भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपति का पद राजनैतिक गन्दगी से दूर एक विभूति के तौर पर सृजित किया हुआ माना गया है इसीलिए यह माना जाता है कि राष्ट्रपति एक ऐसा व्यक्ति होगा जो किसी के प्रति दुर्भावना न रखता हो, किसी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो और किसी भी प्रकार का पक्षपात करने वाला न हो।
यहाँ एक पूर्व राष्ट्रपति और दूसरे मौजूदा राष्ट्रपति की भूमिका पर नज़र डाल कर देखते हैं -
पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा 7 जनवरी 1993 को एक आर्डीनेन्स के द्वारा उच्च न्यायालय में चल रहे बाबरी मस्जिद के सभी मुक़दमों को निरस्त करके उच्चतम न्यायालय से इस सवाल का जवाब मांगा गया कि विवादित भवन के स्थान पर कोई दूसरा धार्मिक निर्माण था या नहीं।
क्या ऐसा नहीं लगता कि महामहिम को यह अन्देशा रहा हो कि यदि न्यायालय इन्साफ़ कर बैठा तो नाजायज़ मन्दिर के निर्माण का सपना साकार न हो सकेगा इसलिए इस मस्जिद की नींवें तक खुदवाने का प्रबन्ध कर दिया गया। इस तरह से देश के सर्वोच्च पद की गरिमा को धूल में मिला दिया गया।
मौजूदा राष्ट्रपति की बात करें तो अफज़ल गुरु को बेगुनाह होते हुए भी न्यायालय द्वारा फांसी की सज़ा सुनाई गई थी जोकि अदालत की टिप्पणी से ज़ाहिर थी कि देश के ज़मीर की आवाज़ के मद्दे नज़र मौत की सजा दी जा रही है।
अदालत के सही फ़ैसले के बावजूद भी जब राष्ट्रपति को फांसी की सजा माफ़ करने का अधिकार है तो अदालत के गलत फैसले से किसी बेगुनाह को फांसी से बचाना तो फ़र्ज़ हो जाता है लेकिन महामहिम के दिल में मुसलमानों के प्रति भड़क रही नफ़रत की आग को बुझाने के लिए एक बेगुनाह को शहीद कर दिया गया।
इस तरह से एक बार फिर सर्वोच्च पद की गरिमा दाग़ी हो गई।
यदि राज्यपाल की बात करें तो इस पद को तो राजनैतिक गन्दगी से पूरी तरह गन्दा कर दिया गया है जबकि यह पद राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर राज्य का सर्वोच्च पद होता है।
मिसाल के तौर पर बाबरी मस्जिद को गिराने में मुख्य भूमिका निभाने वाले कल्यान सिंह को राज्यपाल बनाया जाना तो किसी तरह से भी उचित नहीं हो सकता।
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के जन्मदिन के खर्च के स्रोत की बाबत पूछने पर सवाल पूछने वालों की मानसिकता के अनुरूप आज़म खां ने शानदार कटाक्ष किया कि पैसा दाऊद से मिला और अबु सुलेम से मिला और आतंकवादियों से मिला। इस कटाक्ष से सवाल करने वालों को शर्मिन्दा होकर जाना चाहिए था लेकिन उत्तर राजयपाल राम नाईक ने अपने आकाओं की नमक हलाली का हक़ अदा करने के लिए इसी को मुद्दा बना डाला और ऐसा लगता है जैसे आज़म खां के इस बयान को इक़रारी बयान मान कर आतंकवादियों से उनके रिश्ते साबित करने की क़सम खा ली हो।
राजयपाल के पद की गरिमा इसी तरह दाग़दार होती है।
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