Saturday, March 5, 2011

गुरु शिष्य सम्बन्ध Sharif Khan

जिस प्रकार से कुम्हार अपनी कार्यकुशलता और क्षमता के अनुसार साधारण सी मिट्टी को ‘एक बहतरीन बर्तन का रूप देकर उपयोगी बनाता है ठीक उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य को एक साधारण से इन्सान से महान व्यक्तित्व में परिवर्तित करने की ज़िम्मेदारी निभाता है। मिट्टी को बर्तन का रूप देने से पहले उसमें लचीलापन पैदा करने के लिए कुम्हार जिस प्रकार से उसे भिगोकर, दबाकर व कुचलकर तैयार करता है ठीक उसी प्रकार स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों को आवश्यकता व बच्चों की सहनशक्ति के अनुसार यदि सज़ा दी जाती है तो इसमें बुराई की कोई बात नहीं है। एक समय ऐसा था जब बच्चे को स्कूल में दाख़िल करते समय अभिभावक यह कहते थे कि, ‘‘मास्टरजी बच्चा आपके हवाले है इसकी हड्डी हमारी और मांस आपका।‘‘ उस दौर में स्कूल में बच्चों की पिटाई भी ख़ूब होती थी परन्तु शिकायत न पिटने वाले बच्चों को होती थी और न ही अभिभावकों को। शिक्षा ग्रहण करके वह बच्चे अच्छे संस्कार हासिल करके स्कूल से निकल कर देश के आदर्श नागरिक साबित होते थे और अपनी ज़िम्मेदारी को ईमानदारी से निभाने का प्रयास करते थे। यदि राजनेता होने का सौभग्य मिलता था तो कोई भी ऐसा प्रस्ताव रखने की कल्पना तक नहीं करते थे जिस से कि चरित्रहीनता को बढ़ावा मिलने का अन्देशा हो। यदि न्यायपालिका में प्रवेश मिलता था तो पूरी कोशिश होती थी कि अपराधी को सज़ा मिले और निरपराध व्यक्ति किसी प्रकार से भी प्रताड़ित न हो। प्रशासन में सेवा का अवसर मिलने पर मानवता को दाग़दार करने वाले कार्य अंजाम देने की कल्पना तक नहीं करते थे। मीडिया को निर्भीक और निष्पक्ष बनाने की बुनियाद भी उन्हीं लोगों की डाली हुई है।

मौजूदा दौर में जब से गुरु जी को एक अच्छी पगार लेने वाले नौकर के रूप में देखा जाने लगा है, तब से गुरु के द्वारा उद्दण्ड छात्र को डांटना तक एक नौकर का मालिक को बेइज्ज़त करने के रूप में देखा जाने लगा है और उसकी प्रतिक्रिया के तौर पर पहले तो अभिभावक स्वयं वहशीपन का सबूत देते हैं तदुपरान्त मास्टरजी पर ग़ैर शाइस्ता इल्ज़ामात लगाकर उनको पुलिस के हवाले कर दिया जाता है और यदि मास्टरजी के दुर्भाग्य से छात्र अनुसूचित जाति का हुआ तो उन पर एस.सी.एस.टी. एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही किया जाना सुनिश्चित हो जाता है।

एक कहावत है, ‘‘बे अदब बे नसीब, बा अदब बा नसीब‘‘। इस कहावत के अनुसार समाज में सर्वोच्च स्थान पाने के हक़दार गुरुओं को बेइज़्ज़त किये जाने के कारण पूरा देश बदनसीबी की आग़ोश में आ चुका है जिसके नतीजे में चरित्र पतन का यह हाल है कि समलैंगिकता जैसे घिनौने कार्य को क़ानूनी संरक्षण दिया जा रहा है। वैवाहिक व्यवस्था आदर्श समाज के निर्माण की बुनियाद है परन्तु लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता देने वाले गन्दे क़ानून के द्वारा बिना विवाह किये औरतों मर्दों को एक साथ रहने की छूट देकर सामाजिक ढांचे को छिन्न भिन्न किया जा रहा है। एक ईसाई पादरी को उसके दो मासूम बच्चों के साथ साम्प्रदायिकता के जुनून में आकर ज़िन्दा जला देने वाले अपराधियों की दुर्लभ से दुर्लभतम की श्रेणी का अपराध न मानते हुए विवेकाधिकार का प्रयोग करके उच्चतम न्यायालय द्वारा फांसी की सजा को उम्र क़ैद में बदल दिये जाने का मामला सब जानते ही हैं। इसके बाद भी क्या देश में न्याय प्राप्त होने की आशा की जा सकती है। पुलिस और प्रशासन में भी ज़्यादातर ऐसे ही लोगों की भरमार है जिनका गुरुओं के सम्मान से कोई लेना देना नहीं रहा इसीलिए शिक्षकों के किसी प्रदर्शन पर लाठी चार्ज तक कर देना आम सी बात हो गई है।

इन सब बातों का दर्दनाक पहलू यह है कि ऐसे ही संस्कारहीन छात्र शिक्षित होकर शिक्षक बनने लगे हैं। लिहाज़ा यह एक ऐसी समस्या बन गई है जिसका समाधान बहुत कठिन है।

6 comments:

Sunil Kumar said...

आज आपके व्लाग पर पहली बार आया हूँ बहुत अच्छा आलेख पढने को मिला आपने सही फ़रमाया , मई आपसे सौ फीसदी इत्तफाक रखता हूँ | आभार

Sharif Khan said...

Sunil Kumar ji!
मनुष्य का अन्तर्मन सदैव ही सच्चाई को पसंद करता रहा है। आप को लेख अच्छा लगा यह आपकी सच के प्रति आस्था को दर्शाने वाली बात है। इससे पिछले लेखों पर भी अगर नज़र डालें और क़ीमती राय से नवाज़ें तो आभारी होउंगा।

हरकीरत ' हीर' said...

आदरणीय शरीफ साहब .....
आदाब ....

मिट्टी को बर्तन का रूप देने से पहले उसमें लचीलापन पैदा करने के लिए कुम्हार जिस प्रकार से उसे भिगोकर, दबाकर व कुचलकर तैयार करता है ठीक उसी प्रकार स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों को आवश्यकता व बच्चों की सहनशक्ति के अनुसार यदि सज़ा दी जाती है तो इसमें बुराई की कोई बात नहीं है।
बहुत अच्छी बात कही आपने ....
पर विरोध तब होना शुरू हुआ जब शिक्षकों की मार से बच्चे मानसिक व शारीरिक रूप से विकलांग होने लगे ....
मुझे याद है बचपन में हमारी कक्षा के एक बच्चे की आँख शिक्षक के थप्पड़ मारने से फिर गई थी ....ऐसे में अभिवाहकों ने आकर कानूनी कार्यवाही की .....कई बच्चे मार की वजह से डर कर स्कूल जाते ही नहीं थे ....शायद यही वजह रही होगी ऐसा कानून बना देने की ....
अगर हमारा बच्चा शिक्षक ki वजह से उम्र भर के लिए विकलांग हो जाये तो निश्चित रूप से हम भी आपत्ति करेंगे ही ....

आपने ब्लॉग पे आकर टिपण्णी दी ...कन्यादान की बात उठाई ....आभार ....
मैं इस विषय पर पहले भी लिख चुकी हूँ ....सच कहूँ तो इस शब्द ने मुझे बहुत आहत किया है ....
यकीं मानिये मेरा किसी धर्म को निचा दिखने जैसी कोई मंशा नहीं है ....
स्त्री के प्रति अवहेलना ही मुझे आहत कर जाती है ......

Muhammad Ali said...

badi kathin hai dagar panghat ki, jis roshni me ye blog shri sunil kumar sahab ne dekha hai wo apni jagah bilkul theek hai aur bachhco ke parti surakshatmak pehlu par gor karte hue jo baat shrimati harkirat heer ji ne kahi hai wo bhi sarahneey yogy hai.

me lekhak ka abhaari hun jo is taraf bhi unhone itna achcha socha aur baaqi dono commentators ki raye bhi sarahneey yogy hai......


dhanyawaad.

Rajeysha said...

हमें नहीं पता की शरीफ खान जी के अनुभव क्‍या रहे हैं, पर हमारे ख्‍याल से

1 गुरू होना और शि‍क्षक होना ये दो अलग बाते हैं।

2 हम शि‍क्षक से पि‍टे हैं और उनका सम्‍मान भी करते हैं, लेकि‍न शि‍क्षक के रूप में जब बच्‍चों को पीटा तो बुरा लगा.. शि‍क्षक का बच्‍चों को पीटना यह हकीकत दर्शाता है कि‍ उसका प्रशि‍क्षण गलत तरीके से हुआ है। इंसान कि‍सी भी उम्र में मि‍टटी का लोंदा नहीं होता। इंसान इंसान होता है और उसे इंसानि‍यत सम्‍मत ढंग से ही शि‍क्षि‍त कि‍या जाना चाहि‍ये।
4 याद रखि‍ये आप छड़ी से पीट रहे हैं और यह छड़ी कल को उसे परमाणु बम बनाने की वजह दे देगी।
3 शि‍क्षक के प्रशि‍क्षण में मनोवैज्ञानि‍क ढंग से सीखना सि‍खाना लाभप्रद हो सकता है।

S.M.Masoom said...

एक चीज़ को कई पहलुओं से देखा जा सकता है. शिक्षक और गुरु एक हैं या दो यह अहम् बात है. गुरु अपने शिष्य को पुत्र सामान प्रेम भी देता है और यदि सजा देता है तो भी उसमें , नुकसान होने का खतरा नहीं हुआ करता.
आज यदि अभिभावकों ने शिक्षको के खिलाफ शिकायत दर्ज करवानी शुरू कर दी है तो यह भी सही है कि ऐसे मसले नज़र मैं आये हैं जब शिक्षक ने गुरु के दर्जे से गिर के शिष्य को मारा.
गुरु और शिष्य का रिश्ता महान है और गुरु कि ज़िम्मेदारी अधिक.