15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास का सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण दिवस है और राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन हमारा देश अंग्रेजों की ग़ुलामी से आज़ाद हुआ था। इस आज़ादी को हासिल करने के लिए हज़ारों भारतवासियों को अपनी जानों की क़ुर्बानी देनी पड़ी थी। जहाँ एक ओर लोग अपनी जान की परवाह न करते हुए अंग्रेजी शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे वहीँ दूसरी ओर ऐसे अवसरवादी भी थे जो अंग्रेजों से मधुर सम्बन्ध रखते थे और आख़िरकार आज़ादी की प्राप्ति के बाद अहिंसा का सन्देश देने वाले गांधीजी को इन्ही अंग्रेजों से मधुर सम्बन्ध वालों ने क़त्ल कर दिया था।
एक लम्बी जंग में जान और माल की क़ुर्बानी देकर प्राप्त होने वाली आज़ादी के बाद देश का शासन उसी तबके के हाथ आया जिसकी आज़ादी प्राप्त करने में मुख्य भूमिका रही थी। इस प्रकार जनता द्वारा बेहतरीन लोगों को चुनकर उनको सत्ता सौंप दी गई और सुचारू रूप से देश का शासन चलता रहा। यह इसलिए सम्भव हुआ था क्योंकि उस समय शासक वर्ग के नेतागण समर्पण की भावना से शासन के रूप में देशसेवा करने का जज़्बा रखते थे।
इसके बाद दूसरी पीढ़ी का दौर आया जिसमें सरकार का निर्वाचन तो बेशक जनता द्वारा ही होता था लेकिन उसमें धनबल और बाहुबल का सहारा लिया जाने लगा था। ऐसी स्थिति में जिन दबंगों की सहायता से राजनेता चुने जाते थे उन king makers को इस एहसान के बदले में उपकृत किया जाना शासक वर्ग की मजबूरी बन गया था जिसके नतीजे में सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार को पनाह मिलनी शुरू हो गई।
इसके बाद तीसरा दौर शुरू हुआ जो बहुत ही भयावह साबित हो रहा है। इस दौर की शरुआत कुछ इस तरह हुई कि दूसरे दौर के king makers ने जब देखा कि उनकी मेहनत का दूसरे लोग लाभ उठा कर शासन कर रहे हैं तो उन्होंने खुद ही शासन की बागडोर सम्भालना बेहतर समझा और इस तरह दूसरे दौर में तो केवल राजनीति का अपराधीकरण ही हुआ था परन्तु इस तीसरे दौर में राजनीति का माफ़ियाकरण हो गया। इस बात को इस तरह भी कहा जा सकता है कि राजनैतिक माफ़िया देश के शासक बन गए हैं और इस गिरोह का देशहित से लगाव न होकर केवल सत्ता सुख भोगने पर ध्यान केन्द्रित है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि इन राजनैतिक माफ़ियाओं में ज़्यादातर उसी विचारधारा के लोग हैं जो आज़ादी की जंग में अंग्रेजों से मधुर सम्बन्ध बनाना हितकारी समझते थे।
एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि अंग्रेजों के लिए यह कहा जाता है कि उन्होंने 'फूट डालो और राज करो' की नीति को अपना कर हिन्दू मुस्लिम में फूट डलवाई थी ताकि यह एकजुट होकर सरकार के ख़िलाफ़ कोई साज़िश न करें परन्तु उनकी इस चाल से प्रभावित हुए बिना हिन्दू और मुसलमान एकजुट हुए और दोनों ने मिलकर अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।
'फूट डालो और राज करो' की निति में अँगरेज़ तो कामयाब हो न सके थे लेकिन आज के राजनैतिक माफ़िया गिरोह ने पूरे समाज को धार्मिक और जातिगत भेदभाव में इस प्रकार बाँट दिया है कि सरकार बनाने लायक़ वोटों का ध्रुवीकरण करके बाक़ी पूरे समाज में बिखराव करा दिया है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि स्वतन्त्रता के नाम पर केवल सरकार का रूप बदला है बाकी कुछ नहीं बदला क्योंकि पहले अँगरेज़ देश को लूट रहे थे और अब यह राजनैतिक माफ़िया लूट रहे हैं।
इस प्रकार स्वतन्त्रता दिवस को पर्व के तौर पर मनाने का यह तरीक़ा होना चाहिए कि देश की जनता यह प्रतिज्ञा करे कि हर प्रकार के भेदभाव को दूर करके एक स्वच्छ वातावरण बनाया जायेगा और देशहित को प्राथमिकता देने वाले राजनेताओं को महत्व देते हुए राजनैतिक माफ़ियाओं के चंगुल से देश को आज़ाद कराया जाएगा।
एक लम्बी जंग में जान और माल की क़ुर्बानी देकर प्राप्त होने वाली आज़ादी के बाद देश का शासन उसी तबके के हाथ आया जिसकी आज़ादी प्राप्त करने में मुख्य भूमिका रही थी। इस प्रकार जनता द्वारा बेहतरीन लोगों को चुनकर उनको सत्ता सौंप दी गई और सुचारू रूप से देश का शासन चलता रहा। यह इसलिए सम्भव हुआ था क्योंकि उस समय शासक वर्ग के नेतागण समर्पण की भावना से शासन के रूप में देशसेवा करने का जज़्बा रखते थे।
इसके बाद दूसरी पीढ़ी का दौर आया जिसमें सरकार का निर्वाचन तो बेशक जनता द्वारा ही होता था लेकिन उसमें धनबल और बाहुबल का सहारा लिया जाने लगा था। ऐसी स्थिति में जिन दबंगों की सहायता से राजनेता चुने जाते थे उन king makers को इस एहसान के बदले में उपकृत किया जाना शासक वर्ग की मजबूरी बन गया था जिसके नतीजे में सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार को पनाह मिलनी शुरू हो गई।
इसके बाद तीसरा दौर शुरू हुआ जो बहुत ही भयावह साबित हो रहा है। इस दौर की शरुआत कुछ इस तरह हुई कि दूसरे दौर के king makers ने जब देखा कि उनकी मेहनत का दूसरे लोग लाभ उठा कर शासन कर रहे हैं तो उन्होंने खुद ही शासन की बागडोर सम्भालना बेहतर समझा और इस तरह दूसरे दौर में तो केवल राजनीति का अपराधीकरण ही हुआ था परन्तु इस तीसरे दौर में राजनीति का माफ़ियाकरण हो गया। इस बात को इस तरह भी कहा जा सकता है कि राजनैतिक माफ़िया देश के शासक बन गए हैं और इस गिरोह का देशहित से लगाव न होकर केवल सत्ता सुख भोगने पर ध्यान केन्द्रित है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि इन राजनैतिक माफ़ियाओं में ज़्यादातर उसी विचारधारा के लोग हैं जो आज़ादी की जंग में अंग्रेजों से मधुर सम्बन्ध बनाना हितकारी समझते थे।
एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि अंग्रेजों के लिए यह कहा जाता है कि उन्होंने 'फूट डालो और राज करो' की नीति को अपना कर हिन्दू मुस्लिम में फूट डलवाई थी ताकि यह एकजुट होकर सरकार के ख़िलाफ़ कोई साज़िश न करें परन्तु उनकी इस चाल से प्रभावित हुए बिना हिन्दू और मुसलमान एकजुट हुए और दोनों ने मिलकर अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।
'फूट डालो और राज करो' की निति में अँगरेज़ तो कामयाब हो न सके थे लेकिन आज के राजनैतिक माफ़िया गिरोह ने पूरे समाज को धार्मिक और जातिगत भेदभाव में इस प्रकार बाँट दिया है कि सरकार बनाने लायक़ वोटों का ध्रुवीकरण करके बाक़ी पूरे समाज में बिखराव करा दिया है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि स्वतन्त्रता के नाम पर केवल सरकार का रूप बदला है बाकी कुछ नहीं बदला क्योंकि पहले अँगरेज़ देश को लूट रहे थे और अब यह राजनैतिक माफ़िया लूट रहे हैं।
इस प्रकार स्वतन्त्रता दिवस को पर्व के तौर पर मनाने का यह तरीक़ा होना चाहिए कि देश की जनता यह प्रतिज्ञा करे कि हर प्रकार के भेदभाव को दूर करके एक स्वच्छ वातावरण बनाया जायेगा और देशहित को प्राथमिकता देने वाले राजनेताओं को महत्व देते हुए राजनैतिक माफ़ियाओं के चंगुल से देश को आज़ाद कराया जाएगा।
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स्वतन्त्रता के नाम पर केवल सरकार का रूप बदला है बाकी कुछ नहीं बदला क्योंकि पहले अँगरेज़ देश को लूट रहे थे और अब यह राजनैतिक माफ़िया लूट रहे हैं।
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