Saturday, January 1, 2011

भारत में इस्लामी शासन व्यवस्था सभी समस्याओं का एकमात्र हल-1 Sharif Khan

सारा संसार विभिन्न प्रकार की शासन व्यवस्थाओं में बंटा हुआ है। कहीं कम्युनिज़्म पर आधारित शासन यवस्था है तो कहीं सोशलिज़्म अपनाया हुआ है। इसी प्रकार से कुछ देशों में इस्लामी निज़ाम क़ायम है तो कहीं डिक्टेटरशिप है। किसी भी देश में व्याप्त अशान्ति, अराजकता और भ्रष्टाचार को मिटाने और देश की उन्नति के लिए प्रत्येक राजनैतिक दल को यह हक़ हासिल है कि देश हित में एक बेहतर शासन व्यवस्था कायम करने का आह्वान करे। जिन लोगों ने कम्युनिज़्म को अच्छा समझा और देश में वही व्यवस्था लागू करना चाही तो उनके देशभक्त होने में शक नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार से विभिन्न राजनैतिक दल उभर कर वजूद में आए। आर.एस.एस. जनित दलों ने हिन्दू राष्ट्र का नारा दिया और यदि उनके द्वारा इस प्रकार की मांग न की गई होती तो निश्चित रूप से उनके देश के प्रति प्रेम को शक की दृष्टि देखा जाता परन्तु बिना किसी घोषणा पत्र(संविधान) के किसी राजनैतिक व्यवस्था के लागू करने की मांग करना जनता को गुमराह करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

जब कोई मुसलमान इस्लामी शासन व्यवस्था की बात कहता है तो सबसे बड़े मुस्लिम देश पाकिस्तान की मिसाल सामने आ जाती है जबकि पाकिस्तान में इस्लामी शासन न होकर भ्रष्ट मुसलमानों का शासन है जो कि इस्लाम के नाम पर कलंक जैसा है। पाकिस्तान गु़ण्डागर्दी, चरित्रहीनता और भ्रष्टाचार में हमारे देश से किसी प्रकार से भी कम नहीं है। थोड़ा सा फ़र्क यह कह सकते हैं कि पाकिस्तान में इस्लामी शासन व्यवस्था की बात कहने वालों को आतंकवादी कहकर गोलियों का निशाना बना दिया जाता है जबकि हमारे देश में मुसलमानों की कोई भी मांग न होने के बावजूद सिर्फ़ इसलिए कत्ल कर दिया जाता है कि वह मुसलमान हैं। इसके लिए गुजरात का उदाहरण देना पर्याप्त है और अब तो बाबरी मस्जिद भी भारत के इन्साफ़ को मुंह चिढ़ा रही है।

किसी देश में शासन का अच्छा और बुरा होना इस बात पर निर्भर करता है कि वहां का समाज भय मुक्त हो, बिना किसी भेद भाव के सबको मुफ़्त न्याय मिले तथा न्याय मिलने में देरी न हो। इसके लिये ज़रूरी है कि देश की जनता और शासक वर्ग दोनों समान रूप से क़ानून का सम्मान करें तथा क़ानून की गिरफ़्त में आने पर दोनों ही सामान्य अपराधी की भांति अदालत के सामने पेश किये जाएं। ख़ुलफ़ा-ए-राशिदीन (सही मार्ग पर चलने वाले ख़लीफ़ा) में से एक हज़रत उमर (रज़ियल्लाहु तआला अनहु) के बारे में गांधी जी का यह कहना कि ‘‘मैं हिन्दोस्तान में ऐसी शासन व्यवस्था चाहता हूं जैसी हज़रत उमर (रज़ि०) की थी‘‘ भारत के प्रति देशभक्ति और लगाव को ज़ाहिर करने के लिए पर्याप्त है। शासन व्यवस्था बदलकर गांधीजी की इच्छानुसार लागू करने में जो रिस्क-फ़ैक्टर है उसको बयान करने के लिए उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान के एक मन्त्री का अपने देश के बारे में दिया गया बयान पेश किया जा सकता है। उन मन्त्री महोदय ने कहा था कि यदि पाकिस्तान में इस्लामी शासन व्यवस्था क़ायम हुई तो बहुत सारे लोगों के हाथ काट दिये जाएंगे। ध्यान रहे कि इस्लाम में चोरी की सज़ा हाथ काटना है। हमारे देश का हाल उससे भी बुरा है क्योंकि यदि हमारे देश में ऐसा कुछ हुआ तो बड़ी तादाद में लोगों की बलात्कार के जुर्म में पत्थर मार मार कर जान ले ली जाएगी जिनमें आम जनता के साथ बहुत से चहीते नेताओं के वजूद से देश की पवित्र धरती पाक हो जाएगी। हमारे देश में एक सज्जन ने एक वयोव्द्ध नेता पर आरोप लगाया है कि वह उन नेताजी से पैदा हैं। जब आरोप सिद्ध करने के लिए नेताजी का डी.एन.ए. टैस्ट कराने की बात आई तो नेताजी ने इसका विरोध किया। उनका विरोध करना ही दोष सिद्ध करने के लिए काफ़ी है। आय से अधिक सम्पत्ति वास्तव में अमानत में ख़यानत या ग़बन के मामले हैं जिनमें अनगिनत नेता व अधिकारी आरोपित हैं परन्तु समाधान शायद इसलिये नहीं निकल पा रहा है क्योंकि समाधान निकालने वालों को यदि कुरेदा गया तो उनको भी इसी कटहरे में खड़ा होना पड़ेगा जिससे पूरा मामला ही चैपट हो जाने के अन्देशे से इंकार नहीं किया जा सकता। इस्लामी शासन व्यवस्था में इन सभी की सम्प्त्ति ज़ब्त करके इनको पदमुक्त कर दिया जाएगा और इनकी जगह ईमानदार लोगों को नियुति मिल जाएगी। पुलिस विभाग के साथ यदि इन्साफ़ किया गया तो इतने लोग घर बैठा दिये जाएंगे कि उनकी जगह होने वाली नई भरती से देश की बेरोज़गारी काफ़ी हद तक समाप्त हो जाएगी यह निश्चित है। इसके अतिरिक्त यदि कुछ और बेरोजगार बाक़ी रहे तो उनके रोज़गार का प्रबन्ध तो केवल न्यायपालिका से ही हो जाएगा। क्योंकि जजों के नीचे बैठे हुए कर्मचारियों को रिश्वत लेते हुए असानी से पकड़ कर दण्डित किया जा सकता है।

ऐसी शासन व्यवस्था के लागू किये जाने का आह्वान गांधीजी की तरह हमारे देश के हर उस व्यक्ति को करना चाहिए जो देश के प्रति लगाव और हमदर्दी रखता हो ताकि हमारा देश सफलता की ऊंचाइयों को छूता हुआ विश्व नायक होने के गौरव को प्राप्त कर सके।

4 comments:

Muhammad Ali said...

aapke is blog ko padhkar baht khushi huii ,kyunki gaandhi ji ko sirf jyanti aur paanch soo ke noot ke liye to sabhi yaad rakhte hain ,lekin unki shiksha aur nirdesh aur abhilashaa ko zyada tar log yaad nahi rakhte. me aapke blog ke zyada pirshansha isliye nai kar sakta kyunki ho sakta hai ki kuch log mujhe musalmaan hone ki wajah se is blog ka samarthan karne walaa samjhen, lekin baat jo likhi gayee hai wo 16 aane sach hai aur mehsoos karne layaq hai.

hamara hindustaan ka bhawya samaj jo is desh ko ek adarsh desh ke roop me dekhna chahta hai to insaaf ko qayam karne ke liye uska kartavya hai ki us mehnat me zaroor lage jisse nyaay uplabd ho sake.

ye zaroori nahi ki use islam ka naam diya jayee, lekin islam ki shiksha hi asal han jo insaaf ko laagoo karne me 100 % madadghar sabit hongi.

me khud chunki is waqt ek aise mulk me job kar raha hun jahan blog me kahi gayee baat poori tarah lagoo hoti hai aur uska prinamm bhi samne hai.

yahan saudi arab me aap aur aapki family poori tarah se safe hain chahe wo raat ke 12 baje move karen.ki bhi rape hone par pathar se jaan lene ka prawdhaan hai, chori karne par haath kaat dene ka prawdhan hai. lekin hamare yahan hindustaan me ye baat sirf isliye achchi nahi lagti kyunki inka sambandh islam se hai. ye hamari kamzoor mansikta ka udaharaan hai.

me apni is baaat ko spasht roop se bhi samjha sakta hun agar koi samajhna chahe to.......

hamare yahan kisi ki behen aur beti aur maa se agar koi durachaar kare aur wahan ki adalat use barri kar deti hai jaisa ki hamare yahan aqsar hota hai, fir peedit pariwaar se us paapi ke baare me poocha jaye ki agar aapko adhikaar diya jayee to aap us paaapi ke saath kiya karenge , to mujhe ummeed hai 99.99% log yahi kahenge ki us paapi ko jaan se maar do ya jala do , ya chhote chhote tukde karke jaanwaroo ko khila do. antatah usko khatam kar do.

yahi baat jab islam kehta hai to gale se neeche nahi utarti..

ek aadmi ne aapne poore jeewan ki kamaye apni beti aur bachchon ke liye sambhal kar raki aur agar koi chor usko le jaaye ,to wo baap yakeenan yahi kahega ki agar mujhe chor mil jaaye to me uski jaan le loonga. lekin haath kaatne ki baat agar islam kehta hai to wo baat sirf isliye achchi nahi lagti ki islam se judi huii hai.

meri prarthna hai ki agar chain se sona hai aur chain se jeena hai ane samman ke saath to jaag jaaoo, abhi hamare desh ko kitna peeche hote huee aur dekhna chahte ho ?????????????

ABHISHEK MISHRA said...

इस हरामजादे पाकिस्तानी का ब्लाग पढ़ कर तुम दोगलो को तो खुशी होगी ही

Muhammad Ali said...

mr. abhishek , aapne jo bhasha ka pryoog apne comment me kiya hai asal me wo aapka comment nahi aaapki kamzoor mansikta aur ghar se mile huee sanskaar hain. isliye aapki baat ka buraa na mante huee aapke liye sahi mashwara ye he ki zyada muh mat kholo aapki chhipi huii baat bhi samne aa jayegi jo ummeed hai isse bhi zyada ghatiya hogi.

raha sawal blogs par gaali likhne ka , to itna samajh lo ki ye ek cybercrime hai jiske tehet aapke khilaaf kanooni karyawahi bhi ho sakti hai , ye bilkul mat samjhna ki aapko kanpur se ghaseet kar court tak laana kuch mushkil kaam hai. galiyan agar hum samajh sakte hain to galiiyaan de bhi sakte hai lekin ye hamare sanskaar nahi hain.

ummeed karta hun ki ye baat poori tarah samajh aa gayee hogi.

dhanyawaad.

DR. ANWER JAMAL said...

हाज़िर है मेरे ब्लोग्स के लिंक्स , पूरी जानकारी आपको मिलेगी इनमें भाइयों को .
http://mankiduniya.blogspot.com/

http://pyarimaan.blogspot.com/

http://commentsgarden.blogspot.com/

http://ahsaskiparten.blogspot.com/

http://islamdharma.blogspot.com/

http://vedquran.blogspot.com/

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Nice post .
@ जनाब इक़बाल साहब और मेरे तमाम प्यारे पाठकों ! निचे दिए गए लिनक्स भी देखें और लिंक्स देखकर अपने विचार उपलब्ध कराने का कष्ट करें।

http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/12/virtual-communalism.html

http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/patriot.html

ये दो लिंक्स अलग से वास्ते दर्शन-पठन आपके नेत्राभिलाषी हैं।

http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/standard-scale-for-moral-values.html

http://www.pyarimaan.blogspot.com