Saturday, April 1, 2017

'तुम्हारा दीन तुम्हारे साथ और मेरा दीन मेरे साथ' वाला नजरिया ही आपसी भाईचारे को मज़बूत बना सकता है। Sharif Khan

मक्का शहर में जब पैग़म्बर स अ व ने लोगों को केवल अल्लाह ही की इबादत करने और अल्लाह के सिवा किसी को भी इबादत के लायक़ न समझने का पैग़ाम दिया तो पूरे इलाक़े में तहलका मच गया और लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। उस समय अरब में गुमराह लोगों ने लात, मनात और उज़्ज़ा नामक देवियों के अलावा सैकड़ों ख़ुदा बना रखे थे और उनकी मूर्तियों की पूजा करते थे। पैग़म्बर स अ व की बातों से प्रभावित होकर जो लोग इस्लाम में दाख़िल हो जाते थे उनके विरोध में तमाम इस्लाम विरोधियों के एकजुट हो जाने के बावजूद भी मुसलमानों की तादाद बढ़ती जा रही थी। ऐसी स्थिति में जब उन्होंने इस हक़ीक़त को समझ लिया कि इस्लाम ही सच्चाई का मार्ग है और यह निकट भविष्य में पूरे अरब में फैल जाएगा तो वह मुसलमानों के साथ मारपीट और उनके ख़िलाफ़ विभिन्न प्रकार के दुष्प्रचार तो करते ही थे लेकिन इसके साथ ही पैग़म्बर स अ व से समझौते की बातचीत की भी कोशिश करते रहते थे।
जिस प्रकार जाली नोट चलाने के लिये असली नोटों का सहारा लिया जाता है और असली नोटों में उनको मिलाकर चलाने से जाली नोटों का वजूद ख़त्म होने से बचा रहता है उसी तरह इस्लाम विरोधी लोग पैग़म्बर स अ व के सामने तरह तरह की पेशकश रखते थे। कभी वह कहते थे कि आप हमारे खुदाओं को और देवी देवताओं की पूजा करो तो हम भी आपके अल्लाह की इबादत करेंगे और कभी कहते थे कि कुछ दिन आप हमारे खुदाओं को पूज लिया करो तो कुछ दिन हम आपके अल्लाह की उपासना कर लिया करेंगे। इस प्रकार वह चाहते थे कि कोई बीच का रास्ता निकल आए ताकि इस्लाम के सच्चाई के मार्ग के सहारे उनकी गुमराही का वजूद भी बना रहे।
इन सब बातों के जवाब में अल्लाह ने पैग़म्बर स अ व को जो आदेश दिया वह इस प्रकार है।
क़ुरआन पाक की सूरह अलकाफ़िरून की 1,2,3 व 6 वीं आयतों में फ़रमाया गया है, अनुवाद, "कह दो कि ऐ काफ़िरो, मैं उनकी इबादत नहीं करता जिनकी इबादत तुम करते हो और न तुम उसकी इबादत करने वाले हो जिसकी इबादत मैं करता हूँ। तुम्हारे लिये तुम्हारा दीन है और मेरे लिये मेरा दीन।"
इस प्रकार बिना किसी लाग लपेट के जिस अन्दाज़ में दो टूक बात कही गई है वह मुसलमानों को राह दिखाने के लिये काफ़ी है जिसके अन्तर्गत जहां भी दीन के मामले में किसी तरह की भी मिलावट की झलक मिले उसको फौरन नकार देना चाहिए चाहे वह सूर्य नमस्कार को नमाज़ से जोड़ने की चाल हो या फिर वन्देमातरम का ग़ैरइस्लामी तसव्वुर हो। 
इस प्रकार 'तुम्हारा दीन तुम्हारे साथ और मेरा दीन मेरे साथ' वाला नजरिया ही आपसी भाईचारे को मज़बूत बना सकता है।

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