Wednesday, June 23, 2010
मानवता और पुलिस
जनता की सुरक्षा में कार्यरत पुलिसकर्मी चूंकि भ्रष्ट आचरण से परिपूर्ण समाज से ही आते हैं तथा साम्प्रदायिकता, चरित्रहीनता के साथ गुण्डागर्दी जैसी मानवता को कलंकित करने वाली बुराइयां उनमें प्रायः मौजूद होती हैं अतः उनसे इन्सानियत की अपेक्षा करना फिजूल है। उपरोक्त कथन लांछन न होकर वास्तविकता है जिसको सिद्ध करने के लिए केवल एक ही सबूत पर्याप्त है। और वह है पुलिस हिरासत में मौत। पिछले चार वर्ष में अकेले उत्तर प्रदेश ही में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक अच्छी ख़ासी तादाद में लोगों की पुलिस हिरासत में मौत की जानकारी होना क्या किसी भी व्यक्ति को व्यथित करने के लिए पर्याप्त नहीं है? जब पुलिस हिरासत में कोई मौत हो जाती है अपितु इस बात को इस प्रकार से कहना ज्यादा उचित होगा कि, जब किसी बेकसूर को अपनी इच्छानुसार बयान देने के लिए बाध्य किये जाने के बावजूद पुलिस नाकाम रहती है तो उस बदनसीब को बड़ी ही बेरहमी से कत्ल कर दिया जाता है, तो ऐसी स्थिति में उन कातिलों को सजा दिलवाने के बजाय विभाग की बदनामी के डर से पुलिस के आला अधिकारी उनका बचाव करने के षडयन्त्र में सम्मिलित हो जाते हैं। तफतीश करने वाले भी उन्हीं में से होते हैं अतः केस को इस प्रकार से न्यायालय में पेश किया जाता है कि वहां पुलिस से सहमे हुए गवाहों की गवाही व सबूतों के अभाव में कत्ल करने वाले यह वर्दी वाले अपराधी साफ छूट जाते हैं और अपनी खून की प्यास बुझाने के लिए नए शिकार की तलाश में लग जाते हैं। शासन तक यदि यह बात पहुंचती है तो वहां का और भी बुरा हाल है। क्योंकि वहां तो अपराधी पृष्ठभूमि से आए हुए ऐसे लोगों की भरमार है जो जनता की सेवा के बहाने सत्ता पर कब्जा करके स्वयं के द्वारा किये गए अपराधों पर परदा डालने के लिए पुलिस से सहायता की आशा लगाए बैठे हैं। अतः इस प्रकार के लोगों से किस प्रकार यह अपेक्षा की जा सकती है कि यह पुलिस के खिलाफ कुछ कर सकेंगे क्योंकि सत्ता हाथ से जाने के बाद इनका वास्ता सीधे तौर पर पुलिस से ही पड़ना है। अतः अब आवश्यकता इस बात की है कि बुद्धिजीवी वर्ग उपरोक्त बुराई को दूर करने के बारे में विचार विमर्श करके इसका समाधान खोजने की कोशिश करे ताकि सरकार द्वारा जनता की सुरक्षा के लिए रखे गए सुरक्षाकर्मियों से जनता सुरक्षित रह सके तथा सरकार द्वारा प्रदान की गई वर्दी अपराधियों का सुरक्षा कवच न बनकर जनता की सुरक्षा में सहायक हो रके।
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8 comments:
आज की सबसे बड़ी समस्या तो पुलिस ही है
अच्छी पोस्ट
बुद्धिजीवी वर्ग उपरोक्त बुराई को दूर करने के बारे में विचार विमर्श करके इसका समाधान खोजने की कोशिश करे ताकि सरकार द्वारा जनता की सुरक्षा के लिए रखे गए सुरक्षाकर्मियों से जनता सुरक्षित रह सके तथा सरकार द्वारा प्रदान की गई वर्दी अपराधियों का सुरक्षा कवच न बनकर जनता की सुरक्षा में सहायक हो
Nice post.
बच्चा मासूम होता है। लोग उसे फ़रिश्ते की मानिन्द मानते हैं। हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते जब तक कि तुम बच्चों की भांति न हो जाओ। बच्चे अबोध और मासूम होते हैं। शिकवे शिकायत और रंजिंशे देर तक उनके मन में नहीं ठहरतीं। साथ खेलते हैं तो लड़ भी लेते हैं और छीन झपट भी कर लेते हैं लेकिन बच्चे बदनीयत नहीं होते।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. ने भी बच्चों को जन्नत का फूल फ़रमाया है।
हिन्दू धर्मग्रंथों में भी बच्चों की उपमा किसी अच्छी चीज़ से ही दी गयी होगी।
इसके बावजूद लोग मानते हैं कि बच्चे बीमार इसलिये पड़ते हैं क्योंकि वे पिछले जन्म में कुछ पाप करके आये हैं।
हम तो बच्चों को मासूम और निष्पाप मानते हैं, जो कोई उन्हें पापी मानता है वह अपनी मान्यता पर विचार करे।
... और शीघ्र ही मैं बाप बनने वाला हूं एक ऐसे बच्चे का जो पिछले जन्म का पापी नहीं है क्योंकि इस धरती पर उसका किसी भी योनि में कोई जन्म नहीं हुआ है। वह एकदम फ़्रेश आत्मा है। सीधे आत्मालोक से गर्भ में आयी और अब हमारी गोद में खेलेगी।
जो लोग दुआ करते हैं, उनसे दुआ की दरख्वास्त है।
http://vedquran.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
पुलिस से बचने के लिए जो भी पुलिस बनाई जाएगी , फिर उस पुलिस से कौन बच्येगा बाबा ? दिल ईमान से ख़ाली हो तो किसी की शामत कब आ जाये कोई नहीं कह सकता .
बढ़िया लेख! वैसे मेरे विचार से समस्या पुलिस नहीं बल्कि दिल के अन्दर अल्लाह के खौफ का ना होना है. यही खौफ इंसान को इंसान बनाए रखता है.
GOOD POST
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