Monday, July 12, 2010

janta ka dosh दोषी सरकार के निर्वाचक निर्दोष नहीं sharif khan

किसी वन में एक साधु तपस्या किया करता था। उसका एक शिष्य था जो अपने गुरु की सेवा करना ही अपना धर्म समझता था। साधु प्रायः ईश्वर से प्रार्थना किया करता था कि हे ईश्वर यदि तू मुझे इस देश का राजा बना दे तो मैं जनता भलाई के कामों में अपना शेष जीवन अर्पित कर दूंगा। भयमुक्त समाज का निर्माण करूंगा। जितने भी नेक और भले लोग हैं उनका उनकी नेकी व भलाई के अनुसार आदर सत्कार करूंगा तथा ज्ञानी जनों को अच्छे पदों पर सुशोभित करूंगा। आदि। साधु द्वारा की जाने वाली प्रार्थना का ज्ञान उसके शिष्य को भी था और शिष्य को ऐसा विश्वास था कि एक न एक दिन गुरु की प्रार्थना रंग लाएगी और वह अवश्य ही राजा बन जाएंगे। अतः राजा बनने पर मेरी सेवा के बदले में मन्त्रीपद मुझे भी मिल जाएगा। इसी प्रकार से काफ़ी समय व्यतीत हो गया और साधु बूढ़ा होने लगा तथा शिष्य का विश्वास डगमगाने लगा।
इसके नतीजे में शिष्य ने विचार किया कि हो सकता है कि ईश्वर को मेरे गुरू की इच्छा के अनुरूप राजा बनाना मन्ज़ूर न हो इसलिए शिष्य गुरु की प्रार्थना के विपरीत स्वयं इस प्रकार से प्रार्थना करने लगा कि हे ईश्वर यदि तू मुझे इस देश का राजा बना दे तो मैं ऐसा अराजकता का माहौल बना दूंगा कि लोग त्राहि त्राहि करने लगेंगे। जितने अपराधी हैं वह देश की नाक कहलाएंगे। भले और नेक लोगों को मुंह छिपाने की जगह मिलना सम्भव न रहेगा तथा उनको जेलों में डाल दिया जाएगा। आदि। अक्सर जोश में आकर शिष्य आवाज़ के साथ प्रार्थना करता था जिससे गुरु अप्रसन्न हो जाते थे परन्तु कुछ कह न पाते थे।
इसी प्रकार दिन बीतते गए और एक दिन ऐसा हुआ कि उस देश के राजा की मृत्यु हो गई। नए राजा के चुनाव के लिये वहां की जनता ने तय किया कि जो व्यक्ति सुबह को सबसे पहले नगर में प्रवेश करेगा उसी को राजा बना दिया जाएगा। साधु का शिष्य सुबह सवेरे भीख मांगने के लिये जाता ही था अतः नगर में प्रवेश करने वाला पहला व्यक्ति होने के कारण उसको सर्व सम्मति से देश का राजा बना दिया गया।
जिन वादों के साथ वह राजगद्दी तक पहुंचा था उनके अनुसार कार्य करते हुए उसने जेलों के द्वार खुलवा दिये और ‘जितना बड़ा अपराधी उतना बड़ा पद‘ के फ़ार्मूले पर अमल करते हुए देश की शासन व्यवस्था क़ायम की। कमज़ोर व बूढ़ों को जेलों में डाल दिया गया और शिक्षित, सज्जन व अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले नौजवान या तो देश से पलायन करने पर मजबूर हो गए या फिर पुलिस हिरासत में मारे जाने लगे अथवा फ़र्ज़ी मुठभेड़ में उनको जीवित रहने के हक़ से वन्चित किया जाने लगा। जब पानी सर से गुज़रने लगा तो कुछ बुज़ुर्ग लोगों ने देश को इस लानत से बचाने के लिये एक योजना बनाई जिसके अनुसार यह पता लगाया गया कि नया राजा कहां से आया है और पता लगाते हुए वह लोग उस साधु के पास पहुंचे। साधु सारी बातें सुनने के बाद अपने शिष्य को समझाने के लिये राजदरबार में पहुंचा और राजा से उसने सही रास्ते पर चलने का अनुरोध किया जिसके जवाब में शिष्य ने कहा, ‘‘महाराज, आप मेरे गुरु हैं और मैंने इतने दिन आपकी सेवा की है अतः इन बातों का ध्यान रखते हुए तो मैं आपकी जान बख्शता हूं वरना अच्छी सलाह देकर आपने जो जुर्म किया है वह माफ़ी के क़ाबिल नहीं है।
इसके बाद राजा ने दरबार में मौजूद लोगों की ओर इशारा करते हुए कहा कि, ‘‘इन बदनसीबों ने मुझमें कौन सी ख़ूबी देखी जो मुझे अपना राजा बना लिया। जिस देश की जनता राजा का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त होने के बावजूद बिना सोचे समझे अपना राजा चुनकर जो पाप करती है, ईश्वर उस देश की जनता के सर पर उसके द्वारा किये गए इस पाप की सज़ा के तौर पर मुझ जैसा स्वार्थी, निकम्मा व मानवता को कलंकित करने वाला चरित्रहीन व्यक्ति राजा के रूप में थोप देता है। लिहाज़ा मुझ पर दोष न देकर इन पापियों को अपने किये की सज़ा भुगतने दीजिए।‘‘

18 comments:

Unknown said...

अच्छा आइना दिखाया है. शुभकामनाएं!

Anonymous said...

good style.

Anonymous said...

nice post.

Anonymous said...

nice post.

Unknown said...

‘‘इन बदनसीबों ने मुझमें कौन सी ख़ूबी देखी जो मुझे अपना राजा बना लिया। जिस देश की जनता राजा का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त होने के बावजूद बिना सोचे समझे अपना राजा चुनकर जो पाप करती है, ईश्वर उस देश की जनता के सर पर उसके द्वारा किये गए इस पाप की सज़ा के तौर पर मुझ जैसा स्वार्थी, निकम्मा व मानवता को कलंकित करने वाला चरित्रहीन व्यक्ति राजा के रूप में थोप देता है। लिहाज़ा मुझ पर दोष न देकर इन पापियों को अपने किये की सज़ा भुगतने दीजिए।‘‘

Anonymous said...

very good post

Anonymous said...

मुल्लाजी ज़र्दारी से : कौम को मत सताओ वर्ना अल्लाह क अज़ाब नज़िल होगा !

ज़र्दारी मुल्लाजी से : ओ बाद्शाहो मै हि वो अज़ाब हु जो आ चुका है !

Anonymous said...

Misconception: Islam is a religion only for Arabs

The fastest way to prove that this is completely false is to state the fact that only about 15% to 20% of the Muslims in the world are Arabs. There are more Indian Muslims than Arab Muslims, and more Indonesian Muslims than Indian Muslims! Believing that Islam is only a religion for Arabs is a myth that was spread by the enemies of Islam early in its history. This mistaken assumption is possibly based on the fact that most of the first generation of Muslims were Arabs, the Qur'an is in Arabic and the Prophet Muhammadpeace be upon him was an Arab.

Anonymous said...

The fastest way to prove that this is completely false is to state the fact that only about 15% to 20% of the Muslims in the world are Arabs. There are more Indian Muslims than Arab Muslims, and more Indonesian Muslims than Indian Muslims! Believing that Islam is only a religion for Arabs is a myth that was spread by the enemies of Islam early in its history. This mistaken assumption is possibly based on the fact that most of the first generation of Muslims were Arabs, the Qur'an is in Arabic and the Prophet Muhammad peace be upon him was an Arab.

However, both the teachings of Islam and the history of its spread show that the early Muslims made every effort to spread their message of Truth to all nations, races and peoples. Furthermore, it should be clarified that not all Arabs are Muslims and not all Muslims are Arabs. An Arab can be a Muslim, Christian, Jew, atheist - or of any other religion or ideology. Also, many countries that some people consider to be "Arab" are not "Arab" at all - such as Turkey and Iran (Persia). The people who live in these countries speak languages other than Arabic as their native tongues and are of a different ethnic heritage than the Arabs.

It is important to realize that from the very beginning of the mission of Prophet Muhammad, peace be upon him, his followers came from a wide spectrum of individuals, there was Bilal, the African slave; Suhaib, the Byzantine Roman; Ibn Sailam, the Jewish Rabbi; and Salman, the Persian. Since religious truth is eternal and unchanging, and mankind is one universal brotherhood, Islam teaches that Almighty God's revelations to mankind have always been consistent, clear and universal.

The Truth of Islam is meant for all people regardless of race, nationality or linguistic background. Taking a look at the Muslim World, from Nigeria to Bosnia and from Malaysia to Afghanistan is enough to prove that Islam is a Universal message for all of mankind, not to mention the fact that significant numbers of Europeans and Americans of all races and ethnic backgrounds are coming into Islam.

HAKEEM YUNUS KHAN said...

क्या खूब चैंकाया आपने ? आपने बिल्कुल ठीक कहा है कि सामूहिक मुसीबतों के लिए हम सब ज़िम्मेदार हैं।

Dr. Jameel Ahmad said...

आपका ये स्टाइल ठीक है समझदारों के लिए नसीहत है और जनता के लिए मनोरंजन। पंचतंत्र की कथाएं भी ऐसी ही हैं। आपने शराफ़त के साथ सबको नंगा कर दिया। आप आदमी हैं या प्रवक्ता ? अगर आप आदमी हैं तो बड़े समझदार हैं और अगर प्रवक्ता हैं तो फिर तो आपका संगठन भी आपसे परेशान रहता होगा ?

Dr. Jameel Ahmad said...

Nice post क्या होता है ? very nice है यह पोस्ट।

talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

MASHA ALLAH KYA BAT RAKHI HAI....BAHUT HI NAFASAT SE TANZ KIYA HAI AAPNE

सहसपुरिया said...

आपने बहुत ही सटीक तंज़ किया है,
आज के दोर की यही हक़ीक़त है. इस के लिए हम सब बराबर के ज़िम्मेदार हैं.

Bhavesh (भावेश ) said...

समाज के वास्तविक चेहरे को दिखाता हुआ आइना है ये शानदार लेख.

Sharif Khan said...

आपने लेख पसंद करके हिम्मत अफज़ाई की इसके लिए आप सभी का शुक्रिया.

Unknown said...

‘जितना बड़ा अपराधी उतना बड़ा पद‘
ऐसा लगता है कि वर्तमान काल का हूबहू नक्शा खींचा दिया हो.

Anonymous said...

mind blowing post.