Tuesday, December 15, 2015

हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के बिना देश की तरक़्क़ी सम्भव नहीं है। Sharif Khan

दो सम्प्रदायों के बीच आपसी सम्बन्धों को तीन दर्जों में बांटा जा सकता है। 
1- यह कि, एक दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण करने का अवसर तलाश किया जाए और मौक़ा मिलते ही वार कर दिया जाए।
2- यह कि, एक दूसरे के मामले में कोई दख़लअन्दाज़ी न की जाए और जियो व जीने दो की नीति अपनाई जाए।
3- यह कि, एक दूसरे पर एहसान करके दिल जीता जाए।
आज़ादी से पहले हमारे देश में उपरोक्त दूसरे दर्जे के मुताबिक़ हिन्दू मुस्लिम भाईचारा क़ायम था और इसकी वजह शायद यह थी हिन्दू समाज के खुराफ़ाती तबक़े के ज़ुल्म सहने के लिये दलित समाज मौजूद था और मुसलमान गुण्डा तत्वों की ईंट का जवाब पत्थर से देने की क्षमता रखते थे इसलिये मुसलमानों के मामलों में दख़ल नहीं दिया जाता था।
उपरोक्त पहले दर्जे पर विचार करें तो बड़ी ही भयावह स्थिति नज़र आती है जिसके अंतर्गत बटवारा होने के बाद देश को दुर्भाग्य से पटेल जैसा गृहमन्त्री मिला जिसने ज़बरदस्ती मुसलमानों को पाकिस्तान जाने के लिये मजबूर किया था और लाखों मुसलमानों को क़त्ल करवाया था जिससे बाक़ी बचे मुसलमानों का मनोबल टूट गया। इसके साथ ही दलित समाज में जागृति पैदा हुई तथा उनको क़ानून का सहारा भी मिला लिहाज़ा वह तो हिन्दुओं के ज़ुल्म से मुक्त होते चले गए और मुसलमान योजनाबद्ध तरीक़े से किये जाने वाले उन खुराफ़ाती हिन्दुओं के ज़ुल्म का शिकार होते चले गए और यह सिलसिला आजतक जारी है।
इसी का नतीजा है कि देश तरक़्क़ी नहीं कर रहा है।
इसलिये उपरोक्त तीसरे दर्जे के सम्बन्ध तो बाद में बनेंगे पहले दूसरे दर्जे तक आ जाएं यानी दोनों एक दूसरे के मामले में दख़ल न दें।
एक दूसरे के धार्मिक मामलों और धर्मस्थलों में अगर सहयोग न करें तो अड़चन भी न डालें।
एक दूसरे के खान पान से सरोकार न रखें।
किसी भी मामले को साम्प्रदायिकता से न जोडें।

इस तरह के माहौल को बिगाड़ने वालों को देश का दुश्मन समझते हुए उनके ख़िलाफ़ सब एकजुट होकर उनको सबक़ सुखाएं।
इस सब का लाभ यह होगा कि देश इन खुराफ़ाती लोगों के जाल से निकल कर तरक़्क़ी की राह पर चल पड़ेगा।

Sunday, December 13, 2015

भारत पाक सम्बन्धों का मुसलमानों पर प्रभाव Sharif Khan

देश का जब बटवारा हुआ और पाकिस्तान वजूद में आया तो अपने घर परिवार को छोड़ कर पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों के सम्बन्ध में साम्प्रदायिकता वादी हिन्दू इस प्रकार का दुष्प्रचार करते हैं कि जिन मुसलमानों के दिल में देशप्रेम की भावना नहीं थी वही पाकिस्तान गए थे जबकि हक़ीक़त यह है कि बहुत कम लोग ऐसे थे जो अपनी मर्ज़ी से वहां गए थे वरना ज़्यादातर मुसलमानों को ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था और इस काम को योजनाबद्ध तरीक़े से अमल में लाया गया था। 
दिल्ली की ही मिसाल लें तो वहां के जिन इलाक़ों में मुसलमान बहुसंख्या में थे वहां भी वह सुरक्षित न रह सके और हिन्दू गुण्डों ने सुरक्षा बलों की सहायता से उनको ख़ाली हाथ घर छोड़ कर कैम्पों में रहने के लिए मजबूर कर दिया था और इस प्रकार से पाकिस्तान जाने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था। दिल्ली की मिसाल इसलिये दी गई है ताकि समझा जा सके कि जब राजधानी में यह हाल था तो देश के दूसरे भागों में क्या रहा होगा। 
इसी योजना के तहत पूरे देश में मुसलमानों के लिये सफ़र तक करना असुरक्षित कर दिया गया था और मौक़ा मिलते ही कहीं भी हिन्दू गुण्डे उनको क़त्ल कर देते थे। यह सारा ज़ुल्म चूँकि सरकार की निगरानी किया जा रहा था इसलिये इस पर अंकुश लगाना सम्भव नहीं था।
 मुसलमानों के लिये पूरे देश में ऐसा माहौल बना दिया गया था कि वह न तो अपने घरों में सुरक्षित थे और न ही उनके लिए सफ़र करना सुरक्षित था। जो लोग जान बचाते हुए किसी तरह से पाकिस्तान जाने के लिए ट्रेन में या बस में बैठ भी जाते थे तो रास्ते में ट्रेन रोक कर उनको क़त्ल कर दिया जाता था। इसके अलावा देश के अन्दर भी मुसलमान मुसाफ़िरों का क़त्ल किया जाना आम बात हो गई थी।
इसके सबूत में उस वक़्त रहे गवर्नर जनरल लॉर्ड माउन्ट बेटेन द्वारा तत्कालीन प्रधानमन्त्री को भेजे गए ख़त की मिसाल दी जा सकती है जिसमें उन्होंने कालका से दिल्ली जाने वाली ट्रेन का हवाला देते हुए लिखा था कि मेरे दिल को इस खबर से बहुत चोट पहुँची है कि कालका से दिल्ली जाने वाली ट्रेनों को लगातार दो रातों में रास्ते में रोका गया और गार्डों की मौजूदगी में उन ट्रेनों में सफ़र कर रहे मुस्लिम मुसाफिरों को क़त्ल कर दिया गया जिनमें मेरे स्टाफ़ के लोग भी थे, जो मारे गए। ध्यान रहे उस ट्रेन में सफर कर रहे दूसरे मुसलमानों के साथ लॉर्ड माउन्ट बेटेन के मुसलमान बावर्ची को उसके परिवार सहित क़त्ल कर दिया गया था।
इस तरह की वारदातों से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सरकार द्वारा सुरक्षा बलों को निर्देश दिया गया हो कि हिन्दू गुण्डों द्वारा किये जाने वाले मुसलमानों के क़त्ल में रुकावट न डाली जाए। अगर ऐसा न होता तो ऐसी वारदातें एक बार होने पर रोक दी जातीं लेकिन ऐसा न होकर यह वारदातें बार बार अन्जाम दी जाती रही थीं।
मुसलमानों के इन सब हत्याकाण्डों में तत्कालीन सरकार का ऐसा ही निर्देश प्रतीत होता है जैसा 2002 में गुजरात में मुसलमानों को क़त्ल करने के लिए वहां के मुख्य मन्त्री द्वारा दिया जाना माना जाता है जिसका गवाह पूरा हिन्दोस्तान है। और इस प्रकार लगभग 20 लाख मुसलमानों की शहादत के बाद बचे हुए लुटे पिटे मुसलमान अपने घर मकान और माल असबाब के साथ ---- 'अपना दिल'------ भी भारत में छोड़ कर पाकिस्तान पहुंचे थे। 
यह बात भी ध्यान में रखने वाली है कि पाकिस्तान जाने वाले या यूं कहें कि खदेड़े जाने वाले मुसलमानों के परिवार भी इस प्रकार से छिन्न भिन्न हो गए थे कि किसी का बेटा वहां चला गया था तो उसका बाप यहाँ रह गया था तो किसी का भाई वहां चला गया था तो उसके भाई और बहन यहां रह गए थे। इस प्रकार से भारत में रहने वाले मुसलमान और यहाँ से पाकिस्तान गए हुए मुसलमान व उनकी सन्तानें आपस में इतने गहरे रिश्तों में जुड़े हुए हैं जिनको अलग नहीं किया जा सकता। 
मुसलमानों के प्रति नफ़रत यहीं समाप्त नहीं हुई थी बल्कि इसके बाद सरकारी तौर पर पाकिस्तान को दुश्मन देश घोषित किया गया ताकि यहाँ से जाने वाले मुसलमानों की सम्पत्ति को शत्रु सम्पत्ति कहकर उनके यहाँ बचे हुए परिवार से छीन कर ज़ब्त किया जा सके और इस प्रकार पाकिस्तान जाने वाले वाले मुसलमानों की चल सम्पत्ति को सरकार ने गुण्डों से लुटवा दिया और अचल सम्पत्ति को क़ानून बनाकर शत्रु सम्पत्ति के नाम पर सरकार द्वारा लूट लिया गया। 
इन परिस्थितियों में क्या यह सम्भव है कि भारत में रहने वाले या यहाँ से पाकिस्तान गए हुए मुसलमान दोनों में किसी देश का बुरा चाहेंगे? जिस प्रकार से भारत में आने वाली किसी आपदा पर भारत वासी मुसलमानों के पाकिस्तानी रिश्तेदार परेशान हो जाते हैं और भारत में रहने वाले अपने दोस्तों व रिश्तेदारों की ख़ैरियत का समाचार मिलने तक बेचैन रहते हैं तो क्या भारत के मुसलमान पाकिस्तान में आने वाली किसी आपदा के समाचार पर अपने पाकिस्तानी सम्बन्धियों की सलामती की कामना नहीं कर सकते? क्या यह देश के प्रति गद्दारी है?
यहाँ से गए हुए मुसलमान चूँकि अपने परिवार के साथ अपना दिल भी भारत में छोड़ गए थे इसलिये वह दोनों देशों के बीच दोस्ती के माहौल की कामना करते हैं और जंग के हालात में पाकिस्तान की जीत की दुआ तो बेशक करते हैं लेकिन भारत में रहने वाले उनके परिवार और रिश्तेदारों की सुरक्षा के पेशेनज़र वह भारतवासियों का बुरा भी नहीं चाहते हैं क्योंकि वह पाकिस्तान बेशक चले गए हैं लेकिन उनकी जड़ें तो भारत में ही हैं और अक्सर भारत में रहने वाले उनके सगे सम्बन्धियों के अलावा उनके हिन्दू दोस्तों से भी प्रेम भावना देखने को मिलती है।
भारत के मुसलमानों की मानसिक स्थिति भी ऐसी ही है जिसको कोई भी भावुक इन्सान आसानी से समझ सकता है। भारत का मुसलमान जिस तरह अपने देश की तरक़्क़ी चाहता है उसी तरह पाकिस्तान का अहित भी नहीं चाहता। इसी को भारत का हिन्दू समाज देश से गद्दारी कहकर मुसलमानों के प्रति अपनी नफ़रत का इज़हार करने में भी शर्म महसूस नहीं करता है।
सोचने की बात यह है कि भारत का हिन्दू अगर नेपाल के हित की कामना करे तो कोई हर्ज नहीं और अगर मुसलमान भारत के साथ पाकितान के हित में भी दुआ करे तो गद्दार कहलाता है।
मुसलमानों को प्रताड़ित करने की योजना के तहत पाकिस्तान से भारत की यात्रा को मुसलमानों के लिए काफ़ी जटिल कर दिया गया है और साथ में केवल तीन स्थानों पर जाने का वीज़ा दिया जाता है और यदि वह वीज़ा में दर्शाए गए स्थानों के अलावा कहीं पकड़ा जाता है तो उसके साथ विदेशी एजेंट जैसा बर्ताव किया जाता है चाहे वह उस स्थान पर अपने किसी सम्बन्धी की मौत में ही गया हो। इसी प्रकार भारत से जाने वाले मुसलमान को भी वापस लौटने के बाद शक की नज़र से देखा जाने लगता है।
यही बात नागरिकता से सम्बन्धित है कि किसी पाकिस्तानी मुसलमान को भारत की नागरिकता मिलना असम्भव सा कर दिया गया है चाहे कोई लड़की किसी भारतीय के साथ विवाह करके पाकिस्तान से आई हो और चाहे उसके माता पिता भारत से ही पाकिस्तान गए हुए हों।     
इस प्रकार ऐसे हालात बना दिये गए हैं कि यदि किसी मुसलमान के घर कोई पाकिस्तानी अतिथि आता है तो जब तक वह ख़ैरियत के साथ वापस नहीं चला जाता तब तक वह अजीब तरह से ख़ौफ़ज़दा व बेचैन रहता है क्योंकि जहाँ हिंदुत्ववादी गुण्डों से देश का मुसलमान ही सुरक्षित नहीं है वहां वह अपने अतिथियों की सुरक्षा को किस प्रकार सुनिश्चित कर सकता है?
इन सब बातों के कारण भारत का मुसलमान हमेशा तनावग्रस्त रहता है और दोनों देशों के बीच मधुर सम्बन्ध क़ायम हों इस बात की कामना करता है।

Saturday, December 12, 2015

हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के बिना देश की तरक़्क़ी सम्भव नहीं है। Sharif Khan

दो सम्प्रदायों के बीच आपसी सम्बन्धों को तीन दर्जों में बांटा जा सकता है। 
1- यह कि, एक दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण करने का अवसर तलाश किया जाए और मौक़ा मिलते ही वार कर दिया जाए।
2- यह कि, एक दूसरे के मामले में कोई दख़लअन्दाज़ी न की जाए और जियो व जीने दो की नीति अपनाई जाए।
3- यह कि, एक दूसरे पर एहसान करके दिल जीता जाए।
आज़ादी से पहले हमारे देश में उपरोक्त दूसरे दर्जे के मुताबिक़ हिन्दू मुस्लिम भाईचारा क़ायम था और इसकी वजह शायद यह थी हिन्दू समाज के खुराफ़ाती तबक़े के ज़ुल्म सहने के लिये दलित समाज मौजूद था और मुसलमान गुण्डा तत्वों की ईंट का जवाब पत्थर से देने की क्षमता रखते थे इसलिये मुसलमानों के मामलों में दख़ल नहीं दिया जाता था।
उपरोक्त पहले दर्जे पर विचार करें तो बड़ी ही भयावह स्थिति नज़र आती है जिसके अंतर्गत बटवारा होने के बाद देश को दुर्भाग्य से पटेल जैसा गृहमन्त्री मिला जिसने ज़बरदस्ती मुसलमानों को पाकिस्तान जाने के लिये मजबूर किया था और लाखों मुसलमानों को क़त्ल करवाया था जिससे बाक़ी बचे मुसलमानों का मनोबल टूट गया। इसके साथ ही दलित समाज में जागृति पैदा हुई तथा उनको क़ानून का सहारा भी मिला लिहाज़ा वह तो हिन्दुओं के ज़ुल्म से मुक्त होते चले गए और मुसलमान योजनाबद्ध तरीक़े से किये जाने वाले उन खुराफ़ाती हिन्दुओं के ज़ुल्म का शिकार होते चले गए और यह सिलसिला आजतक जारी है।
इसी का नतीजा है कि देश तरक़्क़ी नहीं कर रहा है।
इसलिये उपरोक्त तीसरे दर्जे के सम्बन्ध तो बाद में बनेंगे पहले दूसरे दर्जे तक आ जाएं यानी दोनों एक दूसरे के मामले में दख़ल न दें।
एक दूसरे के धार्मिक मामलों और धर्मस्थलों में अगर सहयोग न करें तो अड़चन भी न डालें।
एक दूसरे के खान पान से सरोकार न रखें।
किसी भी मामले को साम्प्रदायिकता से न जोडें।

इस तरह के माहौल को बिगाड़ने वालों को देश का दुश्मन समझते हुए उनके ख़िलाफ़ सब एकजुट होकर उनको सबक़ सिखाएं।
इस सब का लाभ यह होगा कि देश इन खुराफ़ाती लोगों के जाल से निकल कर तरक़्क़ी की राह पर चल पड़ेगा।

Thursday, August 6, 2015

महिला नर्सें पुरुषों की नज़र में ज़ेहनी अय्याशी का सामान हैं। Sharif Khan

भारत पाक और बांग्लादेश की सम्मिलित संस्कृति पर ग़ौर करके देखें तो पुराने ज़माने से ही शर्म और हया सामाजिक चरित्र का ख़ास हिस्सा रही है। अपने गुप्तांगों पर बाहर के लोगों की नज़र पड़ सके यह तो दूर की बात है बल्कि अपने परिवार के लोगों की नज़रों से छिपाना भी उस शर्म का मुख्य भाग माना जाता रहा है। यहाँ तक कि बीमार होने पर भी कोई व्यक्ति यह नहीं चाहता कि उसकी बहन या बेटी उसकी तीमारदारी करते हुए उसके उन अंगों को छुए या देखे जिन को गुप्तांग या शर्मगाह कहते हैं।
मरीज़ों की तीमारदारी करने के लिए जिन नर्सों को रखा जाता है उनमें महिलाएं और पुरुष दोनों ही होते हैं जिनको खास तौर से मरीज़ों की देखभाल के लिए ट्रेनिंग दी जाती है और इस तरह से यह महिला और पुरुष नर्सें इन्सानों की अक्सर ऐसे मौक़े पर खिदमत करते हैं जबकि उनके सगे सम्बन्धी भी उनसे हाथ लगाने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाते। 
नर्स के पेशे में आने वाले महिलाएँ और पुरुष दोनों ही होते हैं जिसका फ़ायदा यह है कि महिला मरीज़ों को महिला नर्सों और पुरुष मरीज़ों के लिए पुरुष नर्सों कि सेवाएँ हासिल हो जाती हैं।
पुरुष प्रधान समाज ने यह बहाना बनाकर कि, महिलाएँ पुरुषों के मुक़ाबले में ज़्यादा नर्मदिल और ममतामयी होती हैं, लिहाज़ा महिला नर्सों को पुरुष मरीज़ों की सेवा के लिए भी लगा दिया जाता है जोकि उन महिलाओं के शोषण करने के लिए एक खूबसूरत बहाने के अलावा कुछ नहीं है। उन महिला नर्सों को पुरुष मरीज़ों के वह काम भी करने पड़ते हैं जिनको करने में पुरुष भी शर्माएं। एक ख़ास बात यह भी है जो पुरुष मरीज़, बीमारी की गम्भीरता के समय तो उस नर्स को इज्ज़त की पवित्र नज़रों से देखता था, वही बीमारी के ठीक होते होते उसी नर्स को मर्द-औरत के रिश्ते से देखने लगता है। 
इसके अतिरिक्त रात की ड्यूटी में अक्सर पुरुष डाक्टरों को अपने साथ ड्यूटी देने वाली महिला नर्सों के साथ अश्लील हरकतें करते हुए देखा जाना आम बात है।
इस तरह से पुरुष वार्डों में ड्यूटी देने वाली महिला नर्सें अगर खुद को उन मानव रूपी भेड़ियों से बचाए रखती हैं तब भी उनकी गन्दी नज़रों के साये में ज़हनी अय्याशी का शिकार तो होती ही हैं। 
इस तरह से दूसरों की खिदमत की भावना से जुड़े हुए नर्सिंग के इस पवित्र पेशे को ज़ेहनी अय्याशों ने इतना कुरूप कर दिया है कि उपरोक्त हकीकत को जानने वाले लोग अपनी लड़कियों के लिए इस पेशे को चुनने में झिझक महसूस करते हैं।
लिहाज़ा महिला नर्सों को इस प्रकार के शोषण से बचाने के लिए ज़रूरी है कि क़ानून के द्वारा इस बात को सख्ती से लागू किया जाए कि पुरुष मरीज़ों के लिए महिला नर्सों की सेवाएं न ली जा सकें और महिला मरीज़ों से पुरुष नर्सों को दूर रखा जाए। 

Monday, August 3, 2015

69 वां स्वतन्त्रता दिवस पर एक नज़र। Sharif Khan

15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास का सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण दिवस है और राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन हमारा देश अंग्रेजों की ग़ुलामी से आज़ाद हुआ था। इस आज़ादी को हासिल करने के लिए हज़ारों भारतवासियों को अपनी जानों की क़ुर्बानी देनी पड़ी थी। जहाँ एक ओर लोग अपनी जान की परवाह न करते हुए अंग्रेजी शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे वहीँ दूसरी ओर ऐसे अवसरवादी भी थे जो अंग्रेजों से मधुर सम्बन्ध रखते थे और आख़िरकार आज़ादी की प्राप्ति के बाद अहिंसा का सन्देश देने वाले गांधीजी को इन्ही अंग्रेजों से मधुर सम्बन्ध वालों ने क़त्ल कर दिया था।
एक लम्बी जंग में जान और माल की क़ुर्बानी देकर प्राप्त होने वाली आज़ादी के बाद देश का शासन उसी तबके के हाथ आया जिसकी आज़ादी प्राप्त करने में मुख्य भूमिका रही थी। इस प्रकार जनता द्वारा बेहतरीन लोगों को चुनकर उनको सत्ता सौंप दी गई और सुचारू रूप से देश का शासन चलता रहा। यह इसलिए सम्भव हुआ था क्योंकि उस समय शासक वर्ग के नेतागण समर्पण की भावना से शासन के रूप में देशसेवा करने का जज़्बा रखते थे।
इसके बाद दूसरी पीढ़ी का दौर आया जिसमें सरकार का निर्वाचन तो बेशक जनता द्वारा ही होता था लेकिन उसमें धनबल और बाहुबल का सहारा लिया जाने लगा था। ऐसी स्थिति में जिन दबंगों की सहायता से राजनेता चुने जाते थे उन king makers को इस एहसान के बदले में उपकृत किया जाना शासक वर्ग की मजबूरी बन गया था जिसके नतीजे में सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार को पनाह मिलनी शुरू हो गई।
इसके बाद तीसरा दौर शुरू हुआ जो बहुत ही भयावह साबित हो रहा है। इस दौर की शरुआत कुछ इस तरह हुई कि दूसरे दौर के king makers ने जब देखा कि उनकी मेहनत का दूसरे लोग लाभ उठा कर शासन कर रहे हैं तो उन्होंने खुद ही शासन की बागडोर सम्भालना बेहतर समझा और इस तरह दूसरे दौर में तो केवल राजनीति का अपराधीकरण ही हुआ था परन्तु इस तीसरे दौर में राजनीति का माफ़ियाकरण हो गया। इस बात को इस तरह भी कहा जा सकता है कि राजनैतिक माफ़िया देश के शासक बन गए हैं और इस गिरोह का देशहित से लगाव न होकर केवल सत्ता सुख भोगने पर ध्यान केन्द्रित है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि इन राजनैतिक माफ़ियाओं में ज़्यादातर उसी विचारधारा के लोग हैं जो आज़ादी की जंग में अंग्रेजों से मधुर सम्बन्ध बनाना हितकारी समझते थे।
एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि अंग्रेजों के लिए यह कहा जाता है कि उन्होंने 'फूट डालो और राज करो' की नीति को अपना कर हिन्दू मुस्लिम में फूट डलवाई थी ताकि यह एकजुट होकर सरकार के ख़िलाफ़ कोई साज़िश न करें परन्तु उनकी इस चाल से प्रभावित हुए बिना हिन्दू और मुसलमान एकजुट हुए और दोनों ने मिलकर अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। 
'फूट डालो और राज करो' की निति में अँगरेज़ तो कामयाब हो न सके थे लेकिन आज के राजनैतिक माफ़िया गिरोह ने पूरे समाज को धार्मिक और जातिगत भेदभाव में इस प्रकार बाँट दिया है कि सरकार बनाने लायक़ वोटों का ध्रुवीकरण करके बाक़ी पूरे समाज में बिखराव करा दिया है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि स्वतन्त्रता के नाम पर केवल सरकार का रूप बदला है बाकी कुछ नहीं बदला क्योंकि पहले अँगरेज़ देश को लूट रहे थे और अब यह राजनैतिक माफ़िया लूट रहे हैं।
इस प्रकार स्वतन्त्रता दिवस को पर्व के तौर पर मनाने का यह तरीक़ा होना चाहिए कि देश की जनता यह प्रतिज्ञा करे कि हर प्रकार के भेदभाव को दूर करके एक स्वच्छ वातावरण बनाया जायेगा और देशहित को प्राथमिकता देने वाले राजनेताओं को महत्व देते हुए राजनैतिक माफ़ियाओं के चंगुल से देश को आज़ाद कराया जाएगा।

Wednesday, January 7, 2015

मुसलमान चाहें तो 'घर वापसी' को भाजपा के ताबूत में आख़री कील बना दें। Sharif Khan

पाप का घड़ा भरने पर जब फूटता है तो पापी के अस्तित्व को मिटा देता है। भाजपा और उसके कुनबे द्वारा रथ यात्रा, मस्जिद विध्वंस और उसके बाद गुजरात में मुसलमानों के साथ हैवानियत का खेल खेलने के बाद देश भर के शैतानों का समर्थन प्राप्त करके केन्द्र में सत्ता प्राप्ति से उत्साहित होकर अब 'घर वापसी' के नाम से मुसलमानों को हिन्दू बनाने का जो अभियान चलाया जा रहा है यह कोई सामान्य बात नहीं है। इस अभियान के पीछे केवल मुस्लिम दुश्मनी होती तो उसको दो भाइयों के झगड़े की तरह से मिल बैठ कर समाप्त किया जा सकता था लेकिन मुसलमानों को हिन्दू बनाये जाने की मानसिकता केवल मुस्लिम दुश्मनी न होकर इस्लाम दुश्मनी है जिसका अर्थ यह है कि भारत से इस्लाम के वजूद को मिटाने की योजना बनाई गई है जिसके सबूत के तौर पर एक शैतान का यह कथन ही काफ़ी है कि 2021 तक देश में कोई मुसलमान न बचेगा या यूं कहिये कि देश से इस्लाम का अस्तित्व समाप्त कर दिया जाएगा। भाजपा का ग़ुलाम मीडिया इस योजना में बराबर का शरीक है। जब पाप का घड़ा भर चुका होता है तो हर दाव उल्टा पड़ने लगता है। यदि 'घर वापसी' का दाव उल्टा पड़ गया तो भाजपा की मौत निश्चित है।  
यदि इस बात को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो दुनिया भर में बसे हुए और रोज़ी रोटी के लिए गए हुए हिन्दुओं को इस अभियान की प्रतिक्रिया में बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है। 1972 में युगांडा से भारतीयों को जब निकाला गया था तो हालांकि उनको अपनी सम्पत्ति लेजाने का अधिकार दिया गया था लेकिन इसके बावजूद भी ऐसा लगता था जैसे लोग लुटे पिटे आये हों और इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया था।  
आज हिन्दू दुनिया के लगभग हर देश में मौजूद हैं लेकिन राजनैतिक दृष्टिकोण से दो तीन छोटे छोटे देशों के अलावा कहीं भी उनका वर्चस्व क़ायम नहीं है हालांकि बांग्लादेश जैसे देश में तो करोड़ों की तादाद में हैं जबकि मुसलमान भी दुनिया के हर देश में मौजूद हैं और दुनिया के लगभग एक तिहाई देशों में हुकूमत कर रहे हैं। 
मुसलमान आपस में चाहे कितने भी लड़ते हों लेकिन ऐसे तबके के लोगों को पसन्द नहीं करते जो इस्लाम के वजूद से ही नफ़रत करता हो और उसको मिटाने के अभियान पर काम कर रहा हो और अभियान भी ऐसे योजनाबद्ध तरीक़े से हो जिसमें 2021 तक की समय सीमा भी तय कर दी गई हो। 
यदि पूरा मुस्लिम समाज भारत के इन बदमाशों की इस योजना को सारी दुनिया के देशों में प्रचारित करना अपना धार्मिक कर्तव्य बना ले और केवल शैतानों के बयानात और मुसलमानों को हिन्दू बनाये जाने की तस्वीरें ही अपने हर ज़रिये को काम में लेते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित कर दे और इस प्रकार उसकी कहीं से भी प्रतिक्रिया आ गई तो निश्चित रूप से देश का हिन्दू समाज ही आर एस एस के अड्डे को उखाड़ फैंकेगा। यदि ऐसा हो सका तो भाजपा के ताबूत में तो यह आख़री कील साबित होगी। इसके बाद यह देश एक बार फिर हिन्दू मुस्लिम भाईचारे से महकता नज़र आएगा।