परिवार में यदि कोई बीमार हो जाए तो उसका इलाज करने वाला डाक्टर सबके लिए सम्मान का पात्र होता है। पूरे परिवार को उसके रूप में ख़ुशी और राहत दिखाई पड़ती है। ऐसे सम्माननीय पेशे को कुछ लोगों ने लालचवश बदनाम कर दिया है। दो वर्ष पहले की बात है, मेरी पत्नि के सीने में दर्द महसूस होने पर शहर के इकलौते हृदयरोग विशेषज्ञ के नर्सिंग होम में ले जाने का इत्तेफ़ाक़ हुआ। वहां का अजीब हाल देखकर दिल को दुःख हुआ। पहली बात तो यह है कि घर से चलते समय वह केवल सीने में हल्के दर्द की शिकायत कर रही थीं परन्तु डॉक्टर की निगरानी में पहुंच कर वह मानसिक रूप से भी दिल की बीमार हो गईं। उनके शरीर से कुछ उपकरण जोड़ दिये गए जिनकी रीडिंग किसी ने नहीं लीं। दूसरे दिन शाम तक डॉक्टर ने हम लोगों को इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने के लिए कहा कि एन्जियोग्राफ़ी के लिए नोएडा ले जाने की आवश्यकता पड़ सकती है। शुगर कण्ट्रोल करने के लिए जो दवा दी गई उसके एक घण्टे बाद शुगर 300 से बढ़कर 500 हो गई। रात को 11 बजे डॉक्टर ने फ़रमाया कि फ़ौरन नोएडा ले जाइए। हमको सुबह तक का वक्त भी देने के लिए तैयार नहीं थे। एक दूसरे डॉक्टर, जिनका पहले से इलाज चल रहा था, कहीं बाहर गए हुए थे। हमने उनका कॉन्टेक्ट नम्बर हासिल करके उनको स्थिति से अवगत कराया और दोनों डाक्टरों की परस्पर बात कराई। दूसरे डॉक्टर ने जब यह कहा कि ख़तरे की कोई बात नहीं है क्योंकि बी पी आदि सब नॉर्मल हैं तब जाकर मरीज़ा को नर्सिंग होम में रहने दिया गया और फिर कटाक्ष करते हुए डॉक्टर ने हमसे पूछा कि बताइए क्या ट्रीटमेण्ट दिया जाए क्योंकि अब तो हम आपके कहे अनुसार ही इलाज करेंगे। अगले दिन सुबह को हालत काफ़ी नॉर्मल हो गई और जब हमने मरीज़ा को घर ले जाने के लिए कहा तो डॉक्टर ने कहा कि अभी कम से कम दो दिन और एडमिट रहने दीजिए उसके बाद घर ले जाइएगा। बाद में एक बार किसी दूसरे हार्ट के मरीज़ को देखने के लिए नोएडा जाने का इत्तेफ़ाक़ हुआ तो उस अस्पताल के एक कमरे के बाहर हमने उन्हीं डॉक्टर साहब की नेम प्लेट लगी देखी तो सारा माजरा समझ में आ गया।
उलझन यह है कि जब मरीज़ा नर्सिंग होम में एडमिट थी और डॉक्टर के कहे अनुसार हालत ठीक नहीं होने के कारण डॉक्टर की निगरानी की ज़रूरत थी तो उस वक्त रात के 11 बजे नोएडा ले जाने के लिए कहना क्या अनुचित नहीं था। और जब हालत ठीक थी और डॉक्टर की निगरानी की ज़रूरत नहीं थी तो फिर दो दिन और रोकने का क्या औचित्य था।
यह तो एक छोटी सी घटना है। एक घिनौनी तथा मानवता को कलंकित करने वाली हरकत जो कुछ डॉक्टर मरीज़ों के साथ करते हैं, वह है कमीशनखोरी। पैथोलौजिकल टैस्ट, रोग के निदान में जितना सहायक होता है उससे ज़्यादा, पैथोलौजिस्ट के द्वारा मिला हुआ कमीशन, कमीशनख़ोर डॉक्टर की तन्दरुस्ती बढ़ाता है। अक्सर यह भी देखा गया है कि यदि अपनी इच्छानुसार किसी ऐसे पैथोलौजिस्ट से टैस्ट करा लिया गया हो, जिसकी डॉक्टर से सैटिंग नहीं है, तो उस टैस्ट रिपोर्ट को नकारते हुए दोबारा उस पैथोलौजिस्ट से जांच कराए जाने के लिए कह दिया जाता है, जिससे डॉक्टर की सैटिंग होती है। एक और नापाक हरकत कुछ डॉक्टर करने लगे हैं जिसकी जितनी भतर्सना की जाए कम है, वह यह है कि मरीज़ के ठीक होने पर एक और पैथोलौजिकल टैस्ट करवाया जाता है जिसके पर्चे में उस डॉक्टर के द्वारा एक निशान लगा दिया जाता है जो पैथोलौजिस्ट के लिए इस बात का निर्देश होता है कि उस पर्चे के मुताबिक़ टैस्ट न करके केवल नार्मल की रिपोर्ट देनी है तथा इस रिपोर्ट के बिल का पूरा धन डॉक्टर के खाते में जाना है। ऐसे डॉक्टर कम्पिनियों द्वारा दी गई सेम्पिल की दवाइयों के भी पैसे बनाने से नहीं चूकते क्योंकि सेवा भावना तो उनमें होती ही नहीं।
जो लोग बिना डॉक्टर के पर्चे के कोई टैस्ट कराना चाहते हैं उनसे भी पैथोलौजिस्ट पूरे ही पैसे लेता है क्योंकि वह इस बात से डरता है कि कहीं ऐसा न हो कि बाद में कभी यह डाक्टर के पर्चे से टैस्ट कराने आए तो कमीशनबाज़ी की पोल खुल जाएगी।
जो लोग डाक्टरी के पेशे में सेवा भावना से आए हैं उनको कमीशनख़ोरी तो दूर की बात है बल्कि ग़रीबों को मुफ़्त दवाई देते हुए भी देखा गया है। सही अर्थों में ऐसे लोग ही समाज में आदर और सम्मान पाने के योग्य हैं।
12 comments:
It is really true.
I want to summerise a more ugly incidence of our locality.
One of our neighbour was admitted in critical condition in ICU of a reputed hospital of Moradabad. Expenses were very high as usual. After 1-2 days stay the doctor, after making a drama, told the relatives that the patient needs to operate urgently and the servival chances are very low. And at the same time he forbidded any one to enter the ICU. But in the mean time one of the relative of the patient sneaked into the ICU and saw to his horror that the patient has already expired.
The doctor was trying to make more money on the dead body of his patient. One of the ugliest practices one can expect from a Doctor.
Iqbal Zafar
जनाब जब आदमी खुदा को भूल जाताहै तो फिर वह इंसान नहीं रह जाता . फिर चाहे व डाक्टर हो या कलमकार , नेता हो या धर्मगुरु , राजा हो या रंक . इन्सान बनने के लिए इबादत बहुत ज़रूरी है और वह सच्चे मालिक की और असली अर्थों में .
http://vedquran.blogspot.com/2010/08/submission-to-god-for-salvation-anwer.html
नमाज़ के ज़रिये होती है अहंकार से मुक्ति
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। सच पाने के लिए झूठ को और ज्ञान पाने के लिए अज्ञान को खोना ही पड़ेगा। ‘मैं बड़ा हूं‘ यह एक झूठ है, अज्ञान है, इसी का नाम अहंकार है। एक बन्दा जब नमाज़ में झुकता है और अपनी नाक खुदा के सामने ज़मीन पर रख देता है, अपने आप को ज़मीन पर डाल देता है, तब वह मान लेता है कि ‘खुदा बड़ा है‘ जो कि एक हक़ीक़त है।
इस हक़ीक़त के मानने से खुदा को कोई फ़ायदा नहीं होता, फ़ायदा होता है बन्दे को। वह झूठ, अज्ञान और अहंकार से मुक्ति पा जाता है, उसके अन्दर विनय और आजिज़ी की सिफ़त पैदा होती है। इसी सिफ़त के बाद इनसान ‘ज्ञान‘ पाने के लायक़ बनता है। ज्ञान पाने के बाद जब नमाज़ी उसके आलोक में चलता है तो उसे ‘मार्ग‘ स्पष्ट नज़र आता है। अब उसके पास मालिक का हुक्म होता है कि क्या करना है ? और क्या नहीं करना है ?
http://vedquran.blogspot.com/2010/09/real-sense-of-worship-anwer-jamal.html
रोज़े के ज़रिये मिलती है भक्ति की शक्ति
नमाज़ी के सामने ‘मार्ग‘ होता है और उसपर चलने का हुक्म भी लेकिन किसी भी रास्ते पर चलने के लिए ज़यरत होती है ताक़त की। हरेक सफ़र में कुछ न कुछ दुश्वारियां ज़रूर पेश आती हैं। ज़िन्दगी का यह सफ़र भी बिना दुश्वारियों के पूरा नहीं होता, ख़ासकर तब जबकि चलने वाला सच्चाई के रास्ते पर चल रहा हो और ज़माने के लोग झूठे रिवाजों पर। कभी ज़माने के लोग उसे सताएंगे और कभी खुद उसके अंदर की ख्वाहिशें ही उसे ‘मार्ग‘ से विचलित कर देंगी।
रोज़े के ज़रिये इनसान में सब्र की सिफ़त पैदा होती है। रोज़े की हालत में इनसान खुदा के हुक्म से खुद को खाने-पीने और सम्भोग से रोकता है जोकि उसके लिए आम हालत में जायज़ है। रोज़े से इनसान के अंदर खुदा के रोके से रूक जाने की सिफ़त पैदा होती है, जिसे तक़वा कहते हैं।
बहुत ही खराब हालत हैं, केवल डॉक्टर ही नहीं बल्कि हर पेशे की यही हालत है. मैं तो खुद डॉक्टरी इलाज के कुछ वाहियात नमूने पिछले दिनों भोग चूका हूँ.
इस विषय पर मेरी पोस्ट अवश्य पढ़ें.
बाप रे बाप, डॉक्टर!
खान साहब इस विषय में आपकी सारी चिंताएं जायज हैं. भ्रष्टाचार का घुन हमारे देश में हर आदमी पर लग चुका है और ये सबसे बड़ी समस्या है. ये डाक्टर भी तो हमारे ही समाज से निकले लोग हैं तो भला ये इस बीमारी से कैसे बच सकते हैं. मैं दिल से चाहता हूँ की हम सब लोग मिलकर इस भ्रष्टाचार के दानव के खिलाफ एक जेहाद छेड़ दें.
Iqbal Zafar sahib!
पूरा समाज इंसान की शकल में इन भेड़ियों के ज़ुल्म का शिकार है परन्तु इन के बिना काम भी नहीं चल सकता इसलिए इनके ज़ुल्म सहना लोगों की मजबूरी है. सरकार को जो क़दम उठाने चाहिए वह उसके लिए सक्षम नहीं है क्योंकि सरकार चलाने वाले नेता तो शकल सूरत के अलावा कहीं से भी इंसान नहीं नज़र आते. जनता कुछ करती है तो कानून हाथ में लेना मान कर उसकी आवाज़ को दबा दिया जाता है. लेकिन मायूस न होकर कुछ सोचना ज़रूर चाहिए. उसके लिए जो ईमानदार और सेवा भावना रखने वाले डाक्टर हैं उनको कम से कम सम्मानित तो किया ही जा सकता है ताकि अच्छे लोगों का कुछ तो हक अदा हो सके.
VICHAAR SHOONYA ji!
बुराई से लड़ने का नाम ही जिहाद है. आपकी बात बिलकुल सही है की सभी लोगों को मिलकर ऐसे भ्रष्ट और समाज दुश्मन लोगों के खिलाफ एकजुट हो जाना चाहिए.
आज भ्रष्टाचार समाज में ऐसे जड़ पकड़ गया है कि समाज के हर सरकारी गैरसरकारी विभाग में यह पूरी तरह आ चुका है समाज को इस भ्रष्टाचार से बचाने के उपाय डॉ अनवर साहब ने बताया है इस पर सभी बुद्धिजीवी ध्यान दें तो इसका सही हल निकल सकता है
कृपया मेरा नया लेख पढ़ें , (ज्ञान की रौशनी तक पहुँचने के लिए भ्रम के अंधेरों से निकलना पड़ता है । )
http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/09/blog-post_08.html
बिलकुल ठीक वर्णन किया है इन डाक्टरों का , एक बार इनके चंगुल में आ गए तो जब तक आपकी सेहत की दुर्दशा न कर दें तब तक छोड़ते ही नहीं ! दुआ मनाता हूँ कि इनके पास कभी न जाना पड़े ..अभी तो होमिओपैथी की कृपा से बचा हूँ
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