मुहज़्जब दुनिया में जंगी क़ायदे के मुताबिक़ आबादी पर हमलाआवर होने को किसी भी क़ौम और मज़हब में उस वक्त तक जायज़ नहीं माना गया है जबतक कि उस आबादी में कोई ख़तरनाक साज़िश तैयार न की जा रही हो लेकिन इन सब क़ायदे क़ानून को बालाए ताक़ रखते हुए दूसरी जंग-ए-अज़ीम में अमेरिका ने जापान के टोकियो शहर पर जो बमबारी की उसके नतीजे में एक रात में 80,000 लोग मारे गए और इसके बाद 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के एक शहर हिरोशीमा पर एटम बम गिराकर अपनी सफ़्फ़ाकी और दहशतगर्दी का खुला सबूत पेश किया। चन्द सेकिण्डों में एक हंसते खेलते शहर का नामो निशान मिट गया। अब अगर यह कहा जाए कि अमेरिकी ज़ालिमों को एटम बम के नुक़सान का यह अन्दाज़ा नहीं था कि इसके इस्तेमाल से पूरा शहर फ़ना हो जाएगा और अगर पहले से इसके नुक़सान का अन्दाज़ा होता तो शायद वह ऐसी घिनौनी हरकत न करते तो यह कहने की गुन्जाइश अमेरिका के इस अमल से ख़त्म हो जाती है कि इस ज़लील हरकत के तीन रोज़ बाद यानि 9 अगस्त 1945 को जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर एक और बम डालकर अमेरिका ने यह साबित कर दिया कि उसके पास सबकुछ है लेकिन इंसानियत नहीं है। यह बात अमेरिकी सद्र फ्रेंकलिन डी. रूज़वेल्ट की मौत के बाद 12 अप्रैल 1945 को अमेरिका के 33वें सद्र के तौर पर कुर्सी सम्भालने वाले हैरी ट्रूमैन के बेशर्मी से लबरेज़ उस बयान से साबित हो जाती है जोकि उसने उन दो शहरों को तबाह करने के बाद दिया था। हैरी ट्रूमैन ने कहा था, ‘‘बम गिराने का यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक जापान जंग से अलग नहीं होता।’’ इसी के साथ यह जान लेना भी ज़रूरी है कि ’’कू क्लक्स क्लेन’’ नाम की दहशतगर्द तन्ज़ीम का हैरी ट्रूमैन सरगर्म कारकुन रहा था। इस तन्ज़ीम का मक़सद काले लोगों को दहशतज़दा करके अमेरिका में वोट देने के हक़ से महरूम करना था। एक साबितशुदा दहशतगर्द को अपने मुल्क के सदर की कुर्सी सौंपकर अमेरिकी अवाम ने भी दहशतगर्दी से अपने लगाव का बखूबी इज़हार कर दिया और इतना ही नहीं बल्कि लाखों लोगों की मौत के ज़िम्मेदार उस शख़्स को 1948 के इन्तख़ाबात में दोबारा सद्र मुन्तख़ब करके खूनी खेल जारी रखे जाने की मुस्तक़बिल की पॉलिसी को अवाम ने हरी झण्डी दिखा दी। इस तरह से अमेरिका के सदर बदल जातेे रहे लेकिन ज़ुल्म व तशद्दुद की पॉलिसी में कोई फ़र्क़ नहीं आया। और इस तरह से सारी दुनिया देखती रही और दुनिया का सबसे बड़ा साबितशुदा दहशतगर्द मुल्क अम्न के नाम पर मुल्क के मुल्क तबाह करता चला गया। मौजूदा सदर बराक ओबामा ने इस पॉलिसी पर अमल करते हुए अमेरिकी फ़ौज को 25 और मुल्कों में भेजने का फ़ैसला किया है और इस तरह से 75 मुल्कों में अमेरिकी फ़ौज की तईनाती हो जाएगी। इससे भी ज़्यादा अफ़सोसनाक बात यह है कि ऐसे इन्सानियत के दुश्मन मुल्क की हिमायत करने वाले ग़ुलाम ज़हनियत के लोगों की भी दुनिया में कमी नहीं है।
इस बात को मद्देनज़र रखते हुए कुछ हक़ायक़ (तथ्यों) पर ग़ौर करना ज़रूरी है।
एटमी हथियार इस्तेमाल करने वाला दुनिया का वाहिद मुल्क अमेरिका है लिहाज़ा मुस्तक़बिल में इनके इस्तेमाल का सबसे ज़्यादा अन्देशा अमेरिका से ही हो सकता है। इसके बावजूद अमेरिका को यह हक़ किसने दे दिया कि वह इस बात को तय करे कि कौन इन हथियारों को बना सकता है और कौन नहीं बना सकता।
कोरिया और वियतनाम में जंग के नाम पर किये गए बेक़ुसूर लोगों के क़त्ले आम के बाद इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान की बरबादी और वहां किये जा रहे मज़ालिम का हाल सभी जानते हैं। आप तसव्वुर करके देखिये कि आप घर में बैठे हुए हैं और बग़ैर पाइलैट वाला ड्रोन नाम का जहाज़ आपके घर पर बम डालकर चला जाता है और उसके बाद उस हमले के शिकार होने वाले आप और आपके साथ आपके अहले ख़ाना के मुताल्लिक़ अख़बारात में ख़बर छपती है कि ड्रोन हमले में इतने दहशतगर्द मारे गए।
बात को मुख्तसर करते हुए अगर हम इन सब बातों का तजज़िया करें तो नतीजे के तौर पर कह सकते हैं कि एक साबितशुदा दहशतगर्द मुल्क ‘अमेरिका‘ और उसकी हिमायत में बयान देने वाले दीगर मुमालिक जिन अफ़राद को, तन्ज़ीमों को और क़ौमों (मुमालिक) को दहशतगर्द कहते हैं, वह कुछ भी हों लेकिन दहशतगर्द नहीं हो सकते। सच बात तो यह है कि अमेरिका और उसके गिरोह में शामिल मुमालिक के मज़ालिम का शिकार लोगों को दहशतगर्द कहकर इन्सानियत का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है।
लिहाज़ा दुनिया से दहशतगर्दी का अगर ख़ात्मा करना चाहते हैं तो सबसे पहले दहशतगर्द को दहशतगर्द कहने की हिम्मत जुटाएं वरना इन्सानियत का दावा करना तर्क कर दें।
12 comments:
@ जनाब शरीफ़ साहब ! इन बातों को आम जनता जानती भी है और मानती भी है लेकिन हमलावर देश दुनिया की प्राकृतिक संपदा को हथियाने के लिये आपस में हितों और ज़िम्मेदारियों का बंटवारा कर चुके हैं। वे नीति नियम से मानने वाले नहीं है और उन्हें रोक सके ऐसी कोई ताक़त एशिया में है नहीं। लालची नेता हिंद-पाक का सत्यानाश कर चुके हैं और अब भी अपनी ‘सेवाएं‘ दे रहे हैं। पाकिस्तान की ग़लतियों में उसकी पुश्त पनाही अमेरिका ने की है और कर रहा है। अलक़ायदा और तालिबान उसी की नर्सरी के पौधे हैं जिनमें अब वह खुद फंसा फड़फड़ा रहा है। भारत में पाकिस्तान के खि़लाफ़ तो खूब बोला जाता है लेकिन अमेरिका के बारे में बोलने से पहले उससे पूछा जाता है कि बोलना क्या है ?
बंटवारे ने देश बर्बाद करके रख दिया है अरबों-खरबों रूपये के हथियार अमेरिका यहां बेच रहा है। लोगों को रोटी नसीब नहीं है, शिक्षा और चिकित्सा मयस्सर नहीं है लेकिन हथियार बेतहाशा लेकिन नाकारा। नक्सलवादियों ने हमारे जिस वाहन को दंतेवाड़ा में उड़ाया वह ‘एंटी माइन‘ था।
अमेरिका अगर आज राज कर रहा है या जुल्म ही कर रहा है तो हमें मानना होगा कि वहां के राजनेता हमारे एशियाई राजनेताओं की तरह नहीं हैं। उनसे अच्छे गुणों को सीखकर एशिया को एक किया जाये तो भारत की ताक़त, रूतबा और विकास दर हर चीज़ बढ़ेगी।
आपकी बातो से बिल्कुल ताल्लुक रखता हूँ । दहसतगर्दि को किसी कौम के साथ नही जोङा जाना चाहिये । इस लेख के लिये शुक्रिया
जनाब आपको एक मशवरा देना चाहुगाँ ,कि कम बैडविथ का एक दुसरा टेम्पलेट लगा लेँ ,मौजुदा टेम्पलेट मोबाइल इंटरनेट यूजर के लिये दिक्कते पैदा कर रहाँ है । इसी वजह से चाहते हुएँ भी कोई राय नही रख पा रहा था ।
आपकी बातो से बिल्कुल ताल्लुक रखता हूँ । दहसतगर्दि को किसी कौम के साथ नही जोङा जाना चाहिये । इस लेख के लिये शुक्रिया
जनाब आपको एक मशवरा देना चाहुगाँ ,कि कम बैडविथ का एक दुसरा टेम्पलेट लगा लेँ ,मौजुदा टेम्पलेट मोबाइल इंटरनेट यूजर के लिये दिक्कते पैदा कर रहाँ है । इसी वजह से चाहते हुएँ भी कोई राय नही रख पा रहा था ।
वक्त और हालत खूबसूरत तरीके से पेश किया आपने
बुज़ुर्गो क़ी महफ़िल मे बैठो तो कुछ ना कुछ सीखने को मिलता ही है
आपकी क़लम से तजुर्बा बोलता है
हिन्दी और उर्दू का गजब का मेल
nice and bold post.
टोकियो शहर पर जो बमबारी की उसके नतीजे में एक रात में 80,000 लोग मारे गए और इसके बाद 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के एक शहर हिरोशीमा पर एटम बम गिराकर अपनी सफ़्फ़ाकी और दहशतगर्दी का खुला सबूत पेश किया। चन्द सेकिण्डों में एक हंसते खेलते शहर का नामो निशान मिट गया।
अमेरिका अगर आज राज कर रहा है या जुल्म ही कर रहा है तो हमें मानना होगा कि वहां के राजनेता हमारे एशियाई राजनेताओं की तरह नहीं हैं। उनसे अच्छे गुणों को सीखकर एशिया को एक किया जाये तो भारत की ताक़त, रूतबा और विकास दर हर चीज़ बढ़ेगी।
अनवर भाई से सहमत
शरीफ खान साहब अमेरिका के विषय में आपका वो नजरिया है जो मेरे दिल में बचपन से पल रहा है. अमेरिका एक दोगला देश है. इस देश से बड़ा आतंकवादी देश कोई नहीं. अमेरिकन हमेशा ही भारत के विरूद्ध रहे हैं. पाकिस्तान कि भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधिया अमेरिका कि भीख के पैसे से ही हो रही हैं. पाकिस्तान को घातक हथियार हमेशा अमेरिका ने ही करवाए हैं. अफगानिस्तान के तालिबानों को भी अमेरिका कि जासूसी संस्था ने अफगानिस्तान में रूसियों के खिलाफ ही तैयार किया था. अमेरिका से कमीना कोई दूसरा मुल्क नहीं है जो पाकिस्तान जैसे कमीने राष्ट्रों को भारत के खिलाफ खड़े होने का साहस प्रदान कर रहा है. देखो आज कैसे गिलानी ने पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस को मानने और भारतीय स्वतंत्रता दिवस को कला दिन कहा है. ये लोग पाकिस्तान और परोक्ष रूप से अमेरिका के इशारे पर खेल रहे लोग हैं. आईये हम सब भारतवासी मिल कर इनके मुह पर थूकते हैं. इससे और कुछ हो ना हो हमारे दिल को शांति तो अवश्य ही मिलेगी. जरा साइड हो जाएँ मैं अपने बासी मुह से इन पर थूकने जा रहा हूँ. आप भी भारत को उजाड़ने का सपना देखने वाले इन पाकिस्तानी और अमेरिकन के मुह पर थूक दें.
एक बेहतरीन लेख! हिरोशिमा और नागासाकी के साथ-साथ अमेरिका के ज़ुल्मों का शिकार हुए लोगों के दुःख को उनकी तरफ महसूस तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन कुछ ना कुछ अहसास करके श्रद्धांजलि तो दी ही जा सकती है और ज़ालिम के ज़ुल्मों को बयां करके जागरूकता तो पैदा की ही जा सकती है.
लिहाज़ा दुनिया से दहशतगर्दी का अगर ख़ात्मा करना चाहते हैं तो सबसे पहले दहशतगर्द को दहशतगर्द कहने की हिम्मत जुटाएं वरना इन्सानियत का दावा करना तर्क कर दें।
सच की खोज करना और उसको जान लेने के बाद बगैर कुछ छिपाए उसको ज़ाहिर का देना हमारा मकसद होना चाहिए. भाषा का संतुलित होना हमारे व्यक्तित्व की पहचान है.
Post a Comment