भौतिकवाद सभ्य समाज के लिए एक ऐसा अभिशाप है जिसने सामाजिक मूल्यों को समाप्त कर दिया है। आज के युग में प्रेम, ममता, आस्था और श्रद्धा का मापदण्ड पैसा समझ लिया गया है।
भावनात्मक दृष्टि से देखें तो अनाथालय और वृद्धाश्रम सभ्य समाज पर कलंक के समान हैं। आज कुत्ते पालने के शौक़ीन लोग एक कुत्ते पर जो धन ख़र्च करते हैं उससे कम से कम 2 अनाथ बच्चों का पालन पोषण बहुत अच्छे ढंगसे हो सकता है। सुबह को कुत्ते वाले लोग जब अपने प्यारे कुत्ते के साथ टहलने निकलते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कुत्ता उनको टहलाने निकला है क्योंकि जब ज़मीन सूंघते हुए कुत्ता रुक जाता है तो वह भी रुक जाते हैं और जब कुत्ता चल देता है तो उनको भी उसके पीछे चलना पड़ता है। यदि कुत्ते के बजाय किसी इन्सान के बच्चे को पालने की भावना पैदा हो जाए तो शायद अनाथालय में नारकीय जीवन जी रहे बदनसीब बच्चे भी मानव होने के सुख से परिचित हो सकें। मेरे साथ जूनियर हाई स्कूल में अनाथालय का एक छात्र पढ़ता था। एक दिन उसने ज़हर खा लिया परन्तु समय पर उपचार मिलने से उसकी जान बच गई। सोचने वाली बात यह है कि उस बच्चे के साथ क्या परिस्थितियां रही होंगी कि उसको यह क़दम उठाने के लिए मजबूर होना पडा़। केवल यह अकेली घटना ही अनाथालयों के अन्दर की स्थिति की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है।
एक व्यक्ति सन्तान प्राप्ति के बाद उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए अपना जीवन समर्पित करके एक अजीब सा सन्तोष और इतमीनान महसूस करता है। वही सन्तान जब उसको वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाती है तब उसको ऐसा महसूस होता है कि जैसे जीवनभर की कमाई डकैत ले गए हों। हालांकि वृद्ध माता-पिता को सन्तान की आंखों में अपने प्रति केवल प्रेम और मौहब्बत से भरी दृष्टि की ही चाह होती है।
माता-पिता और सन्तान के दरम्यान जो प्रेम भावना होती है उसको शब्दों में बयान करना सम्भव नहीं है। यह तो ‘‘गूंगे को ज्यों मीठा फल अन्तर ही अन्तर भावै‘‘ वाला भाव है। काफ़ी समय पहले की एक घटना है कि अदालत में एक बृज पाल नाम के एक जज साहब मुक़दमे की बहस सुन रहे थे कि इसी बीच उनकी माता जी के देहान्त का टेलीग्राम आ गया जिसको पढ़कर वह अपनी भावनाओं को नहीं रोक पाए और रोने लगे तथा मुक़दमे की बहस को रोक दिया गया। अदालत में मौजूद वकीलों ने सान्त्वना दी जिसके जवाब में जज साहब ने केवल इतना कहा कि ‘‘मुझे सबसे बड़ा ग़म इस बात को याद करके हुआ है कि अब मुझे ‘‘बिरजू‘‘ कहने वाला कोई नहीं रहा।
कलयुगी पुत्र की कथा के बिना बात अधूरी न रह जाए अतः उसका बयान करना भी ज़रूरी सा प्रतीत होता है। एक युवक अपने वृद्ध पिता को तरह तरह से प्रताड़ित करता था, बुरा भला कहना तथा बात बात में धुतकारना उसकी दिनचर्या में शामिल था। एक दिन अपने बूढ़े पिता से छुटकारा पाने का इरादा करके उस युवक ने एक चादर में पिता को बांधा और सर पर रख कर जंगल की ओर चल दिया। रास्ते में उसको एक कुआं दिखाई दिया। उस कुएं में अपने पिता को फैंकने के इरादे से उसने सर से गठरी उतारी और चादर की गांठ खोली ताकि चादर वापस ले जाए। उसके पिता ने चारों ओर देखकर सारा माजरा समझते हुए अपने पुत्र से कहा कि ‘‘बेटा! मैं समझ रहा हूं कि तू मुझे कुएं में फैंकने के इरादे से लाया है और मैं कुछ कर भी नहीं सकता। यह जानते हुए भी कि तूने मेरी कभी कोई बात नहीं मानी, मैं केवल यह चाहता हूं कि तू मेरी अंतिम इच्छा समझकर मेरी एक बात मान ले। उसके पुत्र द्वारा पिता की अन्तिम इच्छा पूछे जाने पर पिता ने कहा कि तू मुझे इस कुएं में न डालकर किसी दूसरे कुएं में डाल दे। पुत्र ने जब इसका कारण जानना चाहा तो उसके पिता ने कहा कि इस कुएं में मैंने अपने पिता को डाला था। इस कथा को ध्यान में रखते हुए अपने बुज़ुर्गों से दुवर्यवहार करने वाले इतना ध्यान में रखें कि ऐसी परिस्थिति उनके सामने भी आ सकती है।
कहने तात्पर्य यह है कि अल्लाह ने पूरी सृष्टि में सबसे अच्छा इन्सान को बनाया है। इन्सान और जानवरों में ख़ास फ़र्क़ यह है कि इन्सानों में सोचने समझने की शक्ति होती है, भावनाएं होती हैं तथा एक दूसरे के प्रति ज़िम्मेदारी का भाव होता है जोकि जानवरों में नहीं होता। अतः हमको चाहिए कि अपनी ज़िम्मेदारियों को समझें और मानवता को कलंकित करने वाले कार्यों से दूर रहें।
Thursday, September 30, 2010
Monday, September 27, 2010
student's future in india either safe or not क्या देश में छात्रों का भविष्य सुरक्षित है ? sharif khan
कई वर्ष पुरानी बात है कि मेरी एक लेक्चरर मित्र ने मुझसे बी ए की ऐसे विषय की कापियां जांचने का अनुरोध किया जिसका मैंने कभी अध्ययन नहीं किया था अतः मैंने असमर्थता प्रकट कर दी जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि आपको पढ़ना कुछ नहीं है और क्या लिखा गया है उससे भी आपका कोई सरोकार नहीं है बल्कि छात्र द्वारा कितना लिखा गया है उसके अनुसार अंक देने हैं। अब लगभग 30 वर्ष के बाद एक समाचार पढ़ कर उस घटना की याद ताज़ा हो गई।
एक समाचार के अनुसार यू पी बोर्ड के द्वारा सम्पन्न कराई गई परीक्षाओं में परीक्षकों ने साइंस, अंग्रेज़ी तथा सामाजिक विज्ञान की 1 लाख 98 हज़ार कापियों पर बिना जांचे सेकिण्ड डिवीज़न के अंक दे दिये। 70 प्रतिशत और उस से अधिक अंक लाने वाले कुछ मेधावी छात्रों के द्वारा की गई आपत्तियों को ख़ारिज किये जाने पर जब न्यायालय में जाने की धमकी दी गई तब जाकर सुनवाई हुई और जांच में 411 परीक्षकों को दोषी पाया गया जिनके ख़िलाफ़ कार्रवाई किये जाने की प्रक्रिया चल रही है। इन अपराधियों को सज़ा, मिल पाएगी या नहीं अथवा मिलेगी तो कितनी मिलेगी, यह बात इस पर आधारित है कि सज़ा देने वाले अधिकारी भ्रष्ट हैं या नहीं और यदि भ्रष्ट हैं तो किस हद तक हैं।
इस से पहले चै. चरणसिंह विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं के आंकलन सम्बन्धी अनियमितताओं के प्रति सरकार का उदासीनतापूर्ण व्यवहार उसके चरित्र और कर्तव्यबोध की सही तस्वीर पेश कर ही चुका है। जिन अध्यापकों को इम्तेहान की कापियां जांचने का कार्य सौंपा गया था, उनके द्वारा यह कार्य खुद न करके अपने नौकरों और छठी सातवीं क्लास में पढ़ने वाले बच्चों से करवाया गया। इस अपराध का पता चलते ही सरकार को सख्ती के साथ इन अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करनी चाहिए थी परन्तु ऐसा न होकर छात्रों को सरकार से अपने कर्तव्य का पालन करवाने के लिये धरना और प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ा। यह कैसी विडम्बना है कि अपराध कितना संगीन है, यह इस बात से नापा जाता है कि अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करवाये जाने के लिये कितने बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए और कितनी जान माल की क्षति हुई।
यदि कापियां इसी प्रकार से जांची जाती हैं तो परीक्षओं का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। इन हालात में सरकार को चाहिये कि अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाने के लिये प्रशासन पर जोर डाले तथा प्रायश्चित् के तौर पर गत वर्षों में घटित उन मामलों की भी छानबीन कराये जिनमें परीक्षाओं में फेल होने के कारण छात्रों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा था। इस प्रकार से यदि गलत ढंग से कापियां जांची जाने के कारण फेल होने वाले किसी छात्र द्वारा की गई आत्महत्या का कोई मामला सामने आये तो इसके जिम्मेदार अध्यापकों के खिलाफ मुकदमा चलाकर सजा दिलवाई जाये।
एक समाचार के अनुसार यू पी बोर्ड के द्वारा सम्पन्न कराई गई परीक्षाओं में परीक्षकों ने साइंस, अंग्रेज़ी तथा सामाजिक विज्ञान की 1 लाख 98 हज़ार कापियों पर बिना जांचे सेकिण्ड डिवीज़न के अंक दे दिये। 70 प्रतिशत और उस से अधिक अंक लाने वाले कुछ मेधावी छात्रों के द्वारा की गई आपत्तियों को ख़ारिज किये जाने पर जब न्यायालय में जाने की धमकी दी गई तब जाकर सुनवाई हुई और जांच में 411 परीक्षकों को दोषी पाया गया जिनके ख़िलाफ़ कार्रवाई किये जाने की प्रक्रिया चल रही है। इन अपराधियों को सज़ा, मिल पाएगी या नहीं अथवा मिलेगी तो कितनी मिलेगी, यह बात इस पर आधारित है कि सज़ा देने वाले अधिकारी भ्रष्ट हैं या नहीं और यदि भ्रष्ट हैं तो किस हद तक हैं।
इस से पहले चै. चरणसिंह विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं के आंकलन सम्बन्धी अनियमितताओं के प्रति सरकार का उदासीनतापूर्ण व्यवहार उसके चरित्र और कर्तव्यबोध की सही तस्वीर पेश कर ही चुका है। जिन अध्यापकों को इम्तेहान की कापियां जांचने का कार्य सौंपा गया था, उनके द्वारा यह कार्य खुद न करके अपने नौकरों और छठी सातवीं क्लास में पढ़ने वाले बच्चों से करवाया गया। इस अपराध का पता चलते ही सरकार को सख्ती के साथ इन अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करनी चाहिए थी परन्तु ऐसा न होकर छात्रों को सरकार से अपने कर्तव्य का पालन करवाने के लिये धरना और प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ा। यह कैसी विडम्बना है कि अपराध कितना संगीन है, यह इस बात से नापा जाता है कि अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करवाये जाने के लिये कितने बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए और कितनी जान माल की क्षति हुई।
यदि कापियां इसी प्रकार से जांची जाती हैं तो परीक्षओं का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। इन हालात में सरकार को चाहिये कि अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाने के लिये प्रशासन पर जोर डाले तथा प्रायश्चित् के तौर पर गत वर्षों में घटित उन मामलों की भी छानबीन कराये जिनमें परीक्षाओं में फेल होने के कारण छात्रों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा था। इस प्रकार से यदि गलत ढंग से कापियां जांची जाने के कारण फेल होने वाले किसी छात्र द्वारा की गई आत्महत्या का कोई मामला सामने आये तो इसके जिम्मेदार अध्यापकों के खिलाफ मुकदमा चलाकर सजा दिलवाई जाये।
Sunday, September 5, 2010
doctor is human or demon डाक्टर मानव या दानव sharif khan
परिवार में यदि कोई बीमार हो जाए तो उसका इलाज करने वाला डाक्टर सबके लिए सम्मान का पात्र होता है। पूरे परिवार को उसके रूप में ख़ुशी और राहत दिखाई पड़ती है। ऐसे सम्माननीय पेशे को कुछ लोगों ने लालचवश बदनाम कर दिया है। दो वर्ष पहले की बात है, मेरी पत्नि के सीने में दर्द महसूस होने पर शहर के इकलौते हृदयरोग विशेषज्ञ के नर्सिंग होम में ले जाने का इत्तेफ़ाक़ हुआ। वहां का अजीब हाल देखकर दिल को दुःख हुआ। पहली बात तो यह है कि घर से चलते समय वह केवल सीने में हल्के दर्द की शिकायत कर रही थीं परन्तु डॉक्टर की निगरानी में पहुंच कर वह मानसिक रूप से भी दिल की बीमार हो गईं। उनके शरीर से कुछ उपकरण जोड़ दिये गए जिनकी रीडिंग किसी ने नहीं लीं। दूसरे दिन शाम तक डॉक्टर ने हम लोगों को इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने के लिए कहा कि एन्जियोग्राफ़ी के लिए नोएडा ले जाने की आवश्यकता पड़ सकती है। शुगर कण्ट्रोल करने के लिए जो दवा दी गई उसके एक घण्टे बाद शुगर 300 से बढ़कर 500 हो गई। रात को 11 बजे डॉक्टर ने फ़रमाया कि फ़ौरन नोएडा ले जाइए। हमको सुबह तक का वक्त भी देने के लिए तैयार नहीं थे। एक दूसरे डॉक्टर, जिनका पहले से इलाज चल रहा था, कहीं बाहर गए हुए थे। हमने उनका कॉन्टेक्ट नम्बर हासिल करके उनको स्थिति से अवगत कराया और दोनों डाक्टरों की परस्पर बात कराई। दूसरे डॉक्टर ने जब यह कहा कि ख़तरे की कोई बात नहीं है क्योंकि बी पी आदि सब नॉर्मल हैं तब जाकर मरीज़ा को नर्सिंग होम में रहने दिया गया और फिर कटाक्ष करते हुए डॉक्टर ने हमसे पूछा कि बताइए क्या ट्रीटमेण्ट दिया जाए क्योंकि अब तो हम आपके कहे अनुसार ही इलाज करेंगे। अगले दिन सुबह को हालत काफ़ी नॉर्मल हो गई और जब हमने मरीज़ा को घर ले जाने के लिए कहा तो डॉक्टर ने कहा कि अभी कम से कम दो दिन और एडमिट रहने दीजिए उसके बाद घर ले जाइएगा। बाद में एक बार किसी दूसरे हार्ट के मरीज़ को देखने के लिए नोएडा जाने का इत्तेफ़ाक़ हुआ तो उस अस्पताल के एक कमरे के बाहर हमने उन्हीं डॉक्टर साहब की नेम प्लेट लगी देखी तो सारा माजरा समझ में आ गया।
उलझन यह है कि जब मरीज़ा नर्सिंग होम में एडमिट थी और डॉक्टर के कहे अनुसार हालत ठीक नहीं होने के कारण डॉक्टर की निगरानी की ज़रूरत थी तो उस वक्त रात के 11 बजे नोएडा ले जाने के लिए कहना क्या अनुचित नहीं था। और जब हालत ठीक थी और डॉक्टर की निगरानी की ज़रूरत नहीं थी तो फिर दो दिन और रोकने का क्या औचित्य था।
यह तो एक छोटी सी घटना है। एक घिनौनी तथा मानवता को कलंकित करने वाली हरकत जो कुछ डॉक्टर मरीज़ों के साथ करते हैं, वह है कमीशनखोरी। पैथोलौजिकल टैस्ट, रोग के निदान में जितना सहायक होता है उससे ज़्यादा, पैथोलौजिस्ट के द्वारा मिला हुआ कमीशन, कमीशनख़ोर डॉक्टर की तन्दरुस्ती बढ़ाता है। अक्सर यह भी देखा गया है कि यदि अपनी इच्छानुसार किसी ऐसे पैथोलौजिस्ट से टैस्ट करा लिया गया हो, जिसकी डॉक्टर से सैटिंग नहीं है, तो उस टैस्ट रिपोर्ट को नकारते हुए दोबारा उस पैथोलौजिस्ट से जांच कराए जाने के लिए कह दिया जाता है, जिससे डॉक्टर की सैटिंग होती है। एक और नापाक हरकत कुछ डॉक्टर करने लगे हैं जिसकी जितनी भतर्सना की जाए कम है, वह यह है कि मरीज़ के ठीक होने पर एक और पैथोलौजिकल टैस्ट करवाया जाता है जिसके पर्चे में उस डॉक्टर के द्वारा एक निशान लगा दिया जाता है जो पैथोलौजिस्ट के लिए इस बात का निर्देश होता है कि उस पर्चे के मुताबिक़ टैस्ट न करके केवल नार्मल की रिपोर्ट देनी है तथा इस रिपोर्ट के बिल का पूरा धन डॉक्टर के खाते में जाना है। ऐसे डॉक्टर कम्पिनियों द्वारा दी गई सेम्पिल की दवाइयों के भी पैसे बनाने से नहीं चूकते क्योंकि सेवा भावना तो उनमें होती ही नहीं।
जो लोग बिना डॉक्टर के पर्चे के कोई टैस्ट कराना चाहते हैं उनसे भी पैथोलौजिस्ट पूरे ही पैसे लेता है क्योंकि वह इस बात से डरता है कि कहीं ऐसा न हो कि बाद में कभी यह डाक्टर के पर्चे से टैस्ट कराने आए तो कमीशनबाज़ी की पोल खुल जाएगी।
जो लोग डाक्टरी के पेशे में सेवा भावना से आए हैं उनको कमीशनख़ोरी तो दूर की बात है बल्कि ग़रीबों को मुफ़्त दवाई देते हुए भी देखा गया है। सही अर्थों में ऐसे लोग ही समाज में आदर और सम्मान पाने के योग्य हैं।
उलझन यह है कि जब मरीज़ा नर्सिंग होम में एडमिट थी और डॉक्टर के कहे अनुसार हालत ठीक नहीं होने के कारण डॉक्टर की निगरानी की ज़रूरत थी तो उस वक्त रात के 11 बजे नोएडा ले जाने के लिए कहना क्या अनुचित नहीं था। और जब हालत ठीक थी और डॉक्टर की निगरानी की ज़रूरत नहीं थी तो फिर दो दिन और रोकने का क्या औचित्य था।
यह तो एक छोटी सी घटना है। एक घिनौनी तथा मानवता को कलंकित करने वाली हरकत जो कुछ डॉक्टर मरीज़ों के साथ करते हैं, वह है कमीशनखोरी। पैथोलौजिकल टैस्ट, रोग के निदान में जितना सहायक होता है उससे ज़्यादा, पैथोलौजिस्ट के द्वारा मिला हुआ कमीशन, कमीशनख़ोर डॉक्टर की तन्दरुस्ती बढ़ाता है। अक्सर यह भी देखा गया है कि यदि अपनी इच्छानुसार किसी ऐसे पैथोलौजिस्ट से टैस्ट करा लिया गया हो, जिसकी डॉक्टर से सैटिंग नहीं है, तो उस टैस्ट रिपोर्ट को नकारते हुए दोबारा उस पैथोलौजिस्ट से जांच कराए जाने के लिए कह दिया जाता है, जिससे डॉक्टर की सैटिंग होती है। एक और नापाक हरकत कुछ डॉक्टर करने लगे हैं जिसकी जितनी भतर्सना की जाए कम है, वह यह है कि मरीज़ के ठीक होने पर एक और पैथोलौजिकल टैस्ट करवाया जाता है जिसके पर्चे में उस डॉक्टर के द्वारा एक निशान लगा दिया जाता है जो पैथोलौजिस्ट के लिए इस बात का निर्देश होता है कि उस पर्चे के मुताबिक़ टैस्ट न करके केवल नार्मल की रिपोर्ट देनी है तथा इस रिपोर्ट के बिल का पूरा धन डॉक्टर के खाते में जाना है। ऐसे डॉक्टर कम्पिनियों द्वारा दी गई सेम्पिल की दवाइयों के भी पैसे बनाने से नहीं चूकते क्योंकि सेवा भावना तो उनमें होती ही नहीं।
जो लोग बिना डॉक्टर के पर्चे के कोई टैस्ट कराना चाहते हैं उनसे भी पैथोलौजिस्ट पूरे ही पैसे लेता है क्योंकि वह इस बात से डरता है कि कहीं ऐसा न हो कि बाद में कभी यह डाक्टर के पर्चे से टैस्ट कराने आए तो कमीशनबाज़ी की पोल खुल जाएगी।
जो लोग डाक्टरी के पेशे में सेवा भावना से आए हैं उनको कमीशनख़ोरी तो दूर की बात है बल्कि ग़रीबों को मुफ़्त दवाई देते हुए भी देखा गया है। सही अर्थों में ऐसे लोग ही समाज में आदर और सम्मान पाने के योग्य हैं।
Thursday, September 2, 2010
self respect आत्मसम्मान sharif khan
बहुत पुरानी बात है, भारतीय मूल के इंगलैण्ड के नागरिक एक अविवाहित सज्जन ने अपने विभाग में स्वयं को विवाहित दर्शाया हुआ था और भारत में रहने वाली अपनी एक सम्बन्धी महिला को अपनी पत्नी बताकर सरकार द्वारा मिलने वाले पारिवारिक भत्ते को वसूल करके भारत में अपने घर भेज दिया करते थे। मैंने उनसे पूछा कि यदि आपकी शिकायत हो जाए तो आपकी क्या स्थिति होगी। तब उन्होंने जवाब दिया कि जिस देश की मुझे नागरिका मिली हुई है उस देश का नागरिक सरकार की नज़र में एक सम्मानित व्यक्ति होता है तथा अपने देश के नागरिक के सम्मान की सुरक्षा को सरकार सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। लिहाज़ा मेरे खि़लाफ़ इस प्रकार की शिकायत होने पर मेरे सम्मान की रक्षा करते हुए शिकायतकर्ता ही को झूठा मानकर शिकायत रद्द कर दी जाएगी।
हमारे देश का उदाहरण देखिए। मेरे पड़ौस में रहने वाले एक सज्जन किसी फ़र्म में नौकरी करते हैं। एक बार वह फ़र्म के कुछ रुपये बैंक में जमा करने जा रहे थे कि उनके थैले में से किसी ने रुपये निकाल लिये। इस बात की रिपोर्ट करने जब वह कोतवाली पहुंचे तो उनकी रिपोर्ट लिखकर कोई कार्रवाई करने के बजाय उनको कोतवाली में ही बैठा लिया गया और उनसे कहा गया कि रुपये चोरी नहीं हुए हैं बल्कि तुम्हारे पास हैं और तुम झूठ बोलकर फ़र्म के रुपये हज़म करना चाहते हो। इस प्रकार से कुछ ऐसी विकट स्थिति पैदा हो गई कि उनके सामने स्वंय को वर्दी वाले ग़ुण्डों से आज़ाद कराना एकमात्र लक्ष्य बन गया। इसके बाद फ़रियाद करने की जो गुस्ताख़ी उनसे हो गई थी, उसकी सजा के तौर पर कुछ रक़म अदा करने की शक्ल में एक और चोट खाकर, ‘‘पिटे और पिटाई दी‘‘ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए लौट आए।
यह तो एक छोटी सी मिसाल है वरना आप स्वंय इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि किसी भी सरकारी विभाग में प्रस्तुत की गई हर बात को शक की निगाह से देखा जाता है। क्या यह देश के सभ्य नागरिकों को अपमानित करने जैसा नहीं है?
विकसित देशों में मन्त्री-पुत्रों और दूसरी महान हस्तियों को यातायात के नियमों के उल्लंघन की सज़ा दिये जाने की घटनाओं की ख़बरें अक्सर समाचार पत्रों के मिलती रहती है जबकि हमारे देश में ऐसे अपराधियों को सज़ा न दिया जाना देश की परम्परा बन गया है क्योंकि कहीं तो नेताओं व दूसरे उच्चाधिकारियों का ख़ौफ़ कर्तव्य पालन नहीं होने देता है और कहीं आस्था आड़े आ जाती है।
नए रईस ज़ादों के शराब पीकर गाड़ी चलाने व दूसरी बदमाशियों में उनकी संलग्नता जग ज़ाहिर है। आस्थावश अपने कर्तव्यों से विमुखता का एक उदाहरण प्रस्तुत है। रामायण सीरियल में सीताजी की भूमिका अदा करने वाली दीपिका नामक अभिनेत्री चेन्नई में यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हुए गाड़ी चलाते हुए यातायात पुलिस द्वारा रोकी गई परन्तु दीपिका के रूप में पहचानी जाने पर उस सिपाही ने सीताजी के रूप की आस्थावश माता जी नमस्ते कहते हुए पैर छुए और क्षमा मांगते हुए जाने का इशारा किया।
विकसित देशों में चरित्रहीनता भले ही चरम स्थिति पर पहुंच रही हो परन्तु वहां की सरकार अपने देश के नागरिकों के सम्मान व दूसरे मूल अधिकारों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। हमारे देश में सामाजिक व्यवस्था को बरबाद करके चरित्रहीन समाज का निर्माण तरक्क़ी की कुंजी समझ लिया गया है परन्तु अपमानित जीवन जी रहे देश के नागरिकों के सम्मान की सुरक्षा को नज़रअन्दाज़ कर दिया गया है।
हमारे देश का उदाहरण देखिए। मेरे पड़ौस में रहने वाले एक सज्जन किसी फ़र्म में नौकरी करते हैं। एक बार वह फ़र्म के कुछ रुपये बैंक में जमा करने जा रहे थे कि उनके थैले में से किसी ने रुपये निकाल लिये। इस बात की रिपोर्ट करने जब वह कोतवाली पहुंचे तो उनकी रिपोर्ट लिखकर कोई कार्रवाई करने के बजाय उनको कोतवाली में ही बैठा लिया गया और उनसे कहा गया कि रुपये चोरी नहीं हुए हैं बल्कि तुम्हारे पास हैं और तुम झूठ बोलकर फ़र्म के रुपये हज़म करना चाहते हो। इस प्रकार से कुछ ऐसी विकट स्थिति पैदा हो गई कि उनके सामने स्वंय को वर्दी वाले ग़ुण्डों से आज़ाद कराना एकमात्र लक्ष्य बन गया। इसके बाद फ़रियाद करने की जो गुस्ताख़ी उनसे हो गई थी, उसकी सजा के तौर पर कुछ रक़म अदा करने की शक्ल में एक और चोट खाकर, ‘‘पिटे और पिटाई दी‘‘ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए लौट आए।
यह तो एक छोटी सी मिसाल है वरना आप स्वंय इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि किसी भी सरकारी विभाग में प्रस्तुत की गई हर बात को शक की निगाह से देखा जाता है। क्या यह देश के सभ्य नागरिकों को अपमानित करने जैसा नहीं है?
विकसित देशों में मन्त्री-पुत्रों और दूसरी महान हस्तियों को यातायात के नियमों के उल्लंघन की सज़ा दिये जाने की घटनाओं की ख़बरें अक्सर समाचार पत्रों के मिलती रहती है जबकि हमारे देश में ऐसे अपराधियों को सज़ा न दिया जाना देश की परम्परा बन गया है क्योंकि कहीं तो नेताओं व दूसरे उच्चाधिकारियों का ख़ौफ़ कर्तव्य पालन नहीं होने देता है और कहीं आस्था आड़े आ जाती है।
नए रईस ज़ादों के शराब पीकर गाड़ी चलाने व दूसरी बदमाशियों में उनकी संलग्नता जग ज़ाहिर है। आस्थावश अपने कर्तव्यों से विमुखता का एक उदाहरण प्रस्तुत है। रामायण सीरियल में सीताजी की भूमिका अदा करने वाली दीपिका नामक अभिनेत्री चेन्नई में यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हुए गाड़ी चलाते हुए यातायात पुलिस द्वारा रोकी गई परन्तु दीपिका के रूप में पहचानी जाने पर उस सिपाही ने सीताजी के रूप की आस्थावश माता जी नमस्ते कहते हुए पैर छुए और क्षमा मांगते हुए जाने का इशारा किया।
विकसित देशों में चरित्रहीनता भले ही चरम स्थिति पर पहुंच रही हो परन्तु वहां की सरकार अपने देश के नागरिकों के सम्मान व दूसरे मूल अधिकारों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। हमारे देश में सामाजिक व्यवस्था को बरबाद करके चरित्रहीन समाज का निर्माण तरक्क़ी की कुंजी समझ लिया गया है परन्तु अपमानित जीवन जी रहे देश के नागरिकों के सम्मान की सुरक्षा को नज़रअन्दाज़ कर दिया गया है।
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