दूक़ इसी प्रकार एटमी हथियार हों या रसायनिक सबका काम मारना है। इनमें तलवार या बन्दूक़ से तो केवल उसी का क़त्ल होता है जिसको मारना होता है परन्तु एटमी या रसायनिक हथियार तो उस क्षेत्र के सभी लोगों को एक साथ मौत के घाट उतार देते हैं। अमेरिका का इराक़ पर रसायनिक हथियार रखने के इल्ज़ाम में हमला करना कैसे जायज़ हो गया जबकि वह ख़ुद तो एटम बम का भी इस्तेमाल कर चुका है। ड्रोन के द्वारा किये जा रहे हमले किस श्रेणी में आते हैं इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है। परमाणु हथियारों के बारे में अमेरिका का यह कहना कि यह ग़लत हाथों में नहीं पहुंचने चाहिएं जबकि अमेरिका के अलावा किसी भी देश में इन हथियारों का ग़लत इस्तेमाल होने की सम्भावना बहुत कम है क्योंकि अभी तक केवल अमेरिका ने ही इन हथियारों का इस्तेमाल किया है।
जिन लोगों से अफ़ग़ानिस्तान छीनकर अपने ग़ुलामों को सौंपा है यदि उन्हीं लोगों को वापस लौटा दिया जाए और एटमी हथियार उनको उपलब्ध करा दिये जाएं तो इस प्रकार से जो शक्ति सन्तुलन होगा वह अमेरिका की हैवानियत पर शायद लगाम लगा सके। कभी अवसर मिला तो अपने देश के बारे में चर्चा करेंगे।
6 comments:
shrif saahb bhut dinon men kuchh khaa lekin sch or saahsik dilchsp khaa mzaa aa gya mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan
ज़ालिम तभी जुल्म कर पाता है जबकि हक़परस्त तास्सुब और इफ़्तेराक़ का शिकार हो जाते हैं ।
हम इंसान हैं यही हमारे लिए महत्वपूर्ण है..…वीणा श्रीवास्तव
अपने 'स्व' की मद में डूबा इन्सान सूक्तियां बोलता है..रश्मि प्रभा...एक अनुरोध है सभी ब्लोगर भाइयों से
अजब ब्लॉगजगत की गजब कहानी भाग -२ टिप्पणी ब्लोगर समूह
assalmaulikum, aapka blog padha aur bahut khushi huii , aapka sujhav qabil e tareef hai, hamare liya isse bhi pehle mujhe lagta hai ki agar hum apne ghar se shuru kare zulm ka vishleshan karna to hum ye paayenege ki kisi darze me humne apne nafs se shuru karte huee apni family apna city apna district apni commissionary apne desh koi bhi jagah to nahi chhooti jahan zulm ne puri tarah pair na pasare hon.
humne ba hasiyat insaan hone ke apne nafs par zulm kiya , bahasiyat ghar ka zimmedar hone ke hum ghar me insaaf qayam na kar sake. jab insaaf qayam nahi hota to us waqt kisi na kisi par zulm ho raha hota hai.
apne shehr bulandshahr me kuch hazraat hain jinki wajah se hamesha kuch na kuch hota rehta hai ,pura law and order fail hai shanti qayam karne me kynki khud law and order ki wajah se jo zulm ka level aaj hai abse pehle kabhi nahi raha.
pura mulq iski chapet me hai, danishwar logo ne ilm hasil kiya hai hypocrisy ke saath logon ko bewakoof banane ka aur sahi waqt par usi ilm ki wajah se clean chit lene ka.
gandi politics aur politician ne lakho logon ko maut ki neend sula diya sirf apne zati mafaad ki khatir .
aur jab baat mulk se upar uthkar antar rashtriye istar par ki jaati hai to america ki haqeeqt samne khulti hai. jaisa ki aapne likha hai. wo bilkul sahi hai. aur ye problem kabhi bhi solve nahi hogi.
kyunki hum un logon se aur un mulkoon se ashawaadi hai jo zulm ke sahi himaayti hain. ye hamari aqql ka kasoor hai.
ab to bas yahi lagta hai, ki ye issues mehez ek debate ka mudda hain jis par khali waqt baithe laog apna waqt kaatne ki koshish karte hain. aur wo bhi achchi tarah jaante hain ki hone wala kuch nahi hai.
ye theek sholay film ke us dialogue ki tarah hai jisme asraani ne kaha ki ,hum angrezoon ke zamane ke jailor hain , jab hm nahi sudhre to tum kiya sudhroge. ha ha ha .....
fir bhi ek achchi koshish , aap badhayee ke patr hain. dhanyawaad.
Akhtar Khan Akela sahib!
दुनिया से दहशतगर्दी का अगर ख़ात्मा करना चाहते हैं तो सबसे पहले दहशतगर्द को दहशतगर्द कहने की हिम्मत जुटाएं वरना इन्सानियत का दावा करना तर्क कर दें। इसके लिए इस्लाम ने जो रास्ता सुझाया है वह इस तरह है कि बुराई को ख़त्म करने की अगर ताक़त रखते हो तो ताक़त का इस्तेमाल करो और अगर ताक़त नहीं रखते तो ज़बान से मुख़ालेफ़त करो और अगर इतनी भी हिम्मत नहीं रखते कि ज़बान खोल सको तो दिल में बुरा कहो।
Muhammad Ali sahib!
बुराई जहाँ भी हो उसको ख़त्म करने की कोशिश करना चाहिए चाहे घर में हो या बाहर. उसके लिए पहले या बाद में वाली कोई बात नहीं है दोनों तरफ साथ साथ क़दम बढ़ाना चाहिए.
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