जब कोई व्यक्ति स्वयं को अल्लाह की ग़ुलामी में समर्पित कर देता है तो उसको मुस्लिम कहते हैं। अल्लाह ने अपने ग़ुलामों की रहनुमाई के लिये क़ुरआन भेजा और उसको समझाने व उसके अनुसार जीवन गुज़ारकर दिखाने हेतु अपने दूत के रूप में हज़रत मुहममद सल्ल० को नबी बनाकर भेजा। नबी के द्वारा किये गए कार्यों को सुन्नत तथा उनके द्वारा कही गई बातों को हदीस कहते हैं लिहाज़ा हर मुसलमान इस बात के लिये बाध्य हो गया कि वह केवल क़ुरआन और हदीस के मुताबिक़ ही अपना जीवन गुज़ारे। अल्लाह की इबादत के लिये मस्जिद बनाई जाती है जिसके लिये जो नियम बनाए गए हैं उनके अनुसार यह आवश्यक है कि मस्जिद की जगह ख़रीदी गई हो या किसी मुसलमान द्वारा स्वेच्छा से दी गई हो अथवा सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई हो। किसी नाजाइज़ जगह पर बनाई गई मस्जिद में नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती इसीलिए न तो पुलिस थानों में मस्जिद बनाने की मांग की जाती है न सार्वजनिक स्थलों को घेरकर और न ही पार्क आदि में मस्जिदों का निर्माण होता है।
चूंकि हर मुसलमान इन बातों के साथ इस बात से भी वाक़िफ़ है कि अवैध स्थान पर बनी हुई मस्जिद में पढ़ी गई नमाज़ अल्लाह के यहां क़ुबूल नहीं होती लिहाज़ा किसी मस्जिद में लगातार नमाज़ पढ़ा जाना ही मस्जिद की वैधता को साबित करने के लिये काफ़ी है। बाबरी मस्जिद में लगातार नमाज़ पढ़ी जाती रही परन्तु 22@23 दिसम्बर 1949 की रात में इशा की नमाज़ के बाद जब सब लोग चले गए तब मस्जिद के अन्दर मूर्ति रख दी गई और सुबह को जब फजर की अज़ान देने के लिये मुअजि़जन आया तो मस्जिद में मूर्ति देखकर इमाम साहब को इस बात की सूचना देने के लिये वापस लौट गया। इसके बाद इस बात की कोतवाली में एफ़.आई.आर. दर्ज कराई गई। इसके बाद के तथ्यों पर ग़ौर करके देखें तो भारत में लोकतन्त्र के चारों स्तम्भों के खोखलेपन का अन्दाज़ा आसानी से हो जाएगा।
1. यह कि, मस्जिद में मूर्ति रखे जाने की शिकायत को दूर करने का कार्य कोतवाल के अधिकार क्षेत्र में ही आता था लिहाज़ा यदि साज़िश के तहत यह कार्य न किया गया होता तो मस्जिद में से मूर्ति निकलवाकर मस्जिद को पाक करने में कोतवाल के सक्षम होने के बावजूद उसके द्वारा यह कार्य न किया जाना साज़िश साबित करता है।
2. यह कि, के.के. नैयर, जो उस समय वहां का डी.एम. था, ने वहां आकर इमाम साहब व दूसरे मुसलमानों से कहा कि दो तीन सप्ताह ठहर जाइये जांच करके मामले को सुलझा दिया जाएगा तब तक कोई मुसलमान मस्जिद से 100 मीटर दायरे के अन्दर न आए। इस प्रकार से मामले को उलझा दिया गया और इस घिनौने कार्य के बदले इनाम के तौर पर इसी डी.एम. को जनसंघ पार्टी से एम.पी. बनवाया गया। डी.एम. का इस साज़िश में शामिल होना मूर्ति रखने वाले महन्त रामसेवक दास के मीडिया के सामने दिये गए इस बयान से साबित हो जाता है कि ‘‘मुझसे तो मूर्ति रखने के लिये नैयर साहब ने कहा था।‘‘
3. यह कि, मामला तो केवल मूर्ति निकलवाने का था न कि मस्जिद की वैधता को साबित करना परन्तु सबके देखते देखते मस्जिद को ढांचा कहा जाने लगा और मन्दिर की दावेदारी को स्वीकृति देने की राह हमवार की जाने लगी।
4. यह कि, मस्जिद की जगह पर कराये जाने वाले मन्दिर निर्माण की साज़िश के सहयोगियों में अपना नाम दर्ज करवाने हेतु राजीव गांधी द्वारा मस्जिद का ताला खुलवा दिया गया। और बाक़ी काम भा.ज.पा. के लिये छोड़ दिया गया।
5. यह कि, ताला खुलने के बाद देश में आतंकवाद का दौर शुरू हुआ जिसको सफल बनाने का बीड़ा भा.ज.पा. ने उठाया और उसके नेताओं ने इस काम को निहायत ईमानदारी से पूरा भी किया। मुसलमानों को आतंकित करने के लिये हर प्रकार के हथकण्डे अपनाए गए। एक नारा लगाया कि, ‘‘यह अन्दर की बात है प्रशासन हमारे साथ है‘‘ और प्रशासन ने पुलिस की सुरक्षा में इस प्रकार के नारे लगाते हुए जलूसों को आज़ादी से निकलवाया और मीडिया ने प्रचारित किया। लाल कृष्ण अडवानी ने रथ यात्रा निकाल कर पूरे देश के वातावरण को साम्प्रदायिकता की गन्दगी से दूषित कर दिया। ज़्यादा तफ़सील में जाने की ज़रूरत इसलिये नहीं है क्योंकि पूरा देश इसका गवाह है।
6. यह कि, चूंकि क़ानून हाथ में लेकर किसी इमारत को तोड़ डालने वाले को ग़ुण्डा कहते हैं इसलिये हम भी इस शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहते हैं कि दो लाख ग़ुण्डों ने इकट्ठा होकर मस्जिद को शहीद करके ताला खुलवाने के बाद राजीव गांधी द्वारा सौंपे गए काम को पूरा कर दिया और देश का प्रधानमन्त्री टी.वी. पर इस कार्रवाई को देखता रहा। उस समय के माहौल का अन्दाज़ा करने के लिये सिर्फ़ इतना कहना ही काफ़ी है कि देश में रह रहे 20 करोड़ मुसलमानों की मौजूदगी में यह घिनौना कार्य होना तब तक सन्भव नहीं था जब तक कि उनको आतंकित न कर दिया गया होता। इस पूरी कार्रवाई को अन्जाम देने में केन्द्रीय सरकार, प्रदेश सरकार व प्रशासन का पूरा सहयोग रहा।
इसके बाद के हालात भी सब जानते हैं कि भा.ज.पा. के द्वारा किये गए इस घिनौने कार्य के इनाम के रूप में उसकी केन्द्र में सरकार बनवाकर हमारे देश के आदर्शवादी कहलाए जाने वाले समाज ने आतंकवाद में अपनी आस्था भलीभांति साबित कर दी। न्यायालय में चल रहे मुक़दमे के दौरान एक पक्ष के यह कहने,‘‘अदालत का फ़ैसला कुछ भी हो मन्दिर यहीं बनेगा‘‘ में न्यायालय की अवमानना किसी को भी नज़र न आई।
पवित्र क़ुरआन के 72 वें अध्याय की 18 वीं आयत में अल्लाह तआला फ़रमाता है, अनुवाद, और यह मस्जिदें अल्लाह ही के लिए ख़ास हैं अतः इनमें अल्लाह के साथ किसी और को न पुकारो‘‘ इस प्रकार से चाहे तो बाबरी मस्जिद एक्शन कमैटी हो या फिर कोई दूसरी संस्था हो, यदि वह मस्जिद जहां थी और जितनी थी उसी के मुताबिक़ उसको को दोबारा वहीं तामीर करा सकें तो ठीक है वरना इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार का समझौता करने का हक़ किसी को भी नहीं है। लिहाज़ा चाहे ज़बरदस्ती या किसी क़ानून का सहारा लेकर यदि मस्जिद के स्थान पर कुछ और तामीर हुआ तो मुसलमानों को चाहिए कि उसको तस्लीम न करके यह समझ कर धैर्य रखें कि देश में जहां बहुत से मुसलमानों को क़त्ल करके शहीद किया जा रहा है वहां मस्जिद भी शहीद कर दी गई।
75 comments:
shrif bhaayi bhut khub aapne shraagt se bhut bdhi schchaayi byaan ki he or is schchaayi se kisi ko inkaar ho hi nhin sktaa. akhtar khan akela kota rajsthan
अपनी हसरत तमाम हो जाये काश ऐ दिल वो राम हो जाये ।
सुबह से चाहे शाम हो जाये क़िस्सा ऐ ग़म तमाम हो जाये ।।
देश में जहां बहुत से मुसलमानों को क़त्ल करके शहीद किया जा रहा है वहां मस्जिद भी शहीद कर दी गई।
जनाब शरीफ़ साहब ! आप स्वीकारते हैं कि मसले को जानबूझकर उलझाया गया है, आप यह भी जानते हैं कि वे बाअसर लोग हैं। वे ऐसे लोग हैं कि ‘अल्पसंख्यक‘ होने के बावजूद बहुसंख्यक पर राज कर रहे हैं। लोग जब कभी शांत चित्त हो जायेंगे वे जान लेंगे कि देश की संपदा पर नाजायज़ तरीक़े से कौन क़ाबिज़ है। वे चाहते हैं कि विवाद कभी न सुलझे, एक विवाद सुलझे तो दूसरा खड़ा कर दें। वास्तव में मसला मंदिर मस्जिद का है ही नहीं। मुसलमानों को डिमॉरेलाइज़ करने का है। ऐसे में मुसलमानों को किसी भी विवाद को हवा देना उचित नहीं है। जो लोग परलोक को नहीं मानते, ईश्वर के कल्याणकारी अजन्मे अविनाशी स्वरूप को नहीं जानते वे क्या न्याय देंगे। ये लोग केवल कूटनीति जानते हैं कि कैसे मंथन के बाद निकले हुए अमृत का बंटवारा ‘केवल अपनों‘ में हो ? इस्लाम शांति का पैग़ाम है और यहां माहौल टकराव के लिए तैयार किया जा रहा है और मुसलमानों से लड़ाया जाएगा उन पिछड़ी जाति के लोगों को, जो खुद उनके अत्याचार से त्रस्त हैं ताकि जो भी मरे उनका एक दुश्मन कम हो। न्याय इस जगत में केवल बलशाली को ही मिलता है और मुसलमानों ने बहुत से फ़िरक़ों में बंटकर खुद को निर्बल बना लिया है। कहावत है कि ‘ठाडै की दूर बला‘ ।
मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ? मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ? और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ? काम लम्बा है लेकिन दूसरा कोई शॉर्टकट नहीं है और मस्जिद के लिए इन्सान का खून बहाना जायज़ नहीं है। लोग जब समझेंगे तो खुद उस तरफ अपने क़दम बढ़ाएंगे जहां उन्हें अपना कल्याण नज़र आएगा। तब तक मुसलमानों को सब्र करना चाहिए क्योंकि हरेक हिन्दू उसका दुश्मन नहीं है और दुश्मन तो आर.एस.एस. के लोग भी नहीं होते लेकिन राजनीति और कूटनीति बुरी बला है और मुसलमानों की लीडरी करने वाले इन लोगों से मिले होते हैं। आजकल राहबर ही राहज़न बने हुए हैं। हिन्दू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद की आड़ में माल इकठ्ठा किया जा रहा है। आज़म खां की मिसाल सबके सामने है। अल्लाह ने हरेक उस आदमी को ज़लील कर दिया है जिसने उसके बन्दों को उसके नाम पर लड़ाया और नाम और दाम कमाया।
बहुसंख्यक हिन्दू और मुसलमान भोले हैं। आपस में प्यार से रहते हैं। यह प्यार बना रहे , बढ़ता रहे , ऐसी कोशिश करनी चाहिये।
खुद श्री रामचन्द्र जी ने वन में जाना पसंद किया लेकिन लड़कर राज्य न किया , उनके नाम को लड़ाई के लिये इस्तेमाल करना महापाप है।
खुद हज़रत मुहम्मद साहब स. ने मक्का छोड़कर मदीना जाना गवारा किया लेकिन अपने अनुयायियों को काबा पर क़ब्ज़ा करने के लिये न कहा।
हम जिन्हें अपना आदर्श कहते हैं, उनके जीवन से हमें व्यवहारिक शिक्षा लेनी चाहिये।
जमाल साहब की आखिरी लाइनो मे दम है
मज़े की बात तो यह है की जो खुद ज़बरदस्ती कर रहे हैं वह दूसरों पर ज़बरदस्ती का इलज़ाम लगते हैं..... लड़वाने वाले लड़वाते हैं और बेवक़ूफ़ आपस में लड़ते हैं.....
DR. ANWER JAMAL ji
आपने बहुत अच्छी तरह से बात को समझाया है. शुक्रिया.
यदि मस्जिद के स्थान पर कुछ और तामीर हुआ तो मुसलमानों को चाहिए कि उसको तस्लीम न करके यह समझ कर धैर्य रखें कि देश में जहां बहुत से मुसलमानों को क़त्ल करके शहीद किया जा रहा है वहां मस्जिद भी शहीद कर दी गई।
सब कुछ हमारे सामने घटा था
लेकिन हम कायर थे और अंधे,
बहरे हो चले थे.
हमने छह सौ वर्ष पुरानी 'इमारत' को
ढांचा कहना शुरू कर दिया था
और अब 'ढाँचे' को इमारत कहने की
तैय्यारी कर रहे थे.
यह अंश हमारी एक कविता 'वह हमारे रहबर थे' से है.
इस कविता के कारण दिल्ली हिंदी अकादमी ने प्रकाशन अनुदान रोक लिया था.
इस विवादित मसले पर कोर्ट का फैसला जो भी हो सभी पक्ष को मानना चाहिए.
यदि मस्जिद के स्थान पर कुछ और तामीर हुआ तो मुसलमानों को चाहिए कि उसको तस्लीम न करके यह समझ कर धैर्य रखें कि देश में जहां बहुत से मुसलमानों को क़त्ल करके शहीद किया जा रहा है वहां मस्जिद भी शहीद कर दी गई
Agreed!
अनवर जी से सहमत
एक शरीफ़ आदमी को रास्ते में एक बदमाश पहलवान मिल गया और जैसा कि हमारे देश में अराजकता का माहौल है उसी के मुताबिक़ उस बदमाश नें बिना किसी बात के शरीफ़ आदमी में एक थप्पड़ रसीद कर दिया.
शरीफ़ आदमी नें इधर उधर देखा और झेंप मिटाने के लिए उस बदमाश से कहा कि क्यों साहब यह थप्पड़ क्या आपने मजाक में मारा है या संजीदगी से.
बदमाश ने जवाब दिया कि संजीदगी से मारा है.
जवाब में शरीफ़ आदमी ने कहा कि अगर संजीदगी से मारा है तो कोई बात नहीं वरना में ऐसा मजाक मैं पसंद नहीं करता हूँ.
कहने को तो यह एक लतीफ़ा है मगर क्या देश में मुसलामानों कि स्थिति उस शरीफ़ आदमी कि सी नहीं है.
अपनी ऐसी स्थिति को देखते हुए ये बात कही गई है कि - यदि मस्जिद के स्थान पर कुछ और तामीर हुआ तो मुसलमानों को चाहिए कि उसको तस्लीम न करके यह समझ कर धैर्य रखें कि देश में जहां बहुत से मुसलमानों को क़त्ल करके शहीद किया जा रहा है वहां मस्जिद भी शहीद कर दी गई।
शरीफ साहब आपकी पोस्ट से ऐसा लग रहा है जैसे आपको बाबरी मस्जिद मामले में इन्साफ की उम्मीद नहीं है, इसी लिए आप धैर्य की बात कर रहे हैं वेसे ऐसा विचार बाबरी मस्जिद पर पहली कुदाल चलाने वाले मास्टर मुहम्मद आमिर (बलबीर सिंह, पूर्व शिवसेना युवा शाखा अध्यक्ष) से का भी है, जब उनसे एक उर्दू अखबार में सवाल किया गया कि तुम तो बहुत अच्छे गवाह साबित हो सकते हो, फिर गवाह क्यूं नहीं बन रहे, तो उन्होंने कहा था उन्हें इन्साफ की उम्मीद नहीं है इस लिए ऐसी कोशिश बेकार है, खुशी की बात है कि इन दो साथियों ने एक मस्जिद पर कुदाल चलाने के बदले में 100-100 मस्जिद बनवाने का अहद किया है,
इस सिलसिले में एक और अच्छी खबर है कि इन बलबीर साहब के द्वारा ही बाबरी मस्जिद गिराने के लिये 25 लाख खर्च करने वाला सेठ रामजी लाल गुप्ता अब "सेठ मुहम्मद उमर" interview 3 कहलाते हैं
एक सवाल है आपसे कहीं पढा था कि हजारों की गिनती एक से ही शुरू होगी, तुम एक देदो फिर तुम से हजारों ले ली जायेंगी, क्या वह गलत कहते हैं?
Agreed...
@अनवर जमाल !
"मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ? मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ? और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ? "
बेहद अफ़सोस जनक लिखा है आज डॉ अनवर जमाल ने , मैं यह उनसे उम्मीद नहीं करता था ! किसी भी धर्म के अनुयायियों को दूसरों की आस्था पर कहने का अधिकार नहीं होना चाहिए ! दूसरों को छोटा और ख़राब और अपने को अच्छा बताने वाले कभी अच्छे नहीं हो सकते !दो अलग आस्थाओं कि तुलना करने वाले क्या देना चाहते हैं इस देश में ....??
मुझे ऐसे लोगो की बुद्धि पर तरस आता है ! ऐसा करने वाले सिर्फ दूसरों के दिलों में नफरत ही बोयेंगे ! और यह नफरत हमारे मासूमों के लिए जहर का काम करेगी ! मुझे नहीं लगता कि इस्लाम में कहीं भी यह लिखा है कि काफिरों को समझाओ कि तुम्हारा ईमान ख़राब है ....
बेहद दुखी हूँ ऐसे अफ़सोस जनक वक्तव्य के लिए !
यह सरजमीन हिन्दू मुसलमान दोनों की है, आपस में नफरत बढाने वाली हरकतों से दूर रहने की कोशिश करने में ही देश की भलाई है न कि भूल से या जानबूझ कर की गयी गलतियों से हुए जख्मों को हमेशा ही हरा रखने से ! गुस्सा थूकने की कोशिश करने से हमारी आने वाली नस्ल की बेहतरी है न की उग्रवादियों की हरकतों पर आग बबूला होने से ! समय की पुकार है की दोनों घरों से उग्रवादियों को नंगा करें और प्यार से रहना सीखें !
सादर
आपसे सहमत शरीफ साहब
Mohammed Umar Kairanvi ji!
मस्जिद में मूर्ति रखने वाले महंत रामसेवक दास नाम के व्यक्ति का यह बयान कि, ‘‘मुझसे तो मूर्ति रखने के लिये नैयर साहब ने कहा था।‘‘ क्या काफी नहीं था जिसके आधार पर मूर्ति निकलवाकर मस्जिद को पवित्र किया जा सकता था. परन्तु ऐसा न करके मस्जिद की वैधता का मुक़दमा बनाना ही यह समझने के लिए काफी है कि कैसा इन्साफ़ होगा.
सतीश सक्सेना ji!
इस्लाम का सीधा सा नियम है कि उपासना केवल पैदा करने वाले की ही की जा सकती है पैदा होने वाले की नहीं. जिसने सबको पैदा किया है सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी की उपासना के लिए मस्जिद बनाई जाती है. सबको पैदा करने वाले ने हमको सीधा रास्ता दिखाने के लिए अनेक महापुरुष पैदा किये हैं, उनका आदर और सम्मान करना हम सबका कर्त्तव्य है.
न्यायालय में चल रहे मुक़दमे के दौरान एक पक्ष के यह कहने,‘‘अदालत का फ़ैसला कुछ भी हो मन्दिर यहीं बनेगा‘‘ में न्यायालय की अवमानना किसी को भी नज़र न आई।
बात पते की है.
nice post
"..."मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ? मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ? और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ? "
इस बात पर अनवर साहब और इनके चेले पूरी ईमानदारी से अमल कर रहे हैं…
@ शरीफ़ साहब - आपने यह नहीं बताया कि क्या मन्दिरों को तोड़कर या मन्दिरों की मूर्तियों वाले पत्थरों से बनी मस्जिद में इबादत की जा सकती है या नहीं? यदि इसका जवाब "नहीं" में है, तो मैं आपको कई मस्जिदों के चित्र सबूत सहित दिखा सकता हूं जहाँ आज भी तोड़े गये मन्दिरों के पत्थर साफ़ दिखाई दे रहे हैं, और आप तो आलिम हैं, बुजुर्ग हैं… आप यह भी अवश्य बताएंगे कि यदि ऐसी मस्जिदों में नमाज़ पढ़ना गुनाह है या नहीं?
खान साहब आप समझते हैं कि राम जन्म भूमि विवाद १९४९ से शुरू हुआ जबकि मैं समझता हूँ कि इस विवाद के बीज तब डाले गए जब विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस देश को लूटने, यहाँ कि बेहतर सभ्यता और धर्म को नीचा दिखाने के उद्देश्य से इस धरा पर अपने नापाक कदम रखे और यहाँ के सच्चे लोगों को मुसलमान बनाया तथा हिन्दू धार्मिक स्थलों को तोड़ कर उनकी जगह पर मस्जिदें बनवाई. धार्मिक रूप से उन्नत व सही मायनों में शांति और सहिष्णुता का पालन करने वाले हिन्दुओं ने इस अपमान को भी सेकड़ों वर्षो तक सहा ताकि यहाँ रह रहे मुस्लिमों को तकलीफ ना पहुचे पर १९४७ में मुसलमानों द्वारा अलग देश स्थपित करवाने के बाद तो इस सहिष्णुता और सहअस्तित्व कि भावना पर चलना कठिन हो गया और हिन्दुओं में रामजन्मभूमि पर राम का ही मंदिर बनवाने कि भावना प्रबल हो उठी. अब आप बताईये कि गाजा पट्टी में रह रहे मुस्लमान क्यों हिंसा पर उतारू हैं. क्योंकि उनकी पैतृक भूमि उनसे छिनी गयी . ऐसा ही हिन्दू भावना के मूल में भी है. मूल रूप से अयोध्या में राम मंदिर ही था जिस को तोड़ कर वहा दूसरी ईमारत खड़ी कि गयी. अब कोई हिन्दू ये तो नहीं कह रहा कि मक्का में राम मंदिर बनाओ. हिन्दू तो अयोध्या में ही राम मंदिर चाहते हैं क्योंकि अयोध्या में राम पैदा हुए थे. इसलिए अगर इस्लाम में जरा भी शांति, प्यार, भाईचारे कि कहीं कोई बात है (जो कि असल में है) तो इस्लाम को मानाने वाले लोगों को इस बात को तूल ना देकर स्वयं ही आगे आकार अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनवाने में सहयोग करना चाहिए.
सतीश साहब! अनवर भाई ने तो इस कमेन्ट मे श्री राम की तारीफ़ ही की है और उनसे प्रेरणा लेने ही की बात की है . इसमें बुराई का पहलु निकालना अनुचित है . और अगर आपको कोई बुराई नज़र आती है तो उसे साफ़ बताएं
दूसरी बात ये की इस देश मे तो दूसरों की बुराई बताने की पुरानी परम्परा रही है महावीर जी , गौतम बुद्ध, कबीर ,गुरु नानक, स्वामी दयानंद .राजा राम मोहन राय और सारे समाज सुधारको लोगो को उनकी बुराई बताने का का महान कार्य किया अगर यही काम अनवर भाई करते तो शिकायत क्यों ?
हिन्दू तो अयोध्या में ही राम मंदिर चाहते हैं क्योंकि अयोध्या में राम पैदा हुए थे. vichaar sahab ka ye comment wakai majboor karta hai ye sochne ke liye ki hindustan me gandi politics ka infection puri tarah se educated samaj me bhi fel chuka hai. vichchar sahab ki sirf ye hi line unki honhaar mansikta ka parichay hai ki mandir ayaodhya me masjid ki jagah sirf isliye banna chahiye kyoonki ram us shahar me pida hue the. jabki vichaar sahab aur doosre hindu dharam ke vidwan is baat se bhali bhanti parichit hain ki Treata Yug se aaj tak wo jagah sunishchit nahi ho payee hai ki ram ka janam ayodhya ke kis hisse me huaa tha. es liye vichaar sahab ki ye maang kuch samajh se bahar hai.
centre me shashan kar rahi congress sarkar apne pure subut aur reference ke sath ye claim kar chuki hai ki Ram ka janam ek imagination hai aur hypothetical myth hai isiliye hindu religion hindu mythology ke naam se jaana jata hai na ki hindu theology. ye doosra tathya hai vichaar sahab ke comment ke liye. please gaur karen.
babri masjid issue ko insaf ki nazar se na dekhkar political stunt bana diya gaya aur intillectual tabka apni puri education aur yogytaoon ke sath bewakoof banta raha hai.
यह आवश्यक है कि मस्जिद की जगह ख़रीदी गई हो या किसी मुसलमान द्वारा स्वेच्छा से दी गई हो अथवा सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई हो। किसी नाजाइज़ जगह पर बनाई गई मस्जिद में नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती इसीलिए न तो पुलिस थानों में मस्जिद बनाने की मांग की जाती है न सार्वजनिक स्थलों को घेरकर और न ही पार्क आदि में मस्जिदों का निर्माण होता है।
"..."मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ? मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ? और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ? "
mr. suresh chiplunkar sahab apka andaz apni baat rakhne ka kaafi sarhneeye hai.
jahan tak sawal hai ki muslmaan es baat ko bataaye ki mandiroon me kiski puja hoti hai to uska jawab ye hai ki charoon ved is baat ki pushti karte hain ki pooja archna sirf nirakaar brahamm ki ke ja sakti hai , koi murti, buut, idol worship kisi bhi isthti me allowed nahi hai. hum to aaj bhi ye samajhta hain ki hindu dharam ki anuyayee apne vedoon ki baat ko zaroor maante honge jahan par murti ka koi concept nahi hai.
agar aapke mutabik mandiroon ke andar kisi maha purush ki murti rakhkar usko pooja jaye jiski charitra aur kirdaar ke baare me aap musalmanoo se janna chahte hai, to me sirf itana kahunga ki mahapurush chahe Ram ho ya koi aur , murti agar unki wahan hai to wo smarak sangrahlya to ho sakta hai kam se kam mandir nahi.
koi bhi purush maha purush to sakta hai lekin bhagwan nahi ho sakta, bhagwan aur maha purush aur DOOT athwa sandeshwahak ke sahi antar ko janne ke liye Quraan ki taraf aayee. your most welcome.
hamare aur aapke nabi sahab ke charitra aur kirdaar ke baare me agar me kuch kahunga to ho sakta ki aap ye samjhe ki me biased hokar ektarfa jawab de raha hun, esliye American Author Michal H. Hart dwara likhi gayee kitaab " 100 most influntial personalities in the world" ka pehla adhyay padhen jisme pehle number par puri manav duniya me nabi sahab ko pehla isthan diya gaya hai. aur uske peeche kiya logic aur tathya hai wo bhi sath me sanklit hain.
Michal H. hart kehte hain ki mene nabi sahab ki personality ko duniya ke har hisse aur mamle me ideal paya, chahe mamla Economy ka ho ya Yudh ka ya family chief ka, Achche padosi ka, loogon ke sath insaaf karne ka, business ka etc............ nabi is on top. insaniyat ke hisaab se nabi se aage koi nahi.
aapka teesra sawal jisme aapka kehna hai ki agar kuch suboot aise hai jo ki mandir tha aur aaj bhi wahan par kuch murtiyaan maujood hain aur unko masjid bana diya gaya hai, to unke bare me meri apni opinion ye hai ki murti ki upasthti me kam se kam wahan namaz nahi padhni chahiye aur chunki Vedoon ki siksha ke anusaar Murti ka koi concept legal taur par nahi hai esliye wahan par pooja ka bhi koi sense kisi bhi dharam ke anusaar nahi banta.
meri kisi baat se agar aap hurt huee ho to me maafi chahunga lekin sach ki talash me nikalne wale log hi kaamyaab hai isliye apni koshish mat chhodiyega. dhanyawaad.
Suresh chiplunkar sahib ke liye
"..."मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ?
Hindu dhram me chunki Vedoon ko bahut manyeta di jaati hai to uske anusaar Nirakaar Brahamm ki upasna ke updesh wahan se milta hai. Jo ye batata hai ki Murti or Idol worship ka koi concept hindu dharam me bhi nahi hai. Iske bawajood wahan murti paaye jaati hai to ek musalmaan ko ye batana bahut mushkil hai ki hindu bhai wahan jakar kya karte hain. “kyoonki murti ke alawa wahan kuch hai nahi aur murti ki puja ho nahi sakti”
Baki jawab aaj sham tak diye ja sakte hai tab tak ke liye ijazat. Dhanyawad.
विचार शून्य जी , लगता है कि आप का ज्ञान भी शुन्य है, आप का कहते हैं कि मंदिर मस्जिद विवाद के बीज तब डाले गए जब विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस देश को लूटने, यहाँ कि बेहतर सभ्यता और धर्म को नीचा दिखाने के उद्देश्य से इस धरा पर अपने नापाक कदम रखे और यहाँ के सच्चे लोगों को मुसलमान बनाया तथा हिन्दू धार्मिक स्थलों को तोड़ कर उनकी जगह पर मस्जिदें बनवाई. अगर मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद बनाना ही मुस्लिम आक्रमणकारियों का काम था, तो यह बताइए हिंदुस्तान में कितने प्राचीन मंदिर हैं वो कैसे बचे? उनको किसने बचाया? इस बात का सबूत खजुराहो के मंदिर हैं, जिसकी दीवारों पर अश्लील चित्र बने है, कि एक सभ्य व्यक्ति अपने घर में नहीं लगा सकता, शायद आप भी नहीं, वो कैसे बच गया? यह कौन सी सभ्यता है जो खजुराहो के मंदिरों कि दीवारों पर अलंकृत है ? क्या ऐसे मंदिरों में पूजा हो सकती है? जिसकी दीवारों पर अशलील चित्रों कि भरमार हो , और हाँ मुसलमानों को इस बात का जवाब देने की भी ज़रुरत नहीं है कि मंदिरों में किसकी पूजा होती है?और मस्जिद में किसकी,इसका जवाब खजुराहो के मंदिरों से मिलता है, इलज़ाम लगाना एक आसान कम है वो सब करते हैं ,साबित कोई नहीं करता.
@ डॉ अयाज़ अहमद साहब ,
एक हिन्दू इस्लाम की व्याख्या करे या एक मुस्लिम वेदों की, और वह भी अपनी धार्मिक मानसिकता के साथ तो इसे आपका कौन सा विद्वान् जायज़ ठहराएगा.....मीठे अंदाज़ और दुसरे को नम्रता के साथ, भी उसके धर्म में लिखी कमियां बताने के प्रयत्न की अछे लोगों द्वारा खिलाफत करना चाहिए ! बेहतर है आप अपने धर्म को देखें और उसका अनुसरण करें !
और यह भी ध्यान रखें कि दूसरों की धार्मिक भावनाओं का मखौल उड़ाने पर सजा का प्रावधान आई टी एक्ट तथा इंडियन पैनल कोड में है , अगर किसी ने अपनी धार्मिक भावनाओं को ठेस पंहुचाने और देश में साम्प्रादायिक जहर घोलने की नामज़द शिकायत कर दी तो कहीं ऐसा न हो कि इस समय अपने मस्त लेखन में झूम रहे लोगों के लिए, भविष्य में ब्लाग लेखन, एक पछतावा बन कर रह जाये ! अतः जोश के साथ होश न खोवें तो इस देश की भावी संतानों का कम से कम बुरा करने से तो बच जायेंगे !
उपरोक्त चेतावनी मैं सामान्य ब्लागर जनों के लिए लिख रहा हूँ यह उन लोगों के लिए नहीं है जो कहीं अन्य जगह के सहयोग से चल रहे हैं ....ऐसे लोगों का उद्देश्य देश में अस्थिरता फैलाना होता है और उनसे निपटने के लिए देर सबेर इस देश के कानूनों में काफी प्रावधान हैं !
"यह आवश्यक है कि मस्जिद की जगह ख़रीदी गई हो या किसी मुसलमान द्वारा स्वेच्छा से दी गई हो अथवा सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई हो। किसी नाजाइज़ जगह पर बनाई गई मस्जिद में नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती इसीलिए न तो पुलिस थानों में मस्जिद बनाने की मांग की जाती है न सार्वजनिक स्थलों को घेरकर और न ही पार्क आदि में मस्जिदों का निर्माण होता है। "
वाह भई शरीफ खान साहब , लगता है सचमुच के शरीफ हो . जब उपरोक्त ज्ञान की बात लिख रहे थे तो तनिक यह भी सोच लिया होता की उस बाबर की औलाद ने मस्जिद बनाने के लिए ५०० साल पहले वह जमीन कैसे प्राप्त की होगी ? अब ये मत कहना की उस जमाने में बाबर ने मस्जिद बनाने के लिए जमीन खरीदी थी
हमारे देश में 10 लाख मंदिर हैं। उनमें अरबों खरबों का सोना चांदी, हीरे मोती और भूमि आदि खराब पड़ी सड़ रही है। संत माया को छोड़ना सिखाते हैं , नर में नारायण देखना बताते हैं, इसलिये सबसे पहले मंदिरों का सोना सम्पत्ति गरीबों में बांट देनी चाहिये। बाबरी मस्जिद अब दोबारा वहां बनेगी नहीं और ज्यादा रौला मचाओगे तो दूसरी बनी हुई भी तोड़ दी जायेंगी। मुसलमान जिनसे उलझ रहे हैं वे पूरी हड़प्पा सभ्यता को नष्ट करके द्रविड़ों को ऐसा दास बनाकर सदियों रख चुके हैं कि वे अपनी ब्राहुई भाषा तक भूल चुके हैं। हम अतीत के दलित हैं और मुसलमान वर्तमान के । दोनों एकसाथ हैं इसीलिये आज एक दलित सी. एम. है। न्याय के लिये समान बिन्दुओं पर सहमति समय की मांग है। अगर आपके लीडर दगाबाज हैं तो हमारे लीडर को आजमाने में क्या हर्ज है ?
समय कठिन है एक गलत ‘न‘ पूरा भविष्य चैपट कर सकती है। एक दुखी ही दूसरे दुखी का दर्द समझ सकता है। हमें मंदिर मस्जिद से जो न मिला वह हमें बाबा साहब के संघर्ष से मिला इसलिये सारे मुद्दे फिजूल लगते हैं केवल बाबा साहब का आह्वान में दम लगता है।
@शरीफ खान साहब ,
किसी भी हालत में बेनामियों को किसी भी फर्जी नाम से भी कमेंट्स प्रकाशित न करें ! सबसे अधिक जहर यही बुजदिल फैलाते हैं, अपना नाम बोलने की हिम्मत नहीं मगर अपनी गंदगी ज़रूर उड़ेल जायेंगे ! अधिकतर धर्म की दुकाने इनकी बदौलत चल रही हैं ! पाखंडी साधू और मौलवी पहले अपना शांत रंग अपने नाम से दिखाते हैं फिर अपने ही लेख पर बेनामी बन कर वह सब बकवास उड़ेलते हैं जिस मकसद के लिए वह लेख लिखा गया !
सतीश सक्सेना जी आपने कानून का हवाला दिया । ठीक है पर आपको यही बात भाँडाफोड़ू हर्फ़े गलत क़ुरआन वेद और न जाने कितने ब्लागर है उन पर लागू नही होती ? क्योकि उनकी मुख़ालफ़त मे हमने आपका कभी कमेँट नही देखा। इसका क्या वजह है ?कृप्या स्पष्ट कीजिए । मैं काफी दिन से यही सोच रहा हूँ वैसे हमें ये मालूम कि आपको हमसे ही ज्यादा मोहब्बत है
@डॉ अयाज़ अहमद खेद है कि आपको यह समझ आया कि मैं सिर्फ आपको कह रहा हूँ ....ऐसे शक करेंगे तो प्यार कहाँ होगा भाई जी ! मेरे लेख पढ़ें मैं दोनों पक्षों के लिए कह रहा हूँ ...उसमें हिन्दू शामिल हैं ! आप जिन लोगों कि बातें कर रहे हैं उनका कोई धर्म नहीं है वे सिर्फ आग लगाने का कार्य करते हैं ! अगर कोई हिन्दू यह करे तो उस पर क़ानून सामान लागू होगा ! यह वतन जितना मेरा है उतना ही आपका है उतना ही हक़ आपका है अयाज भाई !
डॉ अयाज अहमद,
अगर आप मेरी बात करें तो कृपया इस विषय पर लिखे मेरे पुराने लेख अवश्य पढ़ें ! अगर मैंने कभी बनावती नहीं लिखा होगा तो आपको हर जगह हर लेख में मेरे स्पष्ट विचार मिलेंगे ! मेरा यह स्पष्ट मत है की इस्लाम में प्यार की कोई कमी नहीं है आपसी शक हमारा बहुत नुक्सान कर चूका है अतः हमें चाहिए कि इस सरजमीं पर पैदा हुए दोनों भाई मुहब्बत से रहना सीखें ! और यह शिक्षा और आपसी मिलने जुलने से संभव होगा !
नफरत फ़ैलाने वालों को और एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखने वालों को जेल होनी चाहिए ! कुरआन और वेदों का सम्मान एक जैसा ही होना चाहिए देश हित और अगली पीढ़ी के हक में में यही हमारा फ़र्ज़ है !
......यह समझ कर धैर्य रखें कि देश में जहां बहुत से मुसलमानों को क़त्ल करके शहीद किया जा रहा है वहां मस्जिद भी शहीद कर दी गई....
ये सिर्फ भड़काने वाली बात नहीं तो और क्या है। कश्मीर में कत्ल किए गए हिदूं पंडित को तो कभी याद नहीं किया आप लोगो ने। आईएसआई की मदद से हजारों हिंदुओं को असम में मारा गया, उनकी याद नहीं आई आपको। बेशर्मी की हद नहीं तो और क्या है ये।
राममंदिर तोड़ा गया ये आप नहीं मानते, आखिर क्यों। उसके लिए आपको सबूत चाहिए। दिए जाएं तो वो आपके लिए प्रोपगंडा होते हैं.। काशी, मथुरा औऱ अयोध्या यही तीन जगह तो हिंदुओं की मांग है। आपका बस चलता तो सारे मंदिर तोड़ दिए जाते। आपको मालूम होना चाहिए की हजारों मंदिर सिर्फ और सिर्फ समय समय पर हिंदू राजाओं औऱ लोगो द्वारा दोबारा बनवाए गए या कहें कि ठीक करवाए गए हैं। खजुराहो कैसे बच गया..इसका आपको मलाल लगता है। आपकी रगों में भी हिंदुस्तानियों का ही खून है।
...हाथ जोड़ कर अर्ज करता हूं दुर्दिन से लड़ कर भारत को फिर से शक्तिशाली राष्ट्र बनाने का सपना देखने वाले मेहनती भारतीय नौजवानों को हिंदू औऱ मुस्लमान में न बांटिए। इस देश का काफी बंटाधार कर दिया है आप लोगो ने। धर्म की आड़ लेकर 47 का बंटवारा करवाया। औऱ क्या कराना चाहते हैं आप।
शर्म आनी चाहिए आप जैसे लोगो को, जो दूसरो की धार्मिक पद्धती का अपमान करते हैं। कोई भारतीय राजा कभी अऱब नहीं गया था खून बहाने। न ही लूटखसोट मचाने। आर अपने हिसाब से पूजिए और दूसरों को उनके हिसाब से चलने दें। हमें कोई आपत्ति नहीं आपके तरीकों से तो आप क्यों ठेका ले रहे हैं। जाइए पहले अपनी महिलाओं की स्थिति सुधारिए। अपराध को कानून के सहारे निपटने में तो आप को दिक्त होती है। आप क्या जाने हिदुस्तान का दर्द। जहां हजारों लोग भूख से मरते हों। हजारों लोग स्वास्थ सेवा की कमी से मर जाते हों। जहां हजारों औऱते कुपोषण से मर जाती हो, वहां आप जैसे लोगो ही धर्म की आड़ लेकर लोगो को बांटने का काम कर सकते हैं। बेशर्मी कि इतनी हद कहीं नहीं देखी मैने.....
@ जनाब सतीश जी! मैंने लिखा है कि मस्जिद के लिए किसी इन्सान का खून बहाना जायज़ नहीं है। रामचन्द्र जी ने वनवास स्वीकार किया लेकिन लड़कर अपनी जन्मभूमि में न रहे। पैग़म्बर साहब स. भी टकराव और खून ख़राबा टालने के लिये ही मक्का छोड़कर चले गये। हिन्दू श्री रामचन्द्र जी को अपना आदर्श मानते हैं और मुसलमान पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. को । दोनों समुदायों के नेता इनमें से किसी को भी अपना आदर्श नहीं मानते और टकराव का माहौल तैयार करते रहते हैं। जबकि दोनों समुदायों के लोग आपस में प्यार से रहते हैं और रोज़ी रोटी कमाने में एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। अगर दोनों समुदाय के आम लोग और नेता अपने आदर्श पुरूषों के जीवन से शिक्षा लेकर उसपर व्यवहार करें तो हरेक विवाद का हल शांतिपूर्वक हो सकता है। ऐसा मैंने लिखा तो इसमें आपको मुझपर तरस खाने और ब्लॉग संसद पर मूर्ख बताने की कौन सी ज़रूरत आन पड़ी ?
सच का जानने और बताने वाला केवल वह मालिक है जिसने हर चीज़ को पैदा किया है और जो हर चीज़ को देखता है मगर उसे कोई आंख नहीं देख सकती। वही मार्गदर्शन करने का सच्चा अधिकारी है। कर्तव्य और अकर्तव्य का सही ज्ञान वही कराता है। मस्जिद में उसी की पूजा होती है।
मंदिर में उसके अलावा की होती है। इस तरह समाज में अनिश्चितता का माहौल बनता है। जो कुछ भी ज्ञान नहीं दे सकते लोग उनसे प्रार्थना करके अपना समय , धन और जीवन नष्ट करते हैं।
क़ानून उन्हें अपनी मान्यता के अनुसार जीने की अनुमति देता है तो उन्हें वह करने दिया जाए जो वे करना चाहें लेकिन क़ानून हरेक को यह अधिकार देता है कि वह अपने विचार से जिस बात को सत्य मानता है दूसरों को उससे आगाह कर दे। मैंने मुसलमानों को टकराव से बचकर लोगों से ‘संवाद‘ की सलाह दी है जो कि आधुनिक दुनिया का बेस्ट मैथड है। इसमें आपको तरस क्यों आ गया ?
कृष्ण जी ने इन्द्र की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?
शिवजी ने ब्रह्मा की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?
बुद्ध और महावीर ने यज्ञों का विरोध किया , आपको उनपर तरस न आया ?
शंकराचार्य ने देशभर में घूम घूम कर बौद्धों और जैनियों के मतों का खण्डन करके अपने मत को प्रतिष्ठित किया , आपको उनपर तरस न आया ?
गुरू नानक ने ‘वेद पुरान सब कहानी‘ कहकर उनका खण्डन किया । सूर्य को जल चढ़ाते लोगों को शिक्षा देने के लिये पश्चिम की तरफ को मुंह करके अपने खेतों को पानी देने का अभिनय किया। आपको उनपर तरस न आया।
कबीर ने ‘पाहन पूजै हरि मिलै तो मैं पूजूं पहार, तातै वा चक्की भली पीस खाय संसार‘ कहकर मूर्तिपूजा का खण्डन किया । आपको उनपन तरस नहीं आया ?
दयानंद जी ने पुराणों के मानने वालों का , उनके गुरूओं का दिल खोलकर मज़ाक़ उड़ाया। आपको उनपर तरस न आया ?
विवेकानंद के पास विदेश जाने के लिये रक़म नहीं थी। उन्होंने सहायता मांगी मगर वे विदेश गये। सब को ठीक कहते कहते भी भगिनी निवेदिता को भारतीय कल्चर में रंग डाला। आपको उनपर तरस न आया ?
प्रार्थना समाज, ब्रह्म समाज, राधा स्वामी , निरंकारी , स्वाध्याय परिवार, इस्कॉन, प्रणामी पंथ, रैदासी, उदासी, साकार विश्व हरि, मानव धर्म, हंसा मत, ब्रह्मा कुमारी, पतंजलि पीठ और बहुत से अन्य अनेक पंथों के संस्थापकों ने दूसरे पंथों की आलोचना की और अपने मत को ही सर्वश्रेष्ठ बताया। उनके अनुयायी यहां ब्लॉगजगत में भी सक्रिय हैं। आपको न तो उन संस्थापकों पर तरस खाते देखा गया और न ही उनके अनुयायियों पर, क्यों ?
पवित्र कुरआन पर आये दिन भंडाफोड़ू और उस जैसे कई ब्लॉगर्स बेबुनियाद इल्ज़ाम आयद करते रहते हैं और नामी ब्लॉगर्स उनकी वाह वाह करके उसे टॉप पर पहुंचा देते हैं तब आप धृतराष्ट्र का रोल करने लगते हैं, क्यों ?
उनकी ख़ैर ख़बर ली जाये और वास्तविकता स्पष्ट कर दी जाये तो आपको तरस आने लगता है , वह ब्लॉगर मूर्ख दिखने लगता है। क्यों ?
बुद्धिमान दिखने के लिये ज़ाकिर अली ‘रजनीश‘ और इरफ़ान आदि की तरह सब कुछ देखकर भी गांधी जी के बंदर की तरह गीत ग़ज़ल में मगन रहा जाये तो आप उसे उदारमना मान लेंगे। मैं जिस बात को सत्य मानता हूं उसे साफ़ कहता हूं । अब कोई मुझे जो कुछ भी समझे , मुझे परवाह नहीं , लेकिन मैं ईमानदारी का दम भरने वाले आप जैसे बुजुर्ग से यह ज़रूर जानना चाहूंगा कि वही गुण , वही कार्य तो हज़ारों साल से इस पवित्र, पुण्य और कर्मभूमि भारत में होता आ रहा है, अब भी हो रहा है, तब सबको छोड़कर आपको तरस खाने के लिये मैं ही क्यों मिला ?
हौसला पस्त करने का यह भी एक तरीक़ा होता है। जो नाम के लिये लिखता है वह अपना नाम ख़राब होता देखकर उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ता।
क़ानून से अन्जान आदमी के लिये क़ानून एक डरावनी चीज़ है लेकिन जो मुझे पहचानते हैं वे जानते हैं कि क़ानून मेरी बुनियाद में दाखि़ल है।
वैसे अगर आपने कुछ क़ानूनी कार्रवाई कर भी दी तो क़ानून मेरा क्या बिगाड़ेगा ?
कौन सी बात मैंने ऐसी कही है जो क़ानून के विपरीत है ?
सरिता मुक्ता के ‘विश्वनाथ जी‘ पर दर्जनों बार मुक़द्दमे किये गये लेकिन उन्हें सज़ा एक दिन की भी न हुई। आपको उनपर भी कभी तरस न आया।
इमोशनल ब्लैकमेलिंग, क़ानून की धमकी सब मेरे ही लिए, आखि़र क्यों ?
और अगर आप या कोई दूसरा क़ानूनी कार्रवाई करता है तो वे सब ‘उत्साही युवा‘ चैड़े में मारे जाएंगे जिन्होंने मेरे ब्लॉग पर इस्लाम और पैग़म्बर साहब स. के प्रति ‘हिन्दुत्ववादी टिप्पणियां‘ कर रखी हैं।
मैं तो चाहता हूं कि कोई तो करे क़ानूनी कार्रवाई । यहां आड़ में जाने कब से यह ग़लीज़ खेल खेला जा रहा था वह तो मीडिया के ज़रिये जगज़ाहिर होगा।
इस सबके बाद भी मुझे आपसे प्रेम ही है। इस जग से विदा होने वाले को किसी से रंजिश रखके करना भी क्या है ?
@डॉ अनवर जमाल ,
कृपया मेरे कमेंट्स दुबारा पढ़ें और फिर उसका अर्थ निकालें , लगता है अभी आप गुस्से में हैं अतः मैं अब कुछ नहीं कहना चाहता !
ध्यान रहे आपके प्रति मेरी भावना में कोई कमी नहीं आई है, हाँ अपने कहे पर मैं कायम हूँ ! कानून का सिर्फ सन्दर्भ दिया है और यह क़ानून उस समय नहीं थे जिसका आप जिक्र कर रहे हैं प्रकाशक को अपना दायित्व का ज्ञान होना ही चाहिए !
दुसरे धर्म को खराब कहने वाले अज्ञानी हैं क्या आप इसे स्वीकार नहीं करते खैर ...
आप मुझसे अधिक समझदार हैं और विद्वान् भी मैं आपको समझाने की ध्रष्टता नहीं करना चाहता कोशिश रहेगी कि भविष्य में आपके सन्दर्भ में कोई कमेंट्स न करूँ ! अगर आपका दिल दुख हो तो मूर्ख समझ कर क्षमा करें ! मैं आपके दिए सम्मान का नाजायज़ फायदा नहीं उठाऊंगा !
सादर
@ boletobindas
मेरे भाई, यह ज़रूरी नहीं कि अगर विषय में बात की जाए तो दुसरे पर भी उसी समय की जाए. अगर शरीफ साहब ने कश्मीरी पंडितों की बात नहीं की तो मुझे इसमें कुछ भी गलत नज़र नहीं आता है.... यहाँ बात अगर बाबरी मस्जिद की हो रही है तो क्यों असाम और कश्मीर की बात की जाय???
किसी विषय पर कोरी लफ्फाजी करना एक अलग बात है और सुबूत देना एक अलग बात है, आप कह रहे हैं कि राम मंदिर को तोडा गया.... तो बेचैन क्यों होते हैं? कानून को अपने हाथ में लेने वालो का सर्थन क्यों करते हैं? अगर आपकी बात सही है तो कानून आपके साथ न्याय करेगा... और अगर झूट है तो जिसके साथ अन्याय हुआ है अवश्य ही उसके साथ न्याय होगा. जो बातें मालिकाना हक को लेकर है उनको कानून के ऊपर छोड़ दें. हमें अपने देश के कानून पर भरोसा होना चाहिए कि जिसका हक है उसे ही मिलेगा.
बात चाहे अयोध्या की हो अथवा कशी, मथुरा की, उसके लिए केवल कह लेने से कुछ भी नहीं होता, आप दुनिया कि किसी भी मस्जिद पर यह इलज़ाम लगा सकते हैं कि वह किसी धर्म स्थल को तोड़ कर बनाया गया है, जैसा कि काबा शरीफ के लिए भी कहा जाता है कि वह हिन्दू मंदिर था. इसलिए कह देने और साबित होने में फर्क है.... बाबरी मस्जिद के बारे में भी मामला कोर्ट में है, और अगर यह साबित हो जाता है कि वह जगह मंदिर की थी, और ज़बरदस्ती वहां मस्जिद बनाई गई, तो वहां पर अवश्य ही मंदिर का निर्माण होना चाहिए. लेकिन मेरे दोस्त अगर यह साबित नहीं हो पाता तो फिर क्या कहेंगे आप?
सतीश जी और अनवर जी, भावनाओं में बहने की जगह यथार्थ में बातें करें, वैसे अगर आपको लगता है कि कोई कुछ गलत कह रहा है तो हर एक गलत कहने वाले को गलत कहना चाहिए. किसी एक को गलत कहना और दुसरे के कहे पर पुरे ब्लॉग जगत का चुप होना किसी भी हालत में जायज़ नहीं है. मेरे जानकारी के अनुसार तो अनवर जमाल ने कभी किसी दुसरे के धर्म ग्रंथो को बुरा नहीं कहा, हाँ अगर किसी ने बुरा बनाने की अथवा किसी की छवि बिगाड़ने की कोशिश की है तो अवश्य ही उसका विरोध किया है. लेकिन हर्फे गलत और भन्दा फोडू जैसे कुछ लोग तो सरे आम और रोजाना और बिना किसी सबूत के ताल थोक कर इस्लाम के खिलाफ उल्टा-सीधा लिख रहे हैं... क्या किसी ने हिम्मत की उनके खिलाफ कानून की बात करने की? या कानून केवल मुसलमानों के लिए ही हैं?
मैं हमेशा ही किसी भी दुसरे धर्म के खिलाफ लिखे जाने वाले लेखों की हमेशा भर्त्सना करता हूँ, लेकिन केवल एक पक्ष की भर्त्सना करना अथवा धमकाना और दुसरे को समर्थन करने जैसा कार्य मैंने आज तक नहीं किया है. और ऐसा करने वालो के मैं हमेशा खिलाफ रहता हूँ. मैं मानता हूँ कि आपने भी कभी ऐसा नहीं किया है, और हमेशा ही सत्य का साथ दिया है, लेकिन बहुत से बड़े कहलाने वाले ब्लोगर ऐसा करते हैं... आपका और ब्लॉग जगत के अन्य बंधुओं का आक्रोश अगर गन्दगी फ़ैलाने वाले अन्य ब्लोग्गर के खिलाफ होता तो इन्साफ की बात होती.
शाह नवाज मैं आपकी बातों से सहमत हूं. पर एक बात तो मानेंगे न कि इस पोस्ट की आखिरी बातें सिर्फ औऱ सिर्फ भावनाओं को भडकाने की है। जब मुस्लमानों के मरने की बात होती है तो कश्मीर औऱ असम में मरने वाले हिंदुओं की भी बात होगी ही। क्या कहना चाहते हैं ये आखिरी लाईन में। क्या अफगानिस्तान में निरिह बच्चों औऱ महिलाओं को मारने वाले हिंदुस्तानी हैं.... क्या पाकिस्तान में कोई गया है यहां से मारकाट करने..जो आईएसआई के हाथों में खेलकर लोग अपने दी शरीर में जख्म कर रहे हैं। दोनो ही तरफ से आज आग लगाई जा रही है. कोई ये नही सोच रहा कि देश कितना तड़प रहा है। राम मंदिर को लेकर मेरे दिल में कोई दो राय नहीं है कि राम मंदिर को तोड़ कर ही मस्जिद बनी....काबा के बारे में जो कहा जा रहा हो.पर उसे तोड़कर मंदिर बनाने की बात कोई नहीं करता। आपको पता होना चाहिए कि कई हिंदु उसे तीर्थ मानते हैं औऱ जियारत करते हैं। उनकी आस्था का कारण चाहे उसे शिव मंदिर मानना हो, पर काबा तोड़ने की बात कोई हिंदू नहीं करता, करता है तो वो अज्ञानी है।
किसी कि पूजा पद्धती को गरियाना कहां की शराफत है। जो जिस तरह से रह रहा है उसे उसी तरह रहने दो। पूजा पूरी तरह से व्यक्तिगत है। देश में इसे लेकर कभी दंगे नहीं हुए 47 से पहले आप जानते हैं। अगर बातें इसी तरह की जाएंगी तो हम कहीं नहीं पहूंचेंगे। देश का हर नौजवान आज बाहर जाता है तो रंगभेद का शिकार होता है। भारतीय मुसलमान अरब में दोयम दर्जे का होता है..आप स्वीकार करें या नहीं ये सच है। तो ऐसे में मैं अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए लगे नौजवानों का पक्षकार हूं न कि धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले लोगो के। इन लोगों ने तो मौलाना आजाद को नहीं बख्शा था। हकीकत है कि मुसलमानों ने उनको जवाहर लाल के साथ रहने पर कितना गरियाया था। ऐसे में आम मुसलमान बेचारा क्या करे। नौजवान मुसलमान हो या हिंदू..सबका दिल एक जैसा ही धड़कता है। सबके दिल में अपने मां बाप की सेवा के लिए कहता है। कुछ करने के लिए कहदा है। हरेक का दिल मादरे वतन के लिए जान देने को तैयार रहता है। पर उसे ऐसे लोग सिर्फ और सिर्फ धर्म की आड़ में बर्बाद करने पर तुले होते हैं।
आपको भी ऐसे लोगो का पूरी विरोध करना चाहिए न कि समर्थन।
मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ? मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ? और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ? काम लम्बा है लेकिन दूसरा कोई शॉर्टकट नहीं है और मस्जिद के लिए इन्सान का खून बहाना जायज़ नहीं है। लोग जब समझेंगे तो खुद उस तरफ अपने क़दम बढ़ाएंगे जहां उन्हें अपना कल्याण नज़र आएगा। तब तक मुसलमानों को सब्र करना चाहिए क्योंकि हरेक हिन्दू उसका दुश्मन नहीं है और दुश्मन तो आर.एस.एस. के लोग भी नहीं होते लेकिन राजनीति और कूटनीति बुरी बला है और मुसलमानों की लीडरी करने वाले इन लोगों से मिले होते हैं। आजकल राहबर ही राहज़न बने हुए हैं। हिन्दू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद की आड़ में माल इकठ्ठा किया जा रहा है।
totally agree with shahnawaz bhai !!
रोहित भाई, लोगो की भावनाओं को भड़काने वाली बैटन का मैं स्वयं भी ज़बरदस्त विरोधी हूँ. क्यों भड़की हुई भावनाओं के साथ कोई भी व्यक्ति कभी सही कदम नहीं उठा सकता है. जहां तक बात मुसलमानों के मरने या हिन्दुओं के मरने की है तो मरे तो दोनों ही केस में इंसान ही हैं. यह कतई ज़रूरी नहीं है कि अगर एक का ज़िक्र करके कोई लेख लिखा जा रहा हो तो दूसरी जगह का भी ज़िक्र उसी लेख में हो. हाँ यह अवश्य है कि उसके लिए भी वैसी ही भावना होनी चाहिए.
आखिरी लाइन में यह कहना चाहता हूँ, कि कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए. अगर फैसला मंदिर के लिए आता है तो सबको उसका इस्तकबाल करना चाहिए और अगर मस्जिद के हक में आता है तो उसका भी सबको इस्तकबाल करना चाहिए. क्योंकि जिसके भी हक में आयेगा इसका मतलब दुसरे ने ज़बरदस्ती उसका हक छीना है. और अगर यह बात नहीं हुई तो यह या कोई भी मसला कभी हल हो ही नहीं सकता है.
जो लोग मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की बात कर रहे हैं, उन्हें चाहिए कि कानून का सहारा लेकर साबित करें. और अगर ऐसा हुआ है तो अवश्य ही गलत हुआ है, ऐसी मस्जिदों में नमाज़ की इजाज़त है ही नहीं. जैसा कि ऊपर स्वयं शरीफ साहब ने बताया कि नमाज़ केवल उन मस्जिदों में ही हो सकती है जिनकी जगह को खरीदा गया हो अथवा सरकार ने दान दिया हो.
मैं अभी आपको एक उदहारण देता हूँ, दिल्ली में लक्ष्मी नगर पुश्ते पर ITO से पहले झुग्गियां पड़ी हुई थी, वहां पर मंदिर मस्जिद भी बने हुए थे. सरकार ने जब झुग्गियां तोड़ी तो वहां मौजूद मंदिर-मस्जिदों को भी तोडा. इस घटना का किसी भी मुस्लिम ने विरोध नहीं किया. क्यों सब जानते थे कि उन मस्जिदों का निर्माण सरकारी जगह पर किया गया था.
वहीँ दूसरी और उससे कुछ ही दूरी पर सरकार ने अपनी अरबों की जगह अक्षरधाम मंदिर के लिए दान दी. अब यहाँ सवाल किया जा सकता था कि अगर अक्षरधाम मंदिर के लिए जगह दी जा सकती है तो क्यों नहीं उन मंदिर-मस्जिदों को भी तोड़ने की जगह सरकार जगह का मालिकाना हक दे देती. लेकिन किसी ने भी ऐसी मांग नहीं की. क्यों सब मानते हैं, कि यह सरकार का फैसला है, उसकी ज़मीन है वह जैसे चाहे इस्तेमाल करें.
वैसे तो मेरा यह मानना है कि ऐसे विवादस्पद मुद्दों पर जो कि कोर्ट में विचाराधीन है, बात होनी ही नहीं चाहिए. लेकिन अगर उन्होंने की है और आप कह रहे हैं कि उसमे कुछ भड़काने वाला लिखा है, तो उसे मुझे भी बताइए. क्यों मुझे कुछ ऐसा नज़र नहीं आया है. फिर उस पर हम बात कर सकते हैं और लेखक के भी संज्ञान में उस बात को ला सकते हैं.
ये लो,
मेरी बात और मेरा सवाल तो न जाने कहाँ रह गया?
सिर्फ़ एक सीधा सा सवाल पूछा था आलिम साहब से कि -
क्या मन्दिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिद में नमाज़ जायज़ है? (हाँ या ना)
यदि जायज़ नहीं है तो क्या उन मस्जिदों में जो नमाज़ पढ़ी जा रही है वह कुफ़्र है? और यदि ऐसा काम जायज़ है, तो फ़िर एक ढाँचा टूटने पर इतनी हायतौबा क्यों मच रही है।
जवाब मिले तो फ़िर मैं कई मस्जिदों के चित्र दूं जिसमें तोड़े गये मन्दिरों की मूर्तियों के अंश दिखाऊं।
सुरेश ने ऑर्डर दिया है उसका जवाब हाँ या ना मे दो, अपने सारे काम और सारी बाते बंद करके जल्दी, समझ गये ना? नही तो क्या होगा जानते नही हो उसको, और उसने फतवा भी दे दिया कि नमाज़ कहाँ पर पढनी कुफ्र है, आगे से कोई फतवा लेना हो मंदिर मस्जिद से जुड़ा मामला हो या और कोई आपका मामला हो तो सुरेश से ले लेना एकदम बढिया और नयी तकनीक के साथ फतवा मिलेगा.
@ बेनामी - हा हा हा हा हा हा हा हा…
सवालों से कन्नी काटना या उसे घुमाना-फ़िराना तो पुरानी आदत है आपकी…। फ़तवों की दुनिया आपको मुबारक, हमारे दिमाग तो खुले हुए हैं… :)
सुरेश सवालो के जवाब उपर के कॉमेंट्स मे लोगो ने दे दिए है लेकिन समझना चाहाते ही नही तो कोई दिमाग़ मे किसी के कैसे डाले खाने कि चीज़ तो मुँह मे ज़बरदस्ती डाल दो तब भी नही खाए तो डॉक्टर से कह कर ड्रिप लगवा दो लेकिन इस दिमाग़ मे कैसे पहुचाए.
चलो मै एक उधारण देता हूँ आपका मकान आपने किसी मुस्लिम को बेचा या गिफ्ट मे दे दिया उसमे एक मंदिर बना हुआ था, मंदिर छोटा होगा तो अपने साथ ले जाओगे लेकिन मंदिर बड़ा बना हुआ है तो क्या करोगे ? छोड़ कर ही तो जाओगे, ज़यादा से ज़यादा मूर्तिया ले जाओगे या पूरा मंदिर उखाड़ कर ले जाओगे ?
अब मालिक तो आप नही रहे और वो उस जगह मे बनी चीज़ को तोड़ कर अब उसका मालिक कुछ भी बनाए और उन पत्थरो का उपयोग अपने अनुसार भी कर ले तो आप क्या उस पर दावा करेंगे ? और वो उसे किसी मस्जिद के लिए वसीयत कर दे और फिर उस जगह को उस समाज के लोग अगर जो कुछ भी उसमे बना है उसे तोड़ कर मस्जिद बना ले तो क्या वो मस्जिद हराम हो गयी या वहाँ नमाज़ पड़ना हराम हो जाएगा ?
@जनाब सतीश जी! मैंने दोबार आपकी टिप्पणी पढ़ी और यही समझा कि आप कह रहे हैं कि सब धर्म बराबर हैं। आप किसी धर्म की आलोचना न करें, सबको बराबर और सत्य समझें, जो जिस धर्म को मान रहा है आप उसे अपने धर्म के बारे में बताएं लेकिन उसे सर्वश्रेष्ठ घोषित न करें। दूसरे इस्लाम पर कीचड़ उछालें , उन्हें उछालने दो, चुपचाप देखते रहो जैसे कि मैं देखता रहता हूं। अगर ऐसा नहीं करोगे तो देश के क़ानून की भयानक धाराओं की जकड़ में आकर छटपटाते रहोगे। मैं केवल क़ानून का संदर्भ दे रहा हूं , मैं भले ही कुछ न करूं लेकिन देर सवेर कोई न कोई यह काम ज़रूर अंजाम देगा।
आप यही तो कहना चाहते हैं न ?
उसी का जवाब मैंने आपको इस पोस्ट में दिया है।
http://vedquran.blogspot.com/2010/07/real-guide-anwer-jamal.html
अब उस समय क्सि ज़मींदार के पास कौन सी ज़मीन थी और उसने किसको बेचा या दान दिया और फिर खरीदने वाले उसका क्या उपयोग किया ? इसका पूरा लेखा झोखा पूरे भारत कि ज़मीन का आप बनाए,
सिर्फ़ चिल्ला देने से मूर्ति मिल गयी या मूर्ति लगी तस्वीर है से क्या साबित हो सकता है ?
आज प्राचीन मूर्तियो कि तस्करी होती है और उनकी तस्करी करने जब पकड़े जाते है तो वो हिंदू ही निकलते है, अब अगर कोई मूर्ति वाइट हाउस मे लगी मिल जाए तो क्या इस से ये साबित होगा कि वहाँ पहेले मंदिर था ? और अब उसे तोड़ कर वापस मंदिर बनाओ ?
Sir Suresh ! आपका दिमाग तो खुला है आप ऐसा मत करना जैसा यह कर रहा है वर्ना सब अन्दर चला जायेगा। यह तो बच गया क्योंकि ...
http://images.biafranigeriaworld.com/BNW-child-bathes-in-cow-urine.jpg
बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा
बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा
बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा
बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा
बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा
बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा , बेनामी - हा हा हा
सुरेश जी
बात सिरे से ही बाहर जा रही है। राम मंदिर का फैसला अदालत को करने दे फिलहाल। पर जाने कई मंदिर तोड़े गए इस को ये नहीं मानेंगे। क्या है कि जब कोई दस्तावेज कहो तो ये उसे प्रोपगेंडा कहते हैं। बाबरनामा किताब के मंदिर तोड़ के मस्जिद बनाए गए पन्नों को किसने गायब किया। ये बात भी मैने किसी मुसलमान भाई से सुनी थी कि खुद बाबर नहीं चाहता था मंदिर तोड़ना पर मगर उसकी समझ से उसके बच्चे की जान जिन लोगो ने बचाई थी, वो चाहते थे इसलिए मंदिर को तोड़ा गया। रहने दीजिए इन्हें कोई बात समझ में आने वाली नहीं। बिना नाम के लोगो पर कमेंट करने की आदत तो हर उस शख्स मं है जो पीठ पीछे वार करना जानता है।
@शहरोज
इस लेख के आखिर में लिखा गया है .....देश में जहां बहुत से मुसलमानों को क़त्ल करके शहीद किया जा रहा है वहां मस्जिद भी शहीद कर दी गई।....
इसका क्या मतलब है। मुसलमानों को भड़काना नहीं तो औऱ क्या है। भाई को भाई से बांटने के अलावा कुछ नहीं। हद है बेशर्मी की। आज हर नौजवान मिलकर कुछ करना चाहता है। अमन के साथ अपने परिवार , देश को आगे ले जाना चाहता है तो ऐसे लोग नौजवानों को बांटने में लगे है। जबकि करोड़ो मुसलमानों के रगों में हिंदुओं का ही खून बह रहा है। इसी माटी से उनका शरीर बना है, इसी देश का पानी उनकी रगो में खून बह कर बह रहा है। लेकिन नहीं, इन्हें शर्म नहीं आएगी। आज ऐसे लोग नौजवानो को भटकाने औऱ भड़काने में लगे हुए हैं।
शहरोज हो सके तो जाग जाओ...
@ boletobindas - "…जाने कई मंदिर तोड़े गए इस को ये नहीं मानेंगे। क्या है कि जब कोई दस्तावेज कहो तो ये उसे प्रोपगेंडा कहते हैं…"। आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत…
चाहे जितने सबूत दे दो, लेकिन ये नहीं मानेंगे कि मन्दिर (मन्दिरों) को तोड़कर मस्जिद (मस्जिदें) बनाई गई…
और बाबर की बात तो बहुत पुरानी हो गई, कश्मीर ले जाकर ही दिखा दो इन बेनामी जाहिलों को, कि पिछले 20 साल में वहाँ कितने मन्दिर तोड़े गये। बामियान में बुद्ध की प्रतिमा को जिसने तोड़ा क्या वे हिन्दू थे? लेकिन यह जो मानसिकता है ना, कि "मैं श्रेष्ठ, मेरा धर्म श्रेष्ठ, मेरे पैगम्बर के अलावा और कोई नहीं, मेरी किताब ही अन्तिम है इसके आगे कोई नहीं, तुम मेरे धर्म में आ जाओ, मूर्ति पूजते हो तो काफ़िर हो… इत्यादि-इत्यादि…" सारी समस्या की जड़ यही है और पूरा विश्व इससे परेशान है…
इसलिये boletobindas जी, आप, मैं और कई लोग चाहे जितने सबूत दे लें, ये कभी नहीं मानेंगे कि मन्दिर तोड़े गये थे और उस पर मस्जिदें बनाई थीं…
@संजय बेंगाणी जी की बात सोलह आने सही है। जो सुबूतों से साबित हो उसे मानना ही देशप्रेमी नागरिकों का कर्तव्य है। जो लोग कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी उसका इन्कार करें वे न धार्मिक हैं और न ही सही नागरिक। ईमान शब्द ही अम्न के माद्दे से बना है , अम्न को क़ायम रखने की ज़िम्मेदारी दूसरों से ज़्यादा मुस्लिमों की है,बेगुनाह इन्सान की जान हरेक इमारत से ज़्यादा क़ीमती है चाहे वह इमारत किसी मस्जिद की ही क्यों न हो ?
धर्म का काम है कल्याण करना और धार्मिक संतों का काम है धर्म के अनुसार मार्गदर्शन करना। देश के हिन्दू मुस्लिम संतों आलिमों को चाहिये कि वे नेताओं को धर्म के नाम पर आग भड़काकर अपनी अपनी पार्टी के तवे पर राजनीति की रोटी सेकने से रोकें। अगर धर्मपुरूषों के रहते हुए भी धर्म के नाम पर ‘चर्मण्वती‘ जैसी खून की नदियां देश में बहती रहीं तो फिर देश को धर्म और संतों से क्या फ़ायदा मिलेगा ? इसे देखकर तो नास्तिकों की शंकाओं को और ज़्यादा बल मिलेगा।
@ भाई वत्स जी की बात भी ठीक है । बामियान के विशाल बुत को गिराना भी ग़लत और निंदनीय है। इसे तो महमूद ग़ज़नवी ने भी न ढहाया था क्योंकि वह तो सोना चांदी पर हाथ साफ़ करने का आदी था और यहां तो सिर्फ पत्थर था। इसमें भी सोमनाथ के बुत की तरह हीरे मोती , सोना चांदी भरा होता तो इसे भी तोड़कर वह अपने ख़ज़ाने में भर लेता।
***,अब आप लोग पोस्ट के मूल विषय पर भी अपने विचार रखें कि श्री रामचन्द्र जी अयोध्या में अब से कितने समय पहले पैदा हुए थे ?
यह काल निर्धारण बहुत ज़रूरी है, इससे मीर बाक़ी के काम के सही या ग़लत होने का बड़ा संबंध है। उम्मीद है कि इस सवाल को अब और घुमाने-टलाने का प्रयास नहीं किया जाएगा।
http://drayazahmad.blogspot.com/2010/08/drayaz-ahmad.html?showComment=1280754860134#c1697085336790605246
कई दस्तावेज नष्ट कर दिए गए इसे आप लोग नहीं मानेंगे कभी। मैने पूछा था कि बाबरनामा के जो पेज गायब हैं वो कहां हैं। आप तो कभी मानेंगे ही नहीं कि हिंदुओं पर अत्याचार हुए। मंदिर हर उस जगह ज्यादातर तोड़े गए जहां प्रबल विरोध हुआ। आप एक जगह बताइए जहां भारी तादात में हिंदुस्तान में मस्जिद तोड़े गए हों।
अब तो आप लोग नालंदा के विश्विघालय को किसने जलाया ये तक मानने को तैयान नहीं। तो कहा क्या जाए। अफागनिस्तान में क्यो होता है ये उतना महत्वपुर्ण यहां नहीं है। जरुरी है तीन जगह जो सबसे ज्यादा धार्मिक केंद्र थे वहां मस्जिद मंदिर के साथ ही कैसे बन गई।
आप लोग सिरे से इस बात को मानने को तैयार ही नहीं हैं कि तलवार के जोर पर इस्लाम फैला भारत में तो बाकी बात बेमानी है। वरना सोचने की बात है कि ईसा के जन्म के हजारों साल बाद भी ईसाई कितने हैं भारत में। आजकल के चंद वाकयों को छोड़ दिया जाए तो ईसाईयों से या फिर किसी ओर धर्म के लोगो से सनातन धर्मियों की जंग धर्म के नाम पर क्यों नहीं हुई। अब शंकराचार्यजी का नाम मत लीजिएगा। उन्होंने तर्क के आधार पर सनातन धर्म की व्याख्या की थी। आप में से कई तो बह्म औऱ बह्मा का अंतर नहीं जानते सनातन धर्म समझेंगे क्या। फिजूल के सोचो के लोगो के ब्लॉग पर आईंदा नहीं आने का।
डॉ अनवर जमाल जी - "श्री रामचन्द्र जी अयोध्या में अब से कितने समय पहले पैदा हुए थे ? यह काल निर्धारण बहुत ज़रूरी है…"
यह तो निश्चित है कि बाबर से तो पहले ही पैदा हुए थे, पैगम्बर मोहम्मद से तो पहले ही पैदा हुए थे… फ़िर इस काल निर्धारण का क्या फ़ायदा होगा?
कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहते, कि बाबर ने वह ज़मीन भगवान रामचन्द्र से खरीदी थी? और फ़िर उस पर बड़े "सौहार्दपूर्ण माहौल" में मस्जिद बनवाई? :) :)
राम का जन्म ६ दिसम्बर १९९२ को हुआ
ज़ाहील का मतलब क्या होता है ? ज़ाहील किसे कहते है ? ज़ाहील, ज़ाहीलिया, ज़ाहीलियत,
@जनाब ! मैं जो कहना चाहता हूं वह मेरे ब्लॉग पर साफ़ लिखा है, उसका एक अंश यहां भी प्रस्तुत है।
मस्जिद के लिए किसी इन्सान का खून बहाना जायज़ नहीं है। रामचन्द्र जी ने वनवास स्वीकार किया लेकिन लड़कर अपनी जन्मभूमि में न रहे।
पैग़म्बर साहब स. भी टकराव और खून ख़राबा टालने के लिये ही मक्का छोड़कर चले गये।
हिन्दू श्री रामचन्द्र जी को अपना आदर्श मानते हैं और मुसलमान पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. को । दोनों समुदायों के नेता इनमें से किसी को भी अपना आदर्श नहीं मानते और टकराव का माहौल तैयार करते रहते हैं। जबकि दोनों समुदायों के लोग आपस में प्यार से रहते हैं और रोज़ी रोटी कमाने में एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। अगर दोनों समुदाय के आम लोग और नेता अपने आदर्श पुरूषों के जीवन से शिक्षा लेकर उसपर व्यवहार करें तो हरेक विवाद का हल शांतिपूर्वक हो सकता है।
http://vedquran.blogspot.com/2010/07/real-guide-anwer-jamal.html
इस स्पष्टीकरण के बाद उम्मीद है कि कोई न कोई भाई जन्मडेट भी बताने को राज़ी हो जाएंगे। प्लीज़ अब तो बता ही दीजिये।
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वह क़त्ल भी करते हैं तो चरचा नहीं होता।।
बाबरी मस्जिद में चोरों की तरह से प्रवेश करके मूर्ति रखना और मस्जिद की वैधता पर ऐतराज़ करना यह दोनों मामले परस्पर भिन्न हैं इनको आपस में मिला देना अन्याय है। होना यह चाहिए था कि कोतवाली में दर्ज कराई गई एफ़.आई.आर के अनुसार अवैध ढंग से मस्जिद में रखी गई मूर्ति को निकालकर मस्जिद को पवित्र कर दिया जाता और यदि किसी को मस्जिद के स्थान की वैधता पर ऐतराज़ था तो उसके लिए सभ्य लोगों की तरह से न्यायालय की शरण में जाकर न्याय की मांग की जाती।
केवल इतनी सी बात कहने के लिए ज़बान खोली थी जिसका हमारे कुछ भाइयों ने साम्प्रदायिकता की ओर रुख़ मोड़ दिया।
मैं आप सभी का आभारी हूं।
श्री राम आदि के अस्तित्व के बारे में बहस करने का औचित्य समझ में नही आता क्योंकि मूर्ती पूजक को तो मूर्ति दिखाई देती है जिसका अस्तित्व बेशक है. जहाँ तक मंदिर मस्जिद का सवाल है तो उसके सन्दर्भ में हम कह सकते हैं कि आजकल मंदिरों कि बाढ़ सी आई हुई है. पुलिस चौकियों में, सार्वजनिक पार्कों आदि में जो मंदिर बनाये जा रहे हैं उनकी वैधता कहीं से भी साबित नहीं होती. इसके बावजूद भी कभी किसी मुसलमान ने ऐतराज़ नहीं किया क्योंकि इसमें किसी मुसलमान का कोई नुकसान नहीं है परन्तु मस्जिद खरीदी हुई ज़मीन या किसी मुसलमान के द्वारा मस्जिद बनाने के लिए स्वेच्छा से दी गई ज़मीन होने के बावजूद भी नहीं बनाने दी जाती. आखिर ऐसा क्यों ?
आप सभी मुस्लीम ब्लोगरों के भारत में होने के सबूत आप स्वयं है।
लेकिन यदि आप सभी के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगा दिया जाय तो कैसा रहे?
कौन है आप लोग ?
नाम तो अरबी लगते है?
अरब से किस तारीख को आये थे?
अरब आदि से आने वाला हरेक का मूल पुर्वज कौन था?
अगर मूल पुर्वज भारतिय था तो उसका नाम क्या था?
उसने किस तिथि को इस्लाम स्वीकार किया ?
आप सभी के पास अपने अपने उत्तर नहिं है तो आपका अस्तित्व भी संदेह के घेरे में है।
suj sahee kah rahehe
mujhe saram aati hai aapko insaan kahte hue aap kis maksad se aapas me lad rahe ho ye dhram bhagwan ya allah ne nahi banaya ye hamare banae hue hai kisi ko ucha kisi ko nicha dikha k kuch nahi hasil hoga
यदि मस्जिद के स्थान पर कुछ और तामीर हुआ तो मुसलमानों को चाहिए कि उसको तस्लीम न करके यह समझ कर धैर्य रखें कि देश में जहां बहुत से मुसलमानों को क़त्ल करके शहीद किया जा रहा है वहां मस्जिद भी शहीद कर दी गई। ...........................................maiN is baat se sahmat nhi ho pa rha..........plz. mujhey saboot deiN
मुहम्मद और श्रीरामचन्द्र को एक समान दर्शाना बहुत बडी भूलहै,आप ही बताएं कहां एक आदर्श पुरुष और कहां एक ऐसा व्यक्ति जो अपने दिमाग में आयी विचारधारा को लिपिबद्ध करवाकर यह प्रचारित करने में सफल रहा कि यह तो अल्लाह की वाणी है.दुनिया में फैल रहे इस्लामिक आतंकवाद के मूल में एक और केवल एक कारण है कुरान और हदीस.इसका यह मतलब नहीं है कि मैंने कुरान और हदीस को पढा है.मैं तो इस्लामिक कल्चर की परिणति देख रहा हूं जो मूलतः इस्लामिक धा्र्मिक ग्रन्थों से प्रभावित रही है.इस्लामिक के तूफानी प्रसार का यह मतलब नहीं होता कि यह अच्छाइयों से आच्छादित है.इस दुनिया में कम ही लोग स्वतः इस्लाम स्वीकारे हैं,बल्कि आजकल कुछ अन्य धरमों की लडकियां झांसे में आकर इस्लाम स्वीकार कर ले रही हैं किन्तु कुछ काल बाद ही उन्हें अपनी भूल पर अपूर्णीय पश्तावा होत हैजब समझ में आता है कि उनकी स्वतन्त्रता तो सदा के लिए छिन गयी.ईसाई से मुस्लिम बनी महिलाएंतो अपने सौहर को छोड चलता बनती देखी गयी हैं किन्तु अन
य धर्मों से आयी लडकियां सारा जीवन परतन्त्रता में काट कर मर जाती हैं.जरा सोचो क्या आपके पूर्वज हिन्दू हिन्दुआओं की हीशाखाएं हैं)नहीं थे.बेचारे
सारे धरम हैं ही शुद्ध बकवास.हमारा जीवन प्रकृति के नियमोंसे चलता है ,न कि धार्मिक पाखंडोंसे.सारे के सारे धरम मनुष्यों को तोडते हैं,जोडता कोई भी नहीं.आइए चलें परगतिशीलता की ओर और हमारा धर्म भी हो"प्रगतिशील धर्म".जय विग्यान.
मुस्लिम तो खुद ही आतंक के पर्याय बन चुके हैं,उनको कौन मार सकता है.हां इस्लाम के लिए शहीद हो रहे हैं,यह एक दीनी जडता का रोग है .जिसका इन्फेक्सन इस्लामी ग्रन्थों से सतत होता रहता है और व्यक्ति हूरों की लालच में शहीद होता रहता है.
मस्जिद के किया जमीन क्या श्री राम जी दे गए थे
यदि नही तो नजायज स्थान पर पढ़ी जाने वाली नवाज किसी काम की नही व्व भी नाजायज ही रही
Post a Comment