डॉक्टर ज़ाकिर नाईक ने इस्लाम के साथ ही दूसरे विभिन्न धर्मों का जिस गहराई से अध्ययन किया है और वह जिस प्रकार विभिन्न धर्म के लोगों के सवालों के जवाब देकर उनको सन्तुष्ट करते हैं, यह अपने आप में एक अजूबा होने के साथ हिन्दू मुस्लिम भाईचारा क़ायम करने में सहायक हो रहा है। इसी वजह से साम्प्रदायिकता के आधार पर वजूद में आने वाली सरकार डॉक्टर ज़ाकिर नाईक जैसे महान स्कॉलर के ख़िलाफ़ देशद्रोह, आतंकवाद और ऐसे ही दूसरे बेबुनियाद आरोप लगा कर उनको अपने ज़ुल्म का शिकार बनाने पर तुली हुई है क्योंकि हिन्दू मुस्लिम भाईचारा तो इस सरकार की रीढ़ की हड्डी तोड़ने के समान साबित होगा और उससे उसके वोटरों का ध्रुवीकरण प्रभावित होकर सरकार को ही खत्म कर देगा।
मीडिया का भी ज़ाकिर साहब पर अनजाने में होने वाला एक एहसान है कि उसने जिस तरह बंगलादेश की एक घटना को आधार बना कर उनको अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का आतंकवादी प्रचारित करना शुरू किया था उसी से पूरी दुनिया के अमन पसन्द लोग समझ गए थे कि अफ़ज़ल गुरु और याक़ूब मेमन की तरह एक और ज्यूडीशियल मर्डर की योजना बन चुकी है और उस समय डॉक्टर साहब का विदेश में होना भी उनके लिये लाभकारी साबित हुआ वरना देश में रहते हुए तो अब तक वह जेल में डाल दिये गए होते और उनके ख़िलाफ़ अदालत की आवश्यकतानुसार गवाह पैदा करके देश भर के गुण्डे 'ज़ाकिर नाईक को फांसी दो' के नारे लगा कर अदालत को फ़ैसला देने का नैतिक आधार तैयार कर चुके होते।
हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की बात करें तो डॉक्टर ज़ाकिर नाईक ग़ैर मुस्लिमों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब उन्ही की धार्मिक पुस्तकों से देने का प्रयत्न करते हैं और फिर इस्लाम से तुलना करते हुए यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि जो बुनियादी बातें उनकी धार्मिक पुस्तकों में कही गई हैं वह क़ुरआन से भिन्न नहीं हैं।
चूँकि हर बात वह सन्दर्भ सहित कहते हैं लिहाज़ा उसके नतीजे में ग़ैरमुस्लिमों के बुद्धिजीवी वर्ग में उन सन्दर्भों के अनुसार अपनी और इस्लामी किताबों को पढ़ कर उन बातों को जांचने की उत्सुकता पैदा होती है। इस प्रकार उनमें से जो लोग सत्य को पहचान जाते हैं तो वह अपनी इच्छा से अपना धर्म भी परिवर्तित कर लेते हैं।
इस प्रकार हिन्दू समाज के जो लोग अपनी ही धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने का शौक़ नहीं रखते थे वह डॉक्टर ज़ाकिर नाईक के कार्यक्रम को देख और सुन कर उनका इस बात के लिये एहसान मानते हैं कि उनके ज़रीये से वह भी अपने धर्म का ज्ञान प्राप्त करने के साथ इस्लाम से भी परिचत हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में डॉक्टर ज़ाकिर नाईक के ख़िलाफ़ सरकार द्वारा की जाने वाली कार्रवाई बुद्धिजीवी वर्ग के इन हिन्दुओं पर भी ज़ुल्म साबित होगी।
मीडिया का भी ज़ाकिर साहब पर अनजाने में होने वाला एक एहसान है कि उसने जिस तरह बंगलादेश की एक घटना को आधार बना कर उनको अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का आतंकवादी प्रचारित करना शुरू किया था उसी से पूरी दुनिया के अमन पसन्द लोग समझ गए थे कि अफ़ज़ल गुरु और याक़ूब मेमन की तरह एक और ज्यूडीशियल मर्डर की योजना बन चुकी है और उस समय डॉक्टर साहब का विदेश में होना भी उनके लिये लाभकारी साबित हुआ वरना देश में रहते हुए तो अब तक वह जेल में डाल दिये गए होते और उनके ख़िलाफ़ अदालत की आवश्यकतानुसार गवाह पैदा करके देश भर के गुण्डे 'ज़ाकिर नाईक को फांसी दो' के नारे लगा कर अदालत को फ़ैसला देने का नैतिक आधार तैयार कर चुके होते।
हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की बात करें तो डॉक्टर ज़ाकिर नाईक ग़ैर मुस्लिमों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब उन्ही की धार्मिक पुस्तकों से देने का प्रयत्न करते हैं और फिर इस्लाम से तुलना करते हुए यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि जो बुनियादी बातें उनकी धार्मिक पुस्तकों में कही गई हैं वह क़ुरआन से भिन्न नहीं हैं।
चूँकि हर बात वह सन्दर्भ सहित कहते हैं लिहाज़ा उसके नतीजे में ग़ैरमुस्लिमों के बुद्धिजीवी वर्ग में उन सन्दर्भों के अनुसार अपनी और इस्लामी किताबों को पढ़ कर उन बातों को जांचने की उत्सुकता पैदा होती है। इस प्रकार उनमें से जो लोग सत्य को पहचान जाते हैं तो वह अपनी इच्छा से अपना धर्म भी परिवर्तित कर लेते हैं।
इस प्रकार हिन्दू समाज के जो लोग अपनी ही धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने का शौक़ नहीं रखते थे वह डॉक्टर ज़ाकिर नाईक के कार्यक्रम को देख और सुन कर उनका इस बात के लिये एहसान मानते हैं कि उनके ज़रीये से वह भी अपने धर्म का ज्ञान प्राप्त करने के साथ इस्लाम से भी परिचत हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में डॉक्टर ज़ाकिर नाईक के ख़िलाफ़ सरकार द्वारा की जाने वाली कार्रवाई बुद्धिजीवी वर्ग के इन हिन्दुओं पर भी ज़ुल्म साबित होगी।
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