ईश्वर की उपलब्ध कराई हुई नेमतों में से लोग दूध आदि अनेक पवित्र चीजों का सेवन करते हैं परन्तु कुछ लोग इन चीजों के अलावा किसी आस्था वश गाय का पेशाब भी पीते हैं। इस प्रकार यदि पेशाब में आस्था रखने वाले लोग यह कहें कि पीने की क्रिया चूँकि समान है इसलिये दूध पीने वालों को गाय का पेशाब भी पी लेना चाहिए या दूध की महत्ता को देखते हुए वह यह कहने लगें कि दूध में पेशाब मिला कर पीने से आपस का भेदभाव ख़त्म होगा और भाईचारा बढ़ेगा तो यह मूर्खता है।
वास्तव में भाईचारा बढ़ाने के लिये तो ज़रूरी यह है कि अपनी आस्था को न तो दूसरों पर थोपने की कोशिश की जाए और न ही दूसरों की आस्था पर किसी तरह का ऐतराज़ किया जाए और दोनों चीज़ों को मिलाकर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश तो आपस में नफ़रत बढ़ाने वाली साबित होगी क्योंकि दूध में गाय का पेशाब मिला कर बीच का रास्ता तो बेशक कहलाएगा लेकिन वह स्वीकार्य किसी को भी न होगा।
योगी आदित्य नाथ ने जिस तरह सूर्य नमस्कार और नमाज़ कि क्रिया को समानता के पैमाने पर नापने की कोशिश की है तो वह शारीरिक क्रिया के रूप में चाहे समान हो लेकिन आस्था में समानता नहीं हो सकती जबकि नमाज़ और सूर्य नमस्कार दोनों ही अमल केवल आस्थावश ही किये जाते हैं।
इस तरह हिन्दू मुस्लिम के बीच पैदा की जा रही नफ़रत को किसी की आस्था के साथ छेड़खानी करके और ज़्यादा न बढ़ाया जाए और दोनों को अलग ही रहने दिया जाए तभी भाईचारा क़ायम रह सकता है।
वास्तव में भाईचारा बढ़ाने के लिये तो ज़रूरी यह है कि अपनी आस्था को न तो दूसरों पर थोपने की कोशिश की जाए और न ही दूसरों की आस्था पर किसी तरह का ऐतराज़ किया जाए और दोनों चीज़ों को मिलाकर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश तो आपस में नफ़रत बढ़ाने वाली साबित होगी क्योंकि दूध में गाय का पेशाब मिला कर बीच का रास्ता तो बेशक कहलाएगा लेकिन वह स्वीकार्य किसी को भी न होगा।
योगी आदित्य नाथ ने जिस तरह सूर्य नमस्कार और नमाज़ कि क्रिया को समानता के पैमाने पर नापने की कोशिश की है तो वह शारीरिक क्रिया के रूप में चाहे समान हो लेकिन आस्था में समानता नहीं हो सकती जबकि नमाज़ और सूर्य नमस्कार दोनों ही अमल केवल आस्थावश ही किये जाते हैं।
इस तरह हिन्दू मुस्लिम के बीच पैदा की जा रही नफ़रत को किसी की आस्था के साथ छेड़खानी करके और ज़्यादा न बढ़ाया जाए और दोनों को अलग ही रहने दिया जाए तभी भाईचारा क़ायम रह सकता है।
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