Monday, April 17, 2017

गाय मुसलमानों के संरक्षण में ही सुरक्षित रह सकती है। Sharif Khan

पशु प्रेम बुरी बात नहीं है लेकिन अगर कोई शख़्स प्रेम दर्शाने के लिये किसी पशु से अपना रिश्ता क़ायम करते हुए उसको मां बना ले तो उससे उस पशु पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि जन्म देने वाली मां का निरादर अवश्य होता है लेकिन यह चूँकि उनका व्यक्तिगत मामला है लिहाज़ा किसी को इस पर ऐतराज़ करने का हक़ नहीं है। इससे यह अनुमान लगाने में आसानी हो जाती है कि ऐसे लोगों का उस पशु के साथ व्यवहार किस प्रकार का होगा।
मिसाल के तौर पर
जो हिन्दू गाय को मां मानते हैं उन्हीं के यहां वृद्धावस्था में मां बाप को वृद्धाश्रम भेजने की परम्परा है। इसी प्रकार यह गोभक्त गाय से लाभ तो प्राप्त करना चाहते हैं लेकिन जब वह दूध देना बन्द कर देती है तो उसको क़साई के हाथ बेच देते हैं ताकि वह उसको काट कर उसकी हड्डियां, गोश्त और खाल निकाल कर मुनाफ़ा वसूल कर सके। इनमें से जो लोग किसी कारण से ऐसा नहीं करते तो उनके यहां जिस तरह अशक्त मां बाप को वृद्धाश्रम भेजा जाता है उसी तरह गाय को भूख से तड़प कर अपनी जान देने के लिये गौशाला भेज देते हैं जहां अगर उसके भाग्य में अच्छी मौत लिखी होती है तो गौशाला वाले उसको क़साई के हाथ बेच कर उससे छुट्टी पा लेते हैं वरना वह भूखी प्यासी मर जाती है।
गाय को मां कहने वाले उपरोक्त गोभक्तों और गो रक्षकों के विपरीत यदि कथित गो भक्षकों (मुसलमानों) के गाय के प्रति व्यवहार पर विचार करें तो जो मुसलमान गाय पालते हैं तो वह कभी उसको घर से बाहर लावारिस की तरह नहीं निकालते हैं और उसके चारे का बेहतरीन प्रबन्ध करते हैं यहांतक कि दूध देना बन्द कर देने के बाद भी उसकी उचित देखभाल करते हैं क्योंकि ऐसी स्थिति आने पर उससे अच्छा मांस प्राप्त होता है। इस प्रकार आख़री सांस तक मुसलमान के घर पलने वाली गाय न तो भूखी रहती है और न ही कूढ़े के ढेर में अपनी ख़ुराक तलाश करने के लिये बाहर निकाली जाती है।
पवित्र क़ुरआन की सूरह यासीन की 71, 72 व 73 वीं आयतों में फ़रमाया गया है, अनुवाद, "क्या यह लोग देखते नहीं हैं कि हमने अपने हाथों की बनाई हुई चीज़ों में से इनके लिये मवेशी पैदा किये और अब यह उनके मालिक हैं। हमने उन्हें इस तरह इनके बस में कर दिया है कि उनमें से किसी पर यह सवार होते हैं, किसी का यह गोश्त खाते हैं और उनके अन्दर इनके लिये तरह तरह के फ़ायदे और पेय पदार्थ हैं।"
इस प्रकार दूसरे चौपायों के साथ गाय भी चूँकि अल्लाह ने जायज़ बताई है लिहाज़ा क़ुरआन की इस आयत के अनुसार गाय के बछड़ों से बोझ ढोने का काम लेते हैं, गाय का दूध पीते हैं और इस क़ाबिल न रहने पर उसका मांस खाते हैं।
इस प्रकार यदि कथित गो रक्षकों और कथित गो भक्षकों के यहां पलने वाली गायों के साथ होने वाले व्यवहार की तुलना करें तो नतीजे के तौर पर यही हक़ीक़त सामने आती है कि गाय मुसलमानों के संरक्षण में ही सुरक्षित है।

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