जब किसी अधेड़ उम्र के शख़्स की पत्नी मर जाती है और उसके छोटे बच्चे भी होते हैं तब वह दूसरा विवाह करने के लिए अपने दोस्तों व रिश्तेदारों से किसी महिला की तलाश के लिए कहता है। जब उससे उसकी पसन्द के बारे में पूछा जाता है तो वह अपनी फ़रमाईश बताते हुए कहता है कि ऐसी विधवा हो जिसके बच्चे न होते हों। इसका सीधा सा अर्थ होता है कि उसको अपने सुख दुःख में साथ देने वाली लाईफ़ पार्टनर के बजाए ऐसी ग़ुलाम चाहिए जो उसके बच्चों की परवरिश के साथ उसकी शारीरिक भूख भी शान्त करती रहे।
इसके अलावा अगर कोई ऐसी महिला के सम्बन्ध में बात करता है जो बच्चे वाली विधवा हो तो उससे वह शख़्स इस शर्त पर विवाह करने के लिए तैयार होता है कि बच्चे को वह अपने साथ नहीं रखेगी। ऐसी स्थिति में उस यतीम बच्चे को बाप का साया उठने के बाद माँ की गोद से भी महरूम करके उसकी नानी की परवरिश में दे दिया जाता है। इस तरह एक विधवा होने के दुःख को झेल रही अबला नारी की ममता का भी गला घोंट दिया जाता है। इस तरह किसी दूसरी औरत की मौत के बाद उसके छोड़े हुए बच्चे या बच्चों की एक ऐसी महिला से परवरिश कराई जाती है जिसके बच्चे को उसकी गोद से छीन लिया गया हो।
ऐसी सोच रखने वाले लोगों से महिलाओं के अधिकारों की अदायगी की आशा नहीं की जा सकती और समाज को चाहिए कि ऐसी सोच रखने वाले ज़ालिमों की निन्दा करे।
इसके अलावा अगर कोई ऐसी महिला के सम्बन्ध में बात करता है जो बच्चे वाली विधवा हो तो उससे वह शख़्स इस शर्त पर विवाह करने के लिए तैयार होता है कि बच्चे को वह अपने साथ नहीं रखेगी। ऐसी स्थिति में उस यतीम बच्चे को बाप का साया उठने के बाद माँ की गोद से भी महरूम करके उसकी नानी की परवरिश में दे दिया जाता है। इस तरह एक विधवा होने के दुःख को झेल रही अबला नारी की ममता का भी गला घोंट दिया जाता है। इस तरह किसी दूसरी औरत की मौत के बाद उसके छोड़े हुए बच्चे या बच्चों की एक ऐसी महिला से परवरिश कराई जाती है जिसके बच्चे को उसकी गोद से छीन लिया गया हो।
ऐसी सोच रखने वाले लोगों से महिलाओं के अधिकारों की अदायगी की आशा नहीं की जा सकती और समाज को चाहिए कि ऐसी सोच रखने वाले ज़ालिमों की निन्दा करे।
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