Wednesday, July 14, 2010

parivartan तन्त्र का परिवर्तन वर्तमान की आवश्यकता sharif khan

भारतीय मूल के एक सज्जन, जोकि ब्रिटिश नागरिक हैं, का एक संस्मरण उन्हीं के शब्दों में सुनिए।
मैं और मेरी पत्नि लन्दन में रात को लगभग 2 बजे अपनी कार द्वारा अपने घर लौट रहे थे। हमारी गाड़ी की पीछे वाली लाइट टूटी हुई थी जिसको गश्ती पुलिस के एक सिपाही ने देख लिया और मोटरसाइकिल द्वारा हमारा पीछा करने लगा। घर चूँकि अधिक दूर नहीं रह गया था अतः घर के मेन गेट से हमारे अन्दर घुसते ही वह पुलिसमैन भी पहुंच गया। गाड़ी चँूकि मेरी पत्नि चला रही थीं अतः उन्हीं को सम्बोधित करते हुए उसने पहले तो ‘‘गुड मॉर्निंग मैडम’’ कहा और उसके बाद उसने कहा,‘‘मैडम, शायद आपको पता नहीं है कि आपकी गाड़ी की बैक लाइट टूटी हुई है। इसकी वजह से दूसरों के साथ आपको भी नुकसान पहुंच सकता है इसलिए गाड़ी चलाने से पहले आप इसको ठीक करा लीजिए।’’ इतना कहकर वह वापस चला गया।
यह बात सुनाकर वह सज्जन कहने लगे कि एक ऐसे देश का नागरिक होने पर हमें क्यों गर्व न हो जहाँ पुलिस विभाग से सम्बन्धित लोग तक इतना अच्छा व्यवहार करते हों और देश के नागरिकों का सम्मान करना अपना कर्तव्य तथा उस कर्तव्य का पालन करना अपना धर्म समझते हों।
इस मामूली सी घटना के बारे में पढ़कर सम्भव है आप इसकी तुलना हमारे देश की पुलिस के नागरिकों के प्रति व्यवहार से करें बल्कि दुव्र्यवहार कहना ज़्यादा उचित है क्योंकि सद्व्यवहार की तो पुलिस से आशा करना एक स्वप्न मात्र है। और ब्रिटेन के लोगों से ईष्र्या की भावना पैदा होने लगे। हमारे देश में पुलिस का नागरिकों के प्रति जो व्यवहार है उसको विस्तार में बताने की आवश्यकता इसलिए नहीं है कि आप दो घटनाओं का वर्णन करेंगे तो सुनने वाला उससे भी ज़्यादा दर्दनाक चार घटनाओं की जानकारी दे देगा। ऐसा नहीं है कि आम नागरिकों का पुलिस के द्वारा सताया जाना और उस ज़ुल्म को होते हुए खामोशी से देखना और चाहते हुए भी मज़लूमों की कोई मदद न कर सकना ही अफ़सोसनाक हो बल्कि उससे भी ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस सबको हम अपनी नियति समझकर ख़ामोश रहें। इसका हल तलाश करने के लिए हमको पुलिस के इतिहास पर नज़र डालनी पड़ेगी।
1857 की क्रांति की विफलता के बाद अंग्रेज़ों ने जब दोबारा भारत में शासन की बागडोर संभाली तब शासन को मज़बूती प्रदान करने के लिए सरकार को एक ऐसे तन्त्र की ज़रूरत पेश आई जिस का जनता में भय व्याप्त हो। इसी नीति के तहत अंगे्रज़ी सरकार ने पुलिस तन्त्र कायम किया जिसका मक़सद केवल जनता के दिल में ख़ौफ़ पैदा करके हुकूमत करना था और इसको कार्यरूप देते हुए जिस प्रकार की पुलिस अंग्रेज़ों ने बनाई उसका अन्दाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि अंग्रेजी सरकार की पुलिस के एक मामूली सिपाही का किसी गांव में आ जाना ही ग्रामवासियों को भयभीत करने के लिए काफी होता था। सरकार की यह योजना कामयाब भी रही परन्तु पुलिस को सरकार ने निरंकुश होकर जनता पर अत्याचार करने की छूट फिर भी नहीं दी। जिसके नतीजे में न तो उस ज़माने की पुलिस माया त्यागी कांड की तरह से किसी बेबस महिला को नंगा करके घुमाती थी, न फ़र्ज़ी मुठभेड़ में बेक़सूर लोगों को मारकर अपनी बहादुरी का सिक्का जमाती थी और न ही मुल्ज़िमों को प्यास लगने पर अपना मूत्र पिला कर अपनी राक्षसी प्रवृति का सबूत देती थी। आज की पुलिस के कारनामों की जानकारी समाचार-पत्रों, टी.वी. चैनलों तथा फिल्मों के द्वारा सभी लोगों को होती रहती है।
देश को आज़ादी मिलने के समय से वर्तमान समय तक के अन्तराल को हम नैतिक मूल्यों के आधार पर तीन भागों में बांट सकते हैं। देश को आज़ाद कराने में जिन लोगों ने जान और माल की कुर्बानी दी सही अर्थों में आज़ादी की कद्र वही लोग जानते थे। जब तक शासन की बागडोर ऐसे नेताओं के हाथों में रही तब तक प्रशासन भ्रष्ट नहीं हो सका और पुलिस पर भी शासक वर्ग का अंकुश रहा।
दूसरे चरण में शासन की बागडोर जिन लोगों के हाथों में आई उनमें देश के प्रति तो बेशक प्रेम, लगाव और सेवा भावना थी परन्तु सत्ता प्राप्त करने के लिए उन लोगों नें गुण्डों, बदमाशों और विभिé प्रकार के अपराधी तत्वों का सहारा लेना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार से अपराधी वर्ग के लोग किंग-मेकर की हैसियत से समाज के प्रतिष्ठित लोगों में सम्मिलित होने लगे और यहीं से नैतिक पतन आरम्भ हो गया। इसके साथ ही सरकार बनाने में सहायक रहे उन अपराधी वर्ग के लोगों को नाजाइज फायदे पहुंचाकर सन्तुष्ट करना शासक वर्ग की मजबूरी हो गई तथा इस प्रकार से शासक वर्ग द्वारा निर्देशित प्रशासन में भ्रष्टाचार पनपना शुरू हो गया। पुलिस विभाग में अपराधियों की बैठ-उठ शुरू होने से नैतिक मूल्यों में गिरावट लाजमी थी।
तीसरे चरण में देश की राजनैतिक व्यवस्था पर पूर्ण रूप से उन लोगों का क़ब्ज़ा हो गया जो दूसरे चरण में किंग-मेकर थे। इस प्रकार से अराजकता, भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता हमारे देश की राष्ट्रीय पहचान बन गईं।
वर्तमान भारतवासियों का और विशेष रूप से देश के युवा वर्ग का नायक कैसा हो इसके लिए जो मापदण्ड अपनाया गया उसको देखकर सर शर्म से स्वतः ही झुक जाता है। अब स्थिति यह है कि एक नाचने गाने वाले व्यक्ति को पूरे देश ने अपना हीरो स्वीकार कर लिया है। एक ईसाई पादरी को उसके दो मासूम बच्चों के साथ ज़िन्दा जला देने वाला अपराधी अपने क्षेत्र का नायक बन गया। गुजरात प्रदेश से जो नायक उभरकर आया उसके मानवता को कलंकित करने वाले कारनामे याद करके शायद ही कोई भावुक व्यक्ति स्वंय को व्यथित होने से रोक पाए। एक धर्मस्थल को गिराने का इरादा करके पूरे देश के धर्म विशेष के नागरिकों को आतंकित करके अपने इरादे को पूरा करने वाले बदनाम शख्स को भावी प्रधानमन्त्री के तौर पर पेश किया जाना भारतीय संस्कृति और सभ्यता को बदनाम करने के लिए पर्याप्त है। उपरोक्त धर्मस्थल को गिराने में मुख्य भूमिका निभाने वाले उस व्यक्ति का ज़िक्र करना भी आवश्यक है जिसने इस घिनौने कार्य को करने के बाद कहा था कि हमें गर्व है कि हमने देश से इस कलंक को मिटा दिया। आज वही व्यक्ति एक ऐसी राजनैतिक पार्टी के लीडर की आंखों का तारा बना हुआ है जो उस धर्मस्थल को बचाने का दम भरता था। कहने का तात्पर्य यह है कि अच्छाई और बुराई का पैमाना बदलने से देश के भविष्य के प्रति आशंका पैदा होना लाज़िम है।
देश के राजनैतिक स्वरूप को इतना विकृत करने के लिए देश की जनता ही ज़िम्मेदार है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति का कोई भी ऐब जनता से छिपा हुआ नहीं रहता यहांतक कि उस व्यक्ति द्वारा किए गए ऐसे अपराधों से भी जनता वाक़िफ़ रहती है जिनकी रिपोर्ट पुलिस द्वारा न लिखी गई हो। यदि देश के राजनैतिक ढांचे को चरित्रहीन लोगों के वजूद से पाक न किया गया तो विदेशों में ऋषियों और मुनियों का यह देश कहीं ग़ुण्डों, बदमाशों, बलात्कारियों, क़ातिलों, रिश्वतख़ोरों और आतंकवादियों का देश न कहलाने लगे और यथा राजा तथा प्रजा की उक्ति चरितार्थ न हो जाए।
इन तथ्यों का अवलोकन करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि देश जिस भयावह स्थिति की ओर जा रहा है यदि अब भी इसको बदलने की कोशिश न की गई तो आने वाली नस्लें हमें कभी माफ़ न करेंगी।
इस सबके बावजूद मायूस होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि संसार में कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जिसका हल मौजूद न हो और यह समस्या तो जनता ही की पैदा की हुई है क्योंकि देश को चलाने वाले नेता लोगों का चुनाव करना देश की जनता के ही हाथ में है चाहे वह स्वतन्त्रता के प्रथम दौर सरीखे मुल्क का दर्द रखने वाले चरित्रवान नेता हों या फिर मौजूदा दौर के जातिवाद को हवा देकर जोड़ तोड़ की राजनीति करने वाले सिद्धांतहीन लोग हों। इस समस्या के समाधान के लिए देश की जनता को प्रायश्चित् के तौर पर मानवता को कलंकित करने वाले राजनीतज्ञों के वजूद से देश को पाक करना पड़ेगा। इसके लिए जनता को चाहिए कि जब भी मौक़ा मिले साफ़ छवि के लोगों को चुनकर देश की बागडोर सम्भालने का अवसर दे। इसके पश्चात् नवनिर्वाचित सरकार प्राथमिकता के तौर पर यदि निरंकुश हो चुकी पुलिस को सुधार पाई तो हमारे देश के नागरिक भी स्वंय को अपमानित सा महसूस न करके सम्मान से जीवन व्यतीत करने के सुख से परिचित हो सकेंगे।

10 comments:

Unknown said...

nice post

Unknown said...

इन तथ्यों का अवलोकन करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि देश जिस भयावह स्थिति की ओर जा रहा है यदि अब भी इसको बदलने की कोशिश न की गई तो आने वाली नस्लें हमें कभी माफ़ न करेंगी।

Unknown said...

achchhi koshish hai

Anonymous said...

nice post

Anonymous said...

इस प्रकार से अराजकता, भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता हमारे देश की राष्ट्रीय पहचान बन गईं।

Unknown said...

इसके पश्चात् नवनिर्वाचित सरकार प्राथमिकता के तौर पर यदि निरंकुश हो चुकी पुलिस को सुधार पाई तो हमारे देश के नागरिक भी स्वंय को अपमानित सा महसूस न करके सम्मान से जीवन व्यतीत करने के सुख से परिचित हो सकेंगे।

सहसपुरिया said...

सरकार प्राथमिकता के तौर पर यदि निरंकुश हो चुकी पुलिस को सुधार पाई तो हमारे देश के नागरिक भी स्वंय को अपमानित सा महसूस न करके सम्मान से जीवन व्यतीत करने के सुख से परिचित हो सकेंगे।

Mahak said...

Part 1of 4

बहुत दिनों से एक विचार मेरे मन की गहराइयों में हिलोरे खा रहा था लेकिन उसे मूर्त रूप प्रदान करने के लिए आप सबका सहयोग चाहिए इसलिए उसे आप सबके समक्ष रखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था की पता नहीं कहीं वो असफल और अस्वीकार ना हो जाए लेकिन तभी ये विचार भी आया की बिना बताये तो स्वीकार होने से रहा इसलिए बताना ही सही होगा .

दरअसल जब भी मैं इस देश की गलत व्यवस्था के बारे में कोई भी लेख पढता हूँ, स्वयं लिखता हूँ अथवा किसी से भी चर्चा होती है तो एक अफ़सोस मन में होता है बार-2 की सिर्फ इसके विरुद्ध बोल देने से या लिख देने से क्या ये गलत व्यवस्थाएं हट जायेंगी , अगर ऐसा होना होता तो कब का हो चुका होता , हम में से हर कोई वर्तमान भ्रष्ट system से दुखी है लेकिन कोई भी इससे बेहतर सिस्टम मतलब की इसका बेहतर विकल्प नहीं सुझाता ,बस आलोचना आलोचना और आलोचना और हमारा काम ख़त्म , फिर किया क्या जाए ,क्या राजनीति ज्वाइन कर ली जाए इसे ठीक करने के लिए ,इस पर आप में से ज़्यादातर का reaction होगा राजनीति !!! ना बाबा ना !(वैसे ही प्रकाश झा की फिल्म राजनीति ने जान का डर पैदा कर दिया है राजनीति में कदम रखने वालों के लिए ) वो तो बहुत बुरी जगहं है और बुरे लोगों के लिए ही बनी है , उसमें जाकर तो अच्छे लोग भी बुरे बन जाते हैं आदि आदि ,इस पर मेरा reaction कुछ और है आपको बाद में बताऊंगा लेकिन फिलहाल तो मैं आपको ऐसा कुछ भी करने को नहीं कह रहा हूँ जिसे की आप अपनी पारिवारिक या फिर अन्य किसी मजबूरी की वजह से ना कर पाएं, मैं सिर्फ अब केवल आलोचना करने की ब्लॉग्गिंग करने से एक step और आगे जाने की बात कर रहा हूँ आप सबसे

Mahak said...

आप सबसे यही सहयोग चाहिए की आप सब इसके मेम्बर बनें,इसे follow करें और प्रत्येक प्रस्ताव के हक में या फिर उसके विरोध में अपने तर्क प्रस्तुत करें और अपना vote दें
जो भी लोग इसके member बनेंगे केवल वे ही इस पर अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में publish कर सकते हैं जबकि वोटिंग members और followers दोनों के द्वारा की जा सकती है . आप सबको एक बात और बताना चाहूँगा की किसी भी common blog में members अधिक से अधिक सिर्फ 100 व्यक्ति ही बन सकते हैं ,हाँ followers कितने भी बन सकते हैं
तो ये था वो सहयोग जो की मुझे आपसे चाहिए ,
मैं ये बिलकुल नहीं कह रहा हूँ की इसके बदले आप अपने-२ ब्लोग्स लिखना छोड़ दें और सिर्फ इस पर ही अपनी पोस्ट डालें , अपने-2 ब्लोग्स लिखना आप बिलकुल जारी रखें , मैं तो सिर्फ आपसे आपका थोडा सा समय और बौद्धिक शक्ति मांग रहा हूँ हमारे देश के लिए एक बेहतर सिस्टम और न्याय व्यवस्था का खाका तैयार करने के लिए


1. डॉ. अनवर जमाल जी
2. सुरेश चिपलूनकर जी
3. सतीश सक्सेना जी
4. डॉ .अयाज़ अहमद जी
5. प्रवीण शाह जी
6. शाहनवाज़ भाई
7. जीशान जैदी जी
8. पी.सी.गोदियाल जी
9. जय कुमार झा जी
10.मोहम्मद उमर कैरान्वी जी
11.असलम कासमी जी
12.राजीव तनेजा जी
13.देव सूफी राम कुमार बंसल जी
14.साजिद भाई
15.महफूज़ अली जी
16.नवीन प्रकाश जी
17.रवि रतलामी जी
18.फिरदौस खान जी
19.दिव्या जी
20.राजेंद्र जी
21.गौरव अग्रवाल जी
22.अमित शर्मा जी
23.तारकेश्वर गिरी जी

( और भी कोई नाम अगर हो ओर मैं भूल गया हों तो मुझे please शमां करें ओर याद दिलाएं )

मैं इस ब्लॉग जगत में नया हूँ और अभी सिर्फ इन bloggers को ही ठीक तरह से जानता हूँ ,हालांकि इनमें से भी बहुत से ऐसे होंगे जो की मुझे अच्छे से नहीं जानते लेकिन फिर भी मैं इन सबके पास अपना ये common blog का प्रस्ताव भेजूंगा
common blog शुरू करने के लिए और आपको उसका member बनाने के लिए मुझे आप सबकी e -mail id चाहिए जिसे की ब्लॉग की settings में डालने के बाद आपकी e -mail ids पर इस common blog के member बनने सम्बन्धी एक verification message आएगा जिसे की yes करते ही आप इसके member बन जायेंगे
प्रत्येक व्यक्ति member बनने के बाद इसका follower भी अवश्य बने ताकि किसी member के अपना प्रस्ताव इस पर डालते ही वो सभी members तक blog update के through पहुँच जाए ,अपनी हाँ अथवा ना बताने के लिए मुझे please जल्दी से जल्दी मेरी e -mail id पर मेल करें

mahakbhawani@gmail.com

Mahak said...

हमारे इस common blog में प्रत्येक प्रस्ताव एक हफ्ते के अंदर अंदर पास किया जायेगा , Monday को मैं या आप में से इच्छुक व्यक्ति अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में डाले ,Thursday तक उसके Plus और Minus points पर debate होगी, Friday को वोटिंग होगी और फिर Satuday को votes की गणना और प्रस्ताव को पास या फिर reject किया जाएगा वोटिंग के जरिये आये हुए नतीजों से

आप सब गणमान्य ब्लोग्गेर्स को अगर लगता है की ऐसे कई और ब्लोग्गेर्स हैं जिनके बौधिक कौशल और तर्कों की हमारे common ब्लॉग को बहुत आवश्यकता पड़ेगी तो मुझे उनका नाम और उनका ब्लॉग adress भी अवश्य मेल करें ,मैं इस प्रस्ताव को उनके पास भी अवश्य भेजूंगा .

तो इसलिए आप सबसे एक बार फिर निवेदन है इसमें सहयोग करने के लिए ताकि आलोचना से आगे भी कुछ किया जा सके जो की हम सबको और ज्यादा आत्मिक शान्ति प्रदान करे
इन्ही शब्दों के साथ विदा लेता हूँ

जय हिंद

महक