सोचने समझने की सामर्थ्य रखने वाले इंसानों के ज़ेहन में कुछ सवाल पैदा होते रहे हैं जैसे कि-
मैं क्या हूँ? यह दुनिया क्या है? क्या इंसान प्राकृतिक रूप से पैदा हो गया है या उसको किसी ने पैदा किया है? इंसान में जो रूह होती है वह कहां से आती है और मरने के बाद कहां चली जाती है? क्या मरने के बाद इंसान का वजूद ख़त्म हो जाता है या किसी दूसरे रूप में बाक़ी रहता है? अगर इंसानों को पैदा करने वाला कोई है तो वह कौन है और उसका मक़सद क्या है?
आदि अनेक सवाल हैं जिनको जानने की जिज्ञासा हमेशा से इंसान के अन्दर रही है, इसी को फ़िलॉसफ़ी या दर्शनशास्त्र और चिन्तन मनन करके इन सवालों के जवाब देने वाले लोगों को फ़िलॉस्फ़र या दार्शनिक कहा जाता है।
यह भी सच है कि जितने भी दार्शनिक पैदा हुए हैं उन्होंने दूसरे दार्शनिकों को पढ़ा और चिन्तन मनन करके उनके कुछ विचारों का समर्थन किया और कुछ को नकार कर अपने विचार प्रकट किये और इस प्रकार नए नए नज़रिये लोगों के सामने आते रहे लेकिन अन्तिम और अकाट्य नज़रिया न बन सका। इस बात को किसी शायर ने इन शब्दों में बयान किया है कि-
फ़लसफ़े में फ़लसफ़ी को है ख़ुदा मिलता नहीं।
डोर को सुलझा रहा है पर सिरा मिलता नहीं।
यह भी सत्य है कि किसी भी दार्शनिक ने अपने विचारों को तथ्य या हक़ीक़त न कह कर विचार ही माना है लिहाज़ा सारी फ़िलॉसफ़ी एक बेबुनियाद बात के अलावा कोई महत्त्व नहीं रखती है।
यदि हम हक़ीक़त को तलाश करने की कोशिश करें तो उसके लिये केवल एक ही रास्ता है और वह यह है कि इंसान को पैदा करने वाले के सन्देशों को तलाश किया जाए इस विश्वास के साथ कि इंसान जैसे प्रतिभावान प्राणी को बेमक़सद न बनाया गया होगा और उसके लिये अवश्य ही कुछ सन्देश भी भेजे गए होंगे। इस प्रकार तौरैत, इंजील वग़ैरा अनेक किताबें, जो पूरी काएनात को बनाने वाले के द्वारा अपने दूतों या पैग़म्बरों के ज़रीये से भेजी जाने के कारण आसमानी किताबें कहलाती हैं, उनमें इंसान की आवश्यकतानुसार हर तरह के सन्देश मौजूद हैं। इन्ही किताबों का अन्तिम ऐडीशन क़ुरआन है और अन्तिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद स अ व हैं। पहले आई हुई किताबें चूँकि असली रूप में मौजूद नहीं हैं और उनका अन्तिम ऐडीशन क़ुरआन के रूप में उपलब्ध है और अन्तिम पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स अ व के द्वारा कही हुई हर बात का रिकॉर्ड भी मौजूद है जिसको हदीस कहा जाता है। क़ुरआन और हदीस के द्वारा जो आदेश और निर्देश दिये गए हैं वही इस्लाम है।
इस प्रकार फ़िलॉसफ़ी कहलाने वाले उपरोक्त सवालों के जवाब जो क़ुरआन और हदीस में हज़रत मुहम्मद स अ व के ज़रिये दिये गए हैं वह किसी फ़िलॉस्फ़र के विचार न होकर हक़ीक़त हैं और यही इस्लामी फ़िलॉसफ़ी है जिसको नज़रअन्दाज़ करके कोई भी फ़िलॉस्फ़र अगर कोई विचार प्रकट करता है तो वह इस्लामी दृष्टिकोण से जहालत है।
अन्त में यह बात भी जान लेना ज़रूरी है कि जहालत किसी बात के न जानने को कहते हैं और किसी बात को न जानने वाला उस बात का जाहिल कहलाता है। इस प्रकार हक़ीक़त जानने का ज़रीया उपलब्ध होते हुए उसको नज़रअन्दाज़ करके अपने विचार प्रकट करने वाला जाहिल ही तो होता है।
मैं क्या हूँ? यह दुनिया क्या है? क्या इंसान प्राकृतिक रूप से पैदा हो गया है या उसको किसी ने पैदा किया है? इंसान में जो रूह होती है वह कहां से आती है और मरने के बाद कहां चली जाती है? क्या मरने के बाद इंसान का वजूद ख़त्म हो जाता है या किसी दूसरे रूप में बाक़ी रहता है? अगर इंसानों को पैदा करने वाला कोई है तो वह कौन है और उसका मक़सद क्या है?
आदि अनेक सवाल हैं जिनको जानने की जिज्ञासा हमेशा से इंसान के अन्दर रही है, इसी को फ़िलॉसफ़ी या दर्शनशास्त्र और चिन्तन मनन करके इन सवालों के जवाब देने वाले लोगों को फ़िलॉस्फ़र या दार्शनिक कहा जाता है।
यह भी सच है कि जितने भी दार्शनिक पैदा हुए हैं उन्होंने दूसरे दार्शनिकों को पढ़ा और चिन्तन मनन करके उनके कुछ विचारों का समर्थन किया और कुछ को नकार कर अपने विचार प्रकट किये और इस प्रकार नए नए नज़रिये लोगों के सामने आते रहे लेकिन अन्तिम और अकाट्य नज़रिया न बन सका। इस बात को किसी शायर ने इन शब्दों में बयान किया है कि-
फ़लसफ़े में फ़लसफ़ी को है ख़ुदा मिलता नहीं।
डोर को सुलझा रहा है पर सिरा मिलता नहीं।
यह भी सत्य है कि किसी भी दार्शनिक ने अपने विचारों को तथ्य या हक़ीक़त न कह कर विचार ही माना है लिहाज़ा सारी फ़िलॉसफ़ी एक बेबुनियाद बात के अलावा कोई महत्त्व नहीं रखती है।
यदि हम हक़ीक़त को तलाश करने की कोशिश करें तो उसके लिये केवल एक ही रास्ता है और वह यह है कि इंसान को पैदा करने वाले के सन्देशों को तलाश किया जाए इस विश्वास के साथ कि इंसान जैसे प्रतिभावान प्राणी को बेमक़सद न बनाया गया होगा और उसके लिये अवश्य ही कुछ सन्देश भी भेजे गए होंगे। इस प्रकार तौरैत, इंजील वग़ैरा अनेक किताबें, जो पूरी काएनात को बनाने वाले के द्वारा अपने दूतों या पैग़म्बरों के ज़रीये से भेजी जाने के कारण आसमानी किताबें कहलाती हैं, उनमें इंसान की आवश्यकतानुसार हर तरह के सन्देश मौजूद हैं। इन्ही किताबों का अन्तिम ऐडीशन क़ुरआन है और अन्तिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद स अ व हैं। पहले आई हुई किताबें चूँकि असली रूप में मौजूद नहीं हैं और उनका अन्तिम ऐडीशन क़ुरआन के रूप में उपलब्ध है और अन्तिम पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स अ व के द्वारा कही हुई हर बात का रिकॉर्ड भी मौजूद है जिसको हदीस कहा जाता है। क़ुरआन और हदीस के द्वारा जो आदेश और निर्देश दिये गए हैं वही इस्लाम है।
इस प्रकार फ़िलॉसफ़ी कहलाने वाले उपरोक्त सवालों के जवाब जो क़ुरआन और हदीस में हज़रत मुहम्मद स अ व के ज़रिये दिये गए हैं वह किसी फ़िलॉस्फ़र के विचार न होकर हक़ीक़त हैं और यही इस्लामी फ़िलॉसफ़ी है जिसको नज़रअन्दाज़ करके कोई भी फ़िलॉस्फ़र अगर कोई विचार प्रकट करता है तो वह इस्लामी दृष्टिकोण से जहालत है।
अन्त में यह बात भी जान लेना ज़रूरी है कि जहालत किसी बात के न जानने को कहते हैं और किसी बात को न जानने वाला उस बात का जाहिल कहलाता है। इस प्रकार हक़ीक़त जानने का ज़रीया उपलब्ध होते हुए उसको नज़रअन्दाज़ करके अपने विचार प्रकट करने वाला जाहिल ही तो होता है।
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