Tuesday, November 25, 2014

राष्ट्रपति पद की गरिमा और उसका रख रखाव। Sharif Khan

 भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपति का पद राजनैतिक गन्दगी से दूर एक विभूति के तौर पर सृजित किया हुआ माना गया है इसीलिए यह माना जाता है कि राष्ट्रपति एक ऐसा व्यक्ति होगा जो किसी के प्रति दुर्भावना न रखता हो, किसी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो और किसी भी प्रकार का पक्षपात करने वाला न हो।
यहाँ एक पूर्व राष्ट्रपति और दूसरे मौजूदा राष्ट्रपति की भूमिका पर नज़र डाल कर देखते हैं -
पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा 7 जनवरी 1993 को एक आर्डीनेन्स के द्वारा उच्च न्यायालय में चल रहे बाबरी मस्जिद के सभी मुक़दमों को निरस्त करके उच्चतम न्यायालय से इस सवाल का जवाब मांगा गया कि विवादित भवन के स्थान पर कोई दूसरा धार्मिक निर्माण था या नहीं।
क्या ऐसा नहीं लगता कि महामहिम को यह अन्देशा रहा हो कि यदि न्यायालय इन्साफ़ कर बैठा तो नाजायज़ मन्दिर के निर्माण का सपना साकार न हो सकेगा इसलिए इस मस्जिद की नींवें तक खुदवाने का प्रबन्ध कर दिया गया। इस तरह से देश के सर्वोच्च पद की गरिमा को धूल में मिला दिया गया। 
मौजूदा राष्ट्रपति की बात करें तो अफज़ल गुरु को बेगुनाह होते हुए भी न्यायालय द्वारा फांसी की सज़ा सुनाई गई थी जोकि अदालत की टिप्पणी से ज़ाहिर थी कि देश के ज़मीर की आवाज़ के मद्दे नज़र मौत की सजा दी जा रही है। 
अदालत के सही फ़ैसले के बावजूद भी जब राष्ट्रपति को फांसी की सजा माफ़ करने का अधिकार है तो अदालत के गलत फैसले से किसी बेगुनाह को फांसी से बचाना तो फ़र्ज़ हो जाता है लेकिन महामहिम के दिल में मुसलमानों के प्रति भड़क रही नफ़रत की आग को बुझाने के लिए एक बेगुनाह को शहीद कर दिया गया। 
इस तरह से एक बार फिर सर्वोच्च पद की गरिमा दाग़ी हो गई। 
यदि राज्यपाल की बात करें तो इस पद को तो राजनैतिक गन्दगी से पूरी तरह गन्दा कर दिया गया है जबकि यह पद राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर राज्य का सर्वोच्च पद होता है। 
मिसाल के तौर पर बाबरी मस्जिद को गिराने में मुख्य भूमिका निभाने वाले कल्यान सिंह को राज्यपाल बनाया जाना तो किसी तरह से भी उचित नहीं हो सकता। 
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के जन्मदिन के खर्च के स्रोत की बाबत पूछने पर सवाल पूछने वालों की मानसिकता के अनुरूप आज़म खां ने शानदार कटाक्ष किया कि पैसा दाऊद से मिला और अबु सुलेम से मिला और आतंकवादियों से मिला। इस कटाक्ष से सवाल करने वालों को शर्मिन्दा होकर  जाना चाहिए था लेकिन उत्तर  राजयपाल राम नाईक ने अपने आकाओं की नमक हलाली का हक़ अदा करने के लिए इसी को मुद्दा बना डाला और ऐसा लगता है जैसे आज़म खां के इस बयान को इक़रारी बयान मान कर आतंकवादियों से उनके रिश्ते साबित करने की क़सम खा ली हो। 
राजयपाल के पद की गरिमा इसी तरह दाग़दार होती है। 

Friday, September 5, 2014

सहशिक्षा देश के लिए घातक है। Sharif Khan

सहशिक्षा (coeducation) की इस्लामी शरीयत इजाज़त नहीं देती इसलिए अफ़ग़ानिस्तान जैसे ग़रीब मुल्क में लड़कियों के लिए अलग स्कूलों का प्रबन्ध किये बिना किस तरह से लड़कियों को स्कूली शिक्षा दी जा सकती है? इस बात को इस्लामी शरीयत से नफ़रत करने वाले लोगों द्वारा अफ़ग़ानिस्तान को लड़कियों की शिक्षा के विरोधी के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। इसी सन्दर्भ में यह बात भी जान लेनी चाहिए कि क़ुरआन और हदीस को समझने वालों में तालिबान पहले दर्जे में हैं क्योंकि वह इन पर अमल करना भी जानते हैं और कराना भी जानते हैं। इस प्रकार से लड़कियों के लिए यदि अपने देश में वह अलग स्कूलों का प्रबन्ध होने तक उनको स्कूल भेजने से रोकते हैं तो क्या हर्ज है? 
भारत में भी अच्छे संस्कारों की पृष्ठभूमि वाले परिवारों में सहशिक्षा को कभी अच्छा नहीं समझा गया है लेकिन देश में प्रशासन और न्यायपालिका द्वारा संविधान का सहारा लेकर व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के नाम पर जिस तरह से लिव इन रिलेशनशिप को जायज़ करके यौन सम्बन्ध बनाये जाने की आज़ादी दी गई है उससे व्यभिचार के दरवाज़े खुल गए हैं। यह बात अलग है कि लिव इन रिलेशनशिप में साथ रहते हुए बनाये गए यौन सम्बन्ध आपस में मनमुटाव होने पर यौन शोषण या बलात्कार मान लिए जाते हैं। इस प्रकार के माहौल में सहशिक्षा, शिक्षा के साथ यौन सुख भी उपलब्ध कराने का साधन बन रही है। इसका ही नतीजा है कि भारत में भी शिक्षा पूरी होने तक सहशिक्षा की बदौलत काफी संख्या में लड़कियां यौन सुख से परिचित हो चुकी होती हैं। इस कीमत पर गैरतमंद लोग तो अपनी लड़कियों को शिक्षा दिलाना कभी पसंद नहीं कर सकते चाहे वह रूढ़िवादी या शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए ही क्यों न कहलाएं। 
अमेरिका से शिक्षा प्राप्त लोगों को भारत में बहुत अच्छी नज़र से देखा जाता है जबकि वहां से शिक्षित 90 प्रतिशत लड़कियाँ शादी से पहले सैक्स का अनुभव प्राप्त कर चुकी होती हैं।
भारत में इस देश कि संस्कृति पर गर्व करने वाले संस्कारवान पारिवारिक पृष्ठभूमि के लोग देश की संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के मक़सद से अगर सहशिक्षा का विरोध करते है तो नासमझ लोग उसको तालिबानीकरण का नाम देते हैं। 
सहशिक्षा को स्वीकार करने के नतीजे में अपने ज़मीर को मुर्दा करना पड़ता है क्योंकि भारत में अमेरिका के दर्शन कराने वाले देश के कर्णधार सहशिक्षा, लिव इन रिलेशनशिप से सामाजिक मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाते हुए अगले क़दम के तौर पर एच आई वी के संक्रमण से बचाने का बहाना करके चरित्र पर ध्यान देने के बजाए कण्डोम की सहायता से सुरक्षित यौन सम्बन्ध अर्थात व्यभिचार के लिए प्रेरित करना देश की उन्नति में सहायक मान रहे हैं। 
इस प्रकार से यदि देश की संस्कृति की रक्षा करके भारत में एक साफ़ सुथरा माहौल बनाना चाहते हैं तो सहशिक्षा को समाप्त करना पड़ेगा। 

Tuesday, September 2, 2014

लव जिहाद की हकीकत। Sharif Khan

हिन्दू समाज में लड़कियों में शिक्षा का प्रतिशत काफी अधिक होने के कारण उनमें जो जागृति आई है उसके नतीजे में वह अपने समाज की कथनी और करनी में अन्तर के उस पाखण्ड से परिचित हो चुकी हैं जिसमें कहा तो जाता है कि "जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है" परन्तु यह बात कथन तक ही सीमित है क्योंकि इन्ही लोगों के कर्मों पर जब इस समाज की बेटियां नज़र डालती हैं तो अपने ही परिवार में स्वयं को एक बोझ की तरह महसूस करने लगती हैं। जब वह इस तथ्य से परिचित होती हैं कि उनका जन्म उनके माँ बाप के लिए एक अभिशाप जैसा है क्योंकि बचपन से ही वह माँ बाप को अपने विवाह की चिन्ता में ग्रस्त देखती हैं और यह भी देखती हैं कि इस समाज में बहुत सी लड़कियों का दहेज़ के बिना विवाह नहीं हो पाता है या फिर कम दहेज़ से विवाह होने के बाद ससुराल में प्रताड़ित किया जाता है और कभी कभी तो केवल कम दहेज़ के कारण बहु को जलाकर मारने के भी समाचार सुनने को मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त जब वह इस भयानक तथ्य से परिचित होती हैं, कि उनकी माँ के दोबारा गर्भ धारण करने के बाद जब डाक्टरी जांच से यह पता चला था कि फिर कन्या का जन्म होने वाला है तो माँ बाप ने उनकी उस बहन को पैदा होने से पहले ही मार डाला था, तो उनको ऐसे समाज से नफरत हो जाना अस्वाभाविक नहीं है।
 लड़कियों में आने वाली शिक्षा का एक प्रभाव यह भी पड़ा कि जब उन्होंने देखा कि लड़कियों के विवाह या कन्यादान को लड़कियों का दान माना जाता है, जबकि दान इंसान का न होकर जानवर या किसी वस्तु का होता है, तो उनको समाज में अपनी हैसियत का भी अन्दाज़ा हो गया। धर्म के नाम पर अपनी बेटियों को देवदासियों के रूप में वैश्या बनाया जाना भी धर्म के प्रति उनकी आस्था को डांवाडोल करने के लिए पर्याप्त साबित हुआ।
शिक्षा से हिन्दू समाज की लड़कियों में अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूकता आई है जिसके नतीजे में ऐसे घुटन भरे वातावरण और बेटियों के लिए असुरक्षित समाज को अगर लड़कियाँ तिलाञ्जलि देकर किसी बेहतर वातावरण वाले महिलाओं के लिए सुरक्षित समाज की ओर आकर्षित होती हैं तो यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
युवकों के हालात पर विचार करें तो हिन्दू समाज में युवक दहेज़ के बिना विवाह को अधूरा सा समझते हैं जबकि मुस्लिम समाज के युवकों में इस कुरीति ने अभी अपनी जड़ें नहीं जमाई हैं। इसके अतिरिक्त यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि आधुनिक शिक्षा प्राप्त युवा वर्ग काफी हद तक संस्कारहीन हो रहा है जिसके नतीजे में बेपर्दा और आधुनिक वेशभूषा वाली लड़कियां चूँकि हिन्दू समाज में अधिक हैं और विपरीत लिंग में आकर्षण प्राकृतिक है इसलिए मुस्लिम युवकों का हिन्दू युवतियों के प्रति आकर्षण और हिन्दू युवतियों की अपने समाज के प्रति नफ़रत और बेहतर समाज के प्रति झुकाव दोनों को एक होने के लिए प्रेरित करते प्रतीत होते हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो चूँकि इस्लाम धर्म किसी मुस्लिम के गैरमुस्लिम से विवाह को मान्यता नहीं देता इसलिए अपने सुरक्षित भविष्य के लिए बिना दहेज़ के किसी मुस्लिम युवक से विवाह का निर्णय लेने वाली हिन्दू लड़की आसानी से धर्म परिवर्तन करने को तैयार हो जाती है। यद्यपि केवल अल्लाह को राज़ी करने की नीयत से इस्लाम क़बूल करने ही को पसन्द फ़रमाया गया है लेकिन इस तरह से धर्म परिवर्तन भी अमान्य नहीं है यदि शेष जीवन को इस्लाम के मुताबिक़ ही ढाल लिया जाए।
 कुछ हिन्दूवादी संगठन अपनी ख़सलत के मुताबिक़ मुस्लिम दुश्मनी की भावना से प्रेरित होकर इस प्रक्रिया को लव जिहाद का नाम देकर बदनाम करके हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को चोट पहुंचा रहे हैं और ऐसा ज़ाहिर कर रहे हैं जैसे साज़िश के तौर पर मुसलमान अपने नौजवानों द्वारा हिन्दू लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाकर धर्म परिवर्तन कराने का अभियान चला रहे हों। इस प्रकार से वह यह भी भूल जाते हैं कि मुसलमान ऐसा करके अपनी लड़कियों के बदले में हिन्दू लड़कियों का विवाह करना कभी नहीं चाहेंगे। 
जिस तरह से लव जिहाद का नाम देकर ऐसे विवाहों और स्वेच्छा से किये गए धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले अराजक तत्व अगर इस प्रकार से मुस्लिम समाज द्वारा अपनाई गई लड़कियों का सर्वे करा कर देख लें तो वह अपनी दूसरी बहनों से ज़्यादा इज्जत और सुकून की ज़िन्दगी गुजारती नज़र आएंगी।