Sunday, December 25, 2016

मोदी के लिये देश की मज़लूम जनता फांसी की मांग कर रही है। Sharif Khan

जब कोई गुण्डा अपनी किसी मांग को पूरा कराने के लिये धमकी देता है कि अगर यह काम न किया तो जान से मार दूंगा तो इसको दण्डनीय अपराध मानते हुए अदालत सज़ा देती है।
मोदी ने नोटबन्दी करके जानबूझ कर देश को हानि पहुंचाने का काम किया और उसके बुरे नतीजे देखते हुए भी उस नादानी वाले फ़ैसले को बदलने के बजाय पचास दिन की समय सीमा इस शर्त पर तय कर दी कि यदि नाकामी हुई तो मुझे सार्वजनिक रूप से फांसी दे दे दी जाए। 
उपरोक्त दोनों बातों में जो समानता है उस पर यदि विचार किया जाए तो नतीजे के तौर पर यह बात सामने आती है कि 
दोनों मामलों में किसी काम में नाकामी के बदले में नाकाम शख़्स को क़त्ल किया जाना तय किया गया है। 
पहले मामले में ऐसी बात तय वाले शख़्स को सज़ा का हक़दार मान कर सज़ा दे दी जाती है जबकि दूसरे मामले में भी नाकामी होने पर क़त्ल किया जाना तय किया गया है चाहे क़त्ल ख़ुद को ही कराया जाना तय किया हो इससे जुर्म की नेचर प्रभावित नहीं होती है क्योंकि क़त्ल किया जाना तय किया गया है चाहे ख़ुद को कराया जाए या किसी दूसरे शख़्स को कराया जाए जुर्म समान है लिहाज़ा दूसरे मामले के मुलज़िम मोदी को क़त्ल की बात तय किये जाने के जुर्म में सज़ा से क्यों बचाया गया है। 
यह तो पचास दिन की समय सीमा तय करते समय तक का अपराध है।  इस समय तय किये गए पचास दिन पूरे होने जा रहे हैं और उस काम की नाकामी का यह हाल है कि इसकी वजह से हज़ारों लोग मौत के मुंह में चले गए हैं। देश की अर्थ व्यवस्था को जो हानि हुई है वह तो एक न एक दिन पूरी हो जाएगी और देश जितना पिछड़ गया है वह भी आर एस एस के चंगुल से निकलने के बाद उन्नति कर लेगा लेकिन जो लोग एक जुमलेबाज़ की नादानी से नोटबन्दी के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं वह तो लौट कर आ नहीं सकेंगे। ऐसी स्थिति में इन मौतों का ज़िम्मेदार मोदी के अलावा कोई नहीं है इसलिये यह जानबूझ कर किये गए क़त्ल हैं और क़ातिल की सज़ा फांसी ही बनती है।  
ऐसी स्थिति में आशा तो यह की जाती है कि देश का यह अपराधी पचास दिन पूरे होने पर स्वयं फांसी लगा कर मर जाएगा लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो इन सब बातों के परिप्रेक्ष्य में न्यायपालिका से निवेदन है कि वह स्वयं संज्ञान लेते हुए इस पर कार्रवाई करे और दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी में आने वाले इस अपराध में फांसी की सज़ा तय करे। 

Tuesday, June 21, 2016

साला Sharif Khan

'साला' शब्द गाली के रूप में क्यों इस्तेमाल किया जाता है?
पत्नी जिसको हिन्दू धर्म में अर्धांग्नी कहते हैं और पवित्र क़ुरआन में तो पति पत्नी के रिश्ते को दो शब्दों में ही बड़ी ख़ूबसूरती से बयान कर दिया गया है कि , अनुवाद, "वह तुम्हारी लिबास हैं और तुम उनके लिबास हो" अर्थात् जिस तरह लिबास और जिस्म के बीच में कोई परदा नहीं होता इसी तरह पति पत्नी का सम्बन्ध है और जिस तरह लिबास जिस्म की ज़ीनत होता है उसी तरह पति पत्नी भी एक दूसरे की ज़ीनत होते हैं और जिस तरह लिबास जिस्म के ऐबों को ढकने के साथ उसकी हिफ़ाज़त भी करता है उसी तरह आदर्श पति पत्नी भी एक दूसरे के ऐब ढकने वाले और सुरक्षा करने वाले होते हैं।
अंग्रेजी में भी साले अर्थात पत्नी के भाई और बहन के पति के लिये एक ही शब्द 'ब्रोदर-इन-लॉ प्रयोग में लाया जाता है।
ईश्वरीय व्यवस्था के अनुसार भी महानतम स्थान पत्नी का ही होता है क्योंकि इसी से इंसान की नस्ल चलती है।
साले के रिश्ते की खूबसूरती को 'सारी ख़ुदाई एक तरफ़ और जोरू का भाई एक तरफ़' वाली कहावत चरितार्थ करती है।
उर्दू व फ़ारसी में साले के लिए 'बिरादर-ए-निसबती शब्द का प्रयोग किया जाता है।
साला चूँकि हिन्दी का शब्द है और हिन्दी में ही इसको गाली भी समझा जाता है लिहाज़ा हिन्दी भाषी समाज ही इसको गाली का रूप देने का ज़िम्मेदार है। इसकी वजह शायद यह है कि इस समाज में पत्नी चूँकि दान के रूप में प्राप्त होने वाली चीज़ होती है इसलिए उससे सम्बंधित रिश्तों को भी सम्मान योग्य नहीं समझा जाता। इसके सबूत में प्रचलित कहावतों को पेश किया जा सकता है जैसे 'साली आधी घरवाली'। क्या इससे ज़्यादा शर्मनाक बात की कल्पना की जा सकती है?
ऐसी ही विचारधारा के लोगों ने पत्नी के भाई के लिए प्रयोग किये जाने वाले 'साला' शब्द को गाली के रूप में मान्यता दे रखी है जबकि पति का भाई और पत्नी का भाई बराबर के सम्मान के हक़दार होते हैं। 
बराबरी के हक़ की मांग करने वाली महिलाऐं भी कभी यह मांग नहीं करती हैं कि जब हम अपने पति के भाईयों को देवर जी और जेठ जी जैसे सम्मान जनक अल्फ़ाज़ से नवाज़ती हैं तो हमारे भाईयों के लिए प्रयोग किये जाने वाले 'साला' शब्द को गाली का रूप क्यों दिया हुआ है?
 

Sunday, June 19, 2016

क्या संस्कृति, संस्कार, हया, शर्म आदि शब्द अर्थहीन चुके हैं? Sharif Khan

कल्पना कीजिये कि आपके किसी मित्र की पुत्री किसी बार में काम करती है और लोगों को शराब पेश करती है या किसी की पुत्री किसी होटल में वेटर का काम अंजाम देते हुए खाना परोसती है तो शायद आप ऐसे लोगों को अच्छी नज़र से न देखेंगे और न ही उनकी तारीफ़ करेंगे परन्तु यदि इस तरह के काम से कोई लड़की हवाई जहाज़ के मुसाफ़िरों की सेवा करती है तो एयर होस्टेस के खूबसूरत नाम से जानी जाती है और सभी लोग उसको इज़्ज़त देते हैं जबकि बार या होटल में तो वह केवल पीने खाने की चीज़ें ही परोसती है लेकिन हवाई जहाज़ में मुस्कुरा कर यात्रियों का दिल भी बहलाती है और ज़रूरत पड़ने पर सफ़ाई का काम भी करती है। 
इसका कारण सिर्फ़ यह है कि बार या होटल के काम में आपको संस्कृति, संस्कार, हया और शर्म आदि सब कुछ याद रहते हैं और उनके काम ऐब बन जाते हैं लेकिन हवाई परिचारिका के तौर पर किये जाने वाले इन्ही कामों में उनकी खूबियां नज़र आने लगती हैं। 

Saturday, June 18, 2016

पुरुषों की यह गन्दी सोच भी सोचने लायक़ है। Sharif Khan

जब किसी अधेड़ उम्र के शख़्स की पत्नी मर जाती है और उसके छोटे बच्चे भी होते हैं तब वह दूसरा विवाह करने के लिए अपने दोस्तों व रिश्तेदारों से किसी महिला की तलाश के लिए कहता है। जब उससे उसकी पसन्द के बारे में पूछा जाता है तो वह अपनी फ़रमाईश बताते हुए कहता है कि ऐसी विधवा हो जिसके बच्चे न होते हों। इसका सीधा सा अर्थ होता है कि उसको अपने सुख दुःख में साथ देने वाली लाईफ़ पार्टनर के बजाए ऐसी ग़ुलाम चाहिए जो उसके बच्चों की परवरिश के साथ उसकी शारीरिक भूख भी शान्त करती रहे।
इसके अलावा अगर कोई ऐसी महिला के सम्बन्ध में बात करता है जो बच्चे वाली विधवा हो तो उससे वह शख़्स इस शर्त पर विवाह करने के लिए तैयार होता है कि बच्चे को वह अपने साथ नहीं रखेगी।
ऐसी स्थिति में उस यतीम बच्चे को बाप का साया उठने के बाद माँ की गोद से भी महरूम करके उसकी नानी की परवरिश में दे दिया जाता है। इस तरह एक विधवा होने के दुःख को झेल रही अबला नारी की ममता का भी गला घोंट दिया जाता है। इस तरह किसी दूसरी औरत की मौत के बाद उसके छोड़े हुए बच्चे या बच्चों की एक ऐसी महिला से परवरिश कराई जाती है जिसके बच्चे को उसकी गोद से छीन लिया गया हो।
ऐसी सोच रखने वाले लोगों से महिलाओं के अधिकारों की अदायगी की आशा नहीं की जा सकती और समाज को चाहिए कि ऐसी सोच रखने वाले ज़ालिमों की निन्दा करे।

Wednesday, June 15, 2016

'यथा राजा तथा प्रजा' कहावत को लोकतन्त्र ने बदल कर 'यथा प्रजा तथा राजा' कर दिया। Sharif Khan

जब कोई सरकारी कर्मचारी रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाता है तो उसके परिवार और जान पहचान के लोग उसकी मदद के लिए दिन रात एक कर देते हैं और उनकी कोशिशों से अक्सर उससे बड़े भ्रष्ट अधिकारी रिश्वत लेकर उसको छोड़ देते हैं। इसी प्रकार से जब कोई दुकानदार मिलावट करने, कम तोलने या नकली माल बेचने के जुर्म में पकड़ा जाता है तो उसके हिमायती भी उसको बेदाग बचा लेते हैं। इतना ही नहीं चोरी, बलात्कार, धोखा और क़त्ल करने जैसे अपराधियों के समर्थकों की भी कमी नहीं है। इस प्रकार से कुल मिलाकर ऐसे भ्रष्ट और उनके समर्थक तादाद के हिसाब से यदि देखा जाये तो वह बहुमत में हैं। ऐसे ही लोग चुनाव के समय यह कहते हुए देखे जा सकते हैं की अमुक व्यक्ति को वोट देने से अगर वह जीतता है तो वक़्त पर काम आयेगा। 'वक़्त पर काम' आना उनकी भाषा में यह है की जब हमारा कोई आदमी किसी अपराध में पकड़ा जायेगा तो उसको छुड़ाने में मददगार साबित होगा। जो लोग विकास, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा आदि की बेहतरी को चुनाव के लिए पैमाना बनाते हैं वह तादाद में अल्पमत में रहते हैं इसलिए सरकार बनाने के लिए निर्वाचित सदस्यों में गुण्डों, बदमाशों और विभिन्न प्रकार के माफियाओं का बहुमत होता है। यही हमारे देश का दुर्भाग्य है। अच्छे और साफ़ छवि के प्रत्याशी तब तक नहीं चुने जा सकते जबतक की उनको चुनने वाले वोटर भी स्वच्छ विचारधारा के लोग न हो। 
इस प्रकार 'यथा राजा तथा प्रजा' की कहावत लोकतन्त्र में बदल कर 'यथा प्रजा तथा राजा' हो जाती है। 

Tuesday, June 14, 2016

एक हक़ीक़त यह भी है। Sharif Khan

क्या आपने कभी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचा है जो फ़ाक़े से होने के बावजूद भी किसी के आगे हाथ फैलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है और कोई उसको भूख से बेहाल न समझे इसलिये घर से बाहर निकलते वक़्त सींक से दांत कुरेदने लगता है।

Sunday, June 12, 2016

हिन्दू मुस्लिम जब पहले भाई भाई की तरह रहते थे तो अब क्यों नहीं रह सकते? Sharif Khan

भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा झूठ अंग्रेज़ों पर 'फूट डालो और राज करो' का आरोप है। अंग्रेज़ों के शासन काल में अगर हिन्दू मुस्लिम भाईचारा न होता तो देश अंग्रेज़ों के चंगुल से न छूटता। जब हिन्दू मुस्लिम भाईचारे ने देश आज़ाद करा दिया तो दोनों के दरमियान फूट वाली बात स्वतः ही गलत साबित हो जाती है। हालांकि हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को चोट पहुँचाने वाले आर एस एस जनित हिन्दुत्व ने उसी समय से अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दी थीं और इस प्रकार के हिन्दुत्व वादियों के नैतिक पतन का यह हाल था कि बजाय आज़ादी की जंग में भाग लेने के वह लोग क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों से मधुर सम्बन्ध बनाने में भी नहीं चूकते थे।  
'फूट डालो और राज करो' के फार्मूले पर अमल देखना है तो आज का हिन्दोस्तान देख लीजिये। इस समय एक ओर तो उसी हिन्दुत्ववादी सम्प्रदाय की तीसरी पीढ़ी जन्म ले चुकी है और साथ ही इस पीढ़ी को उत्तराधिकार में मिला मुसलमानों से दुर्भाना वाला हिन्दुत्व मुसलमानों के प्रति नफ़रत में परिवर्तित होकर चरम सीमा पर पहुँच चुका है जिसके नतीजे में देश धरती के रूप में चाहे अखण्ड प्रतीत होता हो लेकिन हिन्दू मुस्लिम के रूप में खण्डित हो चुका है। इस पीढ़ी द्वारा मुसलमानों के हितों पर आघात किया जाना अभियान का रूप ले चुका है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो देश के बिखरने में देर नहीं लगेगी। 
देश को बिखरने से बचाने का और उन्नति की राह पर डालने का केवल एक ही रास्ता है और वह है हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को दोबारा क़ायम करना जोकि इस समय ज़्यादा मुश्किल नहीं है। मुश्किल इसलिए भी नहीं है क्योंकि देश में हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को खण्डित करने और साम्प्रदायिकता का बीज बोने वाले जितने भी अराजक तत्व हैं वह भाजपा के रूप में एक जगह जमा हो चुके हैं लिहाज़ा इनकी पहचान करना कोई समस्या नहीं है। यदि देश के बुद्धिजीवी वर्ग, सामाजिक कार्यकर्त्ता और देश की उन्नति में योगदान करने के इच्छुक लोग भाजपा को देश के लिए अछूत बना सके तो हिन्दू मुस्लिम पहले की तरह भाई भाई की तरह रहने लगेंगे और मिलजुल कर देश को बिखरने से बचा लेंगे।

Friday, June 10, 2016

प्राची, योगी और साक्षी जैसे हिन्दुत्ववादियों के सितारे इस्लाम धर्म के लिये लाभकारी हैं। Sharif Khan

"हिन्दुस्तान को कांग्रेस मुक्त तो हमने कर दिया अब जरूरत है कि मुस्लिम मुक्त भारत बनना चाहिए जिस पर हम काम कर रहे हैं।"
यह हिन्दुत्ववादियों की गेरुए वस्त्र धारी एक ऐसी अर्ध विक्षिप्त औरत का बयान है जो योगी आदित्य नाथ और साक्षी महाराज जैसे लम्पटों की टीम की सदस्या होने के कारण हिन्दुत्ववादियों की स्टार प्रचारक का दर्जा रखती है।
किसी भी समझदार हिन्दू का ऐसे बयानों से इस्लाम के प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक है क्योंकि हर आदमी यह जानना चाहता है कि जिस सम्प्रदाय से भारत को मुक्त किये जाने का प्रण किया जा रहा है वह सरकारी और ग़ैर सरकारी हर स्तर से प्रताड़ित होने के बावजूद भी दिन ब दिन फैलता ही जा रहा है और जितनी देर में इस औरत ने यह बयान दिया होगा, हो सकता है उस अन्तराल में भी देश में दस बीस लोग हिन्दू धर्म से पीछा छुटा कर इस्लाम में दाख़िल हो चुके हों।
इस प्रकार जो भी हिन्दू इस्लाम को समझ लेता है फिर एक पल के लिये भी गुमराही में नहीं रहना चाहता और सच्चाई का मार्ग पकड़ कर इस्लाम में दाख़िल हो जाता है।
किसी सच्चे धर्म के ख़िलाफ़ उसके दुश्मनों का उस धर्म के प्रति दुष्प्रचार भी उसके प्रचार में सहायक होता है। 
इस प्रकार मुस्लिम समाज को हिन्दुत्ववादियों के इन स्टार प्रचारकों द्वारा एक सच्चे धर्म इस्लाम के ख़िलाफ़ बयान बाज़ी करने का आभारी होना चाहिए क्योंकि इनकी ऐसी ही हरकतों के कारण हिन्दू अपने धर्म को तिलांजलि देकर इस्लाम में दाख़िल हो रहे हैं।


Thursday, June 9, 2016

साक्षी, योगी और प्राची आदि के ख़िलाफ़ हिन्दू समाज के बुद्धिजीवियों को खुल कर सामने आना चाहिए। Sharif Khan

जिस तरह दुकानदार शोकेस में बेहतरीन चीज़ सेम्पिल के तौर पर रखता है उसी तरह साधु सन्यासी या धर्म के लिये अपना जीवन समर्पित करने वाले लोग अपने धर्म के शोकेस में सजाने लायक़ विभूतियां होती हैं जिनको देख कर हर इंसान का सर श्रद्धा से झुक जाता है और लोग उनके कथन को तो बहुमूल्य समझते ही हैं साथ में उनके द्वारा किये गए कार्यों अनुकरण करके सुकून हासिल करते हैं। मदर टेरेसा, गुरु नानक देव, हज़रत मुईनुद्दीन चिश्ती आदि महान लोग इसके उदहारण हैं।
इन सन्तों की वाणी बिलकुल ऐसी होती है कि जैसे इत्र की शीशी का ढक्कन खोल दिया हो और उससे पूरा माहौल महक गया हो।
ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के सनातन कहलाने वाले धर्म के सन्तों और ज्ञानियों को या तो बन्धक बना कर कहीं क़ैद कर दिया गया है या फिर अपनी इज़्ज़त बचा कर वह लोग स्वयं ही पलायन कर गए हैं और उनके स्थान का कुछ पाखण्डियों ने अतिक्रमण किया हुआ है जिनमें योगी आदित्य नाथ, साक्षी महाराज, प्राची आदि के नाम विशेष तौर पर हाईलाईट हो रहे हैं। यह जब बोलते हैं तो ऐसा लगता है जैसे गन्दगी से भरे हुए किसी बर्तन का ढक्कन खोल दिया हो और पूरा वातावरण दुर्गन्धमय हो गया हो।
हिन्दू समाज का बुद्धिजीवी वर्ग स्वयं इन अनचाहे साधुवेश धारियों से सन्तुष्ट नहीं है परन्तु सरकारी संरक्षण प्राप्त होने के कारण यह गन्दे लोग हिन्दुत्व के नाम पर हिन्दू समाज को बदनाम कर रहे हैं। हिन्दू समाज की इन पाखण्डियों के प्रति उदासीनता देश में हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को हानि पहुंचा रही है इसलिए हिन्दू समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को अपनी ज़िम्मेदारी पहचानते हुए इन समाज दुश्मन तत्वों का खुल कर विरोध करना चाहिए।