जब कोई सरकारी कर्मचारी रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाता है तो उसके परिवार और जान पहचान के लोग उसकी मदद के लिए दिन रात एक कर देते हैं और उनकी कोशिशों से अक्सर उससे बड़े भ्रष्ट अधिकारी रिश्वत लेकर उसको छोड़ देते हैं। इसी प्रकार से जब कोई दुकानदार मिलावट करने, कम तोलने या नकली माल बेचने के जुर्म में पकड़ा जाता है तो उसके हिमायती भी उसको बेदाग बचा लेते हैं। इतना ही नहीं चोरी, बलात्कार, धोखा और क़त्ल करने जैसे अपराधियों के समर्थकों की भी कमी नहीं है। इस प्रकार से कुल मिलाकर ऐसे भ्रष्ट और उनके समर्थक तादाद के हिसाब से यदि देखा जाये तो वह बहुमत में हैं। ऐसे ही लोग चुनाव के समय यह कहते हुए देखे जा सकते हैं की अमुक व्यक्ति को वोट देने से अगर वह जीतता है तो वक़्त पर काम आयेगा। 'वक़्त पर काम' आना उनकी भाषा में यह है की जब हमारा कोई आदमी किसी अपराध में पकड़ा जायेगा तो उसको छुड़ाने में मददगार साबित होगा। जो लोग विकास, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा आदि की बेहतरी को चुनाव के लिए पैमाना बनाते हैं वह तादाद में अल्पमत में रहते हैं इसलिए सरकार बनाने के लिए निर्वाचित सदस्यों में गुण्डों, बदमाशों और विभिन्न प्रकार के माफियाओं का बहुमत होता है। यही हमारे देश का दुर्भाग्य है। अच्छे और साफ़ छवि के प्रत्याशी तब तक नहीं चुने जा सकते जबतक की उनको चुनने वाले वोटर भी स्वच्छ विचारधारा के लोग न हो।
इस प्रकार 'यथा राजा तथा प्रजा' की कहावत लोकतन्त्र में बदल कर 'यथा प्रजा तथा राजा' हो जाती है।
1 comment:
Right Mr. Khan .You have courage to say .the leader of demon is a demon. Leader chosen by vested interest is also the men serving his interest only.people get the leader of their quality what they deserve.
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