Sunday, March 5, 2017

जिहादी लिटरेचर रखना अगर जुर्म है तो हर मुसलमान मुजरिम है क्योंकि यह लिटरेचर उसके ईमान का हिस्सा है। Sharif Khan

गुजरात में दो मुस्लिम नौजवान भाईयों को आई एस से जुड़े होने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है। गुजरात ए टी एस के पुलिस महानिरीक्षक के कथनानुसार उनके क़ब्ज़े से कुछ विस्फ़ोटक और जिहादी साहित्य बरामद किये गए हैं। 
सवाल यह है कि क्या जिहादी लिटरेचर अपने पास रखना अपराध है?
जिहादी लिटरेचर पर बात करें तो जिसमें जिहाद, उसका महत्त्व और उससे सम्बन्धित निर्देश दिये गए हों वही जिहादी लिटरेचर कहलाता है। इस सम्बन्ध में यह जानना भी ज़रूरी है कि अपनी सम्पूर्ण शक्ति और सामर्थ्य से किसी काम के करने की कोशिश को जिहाद कहते हैं और यही कोशिश अगर अल्लाह की राह में की जाए तो उसको जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह कहा जाता है जिसको इस्लामी शब्दावली में केवल 'जिहाद' भी कहते हैं। 
किसी मुसलमान के लिये पवित्र क़ुरआन में दिये गए आदेशों का पालन करना फ़र्ज़ है और उन आदेशों का इंकार करने करने पर वह शख़्स मुसलमान नहीं रहता और चूँकि पवित्र क़ुरआन में जिहाद से सम्बन्धित आदेश मौजूद हैं लिहाज़ा क़ुरआन से बड़ी कोई जिहादी किताब नहीं है। इसके लिये निम्लिखित उदाहरण काफ़ी है जिसमें सच्चे मुसलमान के सम्बन्ध में इस प्रकार फ़रमाया गया है।
क़ुरआन पाक की सूरह अलहुजुरात की 15 वीं आयत में फ़रमाया गया है, अनुवाद, "हक़ीक़त में तो मोमिन वह हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए फिर उन्होंने कोई शक न किया और अपनी जानों और मालों से अल्लाह की राह में जिहाद किया। वही सच्चे लोग हैं।"
इस तरह चूँकि कोई मुस्लिम घर ऐसा नहीं है जिसमें क़ुरआन पाक मौजूद न हो और पढ़ा न जाता हो लिहाज़ा उपरोक्त ए टी एस के पुलिस महानिरीक्षक ने जिस धारा के अन्तर्गत दो मुस्लिम युवकों को जिहादी लिटरेचर रखने पर आरोपी बनाया है उस धारा के अनुसार तो हर मुसलमान पर आरोप लगा कर उनको बन्द किया जा सकता है।
हक़ीक़त यह है कि यदि जिहादी लिटरेचर देश के लिये हानिकारक होता तो देश आज आज़ाद न होता क्योंकि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, मौलाना हुसैन अहमद मदनी और मौलाना मौहम्मद अली जौहर जैसे हज़ारों मुस्लिम आलिमों ने इसी लिटरेचर से प्रेरणा पाकर आज़ादी की जंग में हिस्सा लिया था और अंग्रेजों की ग़ुलामी से आज़ादी दिलवाने को अल्लाह का आदेश मानते हुए और अंग्रेजों के ख़िलाफ़ की जाने वाली आज़ादी की जंग को जिहाद मान कर अपनी जानों और मालों की क़ुरबानी दी थी।
इसी प्रकार का जिहाद करते हुए अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने पहले रुसी फ़ौजों को मार कर भगाया था और अब अमेरिका उनके हाथों ज़लील हो रहा है। जिहाद करने वालों की कामयाबी के मुतअल्लिक़ क़ुरआन पाक की सूरह अलफ़तह की 22 व 23 वीं आयतों में फ़रमाया गया है, अनुवाद, "यह काफ़िर लोग अगर उस वक़्त तुमसे लड़ गए होते तो यक़ीनन पीठ फेर जाते और कोई हामी व मददगार न पाते। यह अल्लाह की सुन्नत है जो पहले से चली आ रही है और तुम अल्लाह की सुन्नत में कोई तबदीली न पाओगे।"
इन आयतों में मक्के के काफ़िरों से हुदैबिया नामक स्थान पर जब मदीने से आए हुए मुसलमानों ने जंग के बजाय सुलह कर ली थी तो उस समय का ज़िक्र करते हुए अल्लाह ने फ़रमाया है कि अल्लाह की यह सुन्नत है कि वह अन्त में फ़ी सबीलिल्लाह किये जाने वाले जिहाद करने वालों को ही कामयाबी देता है।
इस तरह जिहाद शब्द को बदनाम न करते हुए यह कोशिश होनी चाहिए कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ इस तरह का माहौल न बनने दिया जाए कि उनको उसके ख़िलाफ़ जिहाद के लिये आमादा होना पड़े क्योंकि अपने इस देश को बचाने के लिये जिस तरह अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जिहाद किया था उसी तरह देश की अखण्डता के लिये मुसलमान किसी भी तरह की क़ुरबानी से में पीछे न रहेंगे।

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