दो सम्प्रदायों के बीच आपसी सम्बन्धों को तीन दर्जों में बांटा जा सकता है।
1- यह कि, एक दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण करने का अवसर तलाश किया जाए और मौक़ा मिलते ही वार कर दिया जाए।
2- यह कि, एक दूसरे के मामले में कोई दख़लअन्दाज़ी न की जाए और जियो व जीने दो की नीति अपनाई जाए।
3- यह कि, एक दूसरे पर एहसान करके दिल जीता जाए।
आज़ादी से पहले हमारे देश में उपरोक्त दूसरे दर्जे के मुताबिक़ हिन्दू मुस्लिम भाईचारा क़ायम था और इसकी वजह शायद यह थी हिन्दू समाज के खुराफ़ाती तबक़े के ज़ुल्म सहने के लिये दलित समाज मौजूद था और मुसलमान गुण्डा तत्वों की ईंट का जवाब पत्थर से देने की क्षमता रखते थे इसलिये मुसलमानों के मामलों में दख़ल नहीं दिया जाता था।
उपरोक्त पहले दर्जे पर विचार करें तो बड़ी ही भयावह स्थिति नज़र आती है जिसके अंतर्गत बटवारा होने के बाद देश को दुर्भाग्य से पटेल जैसा गृहमन्त्री मिला जिसने ज़बरदस्ती मुसलमानों को पाकिस्तान जाने के लिये मजबूर किया था और लाखों मुसलमानों को क़त्ल करवाया था जिससे बाक़ी बचे मुसलमानों का मनोबल टूट गया। इसके साथ ही दलित समाज में जागृति पैदा हुई तथा उनको क़ानून का सहारा भी मिला लिहाज़ा वह तो हिन्दुओं के ज़ुल्म से मुक्त होते चले गए और मुसलमान योजनाबद्ध तरीक़े से किये जाने वाले उन खुराफ़ाती हिन्दुओं के ज़ुल्म का शिकार होते चले गए और यह सिलसिला आजतक जारी है।
इसी का नतीजा है कि देश तरक़्क़ी नहीं कर रहा है।
इसलिये उपरोक्त तीसरे दर्जे के सम्बन्ध तो बाद में बनेंगे पहले दूसरे दर्जे तक आ जाएं यानी दोनों एक दूसरे के मामले में दख़ल न दें।
एक दूसरे के धार्मिक मामलों और धर्मस्थलों में अगर सहयोग न करें तो अड़चन भी न डालें।
एक दूसरे के खान पान से सरोकार न रखें।
किसी भी मामले को साम्प्रदायिकता से न जोडें।
इस तरह के माहौल को बिगाड़ने वालों को देश का दुश्मन समझते हुए उनके ख़िलाफ़ सब एकजुट होकर उनको सबक़ सुखाएं।
इस सब का लाभ यह होगा कि देश इन खुराफ़ाती लोगों के जाल से निकल कर तरक़्क़ी की राह पर चल पड़ेगा।
1- यह कि, एक दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण करने का अवसर तलाश किया जाए और मौक़ा मिलते ही वार कर दिया जाए।
2- यह कि, एक दूसरे के मामले में कोई दख़लअन्दाज़ी न की जाए और जियो व जीने दो की नीति अपनाई जाए।
3- यह कि, एक दूसरे पर एहसान करके दिल जीता जाए।
आज़ादी से पहले हमारे देश में उपरोक्त दूसरे दर्जे के मुताबिक़ हिन्दू मुस्लिम भाईचारा क़ायम था और इसकी वजह शायद यह थी हिन्दू समाज के खुराफ़ाती तबक़े के ज़ुल्म सहने के लिये दलित समाज मौजूद था और मुसलमान गुण्डा तत्वों की ईंट का जवाब पत्थर से देने की क्षमता रखते थे इसलिये मुसलमानों के मामलों में दख़ल नहीं दिया जाता था।
उपरोक्त पहले दर्जे पर विचार करें तो बड़ी ही भयावह स्थिति नज़र आती है जिसके अंतर्गत बटवारा होने के बाद देश को दुर्भाग्य से पटेल जैसा गृहमन्त्री मिला जिसने ज़बरदस्ती मुसलमानों को पाकिस्तान जाने के लिये मजबूर किया था और लाखों मुसलमानों को क़त्ल करवाया था जिससे बाक़ी बचे मुसलमानों का मनोबल टूट गया। इसके साथ ही दलित समाज में जागृति पैदा हुई तथा उनको क़ानून का सहारा भी मिला लिहाज़ा वह तो हिन्दुओं के ज़ुल्म से मुक्त होते चले गए और मुसलमान योजनाबद्ध तरीक़े से किये जाने वाले उन खुराफ़ाती हिन्दुओं के ज़ुल्म का शिकार होते चले गए और यह सिलसिला आजतक जारी है।
इसी का नतीजा है कि देश तरक़्क़ी नहीं कर रहा है।
इसलिये उपरोक्त तीसरे दर्जे के सम्बन्ध तो बाद में बनेंगे पहले दूसरे दर्जे तक आ जाएं यानी दोनों एक दूसरे के मामले में दख़ल न दें।
एक दूसरे के धार्मिक मामलों और धर्मस्थलों में अगर सहयोग न करें तो अड़चन भी न डालें।
एक दूसरे के खान पान से सरोकार न रखें।
किसी भी मामले को साम्प्रदायिकता से न जोडें।
इस तरह के माहौल को बिगाड़ने वालों को देश का दुश्मन समझते हुए उनके ख़िलाफ़ सब एकजुट होकर उनको सबक़ सुखाएं।
इस सब का लाभ यह होगा कि देश इन खुराफ़ाती लोगों के जाल से निकल कर तरक़्क़ी की राह पर चल पड़ेगा।
No comments:
Post a Comment