Friday, April 15, 2011

बिगड़ा हुआ समाज Sharif Khan

ईश्वर ने हर चीज़ को नर और मादा के जोड़ों में पैदा किया है तथा दोनों के मिलन से सन्तानोत्पत्ति होती है और नस्ल चलती है। बच्चे चूंकि मादा जनती है इसीलिए शायद उसके आकर्षण के लिए नर को मादा के मुक़ाबले में ज़्यादा सुन्दर बनाया गया है। उदाहरण के तौर पर देखें कि मोर मोरनी के मुक़ाबले में अधिक सुन्दर होता है। इसी प्रकार कबूतर कबूतरी से, शेर शेरनी से, नाग नागिन से आदि प्रत्येक जानदार में नर हमेशा मादा के मुक़ाबले में अधिक सुन्दर होता है। इंसानों पर भी यह बात लागू होना अनिवार्य है। इस तथ्य की रोशनी में यदि विचार किया जाए तो निष्कर्ष यह निकलता है कि मर्द को औरत के मुक़ाबले में अधिक सुन्दर बनाया गया है। यह बात इस तथ्य से भी साबित हो जाती है कि हमेशा औरतें ही सजनें संवरने की ओर ध्यान देती हैं, मर्द नहीं, क्योंकि सुन्दर चीज़ को सजाने संवारने की आवश्यकता ही नहीं है मर्दों को रिझाने के लिए सजने, संवरने के अलावा नाचने गाने का कार्य भी औरतें ही करती आई हैं ताकि दोनों ओर परस्पर आकर्षण बना रहे। औरतों में जो चीज़ मर्दों से बेहतर और उनको उच्चता प्रदान करने वाली है वह है करुणा, दया और ममता की भावना। सेवा, सत्कार और त्याग की भावना। क्षमा, बलिदान और संतोष की भावना। इन्हीं भावनाओं का अक्स जब चेहरे पर आता है तो वही उनके चेहरे का तेज तथा शर्म और हया उनका गहना बन जाता है। औरतों और मर्दों के बीच शारीरिक संरचना और क्षमता का जो भेद है उसके अनुरूप क़ायम की गई सामाजिक व्यवस्था में दिये गए अधिकार और कर्तव्यों के अनुसारं औरतों की सुरक्षा के साथ उनकी आवश्यकताओ की पूर्ति की ज़िम्मेदारी मर्दों के ऊपर डाल दी गई इससे बड़े सम्मान की कल्पना नहीं की जा सकती हालांकि उसके बदले में औरतें घरों की देखभाल और बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी को निभाती हैं जोकि उनकी शारीरिक संरचना और क्षमता के अनुकूल है। इस व्यवस्था के विपरीत जब औरतों ने घरों से बाहर निकल कर मर्दों के काम सम्भालने शुरू कर दिये और मर्दों ने ब्यूटी पार्लर जाकर सजना संवरना शुरू कर दिया तो समाज का ढांचा ही बिगड़ गया। इस प्रकार से पतन के रास्ते पर चलते हुए गिरावट की हद यह हो गई कि नर्तकियां जिस प्रकार से नाच गाना करके मर्दों का दिल बहलाने के साधन उपलब्ध कराती थीं (हालांकि यह भी शर्म की बात थी), उसी प्रकार से अब पतित समाज में मर्दों को नचाया जाने लगा। और जिस प्रकार से राज नर्तकियां हुआ करती थीं उसी प्रकार से अब राज नर्तक होने लगे और देश में सर्वोच्च सम्मान से नवाज़े जाने लगे। इस बात में अफ़सोस का पहलू यह है कि हमारे देश के नौजवानों का आदर्श ऐसे ही नाचने गाने वाले लोग हो गए जिन में स्टेज पर श्वसुर को बहू के साथ नाचने में कोई ऐतराज़ नहीं होता और न ही भाभी को देवर के साथ नाचने में लेशमात्र भी आपत्ति होती है बल्कि आपत्ति हो भी क्यों, किसी भी बुराई को बुराई में बुराई नज़र नहीं आया करती। अब आवश्यकता इस बात की है कि समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए बुद्धिजीवी वर्ग इस ओर ध्यान देकर पतन की राह पर चल पड़े समाज को सही राह पर लाने की रूपरेखा बनाएं ताकि अच्छे संस्कार से युक्त नई पीढ़ी जन्म लेकर देश को नई दिशा में ले जाने में सक्षम हो।

2 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

aek khtrnaak sch ko ujaagr kiya hai or yeh aek chintan kaa kaarn hai . akhtar khan akela kota rajsthan

DR. ANWER JAMAL said...

आप एक मर्द हैं इसीलिए आप औरत की अपेक्षा ख़ुद को ज़्यादा ख़ूबसूरत समझते हैं लेकिन मैं समझता हूँ कि ख़ूबसूरती में दोनों ही बराबर होते हैं । औरत शारीरिक रुप से मर्द से कमज़ोर होती है। इसीलिए अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित रहती है जो कि उसे एक मर्द से ही मिल सकती है । वह सजती है पहले मर्द को पाने के लिए और फिर उसे अपने साथ बनाए रखने के लिए । अपनी और अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए ही वह सजती-संवरती है। उसका सजना-संवरना उसकी अक़्लमंदी का सुबूत है । यही वजह है कि इस्लामी शरीअत मर्दों के लिए सोना और रेशम पहनना हराम ठहराती है लेकिन औरतों को इनके इस्तेमाल की इजाज़त देती है । अति बहरहाल हर चीज़ की बुरी होती है । आपने भी जिन बुराईयों की निशानदेही की है , वह एक भयानक असंतुलन के लक्षण हैं , जो कि ख़ुदा के हुक्म को और आख़िरत को भुलाने का अंजाम हैं और इनका निराकरण भी यही है कि लोग आख़िरत को सामने रखें और ख़ुदा के हुक्म पर चलें ।