देश का जब बटवारा हुआ और पाकिस्तान वजूद में आया तो अपने घर परिवार को छोड़ कर पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों के सम्बन्ध में साम्प्रदायिकता वादी हिन्दू इस प्रकार का दुष्प्रचार करते हैं कि जिन मुसलमानों के दिल में देशप्रेम की भावना नहीं थी वही पाकिस्तान गए थे जबकि हक़ीक़त यह है कि बहुत कम लोग ऐसे थे जो अपनी मर्ज़ी से वहां गए थे वरना ज़्यादातर मुसलमानों को ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था और इस काम को योजनाबद्ध तरीक़े से अमल में लाया गया था।
दिल्ली की ही मिसाल लें तो वहां के जिन इलाक़ों में मुसलमान बहुसंख्या में थे वहां भी वह सुरक्षित न रह सके और हिन्दू गुण्डों ने सुरक्षा बलों की सहायता से उनको ख़ाली हाथ घर छोड़ कर कैम्पों में रहने के लिए मजबूर कर दिया था और इस प्रकार से पाकिस्तान जाने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था। दिल्ली की मिसाल इसलिये दी गई है ताकि समझा जा सके कि जब राजधानी में यह हाल था तो देश के दूसरे भागों में क्या रहा होगा।
इसी योजना के तहत पूरे देश में मुसलमानों के लिये सफ़र तक करना असुरक्षित कर दिया गया था और मौक़ा मिलते ही कहीं भी हिन्दू गुण्डे उनको क़त्ल कर देते थे। यह सारा ज़ुल्म चूँकि सरकार की निगरानी किया जा रहा था इसलिये इस पर अंकुश लगाना सम्भव नहीं था।
मुसलमानों के लिये पूरे देश में ऐसा माहौल बना दिया गया था कि वह न तो अपने घरों में सुरक्षित थे और न ही उनके लिए सफ़र करना सुरक्षित था। जो लोग जान बचाते हुए किसी तरह से पाकिस्तान जाने के लिए ट्रेन में या बस में बैठ भी जाते थे तो रास्ते में ट्रेन रोक कर उनको क़त्ल कर दिया जाता था। इसके अलावा देश के अन्दर भी मुसलमान मुसाफ़िरों का क़त्ल किया जाना आम बात हो गई थी।
इसके सबूत में उस वक़्त रहे गवर्नर जनरल लॉर्ड माउन्ट बेटेन द्वारा तत्कालीन प्रधानमन्त्री को भेजे गए ख़त की मिसाल दी जा सकती है जिसमें उन्होंने कालका से दिल्ली जाने वाली ट्रेन का हवाला देते हुए लिखा था कि मेरे दिल को इस खबर से बहुत चोट पहुँची है कि कालका से दिल्ली जाने वाली ट्रेनों को लगातार दो रातों में रास्ते में रोका गया और गार्डों की मौजूदगी में उन ट्रेनों में सफ़र कर रहे मुस्लिम मुसाफिरों को क़त्ल कर दिया गया जिनमें मेरे स्टाफ़ के लोग भी थे, जो मारे गए। ध्यान रहे उस ट्रेन में सफर कर रहे दूसरे मुसलमानों के साथ लॉर्ड माउन्ट बेटेन के मुसलमान बावर्ची को उसके परिवार सहित क़त्ल कर दिया गया था।
इसी योजना के तहत पूरे देश में मुसलमानों के लिये सफ़र तक करना असुरक्षित कर दिया गया था और मौक़ा मिलते ही कहीं भी हिन्दू गुण्डे उनको क़त्ल कर देते थे। यह सारा ज़ुल्म चूँकि सरकार की निगरानी किया जा रहा था इसलिये इस पर अंकुश लगाना सम्भव नहीं था।
मुसलमानों के लिये पूरे देश में ऐसा माहौल बना दिया गया था कि वह न तो अपने घरों में सुरक्षित थे और न ही उनके लिए सफ़र करना सुरक्षित था। जो लोग जान बचाते हुए किसी तरह से पाकिस्तान जाने के लिए ट्रेन में या बस में बैठ भी जाते थे तो रास्ते में ट्रेन रोक कर उनको क़त्ल कर दिया जाता था। इसके अलावा देश के अन्दर भी मुसलमान मुसाफ़िरों का क़त्ल किया जाना आम बात हो गई थी।
इसके सबूत में उस वक़्त रहे गवर्नर जनरल लॉर्ड माउन्ट बेटेन द्वारा तत्कालीन प्रधानमन्त्री को भेजे गए ख़त की मिसाल दी जा सकती है जिसमें उन्होंने कालका से दिल्ली जाने वाली ट्रेन का हवाला देते हुए लिखा था कि मेरे दिल को इस खबर से बहुत चोट पहुँची है कि कालका से दिल्ली जाने वाली ट्रेनों को लगातार दो रातों में रास्ते में रोका गया और गार्डों की मौजूदगी में उन ट्रेनों में सफ़र कर रहे मुस्लिम मुसाफिरों को क़त्ल कर दिया गया जिनमें मेरे स्टाफ़ के लोग भी थे, जो मारे गए। ध्यान रहे उस ट्रेन में सफर कर रहे दूसरे मुसलमानों के साथ लॉर्ड माउन्ट बेटेन के मुसलमान बावर्ची को उसके परिवार सहित क़त्ल कर दिया गया था।
इस तरह की वारदातों से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सरकार द्वारा सुरक्षा बलों को निर्देश दिया गया हो कि हिन्दू गुण्डों द्वारा किये जाने वाले मुसलमानों के क़त्ल में रुकावट न डाली जाए। अगर ऐसा न होता तो ऐसी वारदातें एक बार होने पर रोक दी जातीं लेकिन ऐसा न होकर यह वारदातें बार बार अन्जाम दी जाती रही थीं।
मुसलमानों के इन सब हत्याकाण्डों में तत्कालीन सरकार का ऐसा ही निर्देश प्रतीत होता है जैसा 2002 में गुजरात में मुसलमानों को क़त्ल करने के लिए वहां के मुख्य मन्त्री द्वारा दिया जाना माना जाता है जिसका गवाह पूरा हिन्दोस्तान है। और इस प्रकार लगभग 20 लाख मुसलमानों की शहादत के बाद बचे हुए लुटे पिटे मुसलमान अपने घर मकान और माल असबाब के साथ ---- 'अपना दिल'------ भी भारत में छोड़ कर पाकिस्तान पहुंचे थे।
मुसलमानों के इन सब हत्याकाण्डों में तत्कालीन सरकार का ऐसा ही निर्देश प्रतीत होता है जैसा 2002 में गुजरात में मुसलमानों को क़त्ल करने के लिए वहां के मुख्य मन्त्री द्वारा दिया जाना माना जाता है जिसका गवाह पूरा हिन्दोस्तान है। और इस प्रकार लगभग 20 लाख मुसलमानों की शहादत के बाद बचे हुए लुटे पिटे मुसलमान अपने घर मकान और माल असबाब के साथ ---- 'अपना दिल'------ भी भारत में छोड़ कर पाकिस्तान पहुंचे थे।
यह बात भी ध्यान में रखने वाली है कि पाकिस्तान जाने वाले या यूं कहें कि खदेड़े जाने वाले मुसलमानों के परिवार भी इस प्रकार से छिन्न भिन्न हो गए थे कि किसी का बेटा वहां चला गया था तो उसका बाप यहाँ रह गया था तो किसी का भाई वहां चला गया था तो उसके भाई और बहन यहां रह गए थे। इस प्रकार से भारत में रहने वाले मुसलमान और यहाँ से पाकिस्तान गए हुए मुसलमान व उनकी सन्तानें आपस में इतने गहरे रिश्तों में जुड़े हुए हैं जिनको अलग नहीं किया जा सकता।
मुसलमानों के प्रति नफ़रत यहीं समाप्त नहीं हुई थी बल्कि इसके बाद सरकारी तौर पर पाकिस्तान को दुश्मन देश घोषित किया गया ताकि यहाँ से जाने वाले मुसलमानों की सम्पत्ति को शत्रु सम्पत्ति कहकर उनके यहाँ बचे हुए परिवार से छीन कर ज़ब्त किया जा सके और इस प्रकार पाकिस्तान जाने वाले वाले मुसलमानों की चल सम्पत्ति को सरकार ने गुण्डों से लुटवा दिया और अचल सम्पत्ति को क़ानून बनाकर शत्रु सम्पत्ति के नाम पर सरकार द्वारा लूट लिया गया।
इन परिस्थितियों में क्या यह सम्भव है कि भारत में रहने वाले या यहाँ से पाकिस्तान गए हुए मुसलमान दोनों में किसी देश का बुरा चाहेंगे? जिस प्रकार से भारत में आने वाली किसी आपदा पर भारत वासी मुसलमानों के पाकिस्तानी रिश्तेदार परेशान हो जाते हैं और भारत में रहने वाले अपने दोस्तों व रिश्तेदारों की ख़ैरियत का समाचार मिलने तक बेचैन रहते हैं तो क्या भारत के मुसलमान पाकिस्तान में आने वाली किसी आपदा के समाचार पर अपने पाकिस्तानी सम्बन्धियों की सलामती की कामना नहीं कर सकते? क्या यह देश के प्रति गद्दारी है?
यहाँ से गए हुए मुसलमान चूँकि अपने परिवार के साथ अपना दिल भी भारत में छोड़ गए थे इसलिये वह दोनों देशों के बीच दोस्ती के माहौल की कामना करते हैं और जंग के हालात में पाकिस्तान की जीत की दुआ तो बेशक करते हैं लेकिन भारत में रहने वाले उनके परिवार और रिश्तेदारों की सुरक्षा के पेशेनज़र वह भारतवासियों का बुरा भी नहीं चाहते हैं क्योंकि वह पाकिस्तान बेशक चले गए हैं लेकिन उनकी जड़ें तो भारत में ही हैं और अक्सर भारत में रहने वाले उनके सगे सम्बन्धियों के अलावा उनके हिन्दू दोस्तों से भी प्रेम भावना देखने को मिलती है।
भारत के मुसलमानों की मानसिक स्थिति भी ऐसी ही है जिसको कोई भी भावुक इन्सान आसानी से समझ सकता है। भारत का मुसलमान जिस तरह अपने देश की तरक़्क़ी चाहता है उसी तरह पाकिस्तान का अहित भी नहीं चाहता। इसी को भारत का हिन्दू समाज देश से गद्दारी कहकर मुसलमानों के प्रति अपनी नफ़रत का इज़हार करने में भी शर्म महसूस नहीं करता है।
सोचने की बात यह है कि भारत का हिन्दू अगर नेपाल के हित की कामना करे तो कोई हर्ज नहीं और अगर मुसलमान भारत के साथ पाकितान के हित में भी दुआ करे तो गद्दार कहलाता है।
सोचने की बात यह है कि भारत का हिन्दू अगर नेपाल के हित की कामना करे तो कोई हर्ज नहीं और अगर मुसलमान भारत के साथ पाकितान के हित में भी दुआ करे तो गद्दार कहलाता है।
मुसलमानों को प्रताड़ित करने की योजना के तहत पाकिस्तान से भारत की यात्रा को मुसलमानों के लिए काफ़ी जटिल कर दिया गया है और साथ में केवल तीन स्थानों पर जाने का वीज़ा दिया जाता है और यदि वह वीज़ा में दर्शाए गए स्थानों के अलावा कहीं पकड़ा जाता है तो उसके साथ विदेशी एजेंट जैसा बर्ताव किया जाता है चाहे वह उस स्थान पर अपने किसी सम्बन्धी की मौत में ही गया हो। इसी प्रकार भारत से जाने वाले मुसलमान को भी वापस लौटने के बाद शक की नज़र से देखा जाने लगता है।
यही बात नागरिकता से सम्बन्धित है कि किसी पाकिस्तानी मुसलमान को भारत की नागरिकता मिलना असम्भव सा कर दिया गया है चाहे कोई लड़की किसी भारतीय के साथ विवाह करके पाकिस्तान से आई हो और चाहे उसके माता पिता भारत से ही पाकिस्तान गए हुए हों।
इस प्रकार ऐसे हालात बना दिये गए हैं कि यदि किसी मुसलमान के घर कोई पाकिस्तानी अतिथि आता है तो जब तक वह ख़ैरियत के साथ वापस नहीं चला जाता तब तक वह अजीब तरह से ख़ौफ़ज़दा व बेचैन रहता है क्योंकि जहाँ हिंदुत्ववादी गुण्डों से देश का मुसलमान ही सुरक्षित नहीं है वहां वह अपने अतिथियों की सुरक्षा को किस प्रकार सुनिश्चित कर सकता है?
इन सब बातों के कारण भारत का मुसलमान हमेशा तनावग्रस्त रहता है और दोनों देशों के बीच मधुर सम्बन्ध क़ायम हों इस बात की कामना करता है।
इस प्रकार ऐसे हालात बना दिये गए हैं कि यदि किसी मुसलमान के घर कोई पाकिस्तानी अतिथि आता है तो जब तक वह ख़ैरियत के साथ वापस नहीं चला जाता तब तक वह अजीब तरह से ख़ौफ़ज़दा व बेचैन रहता है क्योंकि जहाँ हिंदुत्ववादी गुण्डों से देश का मुसलमान ही सुरक्षित नहीं है वहां वह अपने अतिथियों की सुरक्षा को किस प्रकार सुनिश्चित कर सकता है?
इन सब बातों के कारण भारत का मुसलमान हमेशा तनावग्रस्त रहता है और दोनों देशों के बीच मधुर सम्बन्ध क़ायम हों इस बात की कामना करता है।
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