Saturday, July 8, 2017

भगवा गुण्डों को मुख्यमन्त्री द्वारा दंगा करने की छूट देना क्या दण्डनीय अपराध नहीं है? Sharif Khan

क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री द्वारा क़ानून को ताक़ पर रख कर और पुलिस को नज़रअन्दाज़ करके गुण्डों को दंगा करने की छूट दिया जाना उचित है? इससे पहले 2002 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री ने हिन्दू दंगाईयों को वहां के मुसलमानों को क़त्ल करने और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने की छूट देते हुए सुरक्षाबलों को दंगाईयों के ख़िलाफ़ सख़्ती करने से रोका था और उस दौरान हज़ारों बेगुनाह मुसलमानों को क़त्ल होते हुए और अनगिनत महिलाओं को बेइज़्ज़त होते हुए अदालत के अलावा पूरी दुनिया ने देखा था।
भाजपा की इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री ने तो गुजरात को भी पीछे छोड़ दिया है। मुख्यमन्त्री योगी ने यह बयान देकर कि,
"अल्पसंख्यक शान्त रहेगा तो बहुसंख्यक भी दंगा नहीं करेगा" यह तो तसलीम कर ही लिया कि बहुसंख्यक समाज के दंगाईयों की कमान इन्ही के हाथ में है क्योंकि इस बयान में इसी तरह की भाषा इस्तेमाल की गई है जैसे किसी गैंग का लीडर अपने गैंग का प्रतिनिधित्व करते हुए यह धमकी देता है कि, अगर यह बात न मानी तो मेरा गैंग 'ऐसा' कर देगा।
ध्यान रहे योगी के इस बयान में अल्पसंख्यक शब्द मुसलमानों के लिये प्रयोग किया गया है और बहुसंख्यक भगवा दंगाईयों के लिये प्रयोग किया गया है।
प्रदेश के मौजूदा हालात पर यदि नज़र डालें तो एक भी मामला ऐसा नहीं है जिसमें किसी मुसलमान ने दंगा भड़काने की कोशिश की हो जबकि भगवा दंगाईयों द्वारा की गई एक भी वारदात ऐसी नहीं है जिसमें पीड़ित मुसलमान के द्वारा कोई अपराध किया गया हो। विचार करने वाली बात यह भी है कि यदि कोई अपराध किया जाता तो उसके लिये पुलिस मौजूद है लिहाज़ा किसी आरोपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का हक़ पुलिस के अलावा किसी जो भी नहीं है।
इस बयान में यह कहना कि यदि अल्पसंख्यक शान्त रहेगा तो बहुसंख्यक दंगा नहीं करेगा पूरी तरह गुण्डों को इस बात के लिये प्रेरित करना है कि वह अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ कोई भी आरोप होने पर क़ानून हाथ में लेकर दंगा कर सकते हैं जबकि कहना यह चाहिए था कि बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक, जो भी अशान्ति फैलाएगा पुलिस उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी।
उपरोक्त बयान में जो यह कहा गया है कि, "अल्पसंख्यक शान्त रहेगा" इसमें शान्त रहने की बात इसलिये अर्थहीन है क्योंकि अख़लाक़ द्वारा अपने घर में बकरे का गोश्त रखना क्या उसके द्वारा अशान्ति फैलाना था? या जुनैद का ट्रेन में सफ़र करना किस तरह अनुचित था? जुनैद को तो यह कह कर मारा गया था कि यह गाय खाने वाला है।
चूँकि सभी वारदातें झूटा आरोप लगा कर तुरन्त क़त्ल करने की हैं लिहाज़ा इस प्रकार से किये जाने वाले क़त्ल और दंगा फ़साद की इस परम्परा को आगे बढ़ाने में मुख्यमन्त्री का यह बयान काफ़ी सहायक होगा। इस प्रकार चूँकि मुख्यमन्त्री भी क़ानून से ऊपर नहीं होता इसलिये उपरोक्त बयान को दण्डनीय अपराध मानते हुए क़ानून को अपना काम करना चाहिए।

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