Wednesday, July 21, 2010

muslims and media भारत में मुसलमानों की छवि और मीडिया का चरित्र sharif khan

भारत आबादी के ऐतबार से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं मीडिया (पत्रकारिता) लोकतन्त्र के चार स्तम्भ माने जाते हैं। आज के युग में चतुर्थ स्तम्भ (मीडिया) का तो प्रत्येक क्षेत्र में इतना अधिक महत्त्व हो गया है कि इसके बिना देश का लोकतान्त्रिक ढांचा क़ायम रह पाना असम्भव प्रतीत होता है। समाचार पत्र व पत्रिकाएं उन खिड़कियों के समान है जिनके द्वारा देश की आन्तरिक स्थिति का बाहर से तथा वाह्य स्थिति का अन्दर से अवलोकन किया जा सकता है तथा यदि मीडिया को देश की आंखें व कान कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। अतः मीडिया रूपी आंखों व कानों का स्वस्थ होना अति आवश्यक है। जिस प्रकार बीमार आंखों से कभी एक के दो दिखाई देते हैं और कभी सब कुछ अस्पष्ट दिखाई देता है तथा रोगग्रस्त कानों से सत्यता का ज्ञान होना कठिन है उसी प्रकार यदि मीडिया निर्भीक, निष्पक्ष तथा स्पष्टवादी न होकर पूर्वाग्रह जैसे रोग से ग्रसित हो तो उसके द्वारा समाज की विचारधारा को ग़लत राह पर मोड़ दिये जाने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
देश के स्वतन्त्रता संग्राम में भारत की पत्रकारिता ने जो शानदार भूमिका निभाई वह सर्वविदित है। स्वतन्त्रता सेनानियों के दिलों में देशभक्ति की भावना जागृत करने तथा आवश्यकता पड़ने पर देश के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर देने की लालसा पैदा करने में मीडिया की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार यदि मीडिया गुजरात के जंगल राज से देश की जनता को अवगत न कराती तो वहां मुसलमानों के ऊपर किये गए ज़ुल्म, लूट व हज़ारों लोगों के क़त्ल से दुनिया के लोग अनभिज्ञ ही रहते। 1984 में प्रधानमन्त्री श्रीमति इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों पर जो अत्याचार हुए तथा हज़ारों बेकसूर सिखों की हत्या कर दी गई, इसका जिस निर्भीकता और निष्पक्षता से वर्णन किया गया उसके लिए मीडिया निःसंकोच तारीफ़ के क़ाबिल है। इसी प्रकार चाहे नेताओं के द्वारा किये गए घोटाले हों, भ्रष्टाचारियों के काले करतूत हों अथवा पुलिस की हैवानियत के मानवता को कलंकित करने वाले कारनामे हों, आदि के बारे में जनता को भलीभांति परिचित कराने का श्रेय मीडिया को ही जाता है।
मीडिया से जुड़े हुए व्यक्तियों का खोजी स्वभाव का होना तो आवश्यक है ही परन्तु इसके साथ यदि उनमें सत्यता, निष्पक्षता तथा निर्भीकता के गुण नहीं हैं तो उसका नतीजा बहुत बुरा निकलता है। अफ़सोस की बात यह है कि पिछले कुछ समय से कुछ ऐसे तत्वों का मीडिया में प्रवेश होता जा रहा है जिनमें सत्यता को जानने और निष्पक्षता से कार्य करने की भावना का अभाव है। बल्कि यह कहना अनुचित न होगा कि इस प्रकार के व्यक्ति हर घटना को साम्प्रदायिकता के चश्मे से देखने के आदी हो गए है। और ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यतः मुसलमानों के खिलाफ़ तो एक संगठित अभियान के रूप में इस षडयन्त्र पर कार्य किया जा रहा है।
अब कुछ ऐसे संगठन पैदा हो गए हैं जिनका मकसद देश में साम्प्रदायिकता फैलाकर आपसी भाईचारे को समाप्त करना है चाहे इस कार्य के लिए उनको कितना ही घिनौना कार्य करना पड़े। समाज को हिन्दू और ग़ैर-हिन्दू दो भागों में बांटने की नापाक कोशिश की जा रही है। ऐसे अराजक तत्वों ने गैर-हिन्दुओं (मुसलमान, ईसाई आदि) के अधिकारों का हनन ही हिन्दुत्व की परिभाषा मान लिया है। इसी मानसिकता के लोगों का वर्चस्व होने के कारण उनके इस कार्य में मीडिया भी बराबर की भागीदार प्रतीत होती है। देशहित के विरुद्ध किये जा रहे इस घृणित कार्य के इतनी त्वरित गति से होने के पीछे पुलिस का सहयोग भी अपने स्थान पर विशेष महत्त्व रखता है।
ग़ैर-हिन्दुओं में मुसलमान सबसे बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग है जिसकी छवि को धूमिल करने की ज़िम्मेदारी मीडिया ने अपने ऊपर ले रखी है जिसको वह बड़ी तत्परता से निभा रही है। देश में कहीं भी कोई आतंकवादी घटना यदि घटती है तो उसकी ज़िम्मेदारी मुसलमानों पर थोप दी जाती है। पुलिस फर्जी मुठभेड़ दिखाकर कुछ बेक़सूर मुसलमानों को मार देती है और कुछ को फ़रार दिखाकर कुछ और बेक़सूरों को मारने के लिए रास्ता खोले रखती है। यदि मीडिया ऐसे मामलों में निष्पक्षता से काम ले तो पुलिस के क्रूर हाथों से बेक़सूर मुसलिम नौजवान न मारे जाएं। मीडिया की मुसलमानों के प्रति दुर्भावना को सिद्ध करने के लिए बहुत से उदाहरण दिये जा सकते हैं।
यह मीडिया का ही कमाल है कि अबुल बशर नाम के एक ऐसे आलिम को, जो मोबाइल का प्रयोग तो दूर साइकिल तक चलाना तक न जानता हो, को तो आतंकवादियों के मास्टर माइण्ड के रूप में जनता के सामने पेश किया गया तथा इण्टरनेट का प्रयोग करने वाली, मोटरसाइकिल आदि चलाने वाली, बात बात में मुसलमानों के खिलाफ़ विषवमन करने वाली और रिवाल्वर से लेकर ए.के. 47 तक का प्रयोग करना जानने वाली प्रज्ञा सिंह को साध्वी के रूप में महिमामण्डित किये जाने में तनिक भी संकोच न किया गया।
सबसे ज्यादा अफ़सोसनाक बात यह है कि आर. एस. एस. के हिन्दुत्व वाली विचारधारा के लोगों की जो पौध तैयार की गई थी उसने अब परिपक्व होकर लगभग प्रत्येक राजनैतिक दल में तथा कुछ हद तक मीडिया में अपनी जड़ें जमा ली हैं जिसके नतीजे में देश की आज़ादी में हज़ारों जानें क़ुर्बान करने वाले मुस्लिम समाज को आतंकवादी दल का रूप देकर कलंकित करने में तनिक भी संकोच नहीं किया जाता है।
मुसलमानों की छवि धूमिल करने के इस अभियान में मीडिया काफी हद तक सफल रही है जिसके परिणामस्वरूप मुसलमानों को आतंक का पर्याय बना दिया गया है जोकि देशहित के पूर्ण रूप से खिलाफ़ है।

27 comments:

सहसपुरिया said...

मुसलमानों की छवि धूमिल करने के इस अभियान में मीडिया काफी हद तक सफल रही है जिसके परिणामस्वरूप मुसलमानों को आतंक का पर्याय बना दिया गया है जोकि देशहित के पूर्ण रूप से खिलाफ़ है।

Satish Saxena said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

हिन्दीवाणी said...

इस मुद्दे को आगे बढ़ाने की जरूरत है जनाब। आपने बिल्कुल सही लिखा है।

विश्‍व गौरव said...

ठीक कहते हैं आप

विश्‍व गौरव said...

सहसपुरिया से सहमत

विश्‍व गौरव said...

सतीश सक्सेना से सहमत

विश्‍व गौरव said...

किरमाणी भाई भी ठीक कहते हैं इस मुद्दे को आगे बढ़ाने की जरूरत है

Tafribaz said...

सतीश सक्सेना said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

Tafribaz said...

सतीश सक्सेना said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

Tafribaz said...

सतीश सक्सेना said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

Tafribaz said...

सतीश सक्सेना said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

Tafribaz said...

सतीश सक्सेना said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

Tafribaz said...

सतीश सक्सेना said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

Tafribaz said...

सतीश सक्सेना said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

Tafribaz said...

सतीश सक्सेना said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

Tafribaz said...

सतीश सक्सेना said...

धन के आगे देश हित और जिम्मेवारी की भावना को ताक पर रख कर कार्य किया जा रहा है, विगत लगभग ३ माह से न्यूज़ चैनल देखना ही बंद कर दिया है , वित्रश्ना सी होती है मन में !
सादर !

Anonymous said...

mind blowing post.

Saleem Khan said...

आपने बिल्कुल सही लिखा है।

Shah Nawaz said...
This comment has been removed by the author.
Shah Nawaz said...

केवल मीडिया को दोष देने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, हो सकता है आपकी बात में कुछ सत्य हो, लेकिन पूरा सत्य है, ऐसा मैं नहीं मानता हूँ. चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, तिल को तो ताड़ बनाया जा सकता है, लेकिन बिना तिल के ताड़ बनाना असंभव है. एक मुसलमान होने के नाते हमारा यह फ़र्ज़ है की हम अपने अन्दर फैली बुराईयों को दूर करने की कोशिश करें. केवल यह सोच कर संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है कि दुसरे समुदायों के अनुयायियों के द्वारा भी तो वही कार्य किया जा रहा है. हमारी कोशिश स्वयं को तथा अपने समाज को बुराइयों के दलदल से बाहर निकलने की होनी चाहिए, जिससे ना केवल भारत वर्ष बल्कि पुरे विश्व में शान्ति स्थापित हो सके.

आज हम माने अथवा ना माने लेकिन किसी ना किसी स्तर पर अवश्य पडौसी देश के द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार अथवा बेरोज़गारी के कारण हमारे देश के नौजवान इंसानियत के दुश्मनों की चालों का शिकार हो रहे हैं. यह एक खुली किताब है कि देश के दुश्मन चाहे वह पडौसी हो अथवा अपने ही देश के तथाकथित राष्ट्रवादी, आम जनों को इनकी चालों को समझ कर उनका मुंह-तोड़ जवाब देना अति आवश्यक है. और ऐसा केवल और केवल आपसी सद्भाव तथा भाई-चारे से ही संभव है.

दूसरों पर ऊँगली उठाना थोडा आसान कार्य है, लेकिन अपने अन्दर की गंदगी को साफ़ करना थोडा मुश्किल कार्य.

शरीफ खान जी दोष केवल मीडिया का नहीं बल्कि हमारा भी है

شہروز said...

बेहद नाज़ुक और जलते सवालों से आप ने जूझने की कोशिश की है.

شہروز said...

@ shahnawaz
केवल मीडिया को दोष देने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, हो सकता है आपकी बात में कुछ सत्य हो, लेकिन पूरा सत्य है, ऐसा मैं नहीं मानता हूँ. चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, तिल को तो ताड़ बनाया जा सकता है, लेकिन बिना तिल के ताड़ बनाना असंभव है. एक मुसलमान होने के नाते हमारा यह फ़र्ज़ है की हम अपने अन्दर फैली बुराईयों को दूर करने की कोशिश करें. केवल यह सोच कर संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है कि दुसरे समुदायों के अनुयायियों के द्वारा भी तो वही कार्य किया जा रहा है. हमारी कोशिश स्वयं को तथा अपने समाज को बुराइयों के दलदल से बाहर निकलने की होनी चाहिए, जिससे ना केवल भारत वर्ष बल्कि पुरे विश्व में शान्ति स्थापित हो सके.

आज हम माने अथवा ना माने लेकिन किसी ना किसी स्तर पर अवश्य पडौसी देश के द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार अथवा बेरोज़गारी के कारण हमारे देश के नौजवान इंसानियत के दुश्मनों की चालों का शिकार हो रहे हैं. यह एक खुली किताब है कि देश के दुश्मन चाहे वह पडौसी हो अथवा अपने ही देश के तथाकथित राष्ट्रवादी, आम जनों को इनकी चालों को समझ कर उनका मुंह-तोड़ जवाब देना अति आवश्यक है. और ऐसा केवल और केवल आपसी सद्भाव तथा भाई-चारे से ही संभव है.

दूसरों पर ऊँगली उठाना थोडा आसान कार्य है, लेकिन अपने अन्दर की गंदगी को साफ़ करना थोडा मुश्किल कार्य.

शरीफ खान जी दोष केवल मीडिया का नहीं बल्कि हमारा भी है

Anonymous said...

जब अपनो ने अपने से ही वफ़ा नही की तो जमाना, वक़्त, दुनिया ने भी बेफआई की रस्म निभाई

आपका अख्तर खान अकेला said...

sharif bhaayi bhut bhut shokriyaa jo sch likhne kaa saahs kiyaa aapki prstuti abhi ke dil ki aavaaz he or midiyaa se judaa hone ke kaarn men bhi ise sch maantaa hun lekin doshi bhi is maamle men men khud ko maanta hun desh men ultaa likhne vaalon ko szaa dene kaa praavdhaan he lekin kisi muslim ne doshi midiyaa krmi ko szaa nhin dilvaai jbki in thokron se bhi hm naa snbhle or haalaat yeh he ke aaj bhi hmaare log midiyaa se baahr he jo log midiyaa men he unme kaafi log moqaa prst or shraabkhor ho gye hen bs khudaa se yhi duaa he ke desh ko nishpksh midiya ke liyen hmaare bhaayi aayinaa dekhkr kaam krte rhen saasik post ke liyen aek baar fir bdhaayi. akhtar khan akela kota rajsthan

Anonymous said...

Islamic Personality

He / She is not a carrier of Malicious Reports

From Anas ibn Maalik (radiyallaahu 'anhu) who said that Allaah's Messenger (salallaahu 'alaihi wa'sallam) said: Do you know what calumny (al-'Adh) is? They said: Allaah and his Messenger (salallaahu 'alaihi wa'sallam) know best. He said: Conveying the words of some people to others in order to create mischief between them.

Bukharee


Tale-carrying is a foul disease; when it enters the heart it corrupts it, and when the heart is corrupt the rest of the body becomes corrupt and ones actions are destroyed. The sickness of tale-carrying only finds a place in hearts which are filled with love of this world, the hearts of those who use the Religion for lowly and despicable ends, and we seek Allaah's refuge from that!

DR. ANWER JAMAL said...

मैं अपने सभी साथियों, भाईयों और बुजुर्गों का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूं।

अनम की मौत ने हम सबको अहसास दिलाया है कि ज़िन्दगी महज़ चंद रोज़ा है, अस्थायी है । हमें यहां से जाना है।
काश ! हम यहां से वह ‘ज्ञान‘ लेकर जाएं जो हरेक अंधेरे को मिटा दे और हमारे दिलों में मालिक और उसके बंदो की मुहब्बत के चिराग़ जला दे।
आदमी के दिल में मुहब्बत हो तो फिर उसे दुख भी लज़्ज़त देने लगते हैं। जो मुहब्बत करता है वह इस लज़्ज़त को जानता है।
कुरआन मजीद में आस्तिक का एक प्रमुख गुण यही मुहब्बत बताया गया है।
वल्लज़ीना आमनू अशद्दू हुब्बल्-लिल्लाह
जो लोग ईमान वाले हैं वे परमेश्वर से अत्यंत प्रेम करते हैं। http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/07/extreme-love-anwer-jamal.html

Muhammad Ali said...

aapka ye khayal bilkul durust hai ki muslims ko nishana banaya ja raha hai aur isme loktantra ke charoon istambh poorn roop se sammilit hain.ab se pehle kabhi itna bura daur nahi aaya ki apni haq baat kehna itna mshqil ho jitna ki aaj hai.lekin aapko shat shat naman aur aapki koshish ko bhi salam jo sunee pade huee dimag ko sochne ki wajah di.thanx a lot.